Quote“আধ্যাত্মিকতা বিস্তারের পাশাপাশি বিশ্বাসের কেন্দ্রগুলি সামাজিক চেতনা ছড়িয়ে দেওয়ার ক্ষেত্রে একটি বড় ভূমিকা পালন করে”
Quote“রামনবমী অযোধ্যা এবং সমগ্র দেশে মহা ধুমধামের সঙ্গে পালিত হচ্ছে”
Quoteজল সংরক্ষণ এবং প্রাকৃতিক চাষের উপর গুরুত্ব আরোপ
Quote“অপুষ্টির যন্ত্রণা সম্পূর্ণরূপে নির্মূল করা দরকার”
Quote“কোভিড সংক্রমণ খুবই বিভ্রান্তিকর এবং এর বিরুদ্ধে আমাদের সজাগ থাকতে হবে”

सम्बर में माता उमिया धाम मंदिर और उमिया धाम कैम्पस के शिलान्यास का सौभाग्य मुझे मिला था। और आज घाटिला के इस भव्य आयोजन में आप ने मुझे निमंत्रित किया, इसका मुझे आनंद है। प्रत्यक्ष आया होता तो मुझे अधिक खुशी होती, परंतु प्रत्यक्ष नहीं आ सका, फिर भी दूर से पुराने महानुभावों के दर्शन हो सकते हैं, वह भी मेरे लिए खुशी का अवसर है।

आज चैत्र नवरात्र का नौंवा दिन है। मेरी आप सभी को मंगलकामना है कि मां सिद्धदात्री आप सभी की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करें। हमारा गिरनार जप और तप की भूमि है। गिरनार धाम में बिराजमान मां अंबा । और इसी तरह से शिक्षा और दिक्षा का स्थान भी यह गिरनार धाम है। और भगवान दत्तात्रेय जहां बिराजमान है, उस पुण्यभूमि को मैं प्रणाम करता हूं। यह भी मां का ही आशीर्वाद है कि हम सब साथ मिलकर सदैव गुजरात की चिंता करते रहे हैं, गुजरात के विकास के लिए प्रयत्नशील रहे हैं, गुजरात के विकास के लिए हमेशा कुछ न कुछ योगदान देते रहे हैं और साथ मिलकर कर रहे हैं।

मैंने तो इस सामूहिकता की शक्ति का हमेशा अनुभव किया है। आज जब प्रभु रामचंद्र जी का प्रागट्य महोत्सव भी है, अयोध्या में अति भव्यता से उत्सव मनाया जा रहा है, देशभर में मनाया जा रहा है, वह भी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण बात है।

मेरे लिए आप सब के बीच आना कोई नई बात नहीं है, माता उमिया के चरणों में जाना भी नई बात नहीं है। शायद पिछले 35 सालों में ऐसा कभी हुआ नहीं कि जहां कहीं न कहीं, कभी न कभी, मेरा आप के बीच आना न हुआ हो। इसी तरह, आज फिर एक बार, मुझे पता है, अभी किसी ने बताया था, 2008 में यहां लोकार्पण के लिए मुझे आने का अवसर मिला था। यह पावन धाम एक तरह से श्रद्धा का केंद्र तो रहा ही, लेकिन मुझे जानकारी मिली है कि यह अभी एक सामाजिक चेतना का केंद्र भी बन गया है। और टूरिज्म का केंद्र भी बन गया है। 60 से ज्यादा कमरे बने हैं, कई सारे मैरिज हॉल बने हैं, भव्य भोजनालय बना है। एक तरह से मां उमिया के आशीर्वाद से मां उमिया के भक्तों को और समाज को चेतना प्रकट करने के लिए जो कोई आवश्यकताएं हैं, वह सब पूरी करने का प्रयास आप सभी के द्वारा हुआ है। और 14 साल के इस कम समय में जो व्याप बढ़ाया है, उसके लिए यहां के सभी ट्रस्टियों, कार्यवाहकों को और मां उमिया के भक्तों को भी बहुत-बहुत अभिनंदन देता हूं।

अभी हमारे मुख्यमंत्री जी ने काफी भावनात्मक बात की। उन्होंने कहा कि यह धरती हमारी माता है, और मैं अगर उमिया माता का भक्त हूं, तो मुझे इस धरती माता को पीड़ा देने की कोई वजह नहीं है। घर में हम हमारी मां को बिना वजह दवाई खिलायेंगे क्या? बिना वजह खून चढ़ाना वगैरह करेंगे क्या ? हमें पता है कि मां को जितना चाहिए, उतना ही देना होता है। पर हमने धरती मां के लिए ऐसा मान लिया कि उनको ये चाहिए, वो चाहिए... फिर मां भी ऊब जाए कि न ऊब जाए...?

