मंच पर बिराजमान प्रात:स्मरणीय, वंदनीय, परम श्रद्धेय पूज्य संतगण, माँ भारती की भक्ति में डूबे हुए उपस्थित सभी महानुभाव, जिन संतो के चरणों में बैठना जीवन का एक बहुत बड़ा सौभाग्य होता है, उन संतों के बगल में बैठने का जो अवसर आए, तो बैठने वाले की हालत क्या हुई होगी इसका आप अंदाज कर सकते हैं..! जिनकी वाणी सुनने के लिए मीलों दूर से कष्ट उठा कर के करोड़ों-करोड़ों लोग पहुंचते हैं, शब्द रूपी प्रसाद ग्रहण करने के लिए तपस्या करते हैं ऐसे ओजस्वी, तेजस्वी, तपस्वी, माँ सरस्वती के धनी, जिनके आशीर्वाद से लाभान्वित हुए हैं ऐसे महापुरूषों के बीच खड़े होकर के कुछ कहने की नौबत आए, तो उस कहने वाले का हाल कैसा होता होगा इसका आप भली-भांति अंदाजा कर सकते हैं..! ईश्वर ने जब से मुझे दुनिया को जानने और समझने का सामर्थ्य दिया, तब से जितने भी कुंभ के मेले हुए उन सब में मैं उपस्थित रहा और कभी ये भी सौभाग्य मिला था कि पूरा समय भी मैं वहाँ रहा था। लेकिन इस बार का ये पहला कुंभ का मेला ऐसा था कि जिसमें मैं पहुंच नहीं पाया था। मन में एक कसक थी, एक पीड़ा थी कि मैं ये क्यों कर नहीं पाया..? और जब मुझे गुरू जी अभी मिले तो तुरंत पूछा कि बेटा, इस बार कुंभ में क्यों नहीं दिखाई दिए..? मन में एक कसक तो अभी भी है कि नहीं पहुंच पाया, लेकिन आज इस समारोह में और वो भी गंगा के तट पर हरिद्वार की भूमि में इसी पवित्र स्थल पर इन सभी संतों, आचार्यों और भगवंतों के दर्शन का मुझे सौभाग्य मिला..! शायद ईश्वर की इच्छा होगी कि मेरी वो कसक कम हो, और इसलिए ही ये कुछ व्यवस्था ईश्वर ने बनाई होगी..! ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आज आप सब लोगों के चरणों में वंदन करने का अवसर मिला है..!

मैं एक बात यहाँ बताना चाहता हूँ। हमारे देश में किसी के लिए कुछ भी कह देना बहुत आसान हो गया है। शब्दों का मूल्य ना समझते हुए, शब्दों का सामर्थ्य ना समझते हुए, किसी के लिए कुछ भी कह देना ये मानों एक नया स्वभाव पनपा है। और इसलिए पता नहीं किस-किस के लिए क्या-क्या कहा गया होगा..! लेकिन एक समृद्व राज्य के इतने वर्षों तक मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद मैं सार्वजनिक रूप से और इन मीडिया वाले मित्रों की हाजिरी में अपने अनुभव से घोषित करना चाहता हूँ। यहाँ एक भी संत महात्मा, एक भी संस्था ऐसी नहीं है जिसने कभी भी, कभी भी गुजरात में मुख्यमंत्री के पास आकर के किसी भी चीज की कभी मांग की हो..! ये देने वाले लोग हैं..! वरना आसानी से यह कह दिया जाता है। और इसलिए आज मैं बड़ी जिम्मेदारी के साथ ये कहना चाहता हूँ कि मेरे 12 साल के कार्यकाल में मुझे एक भी संत महात्मा, एक भी समाज के प्रति समर्पित व्यक्ति ऐसा मिला नहीं है जिसने सरकार से कुछ मांगा हो..! बहुत लोग होंगे जिनको ये बात नजर आना मुश्किल है। संतो की शक्ति ऐसे चश्मों को निर्माण करे, ऐसे ऐनक का निर्माण करे ताकि ऐसे लोगों को कुछ सत्य दिखाई दे..! और उस अर्थ में, उनकी वाणी का सामर्थ्य हजारों गुना बढ जाता है..! उन्होंने जो मर्यादा रेखाएं तय की होती हैं उस मर्यादा रेखाओं के बाहर जाने का साहस कत्तई कोई नहीं कर पाता है, क्योंकि वो सिर्फ शब्द नहीं होते हैं, वो एक साधना का अंश होता है..!

