Shri Narendra Modi addressing Valedictory Function of Vibrant Gujarat 2013

Published By : Admin | January 13, 2013 | 15:41 IST

मुझे लगता है कि मैं सबसे पहले एक महत्वपूर्ण कार्य पूरा कर दूँ और बाद में सारी बातें बताऊँ। मैं यहाँ खड़ा हुआ हूँ आपको इन्वीटेशन देने के लिए। आप लिख लीजिए, 11 जनवरी 2015, सातवीं वाइब्रेंट समिट के लिए मैं आपको निमंत्रण देता हूँ। ऐसा ही निमंत्रण जब मैंने 2011 में दिया था तो दूसरे दिन हमारे मीडिया के मित्रों ने मेरी पिटाई की थी कि अभी चुनाव बाकी हैं और मोदी 2013 का इन्वीटेशन कैसे दे रहे हैं..! इस बार ऐसा संकट नहीं है, तो मैं आप सबको बड़े उमंग और उत्साह के साथ, नए सपनों के साथ, नई उम्मीदों के साथ फिर एक बार वाइब्रेंट गुजरात समिट में आने का निमंत्रण देता हूँ और मुझे विश्वास है कि आप आवश्य आएंगे।

मित्रों, ये जो वाइब्रेंट समिट का आपने अनुभव किया, देखा, सुना... विश्व भर के जितने भी लोग आते हैं उन सब के लिए एक अजूबा है। मित्रों, इन्टरनेशनल कॉन्फरेंसिस में मैं भी गया हूँ, सेमिनार्स में मैं भी गया हूँ, लेकिन इतने बड़े स्केल पर, इतनी माइन्यूट डिटेल के साथ, इतनी विविधताओं के साथ, इतनी सारी मल्टीपल एक्टीविटीस् को जोड़ कर के शायद ही विश्व में कोइ इवेंट आयोजित होता होगा। इस काम को सफल करने में अनेक लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद की है, जिम्मेवारी उठाई है, परिश्रम किया है। मैं इस मंच से इसे सफल बनाने वाले सभी लोगों का हृदय से धन्यवाद करता हूँ, गुजरात की जनता की तरफ से इस कार्य को सफल बनाने में जुड़े हुए सभी का अभिनंदन करता हूँ..! भाइयों-बहनों, इस इवेंट में अनेक पहलुओं पर लोगों का ध्यान जाता है, लेकिन एक बात की और भी नजर करने की आवश्यकता है। करीब 121 देशों के लोग यहां आए, ये पूरा नजरिया उन्होंने देखा। पल भर के लिए कल्पना कीजिए मित्रों, ये 121 देशों के 2100-2200 लोग जब अपने देश जाएंगे, अपने लोगों से बात करेंगे तो क्या कहेंगे..? यही कहेंगे कि मैं हिन्दुस्तान गया था, मैं इन्डिया गया था, मैं भारत गया था..! इसका मतलब सीधा-सीधा है मित्रों, ये इवेंट से दुनिया के 121 से अधिक देशों में हम एक संदेश पहुंचाने में सफल हुए हैं कि ये भी एक हिन्दुस्तान है, हिन्दुस्तान का यह भी एक सामर्थ्य है..! मित्रों, हिन्दुस्तान के हमारे एक इवेंट ने 121 देशों में नए एम्बेसेडर्स को जन्म दिया है और ये हमारे देश के नए एम्बेसेडर्स, इनकी चमड़ी का रंग कोई भी क्यों ना हो, उनकी भाषा कोई भी क्यों ना हो, लेकिन जब कभी हिन्दुस्तान का जिक्र आएगा, मैं विश्वास से कहता हूँ ये 121 देशों के लोग हमारे लिए कुछ ना कुछ अच्छा बोलेंगे, बोलेंगे और बोलेंगे..! एक देश के नागरिक के लिए इससे बड़े गर्व की बात क्या हो सकती है मित्रों कि इतने देशों में इतने गौरवपूर्ण रूप से हमारे देश की चर्चा हो, हमारे देश की तारीफ हो, हमारे देश की अच्छाइयों की बात हो..! मित्रों, हर हिन्दुस्तानी के लिए ये सीना तान कर के याद करने वाली घटना घटती है और इसलिए, परिश्रम भले ही गुजरात के लोगों ने किया होगा, धरती भले ही गुजरात की होगी, इवेंट के साथ भले ही गुजरात का नाम जुड़ा होगा, लेकिन ये भारत की आन, बान, शान को बढ़ाने वाली घटना है, इस बात को हमें स्वीकृत करना होगा।

भाइयों-बहनों, मैं देख रहा था कि जो जीवन में कुछ करना चाहते हैं, जिनके अपने कुछ सपने हैं, साधन भले ही सीमित होंगे लेकिन ऊंची उडान का जिनका इरादा है, कुछ नया करके दिखाने की जिनकी इच्छा है, ऐसे हजारों नौजवान इस समिट के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इन सबको कभी दुनिया के हर देशों में जाने का अवसर नहीं मिलने वाला है और जब तक अवसर मिले तब तक इन्हें एक्सपोजर नहीं मिलने वाला है। मित्रों, इस इवेंट के कारण, इस एक्जीबिशन के कारण, दुनिया के इतने देशों के लोगों से बात करने के कारण, हमारे देश के, हमारे गुजरात के, जो उभरते हुए एन्ट्रप्रेनर्स हैं, जो उभरती हुई पीढ़ी है, उस पीढ़ी का एक विश्वास पैदा होता है कि हाँ यार, दुनिया इतनी बड़ी है, इतना सारा है तो चलिए हम भी किसी छोर को हाथ लगा लें, हम भी उस दिशा में आगे बढ़ जाएं, ये विश्वास पैदा करता है। मित्रों, कभी हम स्वीकार करें या ना करें, हम मानें या ना मानें, लेकिन हर व्यक्ति के अंदर एक फियर हमेशा अस्तित्व रखता है। मैं हूँ, आप हो, यहां बैठे हुए हर एक के मन में होता है। और वो फियर क्या होता है..? अपने आप में एक अननोन फियर होता है। आप अगर पहली बार मुंबई जाते हैं तो आपके मन में एक फियर रहता है। आपके लिए मुंबई अननोन है तो फियर रहता है कि कैसा होगा, कहाँ जाऊँगा, किसको मिलूँगा, कैसे शुरू करुँगा... आप के मन के अंदर एक छुपा हुआ भय रहता है। यह बहुत स्वाभाविक है। मित्रों, इस इवेंट के कारण दुनिया के इतने देशों को देखना, मिलना, समझना, सुनना... इसके कारण मेरे देश की, मेरे राज्य की जो नई पीढ़ी है उनके लिए अननोन फियर के जो सेन्टीमेंट्स हैं वो अपने आप खत्म हो जाता है और उनके अंदर विश्वास का बीज बो देता है। अगर वो यहाँ किसी न्यूजीलैंड के व्यक्ति को मिला है तो न्यूजीलैंड जाने से पहले उसको न्यूजीलैंड के विषय में विश्वास पैदा हो जाता है, अननेान फियर उसके दिल में होता नहीं है। मित्रों, एक मनोवैज्ञानिक परिणाम होता है और उस मनोवैज्ञानिक परिणाम की अपनी एक ताकत होती है। मैं नहीं मानता कि जो रुपयों-पैसों के तराजू को लेकर बैठे हैं उनके लिए इन बातों को समझना संभव होगा..! शायद मेरी दस समिट होने के बाद कई लोग ऐसे होंगे जिनको समझदारी शुरू हो जाएगी।

मित्रों, कोई कंपनी, कोई राज्य अरबों-खरबों रूपया खर्च करके पी.आर. एजेंसी हायर कर लें, दुनिया के अंदर वो कंपनी या कोई स्टेट अपनी ब्रांडिंग के लिए कोशिश करें, मैं दावे से कहता हूँ मित्रों, इतने कम समय में गुजरात ने जो अपना ब्रांडिंग किया है, शायद दुनिया की दसों ऐसी कंपनियां इक्कठी हों, ये स्थिति पैदा नहीं कर सकती है। और कैसे हुआ है..? वो इसलिए हुआ है कि हमने प्रारंभ से एक मंत्र लिया। लोग भिन्न-भिन्न माध्यम से गुजरात के विषय में जानते थे। मैँ पहली बार जब 2003 में लंदन गया था, समिट को सफल करने के लिए मैं लोगों से मिलने गया था। उधर आस्ट्रेलिया की तरफ भी गया था। लोगों को मैं बता रहा था कि आप गुजरात आइए। तब लोगों के मन एक जिज्ञासा थी और पूछते थे कि गुजरात कहाँ है..? मुझे कहना पड़ता था कि मुंबई से नार्थ में एक घंटे का फ्लाईट है। आज लोग कहते हैं कि मुंबई जाना है तो बस गुजरात के पास ही है। मित्रों, ये चीजें सामान्य नहीं है। इसके लिए सोच समझ करके हमने पुरूषार्थ किया है। और तब, मैं जब पहली बार गया था, उस समय हिन्दुस्तान की परंपरा क्या थी..? परंपरा ये थी कि हिन्दुस्तान के राजनेता विदेशों में जाते थे, निकलने से पहले अपने स्टेट में प्रेस कान्फ्रेंस करते थे, मुख्यमंत्री जाते थे और कहते थे कि हम इन्वेस्टमेंट के लिए जा रहे हैं। दुनिया के किसी देश में जाते थे, दो-चार एम.ओ.यू. करते थे, फिर वापिस आते थे और दुनिया को बताते थे कि हम इतने एम.ओ.यू. करके आएं हैं और उस टूर को सफल माना जाता था। और फिर कभी मीडिया उनको पूछता नहीं था कि भाई, आप वो जा कर आए थे उसका क्या हुआ..? उस समय का जमाना वैसा था। मित्रों, 2003 के पहले ईश्वर ने हमें क्या समझ दी होगी, क्या हमें ऐसा विचार दिया होगा, मैं ईश्वर का आभारी हूँ कि मैंने डे वन से काम किया। मैंने कहा कि हम दुनिया के देशों में जा कर के लोगों को समझाएंगे और बात करेंगे, लेकिन हम वो काम नहीं करेंगे जो आम तौर पर हिन्दुस्तान की सरकारें करती हैं। मित्रों, यहाँ मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूँ। मैं एक दृष्टिकोण में बदलाव कैसे आता है वो दिखाना चाहता हूँ। और मैं जब विदेशों में गया तो लोग मुझे कहते थे कि आप क्या चाहते हैं..? मैं कहता था कि मैं कुछ नहीं चाहता हूँ, मैं बस इतना ही चाहता हूँ कि सिर्फ एक बार गुजरात आईए। और मैं कहता था, फील गुजरात..! इतनी छोटी सी बात मैं कह कर आया हूँ दुनिया को, “फील गुजरात”..! आज मित्रों, जो लोग मेरे गुजरात की धरती पर आते हैं और मैं मेरी मिट्टी की कसम खा कर के कहता हूँ, इस मिट्टी ताकत इतनी जबर्दस्त है, हमारे पुरखों ने इतना परिश्रम करके संजाई हुई ये ऐसी मिट्टी है कि यहां आने वाला वाला हर व्यक्ति उसकी सुगंध से अभिभूत हो करके दुनिया के देशों में जाकर के अपनी बात बताता है। मित्रों, कल मंच पर से पूछा गया था कि पता नहीं गुजरात की मिट्टी में ऐसा क्या है..! ये सवाल बहुत स्वाभाविक है, हर किसी के मन में उठता है। पहले नहीं उठता था, अब तो उठता ही है। भाइयों-बहनों, इस मिट्टी में एक पवित्रता है और इस मिट्टी में हमारे पुरखों का पसीना है, इस धरती को हमारे पुरखों ने अपने खुद के पसीने से सींचा है और तब जा कर के ये धरती उर्वरा बनी है। और इस धरती के अन्न को खाने वाला भी उसी उर्वरा और शक्ति का भरा हुआ होता है जो दुनिया के साथ आंख से आंख मिला कर बात करने का सामर्थ्य रखता है।