और उसके चलते हम देख रहे हैं कि कितनी सारी मुसीबतें आ रही है। इस धरती मां को बचाना एक बड़ा अभियान है। हम भूतकाल में पानी की संकट में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सूखा हमारी हमेशा की चिंता का विषय था। पर जब से हमने चेकडैम का अभियान शुरू किया, जलसंचय का अभियान शुरू किया, Per Drop More Crop, Drip Irrigation का अभियान चलाया, सौनी योजना लागू की, पानी के लिए खूब प्रयास किए।

गुजरात में मैं जब मुख्यमंत्री था और किसी और राज्य के मुख्यमंत्री से बात करता था कि हमारे यहां पानी के लिए इतना ज्यादा खर्च करना पड़ता है और इतनी सारी मेहनत करनी पड़ती है। हमारी ज्यादातर सरकार का समय पानी पहुंचाने में व्यतीत होता है। तो और राज्यों को आश्चर्य होता था, क्योंकि उनको इस मुसीबत का अनुमान नहीं था। उस मुसीबत से हम धीरे-धीरे बाहर निकले, कारण, हमने जनआंदोलन शुरू किया। आप सभी के साथ-सहकार से जन आंदोलन किया। और जनआंदोलन, जनकल्याण के लिए किया। और आज पानी के लिए जागरूकता आई है। पर फिर भी मेरा मानना है कि जल संचय के लिए हमें जरा भी उदासीन नहीं रहना चाहिए। क्योंकि यह हर बारिश से पहले करने का काम है। तालाब गहरे बनाने हैं, नालें साफ करने हैं, यह सब जितने काम करेंगे, तो ही पानी का संचय होगा और पानी धरती में उतरेगा। इसी तरह से अब कैमिकल से कैसे मुक्ति मिलें वह सोचना पड़ेगा। नहीं तो एक दिन धरती माता कहेगी कि अब बहुत हो गया.. तुम जाओ.. मुझे तुम्हारी सेवा नहीं करनी है। और कितना भी पसीना बहायेंगे, कितने ही महंगे बीज बोएंगे, कोई उपज नहीं होगी। इस धरती मां को बचाना ही पड़ेगा। और इसके लिए अच्छा है गुजरात में हमें ऐसे गवर्नर मिले हैं, जो पूरी तरह प्राकृतिक कृषि के लिए समर्पित है। मुझे तो जानकारी मिली है कि उन्होंने गुजरात के हर तालुका में जाकर प्राकृतिक कृषि के लिए अनेक किसान सम्मेलन किए। मुझे आनंद है - रुपाला जी बता रहे थे कि लाखों की संख्या में किसान प्राकृतिक कृषि की ओर बढ़े हैं और उनको प्राकृतिक कृषि अपनाने में गर्व हो रहा है। यह बात भी सही है कि खर्च भी बचता है। अब जब मुख्यमंत्री जी ने आह्वाहन किया है, कोमल और दृढ़ मुख्यमंत्री मिले हैं, तब हम सब की जिम्मेदारी है कि उनकी भावना को हम साकार करें। गुजरात के गांव-गांव में किसान प्राकृतिक कृषि के लिए आगे आये। मैंने और केशुभाई ने जिस तरह से पानी के लिए काफी परिश्रम किया, ऐसे ही भूपेन्द्र भाई अभी धरती माता के लिए परिश्रम कर रहे हैं।

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इस धरती माता को बचाने की उनकी जो मेहनत है, उनमें गुजरात के सभी लोग जुड़ जाएं। और मैंने देखा है कि आप जो काम हाथ में लेते हो, उसमें कभी पीछे हटा नहीं करते। मुझे याद है कि उंझा में बेटी बचाओ की मुझे काफी चिंता थी। मां उमिया का तीर्थ हो और बेटियों की संख्या कम होती जा रही थी। फिर मैंने एक बार माता उमिया के चरणों में जाकर समाज के लोगों को इकट्ठा किया और कहा कि आप सब मुझे वचन दो कि बेटियों को बचाना है। और मुझे गर्व है कि गुजरात में मां उमिया के भक्तों ने, मां खोडल धाम के भक्तों ने और पूरे गुजरात ने इस बात को उठा लिया । और गुजरात में बेटियों को बचाने के लिए, मां के गर्भ में बेटियों की हत्या न हो, इसके लिए काफी जागरूकता आई। आज आप देख रहे हैं कि गुजरात की बेटियां क्या कमाल कर रही हैं, हमारी महेसाणा की बेटी, दिव्यांग, ओलम्पिक में जाकर झंडा लहरा के आई। इस बार ओलम्पिक में जो खिलाड़ी गये थे, उनमें 6 गुजरात की बेटियां थीं। किस को गर्व नहीं होगा-- इसलिए मुझे लगता है कि माता उमिया की सच्ची भक्ति है कि यह शक्ति हममें आती है, और इस शक्ति के सहारे हम आगे बढ़ें। प्राकृतिक कृषि पर हम जितना जोर देंगे, जितना भूपेन्द्रभाई की मदद करेंगे, हमारी यह धरती माता हरी-भरी हो उठेगी। गुजरात खिल उठेगा। आज आगे तो बढ़ा ही है, पर और खिल उठेगा।

और मेरे मन में एक दूसरा विचार भी आता है, हमारे गुजरात में बच्चें कुपोषित हो, वह अच्छा नहीं है। घर में मां कहती है कि यह खा ले, पर वो नहीं खाता। गरीबी नहीं है, पर खाने की आदतें ऐसी हैं कि शरीर पोषित ही नहीं होता। बेटी को एनिमिया हो, और बीस-बाईस-चौबीस साल में शादी करती है तो उसके पेट में कैसी संतान बड़ी होगी। अगर मां सशक्त नहीं है तो संतान का क्या होगा। इसलिए बेटियों के स्वास्थ्य की चिंता ज्यादा करनी चाहिए, और सामान्य तौर पर सभी बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता करनी चाहिए।

