PM Modi attacks Mahagathbandhan, says it is like mixing oil and water

Published By : Admin | August 12, 2018 | 20:20 IST

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के रूप और स्वरूप को लेकर जहां कथित सहयोगी दलों ने ही आशंकाएं बढ़ा दी हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे 'तेल और पानी का मेल बताते हैं जिसमें न तेल काम का बचता है और न ही पानी किसी योग्य।'

पिछले चार साल का रिकार्ड दिखाते हुए प्रधानमंत्री कहते हैं कि लोगों ने विकास व आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राज्य दर राज्य भाजपा पर भरोसा जताया है। इतना ही नहीं 'विपक्ष को भी हमारी लोकप्रियता पर इतना भरोसा है कि उन्हें पता चल गया है कि वह अकेले दम हमारे खिलाफ नहीं लड़ सकते हैं।'

अगले तीन महीनों में चार अहम राज्यों में विधानसभा चुनाव है जिसे भाजपा और सरकार के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। लिंचिंग, आरक्षण, विकास, रोजगार जैसे कई मुद्दों को विपक्ष धार दे रहा है और यह दावा किया जा रहा है कि महागठबंधन सरकार के पैर बांधने में कामयाब होगा। ऐसे में दैनिक जागरण को दिए गए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर सवाल का जवाब दिया। महागठबंधन पर पूछे गए सवाल का जवाब वह कुछ शायरी के अंदाज में देते हैं और कहते हैं-

''महागठबंधन तेल और पानी के मेल जैसा है,
इसके बाद न तो पानी काम का रहता है,
न तेल काम का होता है,
और न ही ये मेल,
यानी ये मेल पूरी तरफ फेल।'

एक लंबे साक्षात्कार में मोदी कहते हैं इन पार्टियो के पास जनता के सामने स्वयं को साबित करने के लिए बहुत समय था। लेकिन ये भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, कुशासन से कभी बाहर नहीं निकले। आज लोग जान गए हैं कि जाति, वर्ग, समुदाय और धर्म आधारित उनका चुनावी अंकगणित 'हमारी विकास की केमिस्ट्री' का सामना नहीं कर सकता है। वह डरे हुए हैं। उन्हें पता है कि जनता भी देख रही है कि वह भयभीत हैं और एकदूसरे का साथ लेकर केवल खड़े होने की कसरत कर रहे हैं। ऐसे दल पर आखिर कोई भरोसा करे भी तो कैसे जो खुद निर्भीक नहीं है। वह दूसरों को क्या संबल दे सकता है। दूसरी ओर राजग मजबूत गठबंधन है। यह गठबंधन मजबूरी का नहीं है। यही कारण है कि लोगों को भरोसा है।

ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री पहले भी सदन के अंदर विपक्ष के इस भय पर हमला कर चुके हैं। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी उन्होंने खासतौर से कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए परोक्ष तौर पर दूसरे दलों को आगाह किया था। बाबा साहेब अंबेडकर से लेकर प्रणव मुखर्जी तक का जिक्र करते हुए कहा था कि कांग्रेस ने कभी किसी का साथ नहीं दिया। केवल विश्वासघात किया। तेल और पानी के मेल का संदर्भ देते हुए भी उन्होंने इसी पहलू को रेखांकित किया।

प्रधानमंत्री ने 2019 में बड़ी जीत का भरोसा जताते हुए कहा कि जनता को विकास चाहिए। उनके सपने हैं और वह जानती है कि इसे पूरा केवल भाजपा और राजग सरकार ही कर सकती है। ऐसे करोड़ों परिवार हैं जो सकारात्मक बदलाव को महसूस कर रहे हैं। जनता ने देखा है कि हमारी सरकार ईमानदार है और कड़ी मेहनत कर रही है। इसीलिए मोदी बनाम महागठबंधन बनाने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है, लेकिन उस प्रयोग का फेल होना तय है।

आगामी चुनावों में दलितों और पिछड़ों को लेकर राजनीति पूरी गर्म होगी। पिछले कुछ उपचुनावों के नतीजों से उत्साहित विपक्ष ने जहां दलित और पिछड़ों को केंद्रित कर भाजपा को घेरने की रणनीति बनाई है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस को सिरे से दलित और पिछड़ा विरोधी करार देते हैं। वह याद दिलाते हैं, 'राजीव गांधी भरी संसद में मंडल कमीशन के खिलाफ बोले थे और वह सब रिकॉर्ड में है। पिछड़े समाज को न्याय न मिले, उसके लिए उन्होंने बड़ी-बड़ी दलीलें पेश की थीं।