भाइयों-बहनों, हम विकास की नई ऊंचाइयों को पार करना चाहते हैं। अगर हम जगत को जानेंगे नहीं, जगत को समझेंगे नहीं, बदलती हुई दुनिया को पहचानेंगे नहीं, हम उनसे बात नहीं करेंगे तो हम एक कुंए के मेंढक की तरह अपनी दुनिया में मस्त रहेंगे और हो सकता है हमारी जिंदगी पूरी हो जाए तो भी हमें आनंद ही आनंद रहेगा कि बहुत कुछ हुआ। लेकिन जब बदलते हुए विश्व को देखेंगे, जहां समृद्घि पहुंच चुकी है उस विश्व को देखेंगे तो हमारे भीतर भी होगा कि अरे यार, ये तो यहाँ पहुंच गए, हमें तो पहुंचना अभी बहुत बाकी है..! और तब जाकर के दौड़ने की इच्छा जगती है, चलने का मन करता है, नए सपने जगते हैं और परिश्रम करने की पराकाष्ठा होती है और इसलिए परिवर्तन आने की संभावना पैदा होती है। और इसलिए भाइयों-बहनों, समय की माँग है कि हम बदले हुए युग में किसी भी विषय में विश्व से अलग नहीं रह सकते। अपने आप को दुनिया से अलग थलग करके, एक कोने में बैठ कर के हम अपनी दुनिया को आगे बढ़ाने के सपनों को कभी पूरा नहीं कर सकते। और इसलिए, बदलते हुए विश्व को समझने का अवसर इस प्रकार की समिट से मिलता है। मित्रों, मुझे खुशी है, गुजरात के सामान्य परिवार के लोग लाखों की तादात में ये एक्जीबिशन देखने के लिए पिछले पाँच दिन से कतार में खड़े हैं। क्यों..? उनको तो कुछ लेना-बेचना नहीं है, वो यहां जो देखेंगे उससे तो उनकी दुनिया बदल जाने वाली नहीं है। लेकिन हमने एक अर्ज पैदा की है। और ये हमारी सबसे बड़ी सफलता है कि मेरे राज्य के सामान्य से सामान्य नागरिक के भीतर हमने एक अर्ज पैदा की है, उसका भी मन करता है कि चलो यार, क्या अच्छा है, जरा देखें तो सही..! उसको लगता है कि हो सकता है आज देखेंगे तो कल पाएंगे भी सही..! मित्रों, एक ट्रांसफोर्मेशन है, एक बदलाव है, उस बदलाव को हमें समझने की आवश्यकता है। और इस समिट के माध्यम से मैं मेरे गुजरात की एक बहुत बड़ी शख्सियत और शक्ति, चाहे गाँव हो, तहसील हो, जिला हो, वहाँ पर समाज जीवन को संचालन करने वाली एक शक्ति रहती है, उस शक्ति के अंदर समिट के माध्यम से मैं नए सपनों को संजोने का, नई दिशा को पकड़ने का, एक नया आयामों की ओर जाने का एक नया अनफोल्डमेंट कर रहा हूँ। ये समिट उस अनफोल्डमेंट का कारण बन रही है। ये बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है। मित्रों, किसी भी गुजराती को गर्व होता है। आगरा में 200 देशों के लोग ताजमहल देख कर जाएंगे तो भी आगरा का आदमी वो गौरव अनुभव नहीं करता है, क्योंकि ताजमहल ने बनाने वाले ने बनाया, ईश्वर की इच्छा थी कि उस महाशय का आगरा में जन्म हुआ और आने वाले को ये पता चला की ये दुनिया की एक अजायबी है तो चलो मैं भी एक फोटो खिचवां कर आ जाऊँ..! अपनापन महसूस नहीं होता है। लेकिन इस धरती पर अपने पसीने से कोशिश कर कर के दुनिया के 121 देशों के लोग आएं तो हमारे सब लोगों को लगता है कि यार, मेरे मेहमान हैं, ये मेरे अपने हैं..!

मित्रों, मैं एक और बात बताना चाहता हूँ। ये बात भी जो मैं कह रहा हूँ ये बहुत लोगों की समझ के बाहर की चीज है, वो समझेंगे उनके लिए मैं समझ छोड़ कर रखता हूँ। मित्रों, ये 121 देशों के लोगों का यहाँ आना, हर वाइब्रेंट समिट में आने वाले लोगों की संख्या भी काफी है। अनेक देश के लोग हैं जो हर वाईब्रेंट समिट में आते हैं। मित्रों, बार-बार यहाँ आने से इस धरती के प्रति उनको भी लगाव हो रहा है, उनको भी अपनापन महसूस हो रहा है। आपने देखा होगा, इतने सारे देशों के लोग, हर किसी की कोशिश है ‘नमस्ते’ बोलने की, हर किसी की कोशिश है ‘केम छो’ बोलने की..! वो अपने आप को इस मिट्टी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। यहाँ की परंपरा और यहाँ की संस्कृति से अपने आप को जोड़ने का उसमें उमंग है। इसका मतलब ये हुआ मित्रों, जिसको हम किसी थर्मामीटर से नाप नहीं सकते, किसी पैरामीटर से नाप नहीं सकते ऐसी एक घटना आकार ले रही है। और वो घटना क्या है? दुनिया के अनेक लोगों का गुजरात के साथ बॉन्डिंग हो रहा है। ये मेरी बात आने वाले दिनों में सत्य हो कर के सिद्घ होगी और मैं साफ मानता हूँ कि ये जो बॉन्डिंग है, वो अमूल्य है। इसका कोई हिसाब-किताब नहीं लगा सकते। और मैं विश्वास से कहता हूँ कि दिस बॉन्डिंग इज़ स्ट्रॉंगर दैन ब्रान्डिंग..! गुजरात के ब्रांड की जितनी ताकत है मित्रों, उससे ज्यादा गुजरात के साथ जो बॉन्डिंग हो रहा है, वो पिढ़ियां तक रहने वाला काम इस धरती पर हो रहा है। गुजरात में कोई भी घटना घटेगी, अच्छी हो या बुरी, आप विश्वास किजीए मित्रों, इन सब के देशों में गुजरात की चर्चा आवश्य होगी। अच्छी-बुरी घटना के साथ उनका भी मन जुड़ा होगा। मित्रों, एक अर्थ में गुजरात का एक विश्वरूप खड़ा हो रहा है। ऍक्स्पैन्शन ऑफ गुजरात, एक नया विश्व रूप गुजरात का खड़ा हो रहा है। मित्रों, इतने कम समय में एक राज्य का विश्वरूप बनना ये अपने आप में बहुत बड़ी सिद्घि है। और इस सिद्घि को नापने के लिए आज की प्रचलिए जो परंपराएं हैं, मान्यताएं हैं वो कभी काम नहीं आएंगी। एक दूसरे नजरिए से देखना पड़ेगा। भाइयों-बहनों, दुनिया के इतने सारे देश के लोग, हमारे उत्तर प्रदेश के व्यक्ति को भी गुजराती खाना खाना हो तो पूछता है कि यार, उसमें गुड़ तो नहीं डाला है ना..! दाल मीठी तो नहीं होगी ना..! उसके मन में सवाल रहता है। मित्रों, जिनको एक घंटा नॉन-वेज के बिना चलता नहीं है ऐसे 121 देश के नागरिक दो दिन अपनी परंपराएं छोड़ कर के हमारी गुजरात की जो भी वेजिटेरियन डिश है उसका मजा ले रहे हैं। मित्रों, ये छोटी चीज है क्या..?