मैं मानता हूं कि माता उमिया के सभी भक्तों ने गांव-गांव जाकर पांच-दस बच्चे मिल जाएंगे - किसी भी समाज के हो -- वह अब कुपोषित नहीं रहेंगे - ऐसा निर्धारण हमें करना चाहिए। क्योंकि बच्चा सशक्त होगा, तो परिवार सशक्त होगा और समाज सशक्त होगा और देश भी सशक्त होगा। आप पाटोत्सव कर रहे हैं, आज ब्लड़ डोनेशन वगैरह कार्यक्रम भी किये। अब ऐसा कीजिये गांव-गांव में मां उमिया ट्रस्ट के माध्यम से तंदुरस्त बाल स्पर्धा करें। दो, तीन, चार साल के सारे बच्चों की तपास हो और जो तंदुरस्त है, उसे इनाम दिया जाए। सारा माहौल बदल जाएगा। छोटा काम है, पर हम अच्छे से कर सकेंगे।

अभी मुझे बताया गया यहां कई सारे मैरिज हॉल बनाये गए हैं। बारह महीनों शादियाँ नहीं होती। उस जगह का क्या उपयोग होता है। हम वहां कोचिंग क्लास चला सकते हैं, गरीब बच्चे यहां आये, समाज के लोग अध्यापन करें। एक घंटे के लिए, दो घंटे के लिए, जगह का काफी उपयोग होगा। इसी तरह योग का केंद्र हो सकता है। हर सुबह मां उमिया के दर्शन भी हो जाये, घंटे-दो घंटे योग के कार्यक्रम हों, और जगह का अच्छा उपयोग हो सकता है। जगह का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो, तभी यह सही मायने में सामाजिक चेतना का केंद्र बनेगा। इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए।

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यह आज़ादी के अमृत महोत्सव का समय है - एक तरह से हमारे लिए यह काफी महत्त्वपूर्ण कालखंड है। 2047 में जब देश आज़ादी के सौ साल का उत्सव मना रहा होगा, तब हम कहां होंगे, हमारा गांव कहां होगा, हमारा समाज कहां होगा, हमारा देश कहां पहुंचा होगा, यह स्वप्न और संकल्प हरेक नागरिक में पैदा होना चाहिए। और आज़ादी के अमृत महोत्सव से ऐसी चेतना हम ला सकते हैं, जिससे समाज में अच्छे कार्य हो, जिसे करने का संतोष हमारी नई पीढ़ी को मिले। और इसलिए मेरे मन में एक छोटा सा विचार आया है, कि आज़ादी के अमृत महोत्सव पर हरेक जिले में आज़ादी के 75 साल हुए हैं, इसलिए - 75 अमृत सरोवर बनाए जा सकते हैं। पुराने सरोवर है, उन्हें बड़े, गहरे और अच्छे बनाएं। एक जिले में 75. आप सोचिए, आज से 25 साल बाद जब आज़ादी की शताब्दी मनाई जा रही होगी तब वह पीढ़ी देखेगी, कि 75 साल हुए तब हमारे गांव के लोगों ने यह तालाब बनाया था। और कोई भी गांव में तालाब हो, तो ताकत होती है। पाटीदार पाणीदार तभी बनता है, जब पानी होता है। इसीलिए हम भी इस 75 तालाबों का अभियान, मां उमिया के सांनिध्य में हम उठा सकते हैं। और बड़ा काम नहीं है, हमने तो लाखों की संख्या में चेकडैम बनाए हैं, ऐसे लोग हैं हम। आप सोचिए, कितनी बड़ी सेवा होगी। 15 अगस्त 2023 से पहले काम पूरा करेंगे। समाज को प्रेरणा मिले, ऐसा कार्य होगा। मैं तो कहता हूं कि हर 15 अगस्त को तालाब के पास झंडा लहराने का कार्यक्रम भी गांव के वरिष्ठ को बुलाकर करवाना चाहिए - हम जैसे नेताओं को नहीं बुलाना। गांव के वरिष्ठ को बुलाना और ध्वजवंदन का कार्यक्रम करना।

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आज भगवान रामचंद्र जी का जन्मदिवस है। हम भगवान रामचंद्र जी को याद करते हैं तो हमें शबरी याद आती है, हमें केवट याद आता है, हमें निषाद राजा याद आते हैं, समाज के ऐसे छोटे-छोटे लोगों का नाम पता चलता है कि भगवान राम मतलब ये सब। इसका मतलब ये हुआ कि समाज के पिछड़े समुदाय को जो संभालता है, वह भविष्य में लोगों के मन में आदर का स्थान प्राप्त करता है। मां उमिया के भक्त समाज के पिछड़े लोगों को अपना मानें - दुःखी, गरीब - जो भी हो, किसी भी समाज के। भगवान राम भगवान और पूर्ण पुरुषोत्तम कहलाए, उसके मूल में वे समाज के छोटे-छोटे लोगों के लिए जिस तरह से और उनके बीच में कैसे जिए उसकी महिमा कम नहीं है। मां उमिया के भक्त भी, खुद तो आगे बढ़े ही, परंतु कोई पीछे न छूट जाये, इसकी भी चिंता करें। तभी हमारा आगे बढ़ना सही रहेगा, नहीं तो जो पीछे रह जायेगा, वह आगे बढ़ने वाले को पीछे खींचेगा। तब हमें ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी, इसलिए आगे बढ़ने के साथ-साथ पीछे वालों को भी आगे लाते रहेंगे तो हम भी आगे बढ़ जाएंगे।