1997 में कांग्रेस और तीसरे मोर्चे की सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण बंद कर दिया था।' वह तो अटल जी की सरकार थी, जिसने फिर से एससी-एसटी समाज को न्याय दिलाया।पिछले दिनों मॉब लिंचिंग से लेकर एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक पर खासी राजनीति हुई है। कथित महागठबंधन की रूपरेखा भी कुछ इस अंदाज में तैयार की जा रही है कि भाजपा को इन वर्गो से मिले वोट वर्ग को कैसे तोड़ा जाए। दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी उन दलों के पुराने इतिहास को खंगाल चुकी है और जनता के सामने उसे पेश किया जाएगा।

'दैनिक जागरण' को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी बेहिचक कहते हैं कि जब कभी चुनाव आता है तभी इन दलों को दलित व पिछड़े याद आते हैं। भ्रम फैलाया जाता है। लेकिन जनता जानती है कि भाजपा सरकार उनके हितों के लिए कृतसंकल्प है। एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री चुनाव नतीजों के विश्लेषण पर भी टिप्पणी करते हैं।

'दैनिक जागरण' ने जब उनसे पूछा कि क्या छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव को लोकसभा का लिटमस टेस्ट माना जाएगा? तो वह तंज करते हैं, 'हमारे लिए कौन सा चुनाव लिटमस टेस्ट नहीं होता? संसद से लेकर पंचायत और यहां तक कि छात्रसंघ के चुनाव मोदी के लिए लिटमस टेस्ट बताए जाते हैं। पर मजेदार बात यह है कि जब हम लिटमस टेस्ट पास कर लेते हैं, जो अधिकतर होता ही है, तब उस समय चुनाव का और उस जीत का महत्व अचानक से कम आंका जाने लगता है। लेकिन, अगर किसी चुनाव में विपक्ष हमें थोड़ी बहुत चुनौती भी दे देता है तो वह उनकी नैतिक जीत हो जाती है।'

मप्र, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में सुशासन के दम पर जीतेंगे
वह आगे कहते हैं कि जहां तक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की बात है, कांग्रेस ने इन तीनों राज्यों मंय अपनी हार पहले से ही स्वीकार कर ली है और वह विकास के नाम पर चुनाव लड़ने से दूर भाग रही है। तीनों ही राज्यों में हमारे पास लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं। इन राज्यों की जनता वहां की सरकारों के सुशासन के रिकॉर्ड के आधार पर भाजपा को अपना मत देगी।

आरक्षण हमेशा जारी रहेगा
आरक्षण के सवाल पर वह स्पष्ट कहते हैं, 'आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा। हमारे संविधान और बाबा साहेब के सपने अभी अधूरे हैं और आरक्षण उन्हें पूरा करने का एक महत्वपूर्ण अंग है। आरक्षण रहेगा, आरक्षण हमेशा रहेगा और आरक्षण द्वारा दलित समाज को सशक्त बनाने का काम चलता रहेगा।'

2019 में बड़ी जीत का रास्ता साफ
सवाल जवाब के दौर में वह कहते हैं कि पिछले चार साढ़े साल में देश प्रगति पथ पर बढ़ा है। सरकार में सोच दिखी है और काम को पूरा करने का संकल्प जमीन पर उतरा है। जनता इसे मानती है। जबकि दूसरी ओर विपक्ष दलित अधिकार से जुड़े एससी-एसटी, ओबीसी आयोग समेत सभी मुद्दों पर बेनकाब हुआ है। ऐसे में 2019 में फिर से बड़ी जीत का रास्ता साफ है।

यह चर्चा हर गली नुक्कड़ पर है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर थी, इस बार क्या होगा? क्या विपक्ष कोई तोड़ ढूंढ पाएगा? भाजपा पिछली बार से भी बड़ी जीत का दावा कर रही है तो बड़ी लहर पैदा करने का माध्यम क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फार्मूला एक ही है- विकास। ‘दैनिक जागरण’ के सवालों के जवाब में वह बार-बार कहते हैं कि जनता जो चाहती है, सरकार वही कर रही है। जो अपेक्षाएं थीं, वह पूरी हो रही हैं। भ्रष्टाचार पर लगाम लगा है। जनता का पैसा जनता के विकास में ही खर्च हो रहा है। वहीं वह विपक्षी महागठबंधन के आधार और उसकी सार्थकता पर सवाल खड़ा करते हैं। उनका मानना है कि आगामी चुनाव फिर से विपक्ष को सोचने के लिए मजबूर करेगा कि वह देश और समाज का मर्म समझ पाया या नहीं।

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर राजनीति गर्म है। क्या आपको लगता है कि एनआरसी राजनीतिक से ज्यादा राष्ट्रवादी मुद्दा है?