मित्रों, इस समिट में मैंने कहा था कि मेरे दिमाग में हमारे देश की युवा शक्ति है, मेरे राज्य का युवा धन है। हम लंबे अर्से तक इंतजार नहीं कर सकते मित्रों, हमें हमारे राज्य के युवकों को सज्ज करना होगा। बदलते हुए विश्व के अंदर अपनी ताकत से सिर ऊंचा करके निकल पाएं ये स्थिति हमारे नौजवानों के लिए पैदा करनी होगी। और ये हम सबका दायित्व है, सरकार के नाते दायित्व है, समाज के नाते दायित्व है, शिक्षा संस्थाओं के नाते दायित्व है, हमें उन्हें सज्ज करना होगा। लेकिन एक-दो एक-दो प्रयासों से ड्रैस्टिक चेंज नहीं आता है, मित्रों। छुट-पुट प्रयासों से इम्पेक्ट क्रियेट नहीं होता है। इसके लिए तो सामूहिक रूप से, बड़े फलक पर और बड़े एग्रेसिव मूड में उस विराटता के दर्शन करवाने होंगे, तब जाकर के बदलाव आता है। मित्रों, कभी-कभी हमारे शास्त्रों से हम भी कुछ सीख सकते हैं। छोटे से कृष्ण ने मिट्टी खाई। मैं नहीं मानता हूँ कि मक्खन खाने वाले व्यक्ति को मिट्टी खाने का शौक होगा..! लेकिन कोई ना कोई तो रहस्य होगा, तभी तो मिट्टी खाई होगी। और मिट्टी छुप कर के नहीं खाई थी, माँ यशोदा देख ले उस प्रकार से खाई थी, माँ यशोदा को गुस्सा आए उस प्रकार से मिट्टी खाई थी और तब जाकर के माँ यशोदा ने मुंह खोला और पूरे विश्वरूप का दर्शन हुआ और तब जा कर के यशेादा ने कृष्ण की ताकत को स्वीकार किया था। मित्रों, मनुष्य का स्वाभाव है..! यशोदा को भी शक्ति का साक्षात्कार नहीं हुआ तब तक उसे शक्ति की अनुभूति नहीं हुई थी, इसलिए हमारी इस नई पीढ़ी को भी हमें शक्ति का साक्षात्कार करवाना होगा। और उस मूल विचार को लेकर के हमने इस बार नॉलेज को केन्द्र में रखते हुए विश्व के अनेक देशों से गणमान्य यूनिवर्सिटीज को बुलाया। मित्रों, मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ, आज तक पूरी दुनिया में कहीं पर भी दुनिया के अलग-अलग देशों की 145 यूनिवर्सिटीज एक रूफ के नीचे इक्कठी हुई हो और उस राज्य के लोग उस 145 लीडिंग यूनिवर्सिटीज के साथ बैठ कर के, दो दिन संवाद करके अपने राज्य के युवा जगत को कहाँ ले जाना उसकी ब्लू प्रिंट तैयार करते हो, ये घटना दुनिया में कहीं नहीं हुई है, दोस्तों। मुझे गर्व है वो घटना मेरे गुजरात में घट गई, इस वाइब्रेंट गुजरात के साथ घटी..! मित्रों, 145 युनिवर्सिटीज का एक साथ आना और गुजरात आज जहाँ है उसको ध्यान में रख के चर्चा कर के आगे बढ़ने के सपने संजोना और रोड मैप तैयार करना, ये अपने आप में एक बहुत बड़ी शुभ शुरूआत है।

मित्रों, हम इस बात को मान कर के चलते हैं कि भारत 21 वीं सदी का नेतृत्व करेगा। ये सदइच्छा हम सब के दिलों में पड़ी है। और विश्वास भी इसलिए पैदा होता है कि 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है और जब-जब मानव जात ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है, हमेशा-हमेशा हिन्दुस्तान ने विश्व का नेतृत्व किया है। ये सदभाग्य है कि हमारे रहते हुए हमने उस ज्ञान युग में प्रवेश किया है और 21 वीं सदी हिन्दुस्तान की होने की संभावना है। अगर ये पिठीका तैयार है तो हम लोगों का दायित्व बनता है कि विश्व ने ज्ञान की जिस ऊंचाइयों को प्राप्त किया है, उस ज्ञान कि ऊँचाइयों को छूने का सामर्थ्य हमारी युवा पीढ़ी में आना चाहिए, हमारे एज्यूकेशन इंस्टीट्यूशन में आना चाहिए, हमारी संस्थाओं में उस प्रकार का नेचर बनना चाहिए। और उसके लिए एक प्रयास इस वाइब्रेंट समिट के साथ किया। मित्रों, पूरे विश्व को हम बूढ़ा होता हुआ देखते हैं। अपनी आँखों से देख रहे हैं कि विश्व बहुत तेजी से बुढ़ापे की ओर जा रहा है। दुनिया के कई देश हैं जहां अगर चौराहे पर खड़े हो कर घंटे भर लोगों को आते-जाते हुए देखोगे तो बड़ी मुश्किल से 2-5% नौजवान दिखेंगे, ज्यादातर बूढ़े लोग जा रहे होंगे..! आज विश्व में एक अकेला हिन्दुस्तान है जो विश्व का सबसे युवा देश है। 65 प्रतिशत, मेरे देश के 65% नागरिक 35 वर्ष से कम आयु के हैं..! जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो, ज्ञान का युग हो और जब हम स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती मना रहे हैं और आज जब स्वामी विवेकानंद का 150 वां जन्म दिन है, उस पल जब हम बात कर रहे हैं तब, क्या हम लोगों का दायित्व नहीं है कि हम सब लोग मिल कर के 150 साल जिस व्यक्ति के जन्म को हुए हैं और जिसने आज से 125 साल पहले सपना देखा था। 125 साल बीत गए, क्या कभी हमने सोचा है कि विवेकानंद जैसे महापुरुष के सपने क्यों अधूरे रहे..? क्या कमी रह गई..? उन्होंने सपना देखा था और विश्वास से कहा था कि मैं मेरी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगदगुरू के स्थान पर विराजमान है, दैविप्यमान तस्वीर मैं मेरी भारत माँ की देख रहा हूँ, ये स्वामी विवेकानंद ने कहा था। मित्रों, क्या समय की माँग नहीं है कि जब हम स्वामी विवेकानंद जी के 150 साल मना रहे हैं, तो उनके सपनों को साकार करने के लिए हम अपने आप को सज्ज करें, प्रतिबद्घ करें, प्रतिज्ञित करें और पुरूषार्थ की पराकाष्ठा कर-कर के इस भारत माता को जगदगुरू के स्थान पर विराजमान करने का सपना लेकर के आगे बढ़ें। जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो वो देश क्या कुछ नहीं कर सकता है..! उसकी भुजाओं में सामर्थ्य हो तो जगत की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए हम अपने आप को सज्ज क्यों नहीं कर सकते हैं?

मित्रों, इतने बड़े सपने को पूरा करना भी बहुत छोटी सी शुरूआत से संभव होता है। और हमने बल दिया है स्किल डेवलपमेंट पर। इस पूरे समिट में हम उस बात पर बल दे रहे हैं कि सारी दुनिया को वर्क-फोर्स की जरूरत है, स्किल्ड मैन पावर की जरूरत है। आज मैं यू.के. के लोगों के साथ बात कर रहा था, ब्रिटिश डेलिगेशन के साथ। वो मुझे पूछ रहे थे कि आपको क्या आवश्यकता है। मैंने उनको अलग पूछा, मैंने कहा कि आप बताइए, आपको दस साल के बाद किन चीजों की जरूरत पड़ेगी इसका हिसाब लगाया है क्या..? मैंने कहा हिसाब लगाइए और हमें बताइए, हम उसकी पूर्ति के लिए अभी से अपने आप को तैयार करेंगे। दुनिया को नर्सिस चाहिए, दुनिया को टीचर्स चाहिए, दुनिया को लेबरर्स चाहिए... और मित्रों, मेरा सपना है। अभी भी मैं कहता हूँ कि कुछ बातें हैं जो कुछ लोगों के पल्ले पड़ना संभव नहीं है, दोस्तों..! लोगों को लगता होगा कि यहां से मारूति एक्सपोर्ट हो, लोगों को लगता होगा कि यहाँ से फोर्ड एक्सपोर्ट हो, लोगों को लगता होगा यहाँ से उनकी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट हो... मित्रों, मेरा तो सपना ये है कि मेरे यहाँ से टीचर्स एक्सपोर्ट हों..! मित्रों, एक व्यापारी जब दुनिया में जाता है तो डॉलर और पाऊंड जमा करता है, लेकिन एक टीचर जाता है तो पूरी एक पीढ़ी पर कब्जा करता है..! ये ताकत होती है टीचर की..! और जब विश्व में माँग है और हमारे पास नौजवान हैं, तो क्यों ना इन दोनों का मेल करके हम दुनिया में हमारे टीचर्स को पहुँचाएं..! विश्व की आवश्यकता भी पूरी होगी और हमारे नौजवानों का भाग्य भी बदलेगा। मित्रों, पूरी सोच बदलने की आवश्यकता है और उस सोच को बदलने की दिशा में इस समिट के माध्यम से समाज और राष्ट्र के अंदर किस प्रकार के बदलाव आने चाहिए वो दुनिया के साथ मिल बैठ कर के हम सोच कर के आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। और मित्रों, इसी अर्थ में मैं इस इवेंट को सबसे सफल इवेंट मैं मानता हूँ।

2003 में हमने जब पहली बार वाइब्रेंट समिट की तो गुजरात के व्यापारी और उद्योगकार, हिन्दुस्तान के व्यापारी और उद्योगकार ये सब मिल के जितनी संख्या आई थी, 2013 में उससे चार गुना ज्यादा विदेश की संख्या आई है। उस समय सब मिला कर के जितने थे... हमने छोटे से टागोर हॉल में किया था और कहीं मीडिया की नजर में हमारी बुराई ना हो इसलिए मैंने कहा था कि पीछे यार, कुछ लोग बैठ जाना ताकि भरा हुआ दिखाई दे..! क्योंकि पहली बार प्रयोग करता था, लोग सवाल उठा रहे थे कि लोग गुजरात क्यों आएंगे..? उस नकारात्मक चीज में से ये रास्ता खोजने की कोशिश की और आज 2013 हम देख रहे हैं मित्रों, क्या हाल है..! मैं तो कहता हूँ मित्रों, कि मेरा ये वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, ये कन्सेप्ट डेवलप न हुआ होता तो शायद ये महात्मा मंदिर भी ना बनता। इतनी बड़ी व्यवस्थाएं खड़ी क्यों हो रही हैं..? ये व्यवस्थाएं इसलिए खड़ी हो रही हैं क्योंकि हमें लग रहा है कि हम विश्व के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए अपने आप को सज्ज कर रहें हैं। मित्रों, यहाँ जो व्यवस्था में नौजवान लगे हैं वे कॉलेज स्टूडेंस हैं, स्कूल स्टूडेंटस हैं, एक हफ्ते के लिए यहां उनकी स्पेशल ट्रेनिंग भी हो रही है, देख रहे हैं। मित्रों, उनकी आंखों में कॉन्फिडेंस देखिए आप, इतना बड़ा इवेंट उन्होंने सिर्फ देखा है। किसी को कहा इधर जाइए, किसी को कहा यहां बैठिए... यही काम किया होगा। इतने मात्र से व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों की आँखों में इतनी चमक आई है, तो मित्रों, मेरे पूरे गुजरात में जो लोग इस निर्णय प्रक्रिया में शामिल होतें हैं उनके जीवन में कितना बड़ा बदलाव आएगा वो हम सीधा-सीधा देख सकते हैं, बाहर कुछ खोजने की जरूरत नहीं है, मित्रों।