मेरा आप सभी को अनुरोध है कि यह आज़ादी का अमृत महोत्सव, आज भगवान राम का प्रागट्य महोत्सव और मां उमिया का पाटोत्सव और इतनी विशाल संख्या में लोग इकट्ठा हुए हैं, तब हम जिस वेग से आगे बढ़ना चाहते हैं, आप देखिए, कोरोना - कितना बड़ा संकट आया, और अभी संकट टला है, ऐसा हम मानते नहीं, क्योंकि अभी भी वह कहीं कहीं दिखाई दे जाता है। काफी बहुरूपी है, यह बीमारी। इसके सामने टक्कर लेने के लिए करीब 185 करोड़ डोज़। विश्व के लोग जब सुनते हैं तो उनको आश्चर्य होता है। यह कैसे संभव हुआ - आप सभी समाज के सहकार के कारण। इसीलिए हम जितने बड़े पैमाने पर जागरुकता लाएंगे। अब स्वच्छता का अभियान, सहज, हमारा स्वभाव क्यों न बनें, प्लास्टिक नहीं यूज करेंगे - हमारा स्वभाव क्यों न बनें, सिंगल यूज प्लास्टिक हम उपयोग में नहीं लेंगे। गौ पूजा करते हैं, मां उमिया के भक्त हैं, पशु के प्रति आदर है, पर वही अगर प्लास्टिक खाती है, तो मां उमिया के भक्त के तौर पर यह सही नहीं। यह सब बातें लेकर अगर हम आगे बढ़ते हैं, तो.. और मुझे आनंद हुआ कि आप ने सामाजिक कार्यों को जोड़ा है। पाटोत्सव के साथ पूजापाठ, श्रद्धा, आस्था धार्मिक जो भी होता है, वह होता है, पर इससे आगे बढ़कर आपने समग्र युवा पीढ़ी को साथ में लेकर जो ब्लड़ डोनेशन वगैरह जो भी कार्य किये हैं। मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं हैं। आप के बीच भले दूर से ही, पर आने का मौका मिला, मेरे लिए काफी आनंद का विषय है।

आप सबका बहुत-बहुत अभिनन्दन। मां उमिया के चरणों में प्रणाम!

धन्यवाद!

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नमस्कार!

आप लोग सब थक गए होंगे, अर्णब की ऊंची आवाज से कान तो जरूर थक गए होंगे, बैठिये अर्णब, अभी चुनाव का मौसम नहीं है। सबसे पहले तो मैं रिपब्लिक टीवी को उसके इस अभिनव प्रयोग के लिए बहुत बधाई देता हूं। आप लोग युवाओं को ग्रासरूट लेवल पर इन्वॉल्व करके, इतना बड़ा कंपटीशन कराकर यहां लाए हैं। जब देश का युवा नेशनल डिस्कोर्स में इन्वॉल्व होता है, तो विचारों में नवीनता आती है, वो पूरे वातावरण में एक नई ऊर्जा भर देता है और यही ऊर्जा इस समय हम यहां महसूस भी कर रहे हैं। एक तरह से युवाओं के इन्वॉल्वमेंट से हम हर बंधन को तोड़ पाते हैं, सीमाओं के परे जा पाते हैं, फिर भी कोई भी लक्ष्य ऐसा नहीं रहता, जिसे पाया ना जा सके। कोई मंजिल ऐसी नहीं रहती जिस तक पहुंचा ना जा सके। रिपब्लिक टीवी ने इस समिट के लिए एक नए कॉन्सेप्ट पर काम किया है। मैं इस समिट की सफलता के लिए आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं। अच्छा मेरा भी इसमें थोड़ा स्वार्थ है, एक तो मैं पिछले दिनों से लगा हूं, कि मुझे एक लाख नौजवानों को राजनीति में लाना है और वो एक लाख ऐसे, जो उनकी फैमिली में फर्स्ट टाइमर हो, तो एक प्रकार से ऐसे इवेंट मेरा जो यह मेरा मकसद है उसका ग्राउंड बना रहे हैं। दूसरा मेरा व्यक्तिगत लाभ है, व्यक्तिगत लाभ यह है कि 2029 में जो वोट करने जाएंगे उनको पता ही नहीं है कि 2014 के पहले अखबारों की हेडलाइन क्या हुआ करती थी, उसे पता नहीं है, 10-10, 12-12 लाख करोड़ के घोटाले होते थे, उसे पता नहीं है और वो जब 2029 में वोट करने जाएगा, तो उसके सामने कंपैरिजन के लिए कुछ नहीं होगा और इसलिए मुझे उस कसौटी से पार होना है और मुझे पक्का विश्वास है, यह जो ग्राउंड बन रहा है ना, वो उस काम को पक्का कर देगा।

साथियों,

आज पूरी दुनिया कह रही है कि ये भारत की सदी है, ये आपने नहीं सुना है। भारत की उपलब्धियों ने, भारत की सफलताओं ने पूरे विश्व में एक नई उम्मीद जगाई है। जिस भारत के बारे में कहा जाता था, ये खुद भी डूबेगा और हमें भी ले डूबेगा, वो भारत आज दुनिया की ग्रोथ को ड्राइव कर रहा है। मैं भारत के फ्यूचर की दिशा क्या है, ये हमें आज के हमारे काम और सिद्धियों से पता चलता है। आज़ादी के 65 साल बाद भी भारत दुनिया की ग्यारहवें नंबर की इकॉनॉमी था। बीते दशक में हम दुनिया की पांचवें नंबर की इकॉनॉमी बने, और अब उतनी ही तेजी से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं।

