भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय राजनाथ सिंह जी, गोवा के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान् मनोहर जी, उप मुख्यमंत्री श्रीमान् अरुण जी, मंचावर बसलेले सगळे नेतेगण (मंच पर बिराजमान सभी नेतागण), गोवा चे कार्यकर्ता बंधू-भगिनी (गोवा के कार्यकर्ता भाईयों-बहनों), नमस्कार..!
मैं आदरणीय राजनाथ जी का बहुत आभारी हूँ कि मुझे ना सिर्फ एक नए कार्य की जिम्मेवारी दी है, लेकिन उन्होंने कार्यकर्ता की नजरों में, देश की जनता की नजरों में एक बहुत ही बड़ा सम्मान दिया है, मैँ उनका बहुत-बहुत आभारी हूँ..! मित्रों, राजनाथ जी बोलने के लिए खड़े हो गए, मुझे बैठा दिया..! वैसे बाहर के लोगों को इस घटना का मूल्य समझना बहुत मुश्किल है। सिर्फ पद होने पर व्यक्ति ऐसा नहीं करता है, दिल होने पर करता है..! और ये दरियादिली जिसको कहें, वो माननीय अध्यक्ष जी ने दिखाई है, और यही चीज है जो हमें दिन रात दौड़ने के लिए ताकत देती है। आखिरकार हम सब कार्यकर्ता हैं और एक कार्यकर्ता के नाते हमें जब जो दायित्व मिलता है उस दायित्व को जी जान से निभाना, पूरी शक्ति झोंक देना, ईश्चर ने जितनी शक्ति दी है, सामर्थ्य दिया है उसका पूरा उपयोग इस दायित्व को निभाने के लिए करना चाहिए, ये हम सभी कार्यकर्ताओं को संस्कार मिले हुए हैं। और एक कार्यकर्ता के नाते भारतीय जनता पार्टी के सभी वरिष्ठों ने मुझें बनाया है। एक प्रकार से मेरा मोल्डिंग किया है, उंगली पकड़-पकड़ के मुझे चलाया है। मेरी सारी कमियों को दूर करते, करते, करते मुझ में अच्छाइयाँ भरने का लगातार प्रयास किया है। और कित-कितने वरिष्ठ नेताओं ने मेरे पीछे अपनी शक्ति और समय लगाया है..! कभी-कभी तो मुझे लगता है कि इस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जितनी शक्ति और समय अपने बच्चों को दिया होगा, उससे ज्यादा मुझे दिया है और मेरा लालन-पालन किया है, मेरा मोल्डिंग किया है..! और ये जो संस्कार मिले हैं उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, ये जो क्षमता मिली है उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, इस पर अगर सबसे पहले किसी का अधिकार है तो भारतीय जनता पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं का है, देश के सामान्य नागरिकों का है..!
आज इस पद को प्राप्त करने के बाद मैं जब पहली बार आप सबके बीच आया हूँ तब, मैं आपको कहना चाहता हूँ मित्रों, हम उस पार्टी के कार्यकर्ता हैं, हम उस पंरपरा के सिपाही हैं, जहाँ पदभार एक व्यवस्था है और कार्यभार एक जिम्मेवारी होती है..! पदभार किसी एक को होता है, कार्यभार सभी लाखों कार्यकर्ताओं पर होता है। और इसलिए पदभार और कार्यभार दोनों को संतुलित रूप से चलाते हुए हम सभी मिल कर के इस देश के सामान्य नागरिक की जो आशा-आकांक्षा है, उसको परिपूर्ण करने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे, ये मुझे भाजपा के कार्यकर्ताओं पर विश्वास है..! मित्रों, मुझे भाजपा के कार्यकर्ताओं पर विश्वास इसलिए है... एक समय था, जब गोवा में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता जी जान से लगते थे। स्वतंत्र गोवा के आंदोलन में जगन्नाथ राव जोशी जैसे महापुरूषों ने जुल्म सहे थे, जेलों में जिन्दगी गुजारी थी और भारतीय जनसंघ का उस जमाने का कार्यकर्ता इस गोवा की आजादी के लिए जी जान से खपा रहता था। और तब कहाँ पता था कि हम कभी इस राज्य के भाग्य के नियंता भी बन सकते हैं..! जब हमारी जमानतें जब्त होती थी, उम्मीदवार ढूंढने के लिए जाना पड़ता था तब भी भारत माता की जय कह कर के ये हजारों कार्यकर्ता दिन-रात लगे रहते थे, ये पूंजी किसके पास है..! आज केरल में देखें... नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा में देखें..! मित्रों, हमारे कई कार्यकर्ताओं ने जिंदगी गंवाई है, उनको मौत के घाट उतार दिया गया, हमें अपने विचारों से विचलित करने का प्रयास किया गया, लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पाटी के कार्यकर्ता ने ना रूकने का नाम लिया, ना थकने का नाम लिया, ना झुकने का नाम लिया... यही तो विरासत है जिसको ले कर के हम आगे बढ़ रहे हैं..! और इसलिए भाइयों-बहनों, हमारी कार्यकर्ता नाम की जो व्यवस्था है, कार्यकर्ता नाम का हमारे पास जो पद है... और यहाँ जिला कक्षा के कार्यकर्ताओं को बुलाया गया है। ये जिला स्तर के कार्यकर्ता जब मेरे सामने बैठे हैं तब, ये पार्टी में ऐसे अनेक लोग होंगे जिनका अखबार में कभी नाम नहीं छपा होगा, ऐसे अनेक लोग होंगे जिनका चेहरा टी.वी. पर कभी दिखाई नहीं दिया होगा, ऐसे अनेक लोग होंगे जिनकी पहचान तक नहीं होगी, लेकिन दो-दो, तीन-तीन पीढ़ी से पूरा का पूरा परिवार भारत माँ की जय करते-करते अपना परिवार लुटाता रहा है, तब जा कर के ये पार्टी बनी है..!