भाइयों-बहनों, हमें गुजरात को नई-नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। हमने पिछले वर्ष एक छोटा सा प्रयोग किया। वो प्रयोग था एग्रीकल्चर सैक्टर के लिए। कभी मैंने देखा था कि इजराइल के अंदर जब एग्रीकल्चर फेयर होता है, तो मेरे गुजरात से कम से कम दो हजार किसान हजारों रुपया खर्च करके इजराइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए जाते हैं। कुछ कॉ-आपरेटिव वाले भी जाते हैं, लेकिन उनको तो खर्च का प्रबंध वहाँ से हो जाता है, लेकिन सामान्य किसान भी जाता है..! और तब मैंने सोचा कि मेरे किसानों के लिए भी मुझे कुछ करना चाहिए। हमने 2012 में पहली बार दुनिया के देश के लोगों को, एग्रो टेक्नोलॉजी क्षेत्र के लोगों को यहाँ बुलाया। इसी महात्मा मंदिर में ऐसा ही बड़ा मैंने किसानों का कार्यक्रम किया था और इतनी ही शान से किया था। प्रारंभ था, हिन्दुस्तान के करीब 14 राज्य उसमें शरीक होने के लिए आए थे। और उसकी सफलता को देख कर मित्रों, हमने निर्णय किया है कि हम जैसे वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करते हैं, वैसे ही 2014 में, फिर ’16 में फिर ’18 में एग्रीकल्चर सेक्टर में टेक्नोलॉजी कैसे आए, फूड प्रोसेसिंग कैसे हो, वैल्यू एडिशन कैसे हो... इन सारे विषयों को मैं मेरे गाँव तक ले जाना चाहता हूँ, किसानों तक ले जाना चाहता हूँ और सारी दुनिया को मैं यहाँ लाना चाहता हूँ, मित्रों। मेरा किसान देखे, उसको समझे..! हम उस दिशा में प्रयास करना चाहते हैं। मित्रों, हमने विकास की नई ऊचाइयों को पार किया है उसमें आज मैं एस.एम.ईज के साथ बैठा था। और एक बात हमारे एस.एम.ई. सैक्टर में आज ध्यान में आई है कि हम अपनी कंपनी में जो भी उत्पादन करते हैं, घरेलू बाजार तक सोच कर के ना करें, हम दुनिया के बाजार में कदम रखना चाहते हैं, उस दिशा में हमारी छोटी-छोटी कंपनियाँ भी जाएँ। और मित्रों, सब संभव है। ये कोई चीन का ही ठेका नहीं है कि वो माल पैदा करे और हमारे बाजार में डाल दे। हम में भी दम है, हम दुनिया के बाजार में जा करके, सीना तान के माल बेच सकते हैं। मित्रों, ये मिजाज होना चाहिए। वरना कभी कभी मैंने देखा है कि जब व्यापारी मिलते हैं तो साब, क्या करें, व्यापार ही खत्म हो गया है। मैंने कहा, क्यों..? अरे छोड़ों साहब, पहले तो अम्ब्रेला बेचता था, लेकिन अब तो चाइना से इतनी बड़ी मात्रा में अम्ब्रेला आता है कि मेरा अम्ब्रेला बिकता नहीं है। अरे, रोते क्यों रहते हो, भाई..? हम चाइना के बाजार में जाकर अम्ब्रेला बेचने का मूड बनाएं, हम पूरी दुनिया को बेच सकते हैं, मित्रों..! मैं ये वातावरण बदलना चाहता हूँ और इसलिए मैं कोशिश कर रहा हूँ। हम एग्रीकल्चर सेक्टर में भी उसी प्रकार से जाना चाहते हैं।

मित्रों, आज अभी देखा, कनाडा से एक्सीलेंसी मिनीस्टर यहाँ आए हुए हैं, उन्होंने कहा कि वो यहाँ कनेडा का जो ऑफिस है उसको और अपग्रेड कर रहे हैं, उनको लगता है कि उनके रेग्यूलर काम के लिए जरूरी हो गया है। मुझे आज यू.के. के हाई कमीश्नर बता रहे थे कि यहाँ का जो ब्रिटिश एम्बेसी का यहाँ का जो चैप्टर है उसको वो इक्विवेलन्ट टू मुंबई बनाने जा रहे हैं। अब कितनी सुविधाएं बढ़ेंगी, मित्रों..! मित्रों, गुजरातीज आर बेस्ट टूरिस्ट्स..! इन्होंने हफ्ते में एक दिन थाईलैंड से विमान की सेवा शुरू करने के लिए कहा है। देखना, तीन महीने में हफ्ते में तीन दिन ना करें तो मुझे कहना..! मित्रों, ये जो छोटी-छोटी चीजें हैं जिसकी अपनी एक ताकत है, मित्रों। आप देखिए मित्रों, गुजरात को एशिया में अपनी एक पहचान बनानी चाहिए, एशिया के देशों में अपनी जगह बनानी चाहिए और जगह बनाने के लिए एक रास्ता है, भगवान बुद्घ..! बहुत कम लोगों का समझ आता होगा ये..! और मित्रों, थाइलैंड और गुजरात का ये नाता सिर्फ एक विमान की सेवा का नहीं है, थाइलैंड और गुजरात के बीच सीधी विमान की सेवा गुजरात की धरती पर जो बुद्घ की अनुभूति है और थाइलैंड जो बुद्घ का भक्त है। इस बुद्घ के माध्यम से थाइलैंड और गुजरात का जुड़ना, जापान और गुजरात का जुड़ना, श्रीलंका और गुजरात का जुड़ना, एश्यिन कंट्रीज के बुद्घिज़म का गुजरात के बुद्घिज़म का जुड़ना... और हम भाग्यवान हैं कि हमारे पास भगवान बुद्घ के रेलिक्स हैं। सारी दुनिया हमारे भगवान बुद्घ के रेलिक्स को हाथ लगा कर देख सकती है। हम इसके माध्यम से पूरे एशिया को गुजरात के साथ जोड़ना चाहते हैं। सिर्फ टीचर्स भेज कर के काम अटकने वाला नहीं है मेरा..!

मित्रों, बहुत सारे सपने मन में पड़े हुए हैं। और ये समय नहीं है कि सब बातें पूरी कर दूँ आज ही। लेकिन भाइयों-बहनों, ये राज्य सफलता की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए संकल्पबद्घ है। हम गुजरात के सामान्य से सामान्य जीवन की भलाई के लिए कोशिश करने वाले लोग हैं। मैंने देखा है कि इस बार एक सेमीनार पूरा अफोर्डएबल हाऊसिंग के लिए था और दुनिया की टॉपमोस्ट कंपनियाँ जल्दी से जल्दी मकान कैसे बने, सस्ते से सस्ता मकान कैसे बने, अच्छे से अच्छी टेक्नोलॉजी से मकान कैसे बने, कम से कम जगह में बड़े टॉवर कैसे खड़े किये जाएं... उन सारे विषयों पर आज चर्चा कर रहे थे। ये चर्चा क्या गरीब की भलाई के काम आने वाली नहीं है..? लेकिन ये कौन समझाए..! मित्रों, यहाँ कृषि के क्षेत्र में जो बदलाव आए हैं उसकी चर्चा करने के लिए डेलिगेशन्स यहाँ हैं और कृषि के क्षेत्र में क्या नई टेक्नोलॉजी ले कर के आएँ हैं उसकी चर्चा कर रहे हैं। मित्रों, हमने कनाडा के साथ एक एम.ओ.यू. किया और पहली बार हमारे गुजरात की एक कंपनी मल्टीनेशनल के रूप में कनाडा में जा कर के उद्योग शुरू कर रही है। उद्योग शब्द आते ही कई लोगों के कान भड़क जाते हैं..! उद्योग यानि पता नहीं कोई बड़ा पाप हो, ऐसा एक माहौल देश में बना दिया गया है..! मेरी ये कंपनी कनाडा में जा कर के क्या करेगी..? कनाडा में जा करके वहाँ की सरकार से मिल कर के वहाँ हम पोटाश का कारखाना लगाएंगे और वो पोटाश मेरे गुजरात के किसानों के खेत में काम आए इसके लिए मेहनत कर रहे हैं। उद्योग शब्द सुनते ही कुछ लोग को भड़क जाते हैं जैसे कि कोई पाप हो रहा हो..! मित्रों, जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव कैसे आए, क्वालिटी ऑफ लाइफ में कैसे परिवर्तन आए, विश्व की बराबरी करने का सामर्थ्य हमारे में कैसे पैदा हो... इस समिट के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों को स्पर्श करने का हमने प्रयास किया है। ये हमारी टैक्सटाइल इन्डस्ट्री के संबंध में हमारे बहुत बड़े सेमिनार हुए। ये जो इन्वेस्टमेंट के लिए काफी लोग आए हैं, वो टैक्सटाइल क्षेत्र में ज्यादा आए हैं। जो लोग उद्योग को गाली देने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं मैं उनको पूछना चाहता हूँ, मेरा किसान जो कॉटन पैदा करता है, उस किसान का पेट कैसे भरेगा अगर मेरी भारत सरकार कॉटन एक्सपोर्ट नहीं करने देती। मेरे किसान का कॉटन पैदा हुआ है और हजारों, लाखों, करोड़ों का नुकसान मेरे किसान को पड़ता है। तो क्यों ना मैं मेरे किसान के इस कॉटन पे वैल्यू एडिशन करूँ, क्यों ना मैं टैक्सटाइल इन्डस्ट्री लगा कर के मेरे किसान का कॉटन उठा करके रेडिमेड गारमेंट बना करके दुनिया के बाजार में बेचूँ..? क्या ये किसान की भलाई के लिए नहीं है? लेकिन पता नहीं क्यों एक एसा माहौल बना दिया गया है। ये विकृतियाँ और नकारात्मकता से गुजरात काफी बाहर निकल चूका है।