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साथियों,

मैं आपको 18 साल पहले की भी बात याद दिलाता हूं। ये 18 साल का खास कारण है, क्योंकि जो लोग 18 साल की उम्र के हुए हैं, जो पहली बार वोटर बन रहे हैं, उनको 18 साल के पहले का पता नहीं है, इसलिए मैंने वो आंकड़ा लिया है। 18 साल पहले यानि 2007 में भारत की annual GDP, एक लाख करोड़ डॉलर तक पहुंची थी। यानि आसान शब्दों में कहें तो ये वो समय था, जब एक साल में भारत में एक लाख करोड़ डॉलर की इकॉनॉमिक एक्टिविटी होती थी। अब आज देखिए क्या हो रहा है? अब एक क्वार्टर में ही लगभग एक लाख करोड़ डॉलर की इकॉनॉमिक एक्टिविटी हो रही है। इसका क्या मतलब हुआ? 18 साल पहले के भारत में साल भर में जितनी इकॉनॉमिक एक्टिविटी हो रही थी, उतनी अब सिर्फ तीन महीने में होने लगी है। ये दिखाता है कि आज का भारत कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है। मैं आपको कुछ उदाहरण दूंगा, जो दिखाते हैं कि बीते एक दशक में कैसे बड़े बदलाव भी आए और नतीजे भी आए। बीते 10 सालों में, हम 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सफल हुए हैं। ये संख्या कई देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है। आप वो दौर भी याद करिए, जब सरकार खुद स्वीकार करती थी, प्रधानमंत्री खुद कहते थे, कि एक रूपया भेजते थे, तो 15 पैसा गरीब तक पहुंचता था, वो 85 पैसा कौन पंजा खा जाता था और एक आज का दौर है। बीते दशक में गरीबों के खाते में, DBT के जरिए, Direct Benefit Transfer, DBT के जरिए 42 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा ट्रांसफर किए गए हैं, 42 लाख करोड़ रुपए। अगर आप वो हिसाब लगा दें, रुपये में से 15 पैसे वाला, तो 42 लाख करोड़ का क्या हिसाब निकलेगा? साथियों, आज दिल्ली से एक रुपया निकलता है, तो 100 पैसे आखिरी जगह तक पहुंचते हैं।

साथियों,

10 साल पहले सोलर एनर्जी के मामले में भारत दुनिया में कहीं गिनती नहीं होती थी। लेकिन आज भारत सोलर एनर्जी कैपेसिटी के मामले में दुनिया के टॉप-5 countries में से है। हमने सोलर एनर्जी कैपेसिटी को 30 गुना बढ़ाया है। Solar module manufacturing में भी 30 गुना वृद्धि हुई है। 10 साल पहले तो हम होली की पिचकारी भी, बच्चों के खिलौने भी विदेशों से मंगाते थे। आज हमारे Toys Exports तीन गुना हो चुके हैं। 10 साल पहले तक हम अपनी सेना के लिए राइफल तक विदेशों से इंपोर्ट करते थे और बीते 10 वर्षों में हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट 20 गुना बढ़ गया है।

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साथियों,

इन 10 वर्षों में, हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े स्टील प्रोड्यूसर हैं, दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरर हैं और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बने हैं। इन्हीं 10 सालों में हमने इंफ्रास्ट्रक्चर पर अपने Capital Expenditure को, पांच गुना बढ़ाया है। देश में एयरपोर्ट्स की संख्या दोगुनी हो गई है। इन दस सालों में ही, देश में ऑपरेशनल एम्स की संख्या तीन गुना हो गई है। और इन्हीं 10 सालों में मेडिकल कॉलेजों और मेडिकल सीट्स की संख्या भी करीब-करीब दोगुनी हो गई है।

साथियों,

आज के भारत का मिजाज़ कुछ और ही है। आज का भारत बड़ा सोचता है, बड़े टार्गेट तय करता है और आज का भारत बड़े नतीजे लाकर के दिखाता है। और ये इसलिए हो रहा है, क्योंकि देश की सोच बदल गई है, भारत बड़ी Aspirations के साथ आगे बढ़ रहा है। पहले हमारी सोच ये बन गई थी, चलता है, होता है, अरे चलने दो यार, जो करेगा करेगा, अपन अपना चला लो। पहले सोच कितनी छोटी हो गई थी, मैं इसका एक उदाहरण देता हूं। एक समय था, अगर कहीं सूखा हो जाए, सूखाग्रस्त इलाका हो, तो लोग उस समय कांग्रेस का शासन हुआ करता था, तो मेमोरेंडम देते थे गांव के लोग और क्या मांग करते थे, कि साहब अकाल होता रहता है, तो इस समय अकाल के समय अकाल के राहत के काम रिलीफ के वर्क शुरू हो जाए, गड्ढे खोदेंगे, मिट्टी उठाएंगे, दूसरे गड्डे में भर देंगे, यही मांग किया करते थे लोग, कोई कहता था क्या मांग करता था, कि साहब मेरे इलाके में एक हैंड पंप लगवा दो ना, पानी के लिए हैंड पंप की मांग करते थे, कभी कभी सांसद क्या मांग करते थे, गैस सिलेंडर इसको जरा जल्दी देना, सांसद ये काम करते थे, उनको 25 कूपन मिला करती थी और उस 25 कूपन को पार्लियामेंट का मेंबर अपने पूरे क्षेत्र में गैस सिलेंडर के लिए oblige करने के लिए उपयोग करता था। एक साल में एक एमपी 25 सिलेंडर और यह सारा 2014 तक था। एमपी क्या मांग करते थे, साहब ये जो ट्रेन जा रही है ना, मेरे इलाके में एक स्टॉपेज दे देना, स्टॉपेज की मांग हो रही थी। यह सारी बातें मैं 2014 के पहले की कर रहा हूं, बहुत पुरानी नहीं कर रहा हूं। कांग्रेस ने देश के लोगों की Aspirations को कुचल दिया था। इसलिए देश के लोगों ने उम्मीद लगानी भी छोड़ दी थी, मान लिया था यार इनसे कुछ होना नहीं है, क्या कर रहा है।। लोग कहते थे कि भई ठीक है तुम इतना ही कर सकते हो तो इतना ही कर दो। और आज आप देखिए, हालात और सोच कितनी तेजी से बदल रही है। अब लोग जानते हैं कि कौन काम कर सकता है, कौन नतीजे ला सकता है, और यह सामान्य नागरिक नहीं, आप सदन के भाषण सुनोगे, तो विपक्ष भी यही भाषण करता है, मोदी जी ये क्यों नहीं कर रहे हो, इसका मतलब उनको लगता है कि यही करेगा।