मैं बाबा रामदेव जी को सालों से जानता हूँ। वो जब साइकिल से घूमते थे तब से जानता हूँ और एक छोटी सी पुडिया में से काजू का टुकड़ा देते थे वो भी याद है..! आप कल्पना कर सकते हैं, एक व्यक्ति अहर्निश, एक निष्ठ, अखंड, अविरत, ‘वन लाइफ, वन मिशन’ इस तरह चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति... इस देश में लगातार भ्रमण करता रहे..! प्रतिदिन डेढ़-दो लाख लोगों को योग के माध्यम से स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करते रहें..! अगर बाबा रामदेव जी की ये मूवमेंट दुनिया के किसी और देश में हुई होती, तो ना जाने कितनी यूनिवर्सिटीयों ने उस पर पी.एच.डी. की होती..! मैं ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ वालों को कहना चाहता हूँ कि आपने ना जाने कितने रिकॉर्ड प्रतिस्थापित किये होगें, लेकिन कभी आपने इस रिकॉर्ड की तरफ ध्यान दिया है कि अपने इतने छोटे से काल खंड में एक व्यक्ति ने टीवी के माध्यम से नहीं, फोटो के माध्यम से नहीं, रेडियो के माध्यम से नहीं, टैक्नोलॉजी के माध्यम से नहीं, रूबरू में इतने करोड़ लोगों के साथ आंख में आंख मिला कर के बात की हो ऐसा रिकॉर्ड शायद दुनिया में कहीं नहीं होगा..!

ये हमारा दुर्भाग्य है मित्रों, कि हम लोग हमारे देश के सामर्थ्य की चर्चा कभी करते नहीं हैं। किसी ने कल्पना की है कुंभ के मेले की..? कुंभ के मेले की व्यवस्था कितनी जबर्दस्त होती है..! वहाँ संतों मंहतों के एक-एक छोटे नगर बस जाते हैं। और गंगा के किनारे पर हर दिन यूरोप का एक देश इक्कठा हो इतनी भीड़ जमा होती है, इतने भक्तों का जमघट जमा होता है। और उसके बाद भी ना कोई मारकाट, ना कोई लूट, ना कोई अकस्मात, ना कोई मौत, ना कोई बीमारी... और दो-दो, तीन-तीन महीने तक बिना किसी आमंत्रण के बिना किसी सूचना के करोड़ों-करोड़ों लोग पहुंचते हैं..! क्या किसी मैनेजमेंट गुरु ने सोचा है, क्या दुनिया को मैनेजमेंट सिखाने वालों ने कभी सोचा है कि ये कौन सी मैनेजमेंट है, ये कौन सी व्यवस्था है..? ये संत-शक्ति के सामर्थ्य और सहस्त्र वर्षों की परंपरा का परिणाम है। लेकिन हम स्वाभिमान खो चुके हैं। आत्म गौरव के साथ दुनिया के साथ आंख में आंख मिला कर के हमारे सामर्थ्य का परिचय कराने की आदत गुलामी के काल खंड के कारण छूट गई है। और तब जा कर के इस चेतना को विश्व के सामने प्रस्तुत करना हर भारतवासी का सपना हो वो बहुत स्वाभाविक है और मैं भी एक हिन्दुस्तान के छोटे बच्चे के नाते उन महापुरूषों के शब्दों पर भरोसा करता हूँ। श्री अरविंद ने कहा था, जिसे मैं वेद वाक्य मानता हूँ, कि मुझे विश्वास है कि मेरी भारतमाता आजाद तो होगी ही, पर इतना ही नहीं, मेरी भारत माता विश्व कल्याणक बन कर रहेगी..! ये सपना देखा था। आज जब पूरा हिन्दुस्तान स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती मना रहा है तब, इस महापुरूष के सपनों को पूरा कौन करेगा..? क्या इस देश के एक-एक बच्चे का दायित्व नहीं है, हम सभी भारतवासियों का दायित्व नहीं है, हम सभी नौजवानों का दायित्व नहीं है कि जिस स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि मैं अपनी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगतगुरू के स्थान पर विराजमान है..! मुझे उस महापुरूष के सपनो में विश्वास है और उन्होंने कहा था कि मेरी आशा देश के नौजवान हैं..! 150 साल हो गए उस महापुरुष के जन्म को, 125 साल पहले ये बात उन्होंने बताई थी और आज पूरे विश्व का सबसे युवा कोई देश है तो वो हिन्दुस्तान है..!

आज पूरे विश्व में चर्चा चल रही है कि 21 वीं सदी हिन्दुस्तान की सदी है। पूरा विश्व ये मानता है कि 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है और इसलिए जब-जब मानव जात ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तो उस सभी समय हिन्दुस्तान ने मानव जात का नेतृत्व किया है..! 21 वीं सदी यदि ज्ञान की सदी है तो 21 वीं सदी का नेतृत्व भी ये ज्ञानवान देश के पास होगा, ये हम सबको भरोसा होना चाहिए और उस दिशा में हमें एक नागरिक के नाते, हम जहाँ भी हों, जैसे भी हों, उस कर्तव्य का पालन करने के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प इस आशा-आकांक्षा की परिपूर्ति कर सकता है..!