मित्रों, इस समिट का सबसे बड़ा संदेश ये है कि दुनिया के समृद्घ देश भी रिसेशन की चर्चा में डूबे हुए हैं, बाजार की मंदी का प्रभाव विश्व के समृद्घ देश अनुभव कर रहे हैं, पूरा विश्व इकॉनामी लड़खड़ा रही है इस चिंता में लगा हूआ है... मित्रों, ऐसे माहोल में, धुंधली सी अवस्था में, कन्फूजन की अवस्था में, उजाला कब होगा इसके इंतजार की अवस्था में, मैं दावे से कहता हूँ मित्रों, ये समिट पूरे विश्व को आर्थिक जगत के अंदर एक पॉजिटिव मैसेज देने का सामर्थ्य रखती है, दुनिया के हर समृद्घ देश को गुजरात की ये घटना एक पॉजिटिव मैसेज देने की ताकत रखती है। अनेक विषयों में हमने सिद्घि पाई है। ये सिद्घि परिवर्तन की एक नई आशा लेकर के आई है। मित्रों, इस गुजरात को महान बनाना है, भव्य बनाना है, समृद्घ बनाना है और स्वामी विवेकानंद जी के सपने पूरे हों, उन सपनों को पूरा करने के लिए गुजरात की जितनी जिम्मेवारी है उनको बखूबी निभाने का हमारा प्रयास है।

मैं फिर एक बार इस समिट के लिए विश्व के जितने देशों ने सहयोग किया उनका मैं आभारी हूँ। मैं विशेष रूप से कनाडा के प्राइम मिनिस्टर का आभारी हूँ, जिन्होंने विशेष रूप से कल अपने एक एम.पी. को भेज कर एक चिट्ठी मेरे लिए भेजी और हमें शुभकामनाएं दी और इसलिए मैं कनाडा के प्रधानमंत्रीजी का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने गुजरात पर इतना विश्वास रखा है। दुनिया का समृद्घ देश भारत जैसे देश के एक छोटे से राज्य के प्रति इतने आदर के साथ जुड़ने का प्रयास करे वो अपने आप में बेमिसाल है। मैं विश्व के सभी जो राजनेता यहाँ आए, राजदूत आए, विश्व के सभी देशों ने हिस्सेदारी की मैं उन सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूँ, धन्यवाद करता हूँ और फिर एक बार आप सब आए, आपका बहुत-बहुत आभार..! और फिर एक बार 11 जनवरी, 2015 के लिए आपको मैं फिर से निमंत्रण देता हूँ, यू आर मोस्ट वेलकम, 11 जनवरी, 2015..! थैंक यू वेरी मच दोस्तों, थैंक्स अ लोट..!

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আমার প্রিয় দেশবাসী, নমস্কার। ২০২৫ তো প্রায় এসেই গেল, এই তো দরজায় কড়া নাড়ছে। ২০২৫ সালের ২৬শে জানুয়ারি আমাদের সংবিধান কার্যকর হওয়ার পঁচাত্তর বছর পূর্ণ হতে চলেছে। আমাদের সবার জন্য অত্যন্ত গৌরবের ব্যাপার। আমাদের সংবিধান-নির্মাতারা আমাদের যে সংবিধান দিয়ে গিয়েছেন তা কালের প্রবাহে প্রতিটি মানদণ্ডে সাফল্য পেয়েছে। সংবিধান আমাদের জন্য এক দিশারী আলোকবর্তিকা, আমাদের পথপ্রদর্শক। ভারতের সংবিধানের কারণেই আমি আজ এখানে পৌঁছেছি, আপনাদের সঙ্গে কথা বলতে পারছি। এই বছর ২৬শে নভেম্বর, সংবিধান দিবস থেকে এক বছর ধরে চলবে এমন অনেক কাজ শুরু হয়েছে। দেশের নাগরিকদের সংবিধানের ঐতিহ্যের সঙ্গে যুক্ত করার জন্য কনস্টিটিউশন-সেভেন্টিফাইভ-ডট-কম নামে এক বিশেষ ওয়েবসাইটও বানানো হয়েছে। এতে আপনি সংবিধানের প্রস্তাবনা পাঠ করে নিজের ভিডিও আপলোড করতে পারেন। আলাদা-আলাদা ভাষায় সংবিধান পাঠ করতে পারেন, সংবিধানের ব্যাপারে প্রশ্নও জিজ্ঞাসা করতে পারেন। মন কি বাতের শ্রোতাদের কাছে, স্কুলপড়ুয়া বাচ্চাদের কাছে, কলেজে যাওয়া যুবক-যুবতীদের কাছে আমার অনুরোধ, আপনারা অবশ্যই এই ওয়েবসাইটে গিয়ে দেখুন, এর অংশ হয়ে উঠুন।

বন্ধুরা, আগামী মাসের তেরো তারিখ থেকে প্রয়াগরাজে মহাকুম্ভও অনুষ্ঠিত হতে চলেছে। এই সময় ওখানকার সঙ্গমতটে পূর্ণ উদ্যমে প্রস্তুতি চলছে। আমার মনে আছে, এই কিছুদিন আগে যখন আমি প্রয়াগরাজে গিয়েছিলাম তখন হেলিকপ্টার থেকে গোটা কুম্ভ ক্ষেত্র দেখে হৃদয় প্রসন্ন হয়ে গিয়েছিল। এত বিশাল! এত সুন্দর! এত মহৎ!

বন্ধুরা, মহাকুম্ভের বিশেষত্ব কেবল এর বিশালতার মধ্যেই নয়, কুম্ভের বিশেষত্ব এর বিবিধতার মধ্যেও ধরা আছে। এই উদ্যোগে কোটি-কোটি মানুষ এসে একত্রিত হন। লক্ষ-লক্ষ সন্ন্যাসী, হাজার-হাজার রীতি-পরম্পরা, শত-শত সম্প্রদায়, বহু আখড়া, প্রত্যেকে এই আয়োজনের অংশ হয়ে ওঠেন। কোথাও কোনও বিভেদ নেই, কেউ এখানে বড় নন, কেউ ছোট নন। বৈচিত্র্যের মধ্যে ঐক্যের এই দৃশ্য বিশ্বের আর কোথাও দেখা যায় না। এই জন্য আমাদের কুম্ভ ঐক্যের মহাকুম্ভও হয়ে ওঠে। এবারের মহাকুম্ভও ঐক্যের মহাকুম্ভের মন্ত্রকে শক্তিশালী করে তুলবে। আমি আপনাদের সবাইকে বলব, যখন কুম্ভে অংশ নেব আমরা, তখন ঐক্যের এই সঙ্কল্পকে নিজের সঙ্গে নিয়ে ফিরব। সমাজে বিভেদ আর বিদ্বেষের ভাবনাকেও নষ্ট করার সঙ্কল্প নেব আমরা। কম শব্দে যদি প্রকাশ করতে হয় আমাকে, তাহলে বলব-

মহাকুম্ভের সন্দেশ, এক হোক গোটা দেশ।

মহাকুম্ভের সন্দেশ, এক হোক গোটা দেশ।

আর যদি ভিন্ন ভাবে বলতে হয় তাহলে আমি বলবঃ

গঙ্গার নিরন্তর ধারা, মোদের সমাজ যেন না হয় ঐক্যহারা।

গঙ্গার নিরন্তর ধারা, মোদের সমাজ যেন না হয় ঐক্যহারা।।

বন্ধুরা, এবার প্রয়াগরাজে দেশ ও বিশ্বের ভক্তরা ডিজিটাল মহাকুম্ভেরও সাক্ষী হবেন। ডিজিটাল নেভিগেশনের সহায়তায় আপনারা আলাদা আলাদা ঘাট, মন্দির, সাধু-সন্ন্যাসীদের আখড়া পর্যন্ত পৌঁছনোর রাস্তা পেয়ে যাবেন। এই নেভিগেশন সিস্টেম আপনাদের পার্কিং পর্যন্ত পৌঁছতেও সাহায্য করবে। এই প্রথম বার কুম্ভমেলা আয়োজনে এআই চ্যাটবটের প্রয়োগ হবে। এই চ্যাটবটের মাধ্যমে ১১টি ভারতীয় ভাষায় কুম্ভ মেলার সঙ্গে যুক্ত সব রকম তথ্য জানা যাবে। এই চ্যাটবটে বিভিন্ন ধরনের টেক্সট টাইপ করে কিংবা মুখে বলে যে কোন ধরনের সহায়তা আপনারা চাইতে পারেন। সম্পূর্ণ মেলা প্রাঙ্গণকে এআই-পাওয়ারড ক্যামেরায় ঢেকে দেওয়া হচ্ছে। কুম্ভে যদি কেউ নিজের পরিচিতজনের থেকে বিচ্ছিন্ন হয়ে যান তাহলে এই ক্যামেরাগুলি তাকে খুঁজতেও সাহায্য করবে। ভক্তরা ডিজিটাল লস্ট এন্ড ফাউন্ড সেন্টারের সুবিধাও পাবেন। তাদের মোবাইলে government approved tour packages, থাকার জায়গা আর হোমস্টে সম্বন্ধেও জানানো হবে। আপনারাও যদি মহাকুম্ভে যান তাহলে এই সুবিধাজনক ব্যবস্থাগুলির সুফল নেবেন এবং #"একতা কা মহাকুম্ভ"-এর সঙ্গে নিজের সেলফি অবশ্যই আপলোড করবেন।