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साथियों,

आज जो एस्पिरेशन है, उसका प्रतिबिंब उनकी बातों में झलकता है, कहने का तरीका बदल गया , अब लोगों की डिमांड क्या आती है? लोग पहले स्टॉपेज मांगते थे, अब आकर के कहते जी, मेरे यहां भी तो एक वंदे भारत शुरू कर दो। अभी मैं कुछ समय पहले कुवैत गया था, तो मैं वहां लेबर कैंप में नॉर्मली मैं बाहर जाता हूं तो अपने देशवासी जहां काम करते हैं तो उनके पास जाने का प्रयास करता हूं। तो मैं वहां लेबर कॉलोनी में गया था, तो हमारे जो श्रमिक भाई बहन हैं, जो वहां कुवैत में काम करते हैं, उनसे कोई 10 साल से कोई 15 साल से काम, मैं उनसे बात कर रहा था, अब देखिए एक श्रमिक बिहार के गांव का जो 9 साल से कुवैत में काम कर रहा है, बीच-बीच में आता है, मैं जब उससे बातें कर रहा था, तो उसने कहा साहब मुझे एक सवाल पूछना है, मैंने कहा पूछिए, उसने कहा साहब मेरे गांव के पास डिस्ट्रिक्ट हेड क्वार्टर पर इंटरनेशनल एयरपोर्ट बना दीजिए ना, जी मैं इतना प्रसन्न हो गया, कि मेरे देश के बिहार के गांव का श्रमिक जो 9 साल से कुवैत में मजदूरी करता है, वह भी सोचता है, अब मेरे डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनेगा। ये है, आज भारत के एक सामान्य नागरिक की एस्पिरेशन, जो विकसित भारत के लक्ष्य की ओर पूरे देश को ड्राइव कर रही है।

साथियों,

किसी भी समाज की, राष्ट्र की ताकत तभी बढ़ती है, जब उसके नागरिकों के सामने से बंदिशें हटती हैं, बाधाएं हटती हैं, रुकावटों की दीवारें गिरती है। तभी उस देश के नागरिकों का सामर्थ्य बढ़ता है, आसमान की ऊंचाई भी उनके लिए छोटी पड़ जाती है। इसलिए, हम निरंतर उन रुकावटों को हटा रहे हैं, जो पहले की सरकारों ने नागरिकों के सामने लगा रखी थी। अब मैं उदाहरण देता हूं स्पेस सेक्टर। स्पेस सेक्टर में पहले सबकुछ ISRO के ही जिम्मे था। ISRO ने निश्चित तौर पर शानदार काम किया, लेकिन स्पेस साइंस और आंत्रप्रन्योरशिप को लेकर देश में जो बाकी सामर्थ्य था, उसका उपयोग नहीं हो पा रहा था, सब कुछ इसरो में सिमट गया था। हमने हिम्मत करके स्पेस सेक्टर को युवा इनोवेटर्स के लिए खोल दिया। और जब मैंने निर्णय किया था, किसी अखबार की हेडलाइन नहीं बना था, क्योंकि समझ भी नहीं है। रिपब्लिक टीवी के दर्शकों को जानकर खुशी होगी, कि आज ढाई सौ से ज्यादा स्पेस स्टार्टअप्स देश में बन गए हैं, ये मेरे देश के युवाओं का कमाल है। यही स्टार्टअप्स आज, विक्रम-एस और अग्निबाण जैसे रॉकेट्स बना रहे हैं। ऐसे ही mapping के सेक्टर में हुआ, इतने बंधन थे, आप एक एटलस नहीं बना सकते थे, टेक्नॉलाजी बदल चुकी है। पहले अगर भारत में कोई मैप बनाना होता था, तो उसके लिए सरकारी दरवाजों पर सालों तक आपको चक्कर काटने पड़ते थे। हमने इस बंदिश को भी हटाया। आज Geo-spatial mapping से जुडा डेटा, नए स्टार्टअप्स का रास्ता बना रहा है।

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साथियों,

न्यूक्लियर एनर्जी, न्यूक्लियर एनर्जी से जुड़े सेक्टर को भी पहले सरकारी कंट्रोल में रखा गया था। बंदिशें थीं, बंधन थे, दीवारें खड़ी कर दी गई थीं। अब इस साल के बजट में सरकार ने इसको भी प्राइवेट सेक्टर के लिए ओपन करने की घोषणा की है। और इससे 2047 तक 100 गीगावॉट न्यूक्लियर एनर्जी कैपेसिटी जोड़ने का रास्ता मजबूत हुआ है।