भाइयो और बहनों, अभी-अभी नवरात्र का पर्व पूरा हुआ है और ये मेरा सौभाग्य रहा कि कुछ कारणवश ऐसे कार्यक्रम बन गए, वैसे मीडिया के मित्र तो उसका ऐसा डिजाइन बना कर के दुनिया को समझा रहे हैं कि मोदी कैसे बड़ी प्लानिंग के साथ आगे बढ़ रहे हैं..! ऐसा बता रहे हैं..! तो ये मैं बताना चाहता हूँ कि कोई प्लानिंग-ब्लानिंग नहीं है..! ईश्वर की इच्छा होगी, मेरा मन करता था बड़े दिनों से कि माँ काली के पास चला जाऊँ, बैलूर मठ चला जाऊँ, जिन संतों के साथ बचपन बिताया था, एक बार फिर उनके पास चला जाऊँ..! और कुछ दिन पहले में बंगाल, कलकत्ता गया और माँ काली के पास गया, रामकृष्ण परमहंस की उस पवित्र भूमि पर गया, बैलूर मठ गया, संतों के बीच समय बिताया..! बाद में सूचना आई केरल से, नारायण गुरू की पवित्र परंपरा के पास दर्शन करने का अवसर आया। नारायण गुरू ने अपना पूरा जीवन वंचितों के लिए, पीड़ितों के लिए, दलितों के लिए, शोषितों के लिए, समाज के निम्न स्तर की भलाई के लिए लगाया था और सौ साल पहले शिक्षा की ऐसी अलख जगाई थी कि उस संत की तपस्या का परिणाम है कि आज पूरे हिन्दुस्तान में सर्वाधिक शिक्षा कहीं है तो उस प्रदेश का नाम केरला है। संत का प्रताप है..! और आज दक्षिण से निकल के मैं सीधा हिमालय की गोद में, गंगा की चरणों में बाबा रामदेव जी जिस गुरूकुल को शुरू कर रहे हैं, आचार्यकुल को शुरु कर रहे हैं, ऐसे एक पवित्र कार्य में जुड़ने का मुझे सौभाग्य मिला है।