मित्रों, ये पार्टी कुछ सपने लेकर के चली है, राजनीतिक जीवन को हमने सेवा का माध्यम माना है..! व्यवस्थाओं को बदलने के लिए, व्यवस्थाओं को दिशा देने के लिए, समयानुकुल परिवर्तन लाने के लिए निर्णय करने की व्यवस्था होना बहुत जरूरी होता है और इसलिए चुनाव जीत कर के सत्ता में पहुंचना आवश्यक होता है और तब जा कर के फैसले कर सकते हैं, तब जा कर के निर्णय कर सकते हैं। सत्ता हमारे लिए भोग का साधन नहीं है। मित्रों, आदरणीय राजनाथ सिंह जी भी मुख्यमंत्री थे, केन्द्र में मंत्री थे। हिन्दुस्तान के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, सुचारू रूप से उत्तर प्रदेश को आगे बढ़ाने के लिए जी जान से जुटे थे। लेकिन क्या कभी किसी ने उनकी सरकार पर कोई आरोप लगा हो, ऐसा सुना है..? क्या कभी सुना है आपने..? क्या मनोहर परिकर पर कोई आरोप लगता है..? क्या भारतीय जनता पार्टी के किसी मुख्यमंत्री पर आरोप लगता है..? मित्रों, तो ये दिल्ली में बैठे हैं इन पर दिन-रात क्यों लगता है...? क्या कारण है..? और उनको तो कोई परवाह भी नहीं है, मित्रों..! वे करप्शन प्रूफ हो चुके हैं, उन पर इसका कोई असर ही नहीं होता है और हंसी-मजाक में निकाल देते हैं..! और बेशर्मी तो देखिए, अरबों-खरबों रूपया खर्च करके टी.वी. पर ऐड्वर्टाइज़्मेंट दे रहे हैं, ‘भारत के निर्माण पर हक है मेरा..!’ लोग कहते हैं, ‘भारत के निर्माण पर शक है मेरा..!’ आप गौर से सुनिए, आपको शक सुनाई देगा, हक सुनाई नहीं देगा, क्योंकि उनके कारनामें ऐसे हैं कि कान में ये ही शब्द गूंजेगे, ‘शक है मेरा..!’ ये काम किया है उन्होंने, मित्रों..!
अभी अरूण जी कह रहे थे, ‘वैल बिगन, हाफ डन’..! मैं कहता हूँ, ‘वैल बिगन, हाफ वोन’..! मित्रों, एक सही नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी जो काम कर रही है और हम सबको जो छोटा-मोटा दायित्व मिलता है, जिसके जिम्मे जो काम आएगा उस काम को इतने गर्व से और इतनी मेहनत से हम करेंगे कि राजनाथ सिंह जी ने जो सपने देखे होंगे, जो डिजाइन बनाई होगी उसको हम परिपूर्ण करके रहेंगे, इस विश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे..!
मित्रों, ये दिल्ली में जो सरकार है... मित्रों, अभी प्रधानमंत्री जी ने इन्टरनल सिक्योरिटी की एक मीटिंग बुलाई थी। सभी मुख्यमंत्री उसमें शामिल थे। और अचानक उन्होंने खड़े हो कर के छत्तीसगढ़ में जिन लोगों की हत्या हुई उनके प्रति एक शोक प्रस्ताव परित किया। जब मेरी बारी आई तो मैंने शुरू किया वहीं से..! मैंने कहा कि प्रधानमंत्री जी, गृह मंत्री जी, सब लोगों ने आज अपनी बातचीत का प्रारंभ छत्तीसगढ़ से किया है और मृतात्माओं के प्रति श्रद्घांजलि के भाव प्रकट किये हैं उसमें मैं भी अपना स्वर मिलाता हूँ, लेकिन साथ-साथ छत्तीसगढ़ में सामान्य मानवी की रक्षा करते-करते जो शहीद हुए उन पुलिस के जवानों के लिए भी मैं अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ..! मैंने कहा मैं इसके साथ-साथ हिन्दुस्तान के दो सिपाहियों के सिर काट के ले गए हैं, उन शहीद सिपाहियों के प्रति भी अपने श्रद्घा-सुमन अर्पित करता हूँ..! मैंने कहा इतना ही नहीं, केरल के मछुआरे जिनको विदेशियों ने आ कर के गोलियों से भून दिया, मैं उन शहीद मछुआरों के प्रति भी अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ..! भाइयों-बहनों, ये बात जो मैंने वहाँ कही, क्या इस देश के प्रधान मंत्री को करनी चाहिए थी कि नहीं..? क्या ये विचार प्रधानमंत्री को आना चाहिए था कि नहीं..? वहां बैठी सरकार के लोगों को उन शहीद पुलिस जवान याद आने चाहिए थे कि नहीं..? मित्रों, पीड़ा तब होती है। मौत तो मौत होती है, हर मौत के प्रति वही पीड़ा होनी चाहिए, वही आदर होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से दिल्ली में एक ऐसी सरकार बैठी है जिससे आप ना कोई अपेक्षा कर सकते हैं और ना कोई भरोसा कर सकते हैं..! और मित्रों, दुनिया में भरोसा सबसे बड़ी ताकत होती है। एक-दो साल का छोटा बालक कुछ भी अगर समझता नहीं है, लेकिन अगर उसके पिताजी उसको एक खिड़की पर खड़ा कर दें और उस बच्चे का कहे कि बेटे कूद जाओ, तो वो बच्चा समझ हो या ना हो लेकिन बाप के प्रति भरोसा होता है तो वो कूदता है और बाप उसको थाम लेता है..! भरोसा नाम की चीज जो है वो सारे तंत्र को चलाती है और एक बार भरोसा खत्म हो जाए... आप ऑफिस से घर जाने के लिए निकले हो और अगर आपको भरोसा ना हो कि घर में खाना पका होगा कि नहीं पका होगा, तो आप जरूर बाजार से कुछ थैले में लेकर के जाएंगे..! क्यों? पता नहीं पका होगा कि नहीं पका होगा..! जब भरोसा टूट जाता है तो लोग कुछ और रास्ते ढूंढते हैं..! आज देश में भरोसा टूट चुका है। इतना ही नहीं, हर पल प्रति पल, एक के बाद एक ऐसी घटनाएं घट रही हैं जिसके कारण देश का भरोसा टूटता ही जा रहा है, टूटता ही जा रहा है..! आज दिल्ली के अंदर एक जवान बेटी अगर घर से बाहर गई हो और शाम को छह बजे से पहले घर ना लौट पाएं तो माँ-बाप का वो घंटे-दो घंटे का समय इतने संकट से गुजरता है, उसको भरोसा नहीं कि बेटी वापस लौटेगी कि नहीं लौटेगी..! किसान अपनी फसल पैदा करता है, तो उसे भरोसा नहीं है कि पैदावार के बाद भी उसे दाम मिलेगा कि नहीं मिलेगा... उसे पता नहीं है..! मित्रों, ये कब नीतियाँ बदल दें, पता नहीं। आधी रात में नीतियाँ बदल देते हैं और किसके लिए बदलते हैं वो भी बाद में जब सुप्रीम कोर्ट डंडा मारती है तब पता चलता है कि क्यों बदला था..! ये हाल है, मित्रों..!
मित्रों, मेरे जीवन में गोवा ने एक विशेष स्थान पा लिया है..! अखबार भी लगातार लिख रहे हैं कि मोदी के जीवन में गोवा बहुत लक्की है..! मित्रों, मुद्दा मोदी के लक का नहीं है। यही गोवा है जिसने 2002 में मुझे गुजरात की सेवा आगे बढ़ाने के लिए परवाना दिया था और उसका नतीजा ये आया कि आज गुजरात चाइना के साथ स्पर्घा करने लगा है, अगर गोवा ने मुझे वो परवाना ना दिया होता तो शायद मेरे गुजरात की सेवा करने का मुझे सौभाग्य ना मिला होता..! मित्रों, मुझे गोवा से जब-जब आशीर्वाद मिले हैं, उस काम ने नई ऊंचाइयाँ पार की है और इसलिए मुझे इस बार भी भरोसा है कि गोवा ने मुझे जो आशीर्वाद दिए हैं और अध्यक्ष जी ने जो कार्य दिया है वो भी शानदार और जानदार तरीके से यशस्वी होगा, ये मेरा विश्वास है..!
मित्रों, दिल्ली की सरकार हिन्दुस्तान के संघीय ढ़ांचे को स्वीकार करने के मूड में नहीं है। और उनकी मानसिकता को समझने की आवश्यकता है। और मैं इस देश के पॉलिटिकल पंडितों से, डिबेट करने वाले महाशयों से, राजनीतिक दृष्टिकोण से एनालिसिस करने वाले महापुरूषों से मैं चाहूँगा कि इस देश में आगे इस मुद्दे पर चर्चा हो, इस बात को आगे बढ़ाएं..! कांग्रेस मूलत: सत्तावादी मानसिकता से ग्रस्त है। उसे उससे कुछ कम मंजूर नहीं होता है। जब तक दिल्ली में उनकी सरकार थी, राज्यों में उनकी सरकार थी, पंचायतों में उनकी सरकार थी, उनको ना कोई कानून बनाने की इच्छा होती थी, ना कोई परिवर्तन लाने की इच्छा होती थी, गाड़ी मज़े से चलती थी। पंचायत से पार्लियामेन्ट तक उन्ही का झंडा लहराता था, कोई परवाह नहीं थी। लेकिन जब राज्यों में दूसरे दलों की सरकार चुनना शुरू हुआ, खास कर के 1967 के बाद एसईडी की गवर्नमेंट बनना शुरू हुआ, आप इतिहास उठा कर देख लीजिए, जब विरोधी दलों की सरकारें बनी तो उन्होंने आर्टीकल 356 का बेशर्म तरीके से, अनाप-शनाप तरीके से दुरुपयोग किया और हिन्दुस्तान में विपक्ष की किसी सरकार को पाँच साल तक काम करने का अवसर नहीं दिया, मजबूर किया, उसको तोड़ दिया। धारा 356 का दुरूपयोग किया..! उसके बाद उन्होंने क्या किया..? अगर धारा 356 की चर्चाएं हो रही है, जरा ज्यादा आलोचनाएं हो रही है तो उन्होंने विरोधी दल को साम, दाम, दंड, भेद, लोभ, लालच, सीबीआई... जो है उन सबका उपयोग करके उन दलों को तोड़ा। उनके लोगों को उठा कर इधर ले आए और सरकारों को चलने नहीं दिया। राजभवनों को उन्होंने कांग्रेस भवन बना दिये..! किसी विचार को, किसी व्यवस्था को, किसी परिवर्तन को स्वीकार करने की उनकी मानसिकता नहीं है, मित्रों..! जो करेंगे हम ही करेंगे, किसी को करने नहीं देंगे, आने नहीं देंगे, कोशिश की तो उसको खत्म करके रहेंगे... यही कारनामे उनके चलते रहे। और अब जब 356 लगाना मुश्किल हो रहा है, दल बदलू का कानून आने के बाद वो कठिन हो गया है, तो तीसरा उपाय निकाला है, हर किसी के पीछे सीबीआई छोड़ दो..! अब देखिए, इस देश के विपक्ष के कोई नेता बाकी नहीं है जो सरकार में हो और उन्होंने उस पर सीबीआई छोड़ी नहीं हो..! क्यों..? दबाना, दबोचना..! और ये चीजें उनकी लोकतंत्र के प्रति अनास्था को प्रकट करती है, उनका लोकतंत्र पर कोई भरोसा नहीं है, वो राजनीतिक दलों को सम्मान के साथ देखने के लिए तैयार नहीं है और तब जा कर के ये स्थिति पैदा हुई है..! संस्थाओं को तोड़ना, संस्थाओं को मरोडना, और संस्थाएं अगर टूटती नहीं है तो एक के ऊपर दूसरी को बैठा देना, ये एक नई चाल चालू हुई है..!
हिन्दुस्तान में प्लानिंग कमीशन के चैयरमैन देश के प्रधानमंत्री होते हैं। जिस कमेटी के चैयरमैन देश के प्रधानमंत्री हो, जो कमेटी एक प्रकार से राज्य और केन्द्र के बीच में ब्रिज का बहुत बड़ा काम करती हो, जो संवैधानिक संस्था हो, उसका भी अनादर करना और प्लानिंग कमीशन के ऊपर हिन्दुस्तान ने कभी सोचा नहीं, माना नहीं, कल्पना नहीं की वैसा एक एन.ए.सी. बैठा दिया..! पिछले पचास साल से जो संस्था कुछ ना कुछ करने का प्रयास कर रही थी, जिसके चैयरमैन प्रधानमंत्री थे, उस संस्था को एक प्रकार से नाम मात्र की बना कर के उन्होंने छोड़ दिया और उस पर एन.ए.सी. बैठा दिया, नेशनल एडवाइजरी काउंसिल..! और उसके चैयरपर्सन कौन? मैडम..! तो फिर प्रधानमंत्री बनाने की जरूरत क्या थी, इतनी बड़ी कैबिनेट बनाने की जरूरत क्या थी, प्लानिंग कमीशन बनाने की जरूरत क्या थी, देश के अरबों-खरबों रूपये खर्च करने की जरूरत क्या थी..? और एन.ए.सी. भी कैसा..? मैंने प्रधानमंत्री के सामने आंख में आंख मिला कर के सीधा सवाल करते हुए अभी एक भाषण में कहा था उनको, रुबरू में, वो हाजिर थे। मैंने कहा साहब, मुझे बताइए, आप कहते हैं कि माओवाद खत्म होना चाहिए, आपने अपने भाषण में उल्लेख किया है। माओवाद एक बहुत बड़ी चुनौती है ऐसा आपने कहा है। मैंने प्रधानमंत्री जी को कहा कि पशुपति से लेकर तिरूपति तक एक रेड कॉरिडोर आज रक्त रंजित होता जा रहा है। ये रक्त रंजित रेड कॉरिडोर में आए दिन निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया जा रहा है। भोले-भाले निर्दोष नौजवानों को हाथ में बंदूक उठाने का शौक चढ़ रहा है। देश तबाही के कगार पर जा कर खड़ा है और आप सिवाय बयान के कुछ नहीं कर सकते क्योंकि आपके इरादे नेक नहीं है। तो पूरे हाउस में सन्नाटा हो गया..! भाइयों-बहनों, ये बात गंभीरता से सुनिए और हर गाँव-गली में ये बात पहुंचाइए..! मैंने प्रधानमंत्री को सीधा-सीधा पूछा कि मुझे बताइए प्रधानमंत्री जी, आपकी नेशनल एडवाइजरी काउंसिल जो है, मैडम सोनिया जी जिसकी अध्यक्षा हैं, उस एन.ए.सी. के एक मेम्बर का एक एन.जी.ओ. चलता है, उस एन.जी.ओ. की एक अध्यक्षा माओवादी गतिविधियों के कारण जेल में थी और एक कलेक्टर को किडनैप किया गया था आपको याद होगा, उस कलेक्टर को किडनैप किया गया था उसके बदले में जिन लोगों को छोड़ने की मांग की गई थी, उसमें ये आपकी मैडम सोनिया जी के एन.ए.सी. के मेम्बर के एन.जी.ओ. की अध्यक्षा थी..! अगर उस अध्यक्षा इस प्रकार की गतिविधि में लगी हुई है और वो एन.जी.ओ. चलाने वाला व्यक्ति एन.ए.सी. में बैठा हो तो आप कैसे देश को भरोसा दोगे कि आप माओवाद के खिलाफ लड़ना चाहते हो..! ये संभव है क्या, मित्रों..? अरे, जो पाप कर रहे हैं उन पापियों के साथीदार को अगर आप बगल में बैठाओगे तो पाप नष्ट होने की संभावना है..? लेकिन उनको कोई शर्म ही नहीं है..! इतना ही नहीं, मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि प्रधानमंत्री जी, मैडम का ही मुद्दा है ऐसा नहीं है, आप भी बाकी नहीं हो..! वो जरा चौंक गए..! वैसे तो बहुत स्वस्थ बैठे थे, हिलते नहीं थे, आंख भी नहीं हिलती थी..! देखा है ना आपने, इधर-उधर कुछ नहीं..! लेकिन जैसे ही मैंने कहा कि चेतना आ गई..! मैंने कहा प्रधानमंत्री जी, सिर्फ एन.ए.सी. में नहीं, खुद आपके प्लानिंग कमीशन में आपने उस व्यक्ति को मेम्बर बनाया है, एक कमेटी का चेयरमैन बनाया है, जिस पर माओवाद की गतिविधियों के आरोप लगे हुए हैं, जो जेल में थे। भले ही कोर्ट ने उन्हें आज जमानत दे दी हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता है कि आप रातोंरात उनको सिर पर बैठा कर के इस देश की पुलिस को डिमॉरलाइज़ कर दो..! माओवाद के खिलाफ जो लड़ रहे हैं, जान की बाजी लगा रहे हैं, गोलियों को झेल रहे हैं, उनकों इस प्रकार से अपमानित करने का कोई कारण नहीं था। प्रधानमंत्री के पास इसका जवाब नहीं था..! मित्रों, उस मीटिंग में हम लोगों ने जितने सवाल उठाए, और मैंने अकेले ने नहीं उठाए, एन.डी.ए. से जुड़ी हुई सभी राज्य सरकारों ने दिल्ली सरकार से ढेर सारे सवाल पूछे थे, अब तक दिल्ली की सरकार जवाब देने के लिए हिम्मत नहीं कर पाई है..! आप जान सकते हो, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर अगर उनका ऐसा ढुलमुल रवैया रहा, निर्दोष लोग मारे जाएं और उनको वेदना तक ना हो, बयान देने से अधिक कोई काम ना हो, तो मित्रों देश कैसे चलेगा..! और क्या ये सही नहीं है कि जब होम सेक्रेटरी मिस्टर पिल्लई हिम्मत के साथ आगे बढ़ रहे थे, माओवाद के खिलाफ लड़ने की रणनीति बना रहे थे... जरा देश की जनता को बताया जाए कि वो कौन लोग थे जिन्होंने होम सेक्रेटरी को ये काम करने से रोका था, वो किसका निर्णय था जिसने होम सेक्रेटरी को हर काम पर रूकावटें पैदा की थी..! किसने किया था ये..? एक भी व्यक्ति यू.पी.ए. के पार्टनर स्टेट का नहीं था, ये सारा पाप करने वाले सारे लोग उन्हीं की पार्टी के लोग थे, मित्रों..! और उन्हीं माओवादियों ने सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया। वो किसी भी दल के क्यों ना हो, लेकिन भाइयों-बहनों, इंसान की मौत तो मौत होती है, उसकी पीड़ा सबको होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य है कि दिल्ली की सरकार को इसकी पीड़ा नहीं है और तब जा कर के निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं..!
मित्रों, इतना ही नहीं, ये कभी-कभी कहते हैं कि हमारे साथी पक्षों के कारण ये कोएलिशन कम्पल्शन है। ऐसा एक शब्द बोलते हैं, कोएलिशन कम्पल्शन..! मैंने एक बार उनको पूछा, मैंने कहा प्रधानमंत्री जी बताइए, इस देश के विदेश मंत्री कौन है..? उस समय के..! मैंने कहा वो तो आप ही की पार्टी से थे..! वो विदेश में गए। यू.एन. की एक मीटिंग में बैठे थे और क्या किया..? दूसरे देश का भाषण पढ़ना शुरू किया। वाह, क्या सीन है..! कुछ समझ आता है, भाई..? कोई ऐसा फोरन मिनिस्टर हो इस देश का कि जो किसी दूसरे देश का भाषण पढ़ना शुरू करें..? अब ये कोएलिशन धर्म का कम्पल्शन था क्या..? हम औरों को दोष दे रहे हैं..! ये कोई तरीका है क्या देश चलाने का..? आप देश ऐसे ही चलाओगे..? ‘नॉन सीरियस’ हैं मित्रों, हम लोगों की मुसीबत का कारण है कि वे ‘नॉन सीरियस’ हैं..! उन्होंने इस देश की जनता को ‘टेकन फॉर ग्रान्टेड’ माना है। उनको इस देश के नौजवानों के भविष्य की परवाह नहीं है। मित्रों, उन्होंने पिछले मेनिफेस्टो में कहा था कि एक करोड़ बेरोजगारों को रोजगार देंगे। मित्रों, आज मैं पूछना चाहता हूँ। हमने तो नहीं कहा था कि आप ये करो, आपने देश को कहा था..! आप वोट ले गए थे..! क्या देश के एक करोड़ नौजवानों को आपने रोजगार दिया..? मित्रों, आपको जानकर के आश्चर्य होगा और आनंद भी होगा। भारत सरकार का रिपोर्ट कहता है कि पिछले पाँच वर्ष में हिन्दुस्तान में जो कुल रोजगार मिला है, उन रोजगार में से 80% रोजगार भारतीय जनता पार्टी और उनके साथी पक्षों की सरकारों ने दिया है, अस्सी परसेंट..! 20% में यू.पी.ए. की सरकारें और केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार आती है, मित्रों..! तो आपने किया क्या है..? क्या दिया है देश को आपने..?
मित्रों, चाइना के साथ हमारी स्पर्धा चल रही है। पूरा विश्व सोच रहा है कि चाइना आगे निकल जाएगा कि हिन्दुस्तान आगे निकल जाएगा, ये चर्चा चल रही है। उस चाइना ने युवकों के स्किल डेवलपमेंट के लिए जो अभियान चलाया... एक तरफ पूरा विश्व है और एक तरफ सिर्फ चाइना है, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया हुआ है। और हम उंगलियों पर गिन रहे हैं कि कितना हुआ। क्या ऐसे परिवर्तन आएगा..? क्या देश इस दिशा में काम करेगा..? देश के नौजवानों के भविष्य का क्या होगा..? मित्रों, जिस प्रकार का अनरेस्ट पैदा हो रहा है, जिस प्रकार से नौजवानों में आक्रोश पैदा हो रहा है, अगर समय रहते इन नौजवानों की शक्ति और सामर्थ्य को देशहित के काम में हमने नहीं लगाया तो यही नौजवान हमारे लिए संकट का कारण बन जाएंगे, ये दिल्ली कीसरकार को समझना चाहिए..! क्या कारण है कि आए दिन दिल्ली में कोई भी घटना घटती है, तो जंतर-मंतर पर नौजवानों की भीड़ जग जाती है, मित्रों..! कोई नेता नहीं, कोई नारा नहीं, सिर्फ आक्रोश व्यक्त करने के लिए आ जाते हैं, क्यों..? इस देश का भला तब होगा कि हिन्दुस्तान का भाग्य बदलने के लिए हिन्दुस्तान के नौजवानों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए। मित्रों, इस देश का 65% पॉपुलेशन 35 से नीचे है। 35 से कम उम्र के लोगों की संख्या 65% से ज्यादा है। मित्रों, ये डेमोग्राफिक डिविडेंड है, कितना बड़ा सौभाग्य है कि हम विश्व के सबसे जवान देश हैं..! मित्रों, जिस घर में बेटा जवान होता है तो माँ-बाप कितना खुश होते हैं..! ये देश है कि जहाँ ऐसे लोग बैठे हैं, जहाँ जवान उनको बोझ लगते हैं..! मित्रों, जवान अगर बोझ लगता है, तो भारत का भाग्य कौन बदलेगा..! और इसलिए भाइयों-बहनों, दिल्ली की सल्तनत पूरी तरह से विफल हो चुकी है। किसी मोर्चे पर उन्होंने सही काम नहीं किया है, कोई काम सही ढंग से पूरा नहीं किया है..!
मित्रों, ये हमारा दायित्व बनता है कि हम इस देश को ऐसी सरकार से बचाएं..! अटल जी की सरकार थी। 21 वीं सदी के प्रारंभ के दो-तीन साल अटल जी के नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा था। और आप सब याद कीजिए मित्रों, सिर्फ हम भाजप के कार्यकर्ता हैं इसलिए नहीं, आप उस समय के कोई भी अखबार उठा लीजिए..! एक विश्वास पैदा हुआ था, 21 वीं सदी के पहले तीन वर्ष एक आशा बंधी थी..! चलो यार, देश अब खड़ा हो रहा है, देश अब चलने लगा है, देखते ही देखते देश दौड़ने लग जाएगा... चारों तरफ एक पॉजिटिव वातावरण, एक पॉजिटिव फीलिंग नजर आने लगा था..! मित्रों, अचानक 2004 में इन लोगों के आने के बाद नैया ऐसी गहरी डूबती चली गई, डूबती चली गई कि अब तो देखना पड़ता है कि 21 वीं सदी कहाँ है और हम कहाँ है, ये हालत देश की बन चुकी है..! मित्रों, भारत को असहाय नहीं छोड़ा जा सकता..! देश के नौजवानों के भविष्य को असुरक्षित नहीं किया जा सकता है..! देश की माताओं-बहनों के भी सपने होते हैं..! आज से 25 साल पहले बहनों की सोच और आज की सोच में बहुत बड़ा अंतर है। वो दुनिया को देखने-समझने लगी है, उसके भीतर भी एस्पीरेशन्स पैदा हुए हैं, वो निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदारी चाहती है, वो राष्ट्र के विकास में जुड़ना चाहती है..! लेकिन दिल्ली की सल्तनत के पास सौ करोड़ से अधिक के देश की पचास प्रतिशत जनसंख्या जो हमारी माताएं-बहनें हैं, उनकी तरफ़ देखने के लिए कोई फुर्सत नहीं है..! और इसलिए मैं कहता हूँ कि भाजपा के लिए राजसत्ता के परिवर्तन का ऐजेंडा नहीं है, हमारे लिए राष्ट्र निर्माण का ऐजेंडा है..! हमारे लिए कुर्सी पाने का ऐजेंडा नहीं है, हमारे लिए ऐजेंडा है राष्ट्र के कोटी-कोटी नागरिकों के सम्मान वापिस दिलाना, राष्ट्र के कोटी-कोटी नागरिकों को विश्वास वापिस दिलाना, देश के कोटी-कोटी नागरिकों में फिर से एक बार भरोसा पैदा करना, ये सपना लेकर हमें जी-जान से जुटकर निकलना है..!
मित्रों, चुनाव में प्रचार अभियान का भी महत्व होता है, व्यवस्था तंत्र का भी महत्व होता है और रणनीति का भी महत्व होता है। और तीनों एक ढंग से जब चलते हैं तब परिणाम मिलता है। कांग्रेस ने इतने पाप किये हैं कि जनता को कांग्रेस को हटाओ ये समझाने के लिए बहुत मेहनत नहीं पड़ेगी। अभी हमारे यहाँ छह उप चुनाव हुए, चार विधानसभा के और दो लोकसभा के। और छह की छह सीटें कांग्रेस की थी, और जमाने से कांग्रेस का कब्जा था। जनता इतनी नाराज है इन लोगों पर कि सब साफ कर दिया..! और मित्रों, मार्जिन भी इतना दिया है कि कांग्रेस के लोग समझ नहीं पाए हैं कि जनता का मिजाज क्या है..! भाइयों-बहनों, हम इस बात को लेकर के चलें कि हम अखबार में दिखें या ना दिखें, टी.वी. पर चमकें या ना चमकें, मगर हम कोशिश करें कि जनता जर्नादन के दिलों में हमारी जगह बन जाए..! एक बार उस सपने को लेकर हम चलेंगे तो राजनाथ जी के नेतृत्व में इस हिन्दुस्तान को फिर से एक बार, जो काम अटल जी ने छोड़ के हमारे पास रखा हुआ है, उस काम को हम सब आगे बढ़ाएंगे और हिन्दुस्तान में 21 वीं सदी के सपने को साकार करने के लिए पूरे देश में एक परिवर्तन की लहर उठेगी। इसी एक अपेक्षा और शुभकामनाओं के साथ फिर एक बार मनोहर जी को मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ..! मैं जानता हूँ मित्रों, मैं भी एक मुख्यमंत्री हूँ और ये भी एक मुख्यमंत्री हैं, तो परेशानियां मैं जानता हूँ..! आप देखिए, गोवा में माइन्स का कितना बड़ा संकट आया है। सारी एक्टीविटी रोक दी है ना, ये ही हुआ है ना..! ये दिल्ली सरकार ने दो काम कर दिए। एक, जो कुछ भी है उसको बांटो... इसको दे दो, उसको दे दो... क्यों..? क्योंकि कुर्सी वापिस आ जाए। अच्छे काम के लिए रूपये खर्च करने की ना उनकी समझ है, ना करने का इरादा है..! और दूसरी तरफ पॉलिसी परैलिसिस..! आप देखिए, उनकी नीतियों की दुदर्शा के कारण हिन्दुस्तान में एक तरफ 30,000 मेगावाट बिजली पैदा करने वाले कारखाने पड़े हुए हैं, फिर भी देश अंधेरे में है। क्यों..? कोयला नहीं है। कोयला क्यों नहीं है..? कोयला देने की पॉलिसी नहीं है। पॉलिसी क्यों नहीं है..? प्रधानमंत्री ने जहाँ पूछा है वहां से जवाब नहीं आया है..! आप मुझे बताइए भैया, देश में अगर ऐसा ही चला तो देश में जिनके पास कोयला है वो कितने दिन चलेगा..! मित्रों, हमारे गुजरात में आज हमारे तीन हजार से ज्यादा मेगावाट बिजली के कारखाने बंद पड़े हैं..! क्यों..? कोयला नहीं है, गैस नहीं है..! कारण..? दिल्ली सरकार का निर्णय नहीं है..! क्या कोई देश ऐसे चल सकता है..? मैं तो हैरान हूँ साहब, इन लोगों के दिमाग पर..! अभी ये क्रिकेट का गड़बड़ हुआ, तो जो महाशय सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते थे, सालों तक जिंदगी काला कोट पहन कर के बिताई है, वो अचानक टी.वी. पर आकर के बोलते हैं कि हम इसके लिए कठोर कानून बनाएंगे..! उनको मालूम नहीं है कि ये कानून बनाने का कार्यक्षेत्र राज्य का है, ये केन्द्र का सब्जेक्ट नहीं है, फिर भी वो बोल देते हैं..! अब लोग पूछते हैं कि क्यों नहीं बनाया, तो अब समझ में आया कि अरे, ये तो हमारा काम नहीं था, हम तो यूँ ही बोल दिए थे..! ऐसे लॉ मिनिस्टर हो सकते हैं क्या देश में..? हाँ, वो एक मॉडल कानून बना कर भेज सकते हैं, लेकिन कानून बना नहीं सकते..! लेकिन जिन लॉ मिनिस्टर को इतना प्राइमरी नॉलेज नहीं है वो आपका न्याय कर रहा है, बताओ क्या होगा देश का..! ये हालत है..! मैं ऐसी सैंकड़ों चीजें आपको गिना सकता हूँ और इसलिए मैं कहता हूँ मित्रों, इस देश को कांग्रेस मुक्त भारत बनाना हमारा सपना होना चाहिए..! और इसलिए हमारा संकल्प होना चाहिए, कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण..! सारी समस्याओं की एक ही जडीबूटी है मित्रों, आपकी हर समस्या का समाधान एक ही में है, देश को कांग्रेस से मुक्त कर दो। अगर कांग्रेस से मुक्त करेंगे, तो हर समस्या का समाधान मिलेगा, विकास की नई ऊंचाइयाँ मिलेगी, बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा, माताओं-बहनों को सुरक्षा मिलेगी, राष्ट्र गौरव के साथ आगे बढ़ेगा, गाँव, गरीब, किसान, खेत और खलिहान के अंदर खुशहाली आने की नौबत आएगी, शर्त यही है, कांग्रेस भगाओ..! कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण, ये सपना हम लेकर के हम चलें, इसी एक अपेक्षा के साथ फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!
भारत माता की जय..!
पूरी ताकत से बोलिए,
भारत माता की जय..!
दोनों मुट्ठी बंद करके मेरे साथ बोलिए,
वंदे मातरम्..! वंदे मातरम्..! वंदे मातरम्..!