साथियों,

आप हैरान रह जाएंगे, कि हमारे गांवों में 100 लाख करोड़ रुपए, Hundred lakh crore rupees, उससे भी ज्यादा untapped आर्थिक सामर्थ्य पड़ा हुआ है। मैं आपके सामने फिर ये आंकड़ा दोहरा रहा हूं- 100 लाख करोड़ रुपए, ये छोटा आंकड़ा नहीं है, ये आर्थिक सामर्थ्य, गांव में जो घर होते हैं, उनके रूप में उपस्थित है। मैं आपको और आसान तरीके से समझाता हूं। अब जैसे यहां दिल्ली जैसे शहर में आपके घर 50 लाख, एक करोड़, 2 करोड़ के होते हैं, आपकी प्रॉपर्टी की वैल्यू पर आपको बैंक लोन भी मिल जाता है। अगर आपका दिल्ली में घर है, तो आप बैंक से करोड़ों रुपये का लोन ले सकते हैं। अब सवाल यह है, कि घर दिल्ली में थोड़े है, गांव में भी तो घर है, वहां भी तो घरों का मालिक है, वहां ऐसा क्यों नहीं होता? गांवों में घरों पर लोन इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि भारत में गांव के घरों के लीगल डॉक्यूमेंट्स नहीं होते थे, प्रॉपर मैपिंग ही नहीं हो पाई थी। इसलिए गांव की इस ताकत का उचित लाभ देश को, देशवासियों को नहीं मिल पाया। और ये सिर्फ भारत की समस्या है ऐसा नहीं है, दुनिया के बड़े-बड़े देशों में लोगों के पास प्रॉपर्टी के राइट्स नहीं हैं। बड़ी-बड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं कहती हैं, कि जो देश अपने यहां लोगों को प्रॉपर्टी राइट्स देता है, वहां की GDP में उछाल आ जाता है।

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साथियों,

भारत में गांव के घरों के प्रॉपर्टी राइट्स देने के लिए हमने एक स्वामित्व स्कीम शुरु की। इसके लिए हम गांव-गांव में ड्रोन से सर्वे करा रहे हैं, गांव के एक-एक घर की मैपिंग करा रहे हैं। आज देशभर में गांव के घरों के प्रॉपर्टी कार्ड लोगों को दिए जा रहे हैं। दो करोड़ से अधिक प्रॉपर्टी कार्ड सरकार ने बांटे हैं और ये काम लगातार चल रहा है। प्रॉपर्टी कार्ड ना होने के कारण पहले गांवों में बहुत सारे विवाद भी होते थे, लोगों को अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते थे, ये सब भी अब खत्म हुआ है। इन प्रॉपर्टी कार्ड्स पर अब गांव के लोगों को बैंकों से लोन मिल रहे हैं, इससे गांव के लोग अपना व्यवसाय शुरू कर रहे हैं, स्वरोजगार कर रहे हैं। अभी मैं एक दिन ये स्वामित्व योजना के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंस पर उसके लाभार्थियों से बात कर रहा था, मुझे राजस्थान की एक बहन मिली, उसने कहा कि मैंने मेरा प्रॉपर्टी कार्ड मिलने के बाद मैंने 9 लाख रुपये का लोन लिया गांव में और बोली मैंने बिजनेस शुरू किया और मैं आधा लोन वापस कर चुकी हूं और अब मुझे पूरा लोन वापस करने में समय नहीं लगेगा और मुझे अधिक लोन की संभावना बन गई है कितना कॉन्फिडेंस लेवल है।

साथियों,

ये जितने भी उदाहरण मैंने दिए हैं, इनका सबसे बड़ा बेनिफिशरी मेरे देश का नौजवान है। वो यूथ, जो विकसित भारत का सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर है। जो यूथ, आज के भारत का X-Factor है। इस X का अर्थ है, Experimentation Excellence और Expansion, Experimentation यानि हमारे युवाओं ने पुराने तौर तरीकों से आगे बढ़कर नए रास्ते बनाए हैं। Excellence यानी नौजवानों ने Global Benchmark सेट किए हैं। और Expansion यानी इनोवेशन को हमारे य़ुवाओं ने 140 करोड़ देशवासियों के लिए स्केल-अप किया है। हमारा यूथ, देश की बड़ी समस्याओं का समाधान दे सकता है, लेकिन इस सामर्थ्य का सदुपयोग भी पहले नहीं किया गया। हैकाथॉन के ज़रिए युवा, देश की समस्याओं का समाधान भी दे सकते हैं, इसको लेकर पहले सरकारों ने सोचा तक नहीं। आज हम हर वर्ष स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन आयोजित करते हैं। अभी तक 10 लाख युवा इसका हिस्सा बन चुके हैं, सरकार की अनेकों मिनिस्ट्रीज और डिपार्टमेंट ने गवर्नेंस से जुड़े कई प्रॉब्लम और उनके सामने रखें, समस्याएं बताई कि भई बताइये आप खोजिये क्या सॉल्यूशन हो सकता है। हैकाथॉन में हमारे युवाओं ने लगभग ढाई हज़ार सोल्यूशन डेवलप करके देश को दिए हैं। मुझे खुशी है कि आपने भी हैकाथॉन के इस कल्चर को आगे बढ़ाया है। और जिन नौजवानों ने विजय प्राप्त की है, मैं उन नौजवानों को बधाई देता हूं और मुझे खुशी है कि मुझे उन नौजवानों से मिलने का मौका मिला।