मैं जानता हूँ आज के इस अवसर के बाद भांति-भांति की चर्चा हमें सुनने को मिलेगी..! मैं जब छोटा था, तो हमारे कान में एक सवाल पूछा जाता था, हमारे मनो को भ्रमित किया जाता था। कभी-कभी मुझे लगता है कि बाबा रामदेव जी सारे देश को कपालभाति की ओर खींच कर ले गए हैं और उसके कारण जिनके कपाल में भ्रांतियाँ पड़ी हैं, वो ज्यादा परेशान नजर आते हैं..! लेकिन मुझे भरोसा है कि ये कपालभाति कभी ना कभी एक कपाल की भ्रांतियों को भी समाप्त करने का सामर्थ्य दिखाएगी..! हम बचपन में क्या सुनते थे..? हर कोई बोलता था और मैं समझ नहीं पाता था कि ये लोग ऐसा क्यों बोलते हैं और ये अभी भी मेरे मन में है क्योंकि मैं बचपन से किसी संत को देखता था तो बड़ी जिज्ञासा होती थी। कभी उनसे मैं सवाल पूछने चला जाता था, कभी किसी मंदिर में रूके हैं तो खाने-वाने को पूछने चला जाता था, मेरी अपनी एक रुचि थी..! पता नहीं ये ईश्वर ने तय किया होगा मेरे लिए, लेकिन मुझे बड़ा आकर्षण था..! और मैं बहुत छोटे नगर में पैदा हुआ हूँ, मैंने तो गाड़ी भी बचपन में देखी नहीं थी कि कार क्या होती है..! लोग कहते थे कि अरे छोड़ो, ये साधुलोग खाते हैं और सोते हैं, बस। कुछ करते नहीं है, लड्डू खाना बस, और कुछ काम नहीं। और अब जब काम करते हैं तो लोग पूछते हैं कि अरे, आपका ये काम है क्या, क्यों करते हो..? मैं हैरान हूँ..! बाबा रामदेव जी को सबसे बड़ा सवाल ये है कि आप ये सब करते क्यों हो? पहले लोग पूछते थे क्यों नहीं करते हो, अब पूछते हैं कि क्यों करते हो..? क्या इन लोगों को जवाब देना जरूरी बनता है, भाई? इनके लिए समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है। बाबा रामदेव जिस काम को कर रहे हैं, मैं मानता हूँ राष्ट्र की सेवा है। और हमारी पूरी संत परंपरा को देखिए। हर संत ने अपना जीवन उपदेशों तक कभी सीमित नहीं रखा। उन्होंने आचरण पर बल दिया है और कर्त्तव्य भाव से समाज जीवन की पीड़ाओं को दूर करने के लिए उनसे जो कुछ भी उस युग में हो सका, उसे करते रहे। किसी की जेब में एक पैसा ना हो और साल भर हरिद्वार में रहना हो, कोई मुझे बताए, वो भूखा रहेगा..? कौन खिलाता है, ये खिलाने वाले कौन हैं..? ये ही छोटे-मोटे संत हैं, जो अपने यहाँ से किसी भूखे को जाने नहीं देते हैं। मैंने बाबा रामदेव जी से एक बार पूछा था कि मैं तो योग की परंपरा से जुड़ा हुआ इंसान हूँ और दिन-रात दौड़ पाता हूँ उसमें योग का बहुत बड़ा योगदान है। तो, मैंने उनको पूछा एक बार कि योग से ऊर्जा प्राप्त होती है, स्वस्थता प्राप्त होती है, उमंग रहता है, वो सब तो है, लेकिन चारों तरफ से जब इतनी यातनाएं आती हों तो उसको झेलने की ताकत कहाँ से आती है ये तो बताओ..! क्या नहीं बीती बाबा रामदेव पर और क्या गुनाह था उनका..? क्या भारत जैसे लोकतंत्र देश में आपके विचारों से विपरीत विचार कहना गुनाह है..? क्या आपको जो बात पंसद नहीं है वो बात अगर कोई कहे, तो उसके लिए कोई भी अनाप-शनाप शब्द बोलने का आपको अधिकार मिल जाता है..? मैं दिल्ली में बैठे हुए शंहशाहों से पूछना चाहता हूँ, और ये मोदी नहीं पूछ रहा है, देश की भलाई के लिए भक्ति पूर्वक जुल्म के सामने झूझने वाली और जुल्म के सामने ना झुकने वाली माता राजबाला चीख-चीख के पूछ रही है और दिल्ली के शंहशाहों का जवाब मांग रही है..! कुछ लोगों को लगता था कि दमन के दौर से दुनिया को दबोच दिया जाता है। वे लोग कान खोल कर सुन लें, अंग्रेजी सल्तनत भी कभी किसी को दबोच नहीं पाई, आप लोगों की ताकत क्या है..? आप लोग चीज क्या हैं..? एक बार निकलो तो सही, जनता को जवाब देना पड़ जाएगा..!

मित्रों, मैं साफ मानता हूँ कि बाबा रामदेव आज जो कुछ भी कर रहे हैं, मैं नहीं मानता हूँ कि कोई योजना से कर रहे हैं। वो निकले थे तो नागरिकों की स्वस्थता के लिए, वो निकले थे ताकि योग के माध्यम से गरीब से गरीब आदमी अपने आप को स्वस्थ्य रख सके, वो निकले थे क्योंकि महंगी दवा गरीब को बचा नहीं सकती है, योग बचा सकता है और सिर्फ इसलिए निकले थे..! लेकिन दस साल लगातार भ्रमण करते-करते उन्होंने देखा कि नागरिकों के स्वास्थ्य का जितना संकट है, उससे ज्यादा राष्ट्र के स्वास्थ्य का संकट है और तब जा कर के उन्होंने राष्ट्र के लिए आवाज उठाना शुरू किया। और भाइयो-बहनों, इसमें एक सच्चाई है और मुझे विश्वास है कि भले ही उन पर अनेक प्रकार के, भांति-भांति के आरोप लगाने की कोशिश हुई हो... वैसे बाबा रामदेव जी मुझे मिलते हैं तो मुझे कुछ दूसरा कहते हैं। वे मुझे कहते हैं कि मोदी जी, हम दोनों सगे भाई हैं..! मैंने कहा, क्यों..? बोले, जितने प्रकार के जुल्म मुझ पर हो रहे हैं, वो सभी प्रकार के आपके ऊपर भी हो रहे हैं..! तो मैं एक सूची बनाता हूँ कि आज उन पर एक जुल्म हुआ तो मेरी बारी कब आएगी..? क्या शासन का ये काम है..? क्या सद्प्रवृति को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए..? आप बीमारियों की दवाई कहीं और खोज रहे हैं, बीमारी की जड़ों को दूर करने का काम ये संत परंपरा कर रही है और उसी को आप नकार रहे हो तो बुराइयाँ बढ़ती ही जाएगी..! जो श्रेष्ठ है, उत्तम है, सही रास्ता है, इसको नकारने से काम नहीं चलता..!

भाइयो और बहनों, इस देश में ऐसा एक छोटा सा वर्ग है जो ये मानता है कि हिन्दुस्तान का जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ है। और जो लोग ये मानते हैं कि हिन्दुस्तान 15 अगस्त को पैदा हुआ वो सारे गलत रास्ते पर जा रहे हैं..! ये सहस्त्र वर्ष पुराना, एक महान सांस्कृतिक धरोहर वाला, समय के हर पहलु को अनुभव करते हुए, कठिनाइयों से रास्ता खोजते हुए, विश्व कल्याण की कामना करते हुए आगे जा रहा एक समाज है और तभी तो विश्व की अनेक हस्तियाँ मिटने के बाद भी हमारी हस्ती मिटती नहीं है..! जिन चीजों से हम खत्म नहीं हुए हैं, जिसने हमें बचाए रखा है उनको बचाना ये हम लोगों का दायित्व बन जाता है। अगर हम उसको खो देंगे तो समाज कोई भी हो, अगर वो समाज इतिहास की जड़ों से अपने आप को काट डालता है, सांस्कृतिक छाँव से अपने आप को अलग कर देता है, तो उस समाज में इतिहास निर्माण करने की ताकत नहीं रहती है..! इतिहास वही समाज बना सकता है, जो समाज इतिहास में से प्राण शक्ति को प्राप्त करता है..! हम लोग हमारे अपने इतिहास के प्रति शर्मिंदा होते हैं, खुद को इतिहास से अलग रखने का प्रयास करते हैं, सांस्कृतिक विरासत को हम पुराण पंथी कह कर, गालियाँ दे कर के उसका इंकार कर देते हैं... और तब जा कर के स्वस्थ समाज के निर्माण में रुकावटें पैदा होती हैं..!

हमारी समाज व्यवस्था को बढ़िया बनाने का और बचाने का सबसे बड़ा काम परिवार संस्था ने किया है। हम धीरे-धीरे देख रहे हैं कि हमारी परिवार संस्था संकट में आ रही है। ज्वाइंट फैमिली से हट-हट के हम माइक्रो परिवार की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं..! बच्चे आया के भरोसे पल रहे हैं..! हमारा सामर्थ्य कितना था, हमारी समाज व्यवस्थाएं क्या थीं, उसमें से कौन सी चीज अच्छी है कौन सी चीज़ें कालबाह्य हैं, जो निकम्मी है उसको उखाड़ फैंकना, ये हमारे समाज की ताकत है..! और मित्रों, आज मैं ये गर्व से कहना चाहता हूँ कि हम ही लोग इतने भाग्यवान हैं, इस भारत भूमि में जन्में हुए हम लोग इतने भाग्यवान है कि हमारी धरती एक ऐसी बहुरत्न वंसुधरा है, हमारी समाज व्यवस्था इतनी जागृत है कि जिसके कारण जब-जब हमारे भीतर बुराइयाँ पैदा हुईं, हमारे अंदर कमियाँ आई तो उन कमियों को दूर करने के लिए, उन बुराइयों की मुक्ति के लिए हमारे ही समाज के भीतर से तेजस्वी, ओजस्वी, प्राणवान महापुरुषों का जन्म हुआ..! अस्पृश्यता को हमने जन्म दिया, तो कोई गांधी आया जिसने अस्पृश्ता के खिलाफ जंग छेड़ा..! हम ईश्वर भक्ति में लीन थे, तब कोई विवेकानंद आया और उसने कहा कि अरे, दरिद्रनारायण की सेवा करो..! हम मंदिर, माता, भगवान उसी में लगे हुए थे, तब कोई विवेकानंद आया और उसने कहा कि अरे छोड़ो सब, तुम्हारे सब भगवानों को डूबा दो, तुम सिर्फ भारत माता की सेवा करो, ये देश तेजस्वी बन कर के निकलेगा..! ये सामर्थ्य है इस समाज का..! विधवाओं के प्रति अन्याय करने वाले इस समाज के खिलाफ इसी कोख से एक महापुरूष पैदा हुए जिन्होंने विधवाओं के कल्याण के लिए अलख जगाई और समाज के खिलाफ लड़ाई लड़े..! ये संतों का, ऋषियों का, मुनियों का, आचार्यों का योगदान है और तब जा कर के हुआ है..! ये देश राजनेताओं ने नहीं बनाया है, ये देश किसी सरकार ने नहीं बनाया है, ये देश ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, शिक्षकों ने बनाया है, और तब जा कर के देश आगे बढ़ा है। सारी चीज़ें हमने राज के आस-पास, इर्द-गिर्द हमने इक्कठी कर दी हैं, और इन सारी शक्तियों को हमने नकार दिया है..! आवश्यकता है कि इन सभी शक्तियों को जोड़ें, सब शक्तियों का मिलन हो, सतसंकल्प के साथ सतशक्तियाँ सतपथ पर चलें, तो दुनिया की कोई ताकत ऐसी नहीं है कि इस भारत महामाता को जगदगुरू बनने से रोक सके..!

भाइयो और बहनों, मैं बहुत आशावादी व्यक्ति हूँ। विश्वास मेरी रगों में दौड़ता है। मेरा पसीना विकास मंत्र से पुलकित होता है। और इसलिए मैं कहता हूँ और गुजरात के अनुभव से कहता हूँ कि निराश होने का कोई कारण नहीं है..! मुझे याद है कि 2001 में जब गुजरात में भंयकर भूंकप आया, तब सारा विश्व कहता था कि गुजरात मौत की चादर ओढ कर के सोया है, अब गुजरात खड़ा नहीं हो सकता..! अब गुजरात का कुछ होगा नहीं, अध्याय पूरा हो गया..! जो गुजरात के लिए अच्छा चाहते थे वो भी दु:खी थे, उनको भी लगता था कि परमात्मा ने इतना बड़ा कहर क्यों किया..? लेकिन वही गुजरात ने करके दिखाया..! सारा विश्व कहता है, वर्ल्ड बैंक कहती है कि भयानक भूंकप की आफत में से निकलने में समृद्घ देशों को भी सात साल लगते हैं। हम तो गरीब देशों में गिने जाते हैं, लेकिन गुजरात तीन साल के भीतर-भीतर दौड़ने लग गया था। मित्रों, मैं साफ-साफ कहना चाहता हूँ कि आज जो विश्व भर में गुजरात के विकास की जो चर्चा हो रही है, आज विश्वभर में गुजरात के प्रति संतोष का एक भाव जो प्रकट हो रहा है, उसका कारण नरेन्द्र मोदी नहीं है, नहीं है, नहीं है..! अगर उसका यश भागी कोई है तो छह करेाड़ गुजरातियों का पुरषार्थ है। अगर छह करोड़ गुजरातियों का पुरूषार्थ विश्व के सामने एक आदर्श पैदा कर सकता है, तो सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों का पुरुषार्थ पूरे विश्व में एक नई चेतना पैदा कर सकता है, इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए..!

भाइयो और बहनों, हमने ना कभी जीवन में लेने, पाने, बनने के सपने देखें हैं, ना कभी ऐसे सपने संजोए हैं। हम तो फकीरी को लेकर चलने वाले इंसान हैं..! कल क्या था..? अगर कल कुछ नहीं था तो आने वाले कल में कुछ होना चाहिए इसकी कामना कभी जिंदगी में नहीं की..! और मित्रों, राजा रंतिदेव ने कहा था और ये देश की विशेषता देखिए कि जहाँ एक राजा किस प्रकार की ललकार करता है। राजा रंतिदेव ने कहा था ‘ना कामये राज्यम्, ना मोक्षम्, ना पुर्नभवम्, कामये दु:ख तप्तानाम्, प्राणीनाम् आर्त नाशनम्’... ना मुझे राज्य की कामना है, ना मुझे मोक्ष की कामना है, अगर कामना है तो पीड़ितों के, दुखियारों के, वंचितों के आंसू पोछने की कामना है, ये हमारी पंरपरा रही है..! ‘ना कामये राज्यम्, ना मोक्षम्, ना पुर्नभवम्’, हम उस परंपरा से निकले हैं, जिसने हमें सिखाया है ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’... हम उस परंपरा से निकले हैं..! कुछ लोग हमारे इरादों पर शक करते हैं। अपने-पराए ऐसी दीवारें खड़ी करने की कोशिश करते हैं। मैं उन सबको कहना चाहता हूँ कि मैं जिस परंपरा में पला हूँ, मैं जिस संस्कारों में बड़ा हुआ हूँ और जिसने मुझे जो मंत्र सिखाया है, उस मंत्र को मैं मेरे राजनीतिक जीवन का मेनिफेस्टो मानता हूँ..! वो मंत्र कहता है, ‘सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया’..! मुझे कभी ये नहीं कहा कि ‘हिन्दु सुखिन: संतु, हिन्दु निरामया’, ऐसा नहीं कहा..! मेरे पूर्वजों ने मुझे कहा है, ‘सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, माँ कश्चित दु:ख भाग भवेत’... सबके कल्याण की बात, सबके स्वास्थ्य की बात, सबकी समृद्घि की बात, ये मैनिफैस्टो हमें हमारे पूर्वजों ने दिया है। शायद दुनिया में किसी समाज के पास, किसी धर्म के पास, किसी परंपरा के पास दो लाइन में मानव विकास का चित्र खींचा गया हो, सोशल वैलफेयर के कामों का खाका लिया गया हो, ऐसा शायद दुनिया में कहीं नहीं होगा, ये मेरा ज्ञान कहता है..! और इसलिए भाइयो और बहनों, हमारे पास अगर इतनी बड़ी विरासत है, तो भय किस चीज का..?

मुझे स्मरण है, 2002 में मैं चुनाव जीत कर आया था। कई लोगों के लिए बहुत बड़ा सदमा था, वो बेचारे अभी तक होश में नहीं आए हैं..! 12 साल हो गए..! उस दिन का मेरा एक भाषण है। मैं मीडिया के मित्रों को कहता हूँ कि आप में अगर ईमानदारी नाम की चीज है तो उस समय के यू-टयूब पर जा कर के मेरा वो भाषण देख लीजिए। चुनाव जीतने के बाद मैंने कहा था कि अब चुनाव समाप्त हो चुके हैं, राजनीतिक गहमागहमी समाप्त हो चुकी है, तू-तू, मैं-मैं का दौर खत्म हो चुका है, अब हम सबको मिल कर के गुजरात को आगे बढ़ाना है..! और मैंने कहा था कि जिन्होंने हमें वोट दिए हैं वो भी मेरे हैं, जिन्होंने हमें वोट नहीं दिया वो भी मेरे हैं, और जिन्होंने किसी को वोट नहीं दिया वो भी मेरे हैं..! मैंने ये भी कहा था, ‘अभयम्’, ये मेरा शब्द था उस दिन के भाषण में, 2002 के उस माहौल में..! ये संतो की कृपा रही है, इन्हीं की शिक्षा-दीक्षा रही है कि उस माहौल में भी, इतने विकट वातावरण में भी ईश्वर ने मेरे मुंह से एक शब्द निकाला था और मैंने कहा था कि अब सरकार बन चुकी है और मेरा एक ही मंत्र है, ‘अभयम्’..! भाइयों-बहनों, आज 12 साल हो चुके हैं। जिस गुजरात के अंदर आए दिन दंगे होते थे, निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया जाता था, आज 12 साल हो गए हैं, लेकिन दंगो का नामों-निशान वहां नहीं बचा है, मित्रों..! क्यों..? ‘सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया’, ये मंत्र की साधना की है तब जा कर के ये हुआ है। और इसलिए भाइयों-बहनों, मैं कहना चाहता हूँ कि एक छोटी सी जमात इस राष्ट्र की मूल धारा को ललकारती रही है। हमने उसकी अनदेखी की है, उसके कारण हमें बहुत भुगतना पड़ा है। छोटी सी ही क्यों ना हो, लेकिन सात्विक शक्ति को हमें इतनी उभारनी होगी, ताकि इस प्रकार की विकृतियाँ अपने आप नष्ट हो जाएं।

आयुर्वेद तो यही कहता है..! और आज बहुत बड़ी सेवा की है आचार्य जी ने, इतने बड़े ग्रंथ दिए हैं। देखिए, हमारे यहाँ एक जमाना था, सारा विज्ञान ऋषियों के द्वारा ही आया हुआ है। हमारे ऋषि-मुनि जंगलों में तपस्या करते थे, उसी से तो हमारे सारे ग्रंथ बने थे..! उसी परंपरा की एक छोटी सी कड़ी के रूप में आज इस भूमि पर इतने समृद्घ ग्रंथों का लोकापर्ण किया है और मैंने आचार्य जी से प्रार्थना की है कि इसका डिजिटल फार्म हो ताकि दुनिया, नई पीढ़ी जरा इन्टरनेट पर जाकर देखें कि पेड़-पौधे क्या देते हैं, ये परमात्मा हमें क्या दे रहे हैं..! हमारे लिए सब चीजें मौजूद हैं, उसको जोड़ने का काम आचार्य जी ने इन ग्रंथों के माध्यम से किया है। आने वाली पीढ़ी के लिए सदियों तक काम आने वाला ये उत्तम काम इन्होंने किया है। मैं आपका अभिनंदन करता हूँ, मैं पतंजली योगपीठ का अभिनंदन करता हूँ कि उन्होंने हमारी जो मूलभूत शक्ति है उस पर अत्यन्त भरोसा करते हुए उसका पुनर्जागरण करने का एक अभियान उठाया है..!

भाइयो और बहनों, आज मुझे एक सम्मान पत्र दिया गया। मैं अपने आप से पूछता हूँ कि क्या मैं इसके योग्य हूँ..? मेरी आत्मा कहती है कि नहीं, मैं इसके लिए कत्तई योग्य नहीं हूँ..! लेकिन संत तो मन से माँ के रूप होते हैं, संतों के भीतर माँ का एक विराट रूप का अस्तित्व होता है। और जो संतों के निकट जाता है, उसको संतों की भीतर का जो मातृत्व होता है उसकी अनुभूति होती है। और माँ अपने बच्चे को जब वो चल नहीं पाता है, तो उंगली पकड़ कर चलो-चलो, दौड़ो-दौड़ो, अब बहुत पास में है, ऐसे खींच कर ले जाती है। माँ को मालूम होता है कि बच्चा दौड़ नहीं पाएगा, फिर भी माँ पुचकारती है कि अरे दौड़ो-दौड़ो, आ जाओ-आ जाओ... ऐसा करके दौड़ाती है..! मुझे लगता है कि मेरी दौड़ कुछ कम पड़ रही है, मुझे लगता है कि अभी भी मुझमें कुछ कमियाँ हैं और संतो ने आज मुझे एक अलग ढंग से इंगित किया है कि बेटे, ये सब तुम्हे अभी पूरा करना बाकी है..! ये सम्मान पत्र नहीं है, ये आदेश पत्र है और मेरे लिए ये प्रेरणा पुष्प है..! ये प्रेरणा पुष्प मुझे हर पल कमियों से मुक्ति पाने की ताकत दे..! और मैं संतों से खुले आम कहता हूँ, बुरा मत मानना संतों, मुझे संतों से वो आशीर्वाद नहीं चाहिए जो किसी पद के लिए होते हैं, नहीं चाहिए..! हम उसके लिए पैदा नहीं हुए हैं। मुझे संतो से आशीर्वाद चाहिए और इसलिए चाहिए कि मैं कभी कुछ गलत ना करूँ, मेरे हाथों से कुछ गलत ना हो जाए, मेरे हाथों से किसी का बुरा ना हो जाए..! संत मुझे वो आशीर्वाद दें, गंगा मैया मुझे वो सामर्थ्य दे, राजाधिराज हिमालय मुझे वो प्रेरणा दे और आप सब जनता जर्नादन ईश्वर का रूप होती है, मैं उसके चरणों में नतमस्तक होता हूँ और मैं ईश्चर के चरणों में नमन करता हूँ ताकि 125 करोड़ नागरिकों की तरह एक नागरिक के नाते हम भी कभी भी किसी का बुरा ना करें, किसी के लिए बुरा ना सोचें और जो महान कार्य के लिए यज्ञ चल रहे हैं... आप देखिए, कितनी बड़ी शिक्षा संस्था चला रहे हैं..! मैं तो यहाँ हरिद्वार की धरती पर इस शुभ अवसर पर बाबा रामदेव जी से प्रार्थना करता हूँ कि हिन्दुस्तान में संतों के द्वारा शिक्षा के जो काम हो रहे हैं, एक बार यहीं पर उनका सबसे बड़ा मेला लगना चाहिए और लोग देखें कि कोई पाँच लाख बच्चों को पढ़ा रहा है, कोई दो लाख बच्चों को पढ़ा रहा है और सब संस्कार और शिक्षण दोनों की चिंता कर रहे हैं..! ये छोटे काम नहीं है मित्रों, ये राष्ट्र निर्माण की अमूल्य सेवा है, जो इन महापुरूषों के द्वारा हो रही है..! हम कम से कम देखें तो सही, समझें तो सही, उनका गौरवगान तो करें..! लेकिन नहीं, अगर उनकी राजनीतिक उठापटक में इसका कोई मेल नहीं बैठता है, तो पता नहीं क्या कुछ कह देते हैं..! मैं हैरान हूँ, बाबा रामदेव के लिए क्या-क्या शब्द प्रयोग किए हैं इन लोगों ने, क्या-क्या शब्द बोले हैं, मैं सोच नहीं सकता हूँ, मित्रों..! मन में बड़ी पीड़ा होती है। ईश्वर से हम प्रार्थना करें कि हम सत्संकल्प लिए आगे बढ़ें और स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जंयति के निमित्त उनके सपनों को पूर्ण करने के लिए ऐसा भारत बनाने के लिए पूरी शक्ति और सामर्थ्य का अनुभव करें, इसी एक प्रार्थना के साथ फिर एक बार इस अवसर पर मुझे आने का अवसर मिला, जीवन की धन्यता के साथ उस ऋण को स्वीकार करते हुए, मैं सभी के चरणों में वंदन करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ..!

भारत माता की जय..!

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!