বন্ধুরা, মন কি বাত অর্থাৎ MKB-তে এবারে বলি KTB-র কথা। যারা প্রবীণ মানুষ তাদের মধ্যে অনেকেরই হয়তো KTB সম্বন্ধে জানা নেই। কিন্তু ছোটদের জিজ্ঞাসা করুন, KTB ওদের কাছে সুপারহিট। KTB কৃষ, ট্রিশ, বালটিবয়। আপনারা সম্ভবত জানেন ছোটদের পছন্দের অ্যানিমেশন সিরিজ, যার নাম "KTB - ভারত হ্যায় হাম", এখন তার দ্বিতীয় সিজনও চলে এসেছে। এই তিনটি অ্যানিমেশন ক্যারেক্টার আমাদের ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামের সেই সব নায়ক-নায়িকাদের সম্বন্ধে বলে যাদের নিয়ে তেমন ভাবে আলোচনা হয় না। সম্প্রতি এর সিজন টু বিশেষ সমারোহের সঙ্গে ইন্টারন্যাশনাল ফিল্ম ফেস্টিভ্যাল অফ ইন্ডিয়া, গোয়াতে লঞ্চ হয়েছে। সবচেয়ে দুর্দান্ত ব্যাপার, এই সিরিজটি শুধু ভারতের অনেকগুলি ভাষায় নয়, এমনকি বিদেশি ভাষাতেও সম্প্রচার হয়। দূরদর্শনের পাশাপাশি অন্য ওটিটি প্লাটফর্মেও এটি দেখা যায়।

বন্ধুরা, আমাদের অ্যানিমেশন ফিল্মের, রেগুলার ফিল্মের, টিভি সিরিয়ালের জনপ্রিয়তা এটা প্রমাণ করে যে, ভারতের ক্রিয়েটিভ ইন্ডাস্ট্রির কতটা ক্ষমতা রয়েছে। এই ইন্ডাস্ট্রি যে শুধু দেশের উন্নতির ক্ষেত্রে বড় অবদান রেখে চলেছে তাই নয়, বরং আমাদের অর্থনীতিকে নতুন উচ্চতায় নিয়ে যাচ্ছে। আমাদের ফিল্ম এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রি বিরাট। দেশে কত রকম ভাষায় সিনেমা তৈরি হয়, ক্রিয়েটিভ কনটেন্ট তৈরি হয়। আমি আমাদের ফিল্ম এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রিকে এই জন্য অভিনন্দন জানাই, কারণ তারা এক ভারত শ্রেষ্ঠ ভারতএই ভাবনাকে আরো শক্তিশালী করে তুলেছে।
বন্ধুরা, ২০২৪ সালে আমাদের চলচ্চিত্র জগতের অনেক বিখ্যাত ব্যক্তিত্বের শততম জন্মজয়ন্তী আমরা পালন করছি। এই মহাপুরুষরা ভারতীয় সিনেমাকে বিশ্বের দরবারে পরিচিতি দিয়েছেন। রাজকাপুরজি ফিল্মের মাধ্যমে সারা পৃথিবীকে ভারতের সফ্ট পাওয়ারের সঙ্গে পরিচয় করিয়েছেন। রফি সাহেবের চমৎকার কণ্ঠস্বর সকলের হৃদয়কে ছুঁয়ে যেত। ওঁর কণ্ঠস্বর ছিল অদ্ভূত। ভক্তিগীতি হোক, রোমান্টিক গান হোক কিংবা বিরহের গান, সমস্ত
অনুভূতিকে তিনি নিজের কণ্ঠস্বরের মাধ্যমে জীবন্ত করে তুলেছিলেন। একজন শিল্পী হিসেবে ওঁর প্রতিভা সম্পর্কে এভাবেই আন্দাজ করা যায় যে, আজও যুবক-যুবতীরা ওঁর গান সেই একইরকম আগ্রহের সঙ্গে শোনে, এটাই টাইমলেস আর্টের পরিচয়। আক্কিনেনি নাগেশ্বর রাও গারু তেলুগু সিনেমাকে নতুন উচ্চতায় পৌঁছে দিয়েছিলেন। ওঁর সিনেমায় ভারতীয় ঐতিহ্য এবং মূল্যবোধের প্রদর্শন করা হয়েছে। তপন সিনহাজির সিনেমা সমাজকে এক অন্য দৃষ্টিভঙ্গিতে দেখিয়েছে। ওঁর সিনেমায় সামাজিক চেতনা এবং রাষ্ট্রীয় ঐক্যের বার্তা থাকত। আমাদের পুরো ফিল্ম ইন্ডাস্ট্রির জন্য এই মহান ব্যক্তিদের জীবন অনুপ্রেরণার মতোই।
বন্ধুরা, আমি আপনাদের আরেকটা আনন্দের কথা জানাতে চাই। ভারতের ক্রিয়েটিভ ট্যালেন্টকে পৃথিবীর সামনে রাখার এক বড় সুযোগ আসতে চলেছে। আগামী বছর আমাদের দেশে প্রথম বার ওয়ার্ল্ড অডিয়ো ভিসুয়াল এন্টারটেইনমেন্ট সামিট অর্থাৎ WAVES সামিটের আয়োজন হতে চলেছে। আপনারা সকলে দাবোসের ব্যাপারে শুনেছেন, যেখানে পৃথিবীর অর্থনীতি জগতের মহারথীরা যুক্ত হন। সে ভাবে এই সামিটে সারা পৃথিবীর মিডিয়া এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রির বিশেষজ্ঞ, ক্রিয়েটিভ জগতের মানুষরা ভারতে আসবেন। এই সামিট ভারতকে গ্লোবাল কনটেন্ট ক্রিয়েশনের হাব হিসেবে পরিচিতি দেওয়ার জন্য এক গুরুত্বপূর্ণ পদক্ষেপ। আমার এটা বলতে গর্ব হচ্ছে যে, এই সামিটের প্রস্তুতির সময়ে আমাদের দেশের ইয়ং ক্রিয়েটররাও সম্পূর্ণ আগ্রহের সঙ্গে যুক্ত হচ্ছেন। যখন আমরা পাঁচ ট্রিলিয়ন ডলার ইকোনমির দিকে এগিয়ে চলেছি, তখন আমাদের ক্রিয়েটর ইকোনমি এক নতুন শক্তির সঞ্চার করছে। আমি ভারতের সমগ্র এন্টারটেইনমেন্ট এবং ক্রিয়েটিভ ইন্ডাস্ট্রিকে বলতে চাই যে, আপনারা ইয়ং ক্রিয়েটর হোন বা প্রতিষ্ঠিত শিল্পী হোন বা বলিউডের সঙ্গে যুক্ত অথবা আঞ্চলিক সিনেমার সঙ্গে যুক্ত বা টিভি ইন্ডাস্ট্রির পেশাদার হোন অথবা অ‍্যানিমেশন বিশেষজ্ঞ বা গেমিং-এর সঙ্গে যুক্ত বা এন্টারটেইনমেন্ট টেকনোলজির ইনোভেটর হোন, আপনারা সকলে ওয়েভস সামিটের অংশ হয়ে উঠুন।

আমার প্রিয় দেশবাসী, আপনারা সবাই জানেন যে, ভারতীয় সংস্কৃতির প্রকাশ আজ দুনিয়ার প্রতিটি প্রান্তে পৌঁছে যাচ্ছে। আজ আমি আপনাদের তিন মহাদ্বীপে এমন প্রয়াসের ব্যাপারে বলব, যা আমাদের সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যের বৈশ্বিক বিস্তারের সাক্ষী। এগুলো একে অন্যের থেকে শত-শত মাইল দূরে অবস্থিত। কিন্তু ভারতের সংস্কৃতি জানার এবং সেটা থেকে শেখার আগ্রহ তাদের মধ্যে একইরকম।

বন্ধুরা, চিত্রকলার দুনিয়া যেমন রঙিন, তেমন সুন্দর। আপনারা যাঁরা টিভির মাধ্যমে মন কি বাতের সঙ্গে যুক্ত হয়েছেন, তাঁরা এখনই কিছু চিত্রকলা টিভিতে দেখতে পাবেন। এই সব চিত্রকলায় আমাদের দেবী-দেবতা, নৃত্যকলা আর মহাপুরুষদের দেখে আপনাদের খুব ভালো লাগবে। এর মধ্যে আপনারা ভারতে পাওয়া যায়, এমন জীবজন্তু থেকে শুরু করে আরও অনেক জিনিস দেখতে পাবেন। এর মধ্যে তাজমহলের এক চিত্তাকর্ষক চিত্রও রয়েছে, যেটা তেরো বছরের একটি মেয়ে তৈরি করেছে। আপনারা এটা জেনে বিস্মিত হবেন যে, এই দিব্যাঙ্গ কন্যা নিজের মুখ দিয়ে এই চিত্র তৈরি করেছে। সব থেকে আকর্ষণীয় ব্যাপার হল এই সব চিত্র নির্মাতারা ভারতের নয়, মিশরের শিক্ষার্থী, ওখানকার ছাত্র-ছাত্রী। কয়েক সপ্তাহ আগেই মিশরের তেইশ হাজার শিক্ষার্থী ছবি আঁকার এক প্রতিযোগিতায় অংশ নিয়েছিল। সেখানে তাদের ভারতের সংস্কৃতি আর দুই দেশের ঐতিহাসিক সম্পর্ক তুলে ধরার চিত্র তৈরি করতে হয়েছিল। আমি এই প্রতিযোগিতায় অংশগ্রহণকারী প্রত্যেক তরুণ-তরুণীর প্রশংসা করছি। তাদের সৃজনশীলতার যতই প্রংশসা করা হোক না কেন, তা কম হবে।