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साथियों,

बीते 10 वर्षों में देश ने एक new age governance को फील किया है। बीते दशक में हमने, impact less administration को Impactful Governance में बदला है। आप जब फील्ड में जाते हैं, तो अक्सर लोग कहते हैं, कि हमें फलां सरकारी स्कीम का बेनिफिट पहली बार मिला। ऐसा नहीं है कि वो सरकारी स्कीम्स पहले नहीं थीं। स्कीम्स पहले भी थीं, लेकिन इस लेवल की last mile delivery पहली बार सुनिश्चित हो रही है। आप अक्सर पीएम आवास स्कीम के बेनिफिशरीज़ के इंटरव्यूज़ चलाते हैं। पहले कागज़ पर गरीबों के मकान सेंक्शन होते थे। आज हम जमीन पर गरीबों के घर बनाते हैं। पहले मकान बनाने की पूरी प्रक्रिया, govt driven होती थी। कैसा मकान बनेगा, कौन सा सामान लगेगा, ये सरकार ही तय करती थी। हमने इसको owner driven बनाया। सरकार, लाभार्थी के अकाउंट में पैसा डालती है, बाकी कैसा घर बनेगा, ये लाभार्थी खुद डिसाइड करता है। और घर के डिजाइन के लिए भी हमने देशभर में कंपीटिशन किया, घरों के मॉडल सामने रखे, डिजाइन के लिए भी लोगों को जोड़ा, जनभागीदारी से चीज़ें तय कीं। इससे घरों की क्वालिटी भी अच्छी हुई है और घर तेज़ गति से कंप्लीट भी होने लगे हैं। पहले ईंट-पत्थर जोड़कर आधे-अधूरे मकान बनाकर दिए जाते थे, हमने गरीब को उसके सपनों का घर बनाकर दिया है। इन घरों में नल से जल आता है, उज्ज्वला योजना का गैस कनेक्शन होता है, सौभाग्य योजना का बिजली कनेक्शन होता है, हमने सिर्फ चार दीवारें खड़ी नहीं कीं है, हमने उन घरों में ज़िंदगी खड़ी की है।

साथियों,

किसी भी देश के विकास के लिए बहुत जरूरी पक्ष है उस देश की सुरक्षा, नेशनल सिक्योरिटी। बीते दशक में हमने सिक्योरिटी पर भी बहुत अधिक काम किया है। आप याद करिए, पहले टीवी पर अक्सर, सीरियल बम ब्लास्ट की ब्रेकिंग न्यूज चला करती थी, स्लीपर सेल्स के नेटवर्क पर स्पेशल प्रोग्राम हुआ करते थे। आज ये सब, टीवी स्क्रीन और भारत की ज़मीन दोनों जगह से गायब हो चुका है। वरना पहले आप ट्रेन में जाते थे, हवाई अड्डे पर जाते थे, लावारिस कोई बैग पड़ा है तो छूना मत ऐसी सूचनाएं आती थी, आज वो जो 18-20 साल के नौजवान हैं, उन्होंने वो सूचना सुनी नहीं होगी। आज देश में नक्सलवाद भी अंतिम सांसें गिन रहा है। पहले जहां सौ से अधिक जिले, नक्सलवाद की चपेट में थे, आज ये दो दर्जन से भी कम जिलों में ही सीमित रह गया है। ये तभी संभव हुआ, जब हमने nation first की भावना से काम किया। हमने इन क्षेत्रों में Governance को Grassroot Level तक पहुंचाया। देखते ही देखते इन जिलों मे हज़ारों किलोमीटर लंबी सड़कें बनीं, स्कूल-अस्पताल बने, 4G मोबाइल नेटवर्क पहुंचा और परिणाम आज देश देख रहा है।

साथियों,

सरकार के निर्णायक फैसलों से आज नक्सलवाद जंगल से तो साफ हो रहा है, लेकिन अब वो Urban सेंटर्स में पैर पसार रहा है। Urban नक्सलियों ने अपना जाल इतनी तेज़ी से फैलाया है कि जो राजनीतिक दल, अर्बन नक्सल के विरोधी थे, जिनकी विचारधारा कभी गांधी जी से प्रेरित थी, जो भारत की ज़ड़ों से जुड़ी थी, ऐसे राजनीतिक दलों में आज Urban नक्सल पैठ जमा चुके हैं। आज वहां Urban नक्सलियों की आवाज, उनकी ही भाषा सुनाई देती है। इसी से हम समझ सकते हैं कि इनकी जड़ें कितनी गहरी हैं। हमें याद रखना है कि Urban नक्सली, भारत के विकास और हमारी विरासत, इन दोनों के घोर विरोधी हैं। वैसे अर्नब ने भी Urban नक्सलियों को एक्सपोज करने का जिम्मा उठाया हुआ है। विकसित भारत के लिए विकास भी ज़रूरी है और विरासत को मज़बूत करना भी आवश्यक है। और इसलिए हमें Urban नक्सलियों से सावधान रहना है।

साथियों,

आज का भारत, हर चुनौती से टकराते हुए नई ऊंचाइयों को छू रहा है। मुझे भरोसा है कि रिपब्लिक टीवी नेटवर्क के आप सभी लोग हमेशा नेशन फर्स्ट के भाव से पत्रकारिता को नया आयाम देते रहेंगे। आप विकसित भारत की एस्पिरेशन को अपनी पत्रकारिता से catalyse करते रहें, इसी विश्वास के साथ, आप सभी का बहुत-बहुत आभार, बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद!