मंच पर विराजमान कर्नाटक प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष श्रीमान प्रह्लाद जोशी जी, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गणमान्य किसान नेता श्रीमान येदुरप्पा जी, केंद्र में मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्री अनंत कुमार, श्रीमान सदानंद गौड़ा, कर्नाटक विधान परिषद् विपक्ष नेता श्रीमान ईश्वरप्पा जी, विधानसभा नेता विपक्ष श्रीमान जगदीश जी, राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव श्री संतोष जी, केंद्र में मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्रीमान श्री सिद्धेश्वर जी, श्री मुरलीधर राव, राज्यसभा में सांसद श्री प्रभाकर राव, यहाँ के जनप्रिय सांसद श्रीमान सुरेश जी और विशाल संख्या में आये हुए मेरे लाखों-लाखों किसान भाईयों और बहनों।
आज हमारे किसान नेता श्रीमान येदुरप्पा जी के जन्मदिन पर मैं उनको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ और यह शुभ संयोग है कि उनके जन्मदिन के अवसर पर ये किसान रैली भी है। भाईयों-बहनों, आप लोग परसों आने वाले बजट का इंतज़ार कर रहे होंगे। देश भी और दुनिया भी आज भारत की विकासयात्रा का गौरवगान कर रही है। आपको पता है जिन दिनों मुझे दिल्ली की जिम्मेवारी मिली, तब देश की हालत क्या थी? अखबार किन बातों से भरे रहते थे? पूरा देश भ्रष्टाचार के कारण परेशान था। जल, थल, नभ, हर जगह बस एक ही बात कान पर आती थी, भ्रष्टाचार। 18 महीने हो गए जब आपने मुझे प्रधानसेवक के रूप में काम करने का अवसर दिया। हमारे विरोधी उन मुद्दों पर भी बयानबाजी करते हैं, जिन्हें कोई गिनता नहीं, इन लोगों ने भी इस सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगाया है। झूठा आरोप लगाने का भी हिम्मत नहीं कर पाए हैं।
एक तरफ दुनिया में हिन्दुस्तान की साख पूरी तरह गिर चुकी थी, विश्व भारत को गिनने को तैयार नहीं था। भारत आर्थिक संकटों से गुजर रहा था, हर तरह से देश की आर्थिक स्थिति बेहाल हो चुकी थी। ऊपर से भ्रष्टाचार भारत को दीमक की तरह तबाह कर रहा था और एक निराशा का माहौल था। आज वर्ल्ड बैंक हो या दुनिया की रेटिंग एजेंसी हो, पूरा विश्व एक स्वर से कह रहा है कि आज अगर आशा की एक किरण है तो वो हिन्दुस्तान है। सारी दुनिया में आर्थिक स्थिति ख़राब है, दुनिया के महारथी देश भी आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। पूरे विश्व में इतना बड़ा भयंकर मंदी का माहौल होने के बावजूद भारत तेज़ गति से आर्थिक प्रगति कर रहा है। एक तरफ दुनिया में मंदी हो, दो साल लगातार भारत में सूखा रहा हो, विरासत में आर्थिक संकटों के सिवाय कुछ ना मिला हो, इसके बावजूद हमने डेढ़ साल के भीतर देश को इन संकटों से बाहर निकाला है और विश्वास से बढ़ते भारत को दुनिया के सामने खड़ा कर दिया है।
इस देश को आने वाले दिनों में और तेज़ गति से आगे बढ़ना है तो विकास की यात्रा को तीन मजबूत आर्थिक स्तंभों पर खड़ा करना होगा; एक-तिहाई हमारी खेती, एक-तिहाई मैन्युफैक्चरिंग, और एक-तिहाई सर्विस सेक्टर, इन तीनों को हम एक साथ बढ़ावा देंगे, तभी यह देश किसी भी संकट को पार कर सकता है। हमने विकास के लिए तीन मूलभूत बातों पर बल दिया है – हमारा किसान कैसे ताक़तवर बने, हमारे देश में कैसे नौजवानों को रोजगार मिले, इसके लिए नए-नए उद्योग कैसे प्रस्तावित हो और यहाँ सर्विस सेक्टर के लिए बहुत सुविधा हो, दुनिया को जो चाहिए उसे दे सकने की ताकत जिस देश में हो, वो देश क्यों न आगे बढ़े।
हमने कृषि क्षेत्र में बहुत सुविचारित रूप से कदम उठाए हैं और उन कदमों को आज नतीज़ा नज़र आने लगा है। हमारे देश में आजादी के बाद जल प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई होती तो आज सूखे की मार से हमारे किसानों को आत्महत्या करने की नौबत नहीं आती। किसान को अगर पानी मिल जाए तो मिट्टी में से सोना पैदा करने की ताकत रखता है। किसान किसी की मेहरबानी का मोहताज नहीं होता है।
भाईयों-बहनों, हमने 50 हज़ार करोड़ रुपये की लागत से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना बनाई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसानों के खेतों तक पानी पहुंचे। नदियों को जोड़ने का काम देश को बचाएगा। मेरा-तेरा का भाव छोड़कर हम सब को नदियों को जोड़ने का मन बनाना पड़ेगा। हमारे सामने दुनिया के कई ऐसे देश हैं जो बारिश नहीं होने, नदियाँ नहीं होने के बावजूद जल प्रबंधन कर उत्तम से उत्तम खेती कर दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है। इज़राइल एक बहुत बड़ा उदाहरण है जिसने कम से कम पानी में कृषि क्रांति कैसे हो, यह करके दिखाया है और इसलिए हमें भी जल संचय और जल सिंचन पर बल देना होगा।
पानी कारखाने में बनने वाली चीज़ नहीं है, यह तो परमात्मा का प्रसाद है। किसी तीर्थस्थल पर जाएं और अगर एक भी दाना प्रसाद का गिर जाए तो हमें अफ़सोस होता है और हम भगवान से माफ़ी मांगकर उस प्रसाद को उठा लेते हैं। उसी तरह पानी भी भगवान का प्रसाद है, इसकी अगर एक बूँद भी बर्बाद हो तो हमें ईश्वर से माफ़ी मांगनी चाहिए। इस पानी को बर्बाद होने से रोकना है।
हमने एक और बात पर बल दिया है कि मनरेगा सिर्फ़ गड्ढ़े खोदने के लिए नहीं होना चाहिए। पैसों का प्रोडक्टिव उपयोग होना चाहिए और इसलिए हमने गत वर्ष से मनरेगा से संबंधित कई आग्रह रखे हैं, राज्यों पर दवाब दिया है और कहा है कि मनरेगा पर काम होगा तो पहली प्राथमिकता पानी को ही दी जाएगी, केनल ठीक करना है, तालाब बनाने हैं, छोटे-छोटे चेक डेम बनाने हैं। अगर एक बार मनरेगा का पैसा पानी बचाने के लिए किया जाएगा तो पानी शुद्ध होगा, इसका स्तर बढ़ेगा।
दूसरी बात हमने कही है, पर ड्रॉप, मोर क्रॉप अर्थात एक-एक बूँद से ज्यादा से ज्यादा फ़सल। जितना महत्व जल संचय का है, उतना ही महत्व जल सिंचन का भी है। आज स्प्रिंकलर माइक्रो इरीगेशन के द्वारा फ़सल पैदा करना आसान हो गया है। हमारे किसानों के दिमाग में सालों से भरा पड़ा है कि जब तक खेत पानी से लबालब भरा न हो तब तक फ़सल पैदा नहीं होती है और इस वजह से जरुरत हो न हो, वे पानी डालते जाते हैं। किसान ये मानने को तैयार नहीं है कि माइक्रो इरीगेशन से गन्ने की खेती हो सकती है। मैंने देखा है कि माइक्रो इरीगेशन से भी गन्ने की उत्तम से उत्तम खेती हो सकती है। इतना ही नहीं, इससे सुगर केन मजबूत होता है और चीनी भी ज्यादा निकलती है। पानी बचता है और वो पानी अन्य जगहों पर काम आ सकता है। इसलिए हमने कोटि-कोटि रुपये जल संचय, माइक्रो इरीगेशन के लिए किसानों की योजनाओं के लिए दिया है।
अगर हमें किसान को सफल करना है तो पानी का प्रबंधन पहला कदम है। दूसरा कदम है –उसकी जमीन की चिंता। अगर हम इसी प्रकार से फ़सल लेते रहेंगे, दुनियाभर की दवाईयां और फ़र्टिलाइज़र डालते रहेंगे तो हमारी जमीन बर्बाद होती रहेगी। जब हम बीमार होते हैं तो लोग कहते हैं कि ज्यादा दवाईयां मत लो। जिस तरह से फालतू दवाईयां खा-खा करके शरीर बर्बाद हो जाता है तो वैसे ही हमारी भारतमाता भी बीमार हो जाती हैं। हमें यह पता होना चाहिए कि हमारी ज़मीन की तबीयत कैसी है, जमीन ने कोई ताकत खो तो नहीं दी और इसलिए हमने एक बहुत बड़ा अभियान चलाया है – स्वायल हेल्थ कार्ड। स्वस्थ धरा है तो खेत हरा है और इसलिए गाँव-गाँव में किसानों की ज़मीन का सैंपल लेकर लेबोरेटरी ले जाए जा रहे हैं, उसका रिपोर्ट किसानों को पहुँचाया जा रहा है। इस वर्ष में कोटि-कोटि किसानों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। 2017 में जब भारत की आज़ादी के 70 साल होंगे तो यहाँ के किसानों के पास स्वायल हेल्थ कार्ड पहुँचाने का हमारा इरादा है और हम लगे हैं। हमें हमारी ज़मीन की रिपोर्ट के आधार पर अपनी फ़सल तय करनी चाहिए।
हम एक तरफ जल पर और दूसरी तरफ ज़मीन पर जोर दे रहे हैं। मैं नौजवानों, खासकर बंगलौर के नौजवानों से आग्रह करता हूँ कि आज जब हमने स्टार्ट-अप का अभियान चलाया है, वे नए-नए इनोवेशन करें। आज विज्ञान का महत्व बढ़ रहा है और आप बहुत चीजें घर बैठे कर सकते हैं, क्या वे ऐसा छोटा सा इंस्ट्रूमेंट नहीं बना सकते जो किसान खुद अपनी जमीन की तबीयत को नाप सके। गाँव के नौजवानों से मैं कहता हूँ कि जिस तरह शहरों में पैथोलॉजी होती है, हमारे नौजवान जमीन की तबीयत देखने वाले लेबोरेटरी क्यों न खोलें। अगर आप ये करने के लिए तैयार हैं तो सरकार इसके लिए योजना बनाने को तैयार है, मुद्रा योजना के तहत पैसे देने के लिए तैयार है और किसान को आदत लग जाएगी कि वे अपनी ज़मीन के नमूनों को हर साल चेक करवाता रहे तो आप देखिये कि कितना बड़ा बदलाव आता है। नौजवानों को रोजगार मिल जाएगा, देश तकनीकी तौर पर आगे बढ़ेगा और किसान को हर साल पता लगेगा कि उनकी ज़मीन में कोई बीमारी तो नहीं घुस गई है।
तीसरी बात जो महत्वपूर्ण है, वो है बीज। उत्तम से उत्तम बीज हो, किसान ठगा न जाए क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि बीज रोप देने के महीनों बाद पता चलता है कि कुछ भी नहीं निकला, मैं तो बर्बाद हो गया। फिर उसके पास रोने के अलावा कोई सहारा नहीं रहता है। सरकार ने आग्रहपूर्वक बीज की दिशा में ध्यान देने का प्रयास किया है। किसान को फ़र्टिलाइज़र चाहिए। मुझे याद है कि पिछली बार जब हमारी नई सरकार बनी थी, सरकार को 1-2 महीने ही हुए थे और राज्यों के मुख्यमंत्री लिख रहे थे कि हमारे किसान परेशान हैं, उन्हें यूरिया चाहिए। उनके अफसर और कृषि मंत्री दिल्ली आते थे और अपनी चिंता जाहिर करते थे और कई-कई स्थानों पर तो यूरिया लेने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगती थी। यूरिया की कालाबाज़ारी होती थी और कई स्थानों पर भीड़ इतनी हो जाती थी कि पुलिस को लाठी चार्ज करनी पड़ती थी।
हमने इन सभी बातों पर ध्यान दिया और मैं अपने मित्र आनंद कुमार को बधाई देता हूँ कि फ़र्टिलाइज़र मिनिस्टर के नाते उन्होंने इतना अद्भुत काम किया कि इस वर्ष मुझे एक भी मुख्यमंत्री ने यूरिया के लिए चिट्ठी नहीं लिखी। यूरिया के लिए लंबी लाइन लगी हो, किसी अख़बार या न्यूज़ पेपर में ऐसी फोटो देखने को नहीं मिली और कहीं पर भी किसान को लाठी चार्ज का शिकार नहीं होना पड़ा। हमने जो सबसे बड़ा काम किया, वो यह कि यूरिया की जो चोरी होती थी, भ्रष्टाचार होता था, उस पर हमने लगाम लगा दी। ये लोग जो परेशान रहते हैं, इसी लिए तो वे परेशान रहते हैं। अब वे मोदी से नाराज़ नहीं होंगे तो क्या होंगे; मोदी उनके आँखों में चुभता है क्योंकि 60 साल तक मुफ़्त की मलाई खायी हुई है और अब वो बंद हो गया है तो इसलिए वे परेशान हैं।
मैंने चुनाव में भी वादा किया था कि जब तक मैं बैठा हूँ, दिल्ली की तिजोरी पर कोई पंजा नहीं पड़ने दूंगा। फ़र्टिलाइज़र की चोरी रोकने के अलावा हमने एक और कदम उठाया है – नीम कोटिंग यूरिया। ये कोई मेरी खोज नहीं है और कागज़ पर सरकारें पहले भी इसके बारे में बातें करती थी लेकिन लागू नहीं करते थे। हमने तय किया कि सरकार का पैसा जाएगा और हम 100% यूरिया का नीम कोटिंग करेंगे। आज मैं गर्व से कहता हूँ कि अपने साथी आनंद कुमार के साथ मिलकर हमने यूरिया का 100% नीम कोटिंग कर दिया है।
नीम कोटिंग का सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि मानो किसान अगर 10 किलो यूरिया का प्रयोग करता है लेकिन अगर नीम कोटिंग वाला इस्तेमाल करता है तो 7 किलो से भी काम चल जाएगा और 3 किलो का पैसा बच जाता है। नीम कोटिंग से यूरिया में एक नई ताकत आ जाती है। दूसरा फ़ायदा है कि पहले फ़र्टिलाइज़र केमिकल कंपनियों में सीधा चला जाता था क्योंकि सब्सिडी वाला होता था और उनको तो खरबों रुपये मिल जाते थे। नीम कोटिंग करने के कारण अब ये यूरिया किसान के अलावा किसी के काम नहीं आ सकता है। तीसरा फ़ायदा कि इन दिनों गांवों में वुमन सेल्फ़ हेल्प ग्रुप ने एक नया उद्योग शुरू किया है, नीम के पेड़ की जो फली होती है, उसे इकठ्ठा करती है और कंपनियों उसे खरीदती है क्योंकि वो नीम कोटिंग में इस्तेमाल होता है। इसके कारण गाँव के गरीब लोगों की कमाई होने लगी। मैं अपने किसान भाईयों से आग्रह करता हूँ कि आप नीम कोटिंग यूरिया का ही इस्तेमाल करना और पहले जहाँ 10 किलो का इस्तेमाल होता था, वहां सिर्फ़ 7 किलो से काम होगा। आप कीजिये, देखिये कैसे आपकी फ़सल भी बढ़ती है, जमीन भी सुधरती है, ये आपको नज़र आ जाएगा।
भाईयों-बहनों, किसान को सुरक्षा कैसे मिले, ये चिंता मुझे बारंबार सताती रहती थी। मैं किसानों को यह विश्वास दिलाना चाहता था कि परमात्मा रूठ जाए तो रूठ जाए लेकिन सरकार रूठनी नहीं चाहिए। इसके लिए मैं खुद समय देता था, किसान समूह से बात करता था, प्रोग्रेसिव किसानों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों से बात की। बड़े मंथन के बाद मैंने ये प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना प्रस्तुत की है। सबसे पहले हमारे देश में फ़सल बीमा योजना लाने का काम श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने किया था। उसके बाद दूसरी सरकार ने उसमें कुछ-कुछ कर दिया लेकिन इन सबके बावजूद ज्यादातर किसानों को बीमा योजना का लाभ नहीं मिला क्योंकि उन्हें लगता है कि पैसा जाएगा तो लेकिन आएगा नहीं। वो योजना ही ऐसी थी कि कोई किसान फ़सल बीमा योजना पर भरोसा नहीं कर सकता था। एक तो प्रीमियम ज्यादा थी और कुछ फ़सल ऐसी थी कि जिसमें 50% से भी ज्यादा की प्रीमियम की बातें होती थी। अब किसान इतना कैसे देगा।
हमने मौसम के अनुसार प्रीमियम तय किया; खरीफ़ के लिए 2% और रबी के लिए 1.5%; अतः किसानो जो पैसा देगा, उससे 90% ज्यादा पैसा सरकार के ख़जाने से जाएगा। हमने किसान को चिंतामुक्त कर दिया है। हमने कुछ नई चीजें भी जोड़ी हैं। पहले फ़सल कटाई के बाद जो नुकसान होता था, उसे बीमा में कवर नहीं किया जाता था। हम ऐसा बीमा लेकर आए हैं जिसमें अगर फ़सल कटाई के 14 दिनों के भीतर कोई नुकसान होता है तो भी किसान को उस फ़सल का बीमा दिया जाएगा। ये पहली बार देश में हो रहा है।
पहले फ़सल बीमा तय होता था तो औसतन 50 गांवों का हिसाब लिया जाता था। अगर कुछ गांवों में अच्छी बारिश हो गई और कुछ गांवों में बारिश नहीं हुई और औसत निकलने पर सब समान हो जाता था। हमने इसे भी ठीक करते हुए यह किया कि अगर किसी किसान का अपना नुकसान हुआ है तो उसे बीमा का लाभ मिलेगा भले ही दूसरे किसान को नुकसान न हुआ हो। दूसरी बात ये कि अगर ओले गिर जाएं, भूस्खलन हो जाए, जलभराव हो जाए तो हमारे किसानों को कुछ नहीं मिलता था और ओले तो ऐसा भी है नहीं कि सभी खेतों में ओले गिरे ही। हमने प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में यह तय किया कि अगर एक भी किसान इन चीजों से प्रभावित होता है तो उसे इस योजना के तहत लाभ मिलेगा।
हमने एक और महत्वपूर्ण निर्णय किया अब तक होता था कि आप बारिश का अनुमान लगाएं और अगर बारिश न हो तो आप फ़सल बोते ही नहीं थे। पहली बार हम ऐसी योजना लेकर आए हैं कि मान लीजिए आपने सारी तैयारियां की लेकिन बारिश न आने की वजह से आप बौनी नहीं कर पाए तो साल भर अपना गुजारा करने के लिए पैसा दिया जाएगा। मैं बड़े विश्वास से कहता हूँ कि किसानों ने मेरा जो मार्गदर्शन किया और इसके बाद हमने पिछली सभी बीमा योजनाओं की कमियों को दूर किया है और एक परफेक्ट प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना लेकर आए हैं।
मैं चाहता हूँ कि आप भारी से भारी संख्या में प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना से जुड़ें। आजादी के बाद कर्नाटक को जितना पैसा अकाल के समय मिला है, उससे ज्यादा पैसा इस बार भारत सरकार ने कर्नाटक की सरकार को दिया है। किसानों के लिए 1540 करोड़ रूपया भारत सरकार ने दिया है। पैसे तो यहाँ आते थे लेकिन यहाँ के अफसर उसे खर्च नहीं करते थे। जब मुझे पता चला तो मैंने दवाब बनाया और तब जाकर किसानों को पैसा भेजना शुरू हुआ और हमारा आग्रह है कि ये पैसा उनके जन-धन अकाउंट में जाना चाहिए।
हम जब आए तो गन्ना किसानों का 21 हज़ार करोड़ रूपया बकाया था, हमने इस काम को हाथ में लिया, योजनाएं बनाईं, चीनी मीलों, गन्ना किसानों और बैंक वालों से बात की और आज मैं बड़े संतोष से कहता हूँ कि इतने कम समय में और सूखा होने के बावजूद 21 हज़ार करोड़ रूपया में सिर्फ़ 1800 करोड़ रूपया बकाया बच गया है। मेरा ट्रैक रिकॉर्ड कहता है कि अगर किसान किसी पर भरोसा कर सकता है तो दिल्ली में बैठी सरकार पर भरोसा कर सकता है।
मैं किसानों के लिए आया हूँ, उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए आया हूँ। मुझे गांवों में, किसानों और गरीबों के जीवन में बदलाव लाना है। मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूँ कि आपकी कृपा और आशीर्वाद से हम और अच्छा काम करेंगे। सब पूरी ताकत के साथ बोलिये – जय जवान, जय किसान!
बहुत-बहुत धन्यवाद।