বন্ধুরা, দক্ষিণ আমেরিকায় একটি দেশ হল প্যারাগুয়ে। ওখানে বসবাসকারী ভারতীয়ের সংখ্যা ১০০০-এর থেকে বেশি হবে না। প্যারাগুয়েতে একটি অদ্ভুত প্রচেষ্টা চলছে। ওখানকার ভারতীয় দূতাবাসে Erica Huber বিনামূল্যে আয়ুর্বেদিক পরামর্শ দিয়ে থাকেন। ওঁর কাছে আয়ুর্বেদের পরামর্শ নেবার জন্য প্রচুর সংখ্যায় স্থানীয় মানুষেরা ভিড় করছেন। যদিও Erica Huber ইঞ্জিনিয়ারিং নিয়ে পড়াশোনা করেছেন, কিন্তু তিনি আয়ুর্বেদের প্রতি নিবেদিত-প্রাণ। তিনি আয়ুর্বেদের সঙ্গে যুক্ত বিভিন্ন কোর্সও করেছেন, আর সময়ের সঙ্গে সঙ্গে আয়ুর্বেদে পারদর্শীও হয়ে উঠেছেন।

         বন্ধুরা, এটা আমাদের জন্য অত্যন্ত গর্বের বিষয় যে, পৃথিবীর সব থেকে প্রাচীন ভাষা হল তামিল, আর প্রত্যেক ভারতীয় এর জন্য গর্বিত। পৃথিবীর বিভিন্ন দেশে এই ভাষা শেখার লোকের সংখ্যা দিন দিন বাড়ছে। গত মাসের শেষের দিকে ফিজিতে ভারত সরকারের সাহায্যে তামিল টিচিং প্রোগ্রাম শুরু হয়। বিগত ৮০ বছরে এটাই প্রথম বার, যখন ফিজিতে অভিজ্ঞ শিক্ষকেরা তামিল ভাষা শেখাচ্ছেন। আমার এটা জেনে ভালো লাগছে যে, ফিজির ছাত্ররা তামিল ভাষা ও সংস্কৃতি শেখার ব্যাপারে অনেক আগ্রহ দেখাচ্ছে।

      বন্ধুরা, এই কথাগুলো, এই ঘটনাগুলো শুধুমাত্র সাফল্যের কাহিনি নয়। এটা আমাদের সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যেরও গাথা। এই উদাহরণগুলো আমাদের গৌরবান্বিত করে। আর্ট থেকে আয়ুর্বেদ, ল্যাঙ্গুয়েজ থেকে মিউজিক, ভারতে এত কিছু আছে যা পৃথিবীতে ছড়িয়ে গেছে ।

      বন্ধুরা, শীতের এই মরশুমে দেশ জুড়ে খেলাধুলো ও fitness সংক্রান্ত বিভিন্ন অ্যাক্টিভিটিস হচ্ছে। আমি খুব খুশি এটা দেখে যে, মানুষ ফিটনেসকে দৈনন্দিন জীবনের অংশ করে তুলছেন। কাশ্মীরে স্কিংই থেকে শুরু করে গুজরাটে ঘুড়ি ওড়ানো পর্যন্ত, চারিদিকে খেলাধুলা নিয়ে উৎসাহ বিদ্যমান। #sundayOnCycle আর #cyclingTuesday এর মতো অভিযানের মাধ্যমে সাইকেল চালানোর উৎসাহ বাড়ছে।

 

বন্ধুরা, এখন আপনাদের একটি অনন্য বিষয়ে কথা বলতে চাই যেটা আমাদের দেশে আগত পরির্বতন এবং যুবা বন্ধুদের উদ্দীপনা ও আবেগের প্রতীক স্বরূপ। আপনি কি জানেন আমাদের বস্তারে একটি অনন্য অলিম্পিক শুরু হয়েছেএকদম ঠিক, প্রথমবার হওয়া বস্তার অলিম্পিকে বস্তারে এক নতুন বিপ্লবের সূচনা হয়েছে। আমার কাছে এটা খুবই আনন্দের কথা যে অবশেষে বস্তার অলিম্পিকের স্বপ্ন বাস্তবে রূপান্তরিত হয়েছে। আপনাদেরও জেনে ভালো লাগবে যে এলাকায় এই খেলা শুরু হয়েছে সেই এলাকাটি আগে মাওবাদী হিংসার সাক্ষী ছিল। বস্তার অলিম্পিকের প্রতীক হল - “বুনো মহিষ এবং পাহাড়ি ময়না”। এর প্রতীকগুলোর মধ্যে বস্তার অঞ্চলের সমৃদ্ধ সংস্কৃতির এক ঝলক দেখতে পাওয়া যায়। এই বস্তারে আয়োজিত অলিম্পিক মহাকুম্ভের, মূল মন্ত্রটি হল“করসায় তা বস্তার, বরসায় তা বস্তার” অর্থাৎ “খেলবে বস্তার, জিতবে বস্তার”। প্রথম বার আয়োজিত বস্তার অলিম্পিকে সাতটি জেলা মিলিয়ে প্রায় এক লক্ষ ৬৫ হাজার খেলোয়াড় অংশগ্রহণ করেছে। এটি শুধুমাত্র একটি পরিসংখ্যান নয় – এটা আমাদের যুবাদের গ্রহণ করা সংকল্পের একটি গৌরব গাথা। অ্যাথলেটিক্স, তীরন্দাজ, ব্যাডমিন্টন, ফুটবল, হকি, ওয়েট লিফটিং, ক্যারাটে, কাবাডি, খো-খো এবং ভলিবল – প্রতিটি ক্ষেত্রেই আমাদের যুবারা তাদের প্রতিভার পরিচয় রেখেছে। কারি কাশ্যপজির কাহিনি আমাকে খুবই অনুপ্রাণিত করে। ছোট্ট গ্রাম থেকে আসা কারিজি, তীরন্দাজিতে রৌপ্য পদক জিতেছেন। তিনি বলেন – “বস্তার অলিম্পিক আমাদের জন্য শুধুমাত্র একটি খেলার মাঠ নয়, এটি আমাদের জীবনে এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ করে দিয়েছে।’’ সুকমা এলাকার পায়েল কাওয়াসি জির কথাও কম প্রেরণাদায়ক নয়। জ্যাভলিন থ্রোতে স্বর্ণপদক প্রাপক পায়েল জি বলেছেন – “শৃঙ্খলা ও কঠোর পরিশ্রমের মাধ্যমে কোনো লক্ষ্যই অর্জন করা অসম্ভব নয়।” সুকমার দোরনাপালের পুনেম সান্না জির গল্পটি নতুন ভারতের জন্য একটি অনুপ্রেরণার সমান। একসময় নকশাল প্রভাব থেকে আসা পুনেম জি আজ হুইলচেয়ারে দৌড়ে পদক জিতেছেন। ওঁর সাহস ও মনের জোর সবার জন্য অনুপ্রেরণা। কোদাগাঁওয়ের তীরন্দাজ রঞ্জু সোরি জিকে ‘বস্তার ইউথ আইকন’ হিসাবে নির্বাচন করা হয়েছে।উনি মনে করেন বস্তর Olympic দূর দুরান্তের যুবাদের রাষ্ট্রীয় মঞ্চ পর্যন্ত পৌছনোর সুযোগ দিচ্ছে।

বন্ধুরা, বস্তর Olympic কেবল একটি ক্রীড়া উদ্যোগ নয়। এটি এমন একটি মঞ্চ যেখানে প্রগতি ও ক্রীড়ার মিলন ঘটে। যেখানে আমাদের যুবারা নিজেদের প্রতিভাকে প্রজ্জ্বলিত করে তুলছেন এবং একটি নতুন ভারত নির্মাণ করছেন। আমি আপনাদের সকলের কাছে অনুরোধ করছিঃ

- নিজেদের এলাকায় এই ধরণের ক্রীড়ার উদ্যোগের আয়োজন করার প্রচেষ্টাকে উৎসাহ দিন

- #খেলেগা ভারত-জিতেগা ভারত ব্যবহার করে নিজেদের অঞ্চলের ক্রীড়া প্রতিভাদের গল্প ভাগ করে নিন

- স্থানীয় ক্রীড়া প্রতিভাদের এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ করে দিন

 

মনে রাখবেন, খেলাধুলোর মাধ্যমে শুধু শারীরিক বিকাশ-ই নয়, সমাজের সঙ্গে sportsman spirit যুক্ত করারও এই একটি শক্তিশালী মাধ্যম।

তাহলে খুব খেলুন, নিজেকে বিকশিত করুন।

আমার প্রিয় দেশবাসী, ভারতের দুটি বিশাল কৃতিত্ব আজ সারা বিশ্বের দৃষ্টি আকর্ষণ করছে। এগুলির কথা শুনলে আপনিও গর্ব অনুভব করবেন। এই দুটি সাফল্যই স্বাস্থ্যের ক্ষেত্রে এসেছে। প্রথম সাফল্যটি এসেছে ম্যালেরিয়ার সঙ্গে লড়াইয়ে। ম্যালেরিয়া রোগটি চার হাজার বছর ধরে মানবজাতির জন্য এক বড় চ্যালেঞ্জ ছিল। স্বাধীনতার সময়ও স্বাস্থ্যের ক্ষেত্রে আমাদের সবচেয়ে বড় চ্যালেঞ্জগুলোর মধ্যে অন্যতম ছিল এটি। এক মাস থেকে ৫ বছর বয়স অবধি বাচ্চাদের প্রাণঘাতী সংক্রামক রোগগুলোর মধ্যে ম্যালেরিয়ার স্থান তিনে। আজ আমি আনন্দের সঙ্গে বলতে পারছি, দেশবাসী নিরন্তর প্রচেষ্টার মাধ্যমে এই চ্যালেঞ্জের মোকাবিলা করেছেন।

বিশ্ব স্বাস্থ্য সংগঠন WHO-এর রিপোর্ট বলছে ‘ভারতে ২০১৫ থেকে ২০২৩-এর মধ্যে ম্যালেরিয়ায় আক্রান্ত হওয়া  ও তার ফলে মৃত্যুর সংখ্যা ৮০ শতাংশ কমে গেছে। এটি কোন সামান্য কৃতিত্ব নয়। সবচেয়ে আনন্দের বিষয় এটাই যে এই সাফল্য সাধারণ মানুষের অংশীদারিত্বের মাধ্যমে এসেছে। ভারতের প্রতিটি প্রান্ত, প্রতিটি জেলা থেকে সবাই এই অভিযানে অংশ নিয়েছেন। অসমের জোরহাটের চা বাগানগুলোতে চার বছর আগে পর্যন্ত ম্যালেরিয়া মানুষের দুশ্চিন্তার একটি বড় কারণ ছিল। কিন্তু যখন একে নির্মূল করার লক্ষ্যে চা বাগানে থাকা সবাই এক জোট হন তখন এই ক্ষেত্রে অনেকাংশেই সাফল্য আসতে শুরু করে।

নিজেদের এই প্রয়াসে ওঁরা technology-র পাশাপাশি social media-ও বিশাল রূপে ব্যবহার করেন। এভাবেই হরিয়ানার কুরুক্ষেত্র জেলা ম্যালেরিয়া নিয়ন্ত্রণের লক্ষ্যে একটি খুব সুন্দর model সামনে নিয়ে এসেছেন। এখানে ম্যালেরিয়ার monitoring-এর ক্ষেত্রে জনগণের অংশগ্রহণ বেশ সফল হয়েছে। পথনাটিকা ও রেডিওর মাধ্যমে এমন বার্তায় জোর দেওয়া হয়েছে যার ফলে মশার breeding কম করতে অনেকটাই সাহায্য পাওয়া গেছে। সারা দেশে এই ধরণের নানান প্রচেষ্টার মাধ্যমেই আমরা ম্যালেরিয়ার বিরুদ্ধে যুদ্ধকে আরও দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যেতে সক্ষম হয়েছি।

বন্ধুরা, আমাদের সচেতনতা এবং দৃঢ়সংকল্পের মাধ্যমে আমরা যে কী অর্জন করতে পারি তার দ্বিতীয় উদাহরণ হল ক্যান্সারের সঙ্গে লড়াই। বিশ্ব বিখ্যাত মেডিকেল জার্নাল ল্যানসেটের প্রকাশিত গবেষণা সত্যিই খুব আশাব্যঞ্জক। এই জার্নালের মতে, এখন ভারতে সময়মতো ক্যান্সারের চিকিৎসা শুরু করার সম্ভাবনা অনেক বেড়ে গেছে। সময়মতো চিকিৎসা বলতে, একজন ক্যান্সার রোগীর চিকিৎসা ৩০ দিনের মধ্যে শুরু করা যেতে পারে এবং আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প এতে বড় ভূমিকা পালন করেছে। এই প্রকল্পের কারণে ৯০% ক্যান্সার রোগী তাদের চিকিৎসা যথাসময়ে শুরু করতে পেরেছে। এমনটা হয়েছে কারণ আগে অর্থের অভাবে দরিদ্র রোগীরা ক্যান্সার রোগনির্ণয় ও চিকিৎসা থেকে সরে দাঁড়াতেন। এখন আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প তাদের জন্য একটি বড় ভরসা হয়ে উঠেছে। এখন তাঁরা তাঁদের চিকিৎসার জন্য এগিয়ে আসছেন। আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প ক্যান্সারের চিকিৎসার জন্য যে বিপুল অর্থ প্রয়োজন, সেই সমস্যাকে অনেকাংশে কমিয়ে দিয়েছে। এটাও ভালো বিষয় যে আজ মানুষ, ক্যান্সারের সময়মতো চিকিৎসার ব্যাপারে, অনেক বেশি সচেতন হয়েছেন। এই সাফল্য যতটা আমাদের স্বাস্থ্য ব্যবস্থার, চিকিৎসক, নার্স এবং কারিগরি কর্মীদের, ততটাই আমার নাগরিক ভাই ও বোনেদের। সকলের প্রচেষ্টায় ক্যান্সারকে পরাজিত করার আমাদের সংকল্প আরও শক্তিশালী হয়েছে। এই সাফল্যের কৃতিত্ব তাঁদের সকলের যারা সচেতনতা বৃদ্ধির ক্ষেত্রে উল্লেখযোগ্য অবদান রেখেছেন। ক্যান্সারের বিরুদ্ধে লড়াই করার একমাত্র মন্ত্র - Awareness, Action and Assurance। Awareness অর্থাৎ ক্যান্সার এবং তার লক্ষণ সম্পর্কে সচেতনতা। Action মানে সময়মতো রোগনির্ণয় এবং চিকিৎসা। Assurance মানে এই বিশ্বাস যে রোগীদের জন্য সবরকম সাহায্যের ব্যবস্থা থাকবে। আসুন আমরা সবাই মিলে ক্যান্সারের বিরুদ্ধে এই লড়াইকে দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যাই এবং যতটা সম্ভব রোগীদের সাহায্য করি।

আমার প্রিয় দেশবাসী, আজ আমি আপনাদের ওড়িশার কালাহান্ডি অঞ্চলের এমন একটি প্রয়াসের কথা জানাতে চাই যারা খুব কম জল আর স্বল্প সম্পদ থাকা সত্ত্বেও সফলতার এক নতুন গাথা লিখেছে। এটি হল কালাহান্ডির সবজি ক্রান্তি। এক সময় যেখান থেকে কৃষক পালিয়ে যেতে বাধ্য হত, সেখানেই আজ কালাহান্ডির গোলামুন্ডা ব্লক vegetable hub হয়ে উঠেছে। এই পরিবর্তনটি কিভাবে এল? একে দশ জন কৃষকের একটি ছোট গোষ্ঠী শুরু করেন। এই গোষ্ঠীর সকলে মিলে একটা FPO - কৃষক উৎপাদন সংঘ স্থাপন করে, কৃষিতে আধুনিক প্রযুক্তির প্রয়োগ শুরু করা হয়, আজ ওদের এই FPO কোটি কোটি টাকার ব্যবসা করছে। আজ প্রায় ২০০-র বেশি কৃষক এই FPO -র সঙ্গে যুক্ত হয়েছেন যার মধ্যে ৪৫ জন মহিলা কৃষক সদস্যও রয়েছেন। এরা সবাই মিলে ২০০ একর জমিতে  টমেটো চাষ করছেন আর ১৫০ একর জমিতে করলার চাষ করছেন। এখন এই FPO-র বার্ষিক turnover দেড় কোটিরও বেশি হয়ে গেছে। আজ কালাহান্ডির সবজি কেবল ওড়িশার বিভিন্ন জেলাতেই নয়, দেশের অন্য রাজ্যগুলিতেও পৌঁছে যাচ্ছে আর ওখানকার কৃষকেরা এখন আলু আর পেঁয়াজ চাষ করার নতুন কলাকৌশলও শিখছে।
বন্ধুরা, কালাহান্ডির এই সাফল্য আমাদের এই শিক্ষা দেয় যে সংকল্পশক্তি আর সমষ্টিগত প্রচেষ্টায় কি না সম্ভব। আমি আপনাদের সবার কাছে অনুরোধ করছি
- নিজেদের এলাকার FPO গুলিকে উৎসাহ দিন।
- কৃষক উৎপাদন গোষ্ঠীগুলির সঙ্গে যুক্ত হয়ে তাদের মজবুত করে তুলুন।
মনে রাখবেন ক্ষুদ্র প্রচেষ্টার মাধ্যমেও বড় পরিবর্তন ঘটানো সম্ভব। আমাদের শুধু দৃঢ় সংকল্প আর সম্মিলিত ভাবনার প্রয়োজন।

বন্ধুরা, আজকের ‘মন কি বাত’-এ আমরা শুনলাম কি ভাবে আমাদের ভারত বৈচিত্র্যের মধ্যে ঐক্য নিয়ে এগিয়ে চলেছে। তা সে খেলার মাঠ হোক বা বিজ্ঞানের ক্ষেত্র, স্বাস্থ্য হোক বা শিক্ষাপ্রতিটি ক্ষেত্রেই ভারত নিত্য নতুন উচ্চতা লাভ করে চলেছে। আমরা এক পরিবারের মতো মিলেমিশে প্রতিটি চ্যালেঞ্জের মোকাবিলা করেছি এবং সাফল্য লাভ করেছি। ২০১৪ সাল থেকে শুরু হওয়া ‘মন কি বাত’-এর ১১৬টি পর্বে আমি দেখেছি যে ‘মন কি বাত’ দেশের সামগ্রিক শক্তির এক জীবন্ত দলিল হয়ে উঠেছে। আপনারা সবাই এই অনুষ্ঠানকে আপন করে নিয়েছেন। প্রতি মাসে আপনারা আপনাদের চিন্তা-ভাবনা ও প্রচেষ্টা আমাদের সঙ্গে ভাগ করে নিয়েছেন। কখনো কোনো young innovator-এর আইডিয়াতে প্রভাবিত হয়েছি, তো কখনো কোন কন্যার achievement-এ গৌরবান্বিত হই। এটা আপনাদের সবার মিলিত প্রচেষ্টা, যা দেশের প্রতিটি প্রান্ত থেকে ইতিবাচক শক্তি সঞ্চার করেছে। ‘মন কি বাত’ এইরকম ইতিবাচক শক্তি বিকাশের মঞ্চ হয়ে উঠেছে, এখন ২০২৫ কড়া নাড়ছে। আসন্ন বছরে ‘মন কি বাত’-এর মাধ্যমে আমরা উৎসাহব্যঞ্জক প্রচেষ্টার বিষয়গুলো ভাগ করে নেব। আমার বিশ্বাস, দেশবাসীর ইতিবাচক চিন্তা ও innovation-এর ভাবনায় ভারত নতুন উচ্চতার শিখরে পৌঁছবে। আপনারা নিজেদের আশেপাশের unique প্রচেষ্টাকে #Mannkibaat-এর সঙ্গে share করতে থাকুন। আমি জানি যে পরের বছরের প্রতিটা ‘মন কি বাত’-এ আমাদের কাছে একে অপরের সঙ্গে ভাগ করে নেওয়ার মতো অনেক কিছু থাকবে। আপনাদের সবাইকে জানাই ২০২৫-এর জন্য অনেক শুভকামনা। সুস্থ থাকুন, আনন্দে থাকুন, Fit India Movement-এর সঙ্গে যুক্ত হয়ে যান, নিজেকেও fit রাখুন। জীবনে উন্নতি করতে থাকুন। অনেক অনেক ধন্যবাদ।