एनआरसी को लेकर वादे बहुत किए गए, लेकिन पहली बार उसे धरातल पर उतारने का साहस हमने किया है। जिनका जनाधार खत्म हो चुका है, जो खुद पर विश्वास खो चुके हैं, जिन्हें देश के संविधान पर विश्वास नहीं है, वही कह सकते हैं- सिविल वॉर हो जाएगा रक्तपात हो जाएगा, देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। उनकी ऐसी भाषा स्वाभाविक है। इससे पता चलता है कि वे देश के जन-मन से पूरी तरह कट चुके हैैं। जनता के आक्रोश और दबाव के कारण उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। बाद में जनता की आंखों में धूल झोंककर बरसों तक इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हमारा विश्वास है कि किसी भी लोकतंत्र में नागरिकों के अधिकार और आकांक्षाएं बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं और उन्हें पूरा करना ही लोकतंत्र का मूल उद्देश्य भी है। जहां तक ममताजी की बात है, उन्हें वह दिन याद होना चाहिए, जब 2005 में वह संसद में पश्चिम बंगाल के अवैध वोटरों के मुद्दे पर आक्रामक हो रही थीं। उन्हें बताना चाहिए कि तब की ममताजी सही थीं या आज की सही हैं? वोट बैंक की राजनीति करने वाले एनआरसी पर अलग-अलग भाषा बोल रहे हैं। ये वही लोग हैं जो वोटरलिस्ट से लोगों का नाम निकालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। ये लोग बालासाहेब ठाकरे के मताधिकार छिनने पर जश्न मनाते हैं और आज एनआरसी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मातम मना रहे हैं।

एनआरसी को कुछ विपक्षी दलों की ओर से अल्पसंख्यकों का मुद्दा बनाया जा रहा है।

यह उनकी सोच है और यही उनका दायरा है। मैंने अपनी बात विस्तार से रख दी है। हमारे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।

पिछले कुछ महीनों में समाज में अलग-अलग कारणों से बहुत ज्यादा तनाव देखने को मिल रहा है। लिंचिंग जैसी घटनाओं में एकबारगी उछाल आ गया। कुछ लोगों की ओर से हिंदू तालिबान जैसे बयान दिए गए। इसका क्या कारण मानते हैं?

भ्रष्टाचार पर लगाम लगा है। जनता का पैसा जनता के विकास में ही खर्च हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फार्मूला एक ही है- विकास।
नई दिल्ली, जेएनएन। यह चर्चा हर गली नुक्कड़ पर है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर थी, इस बार क्या होगा? क्या विपक्ष कोई तोड़ ढूंढ पाएगा? भाजपा पिछली बार से भी बड़ी जीत का दावा कर रही है तो बड़ी लहर पैदा करने का माध्यम क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फार्मूला एक ही है- विकास। ‘दैनिक जागरण’ के सवालों के जवाब में वह बार-बार कहते हैं कि जनता जो चाहती है, सरकार वही कर रही है। जो अपेक्षाएं थीं, वह पूरी हो रही हैं। भ्रष्टाचार पर लगाम लगा है। जनता का पैसा जनता के विकास में ही खर्च हो रहा है। वहीं वह विपक्षी महागठबंधन के आधार और उसकी सार्थकता पर सवाल खड़ा करते हैं। उनका मानना है कि आगामी चुनाव फिर से विपक्ष को सोचने के लिए मजबूर करेगा कि वह देश और समाज का मर्म समझ पाया या नहीं।

उत्तर प्रदेश में कोई ऐसी पहल जो आपको लगता है कि प्रदेश की दशा-दिशा बदल देगी और अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 73 सीटों जैसा अपार जनादेश का आधार बनाएगी?

उत्तर प्रदेश सरकार आज कानून का राज कायम करते हुए प्रदेश को विकास की राह पर तेज गति से आगे ले जा रही है। राज्य सरकार के प्रयासों से ही कई योजनाओं और क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी बन गया है। केंद्र सरकार की तरह गांव, गरीब और किसान का विकास उत्तर प्रदेश सरकार की भी प्राथमिकता है। केंद्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन की बात करें तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लगभग 18 लाख आवासों का निर्माण, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से 87 लाख गरीब महिलाओं को मुफ्तरसोई गैस कनेक्शन, सौभाग्य योजना एवं दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के द्वारा 46 लाख से अधिक घरों को बिजली कनेक्शन उपलब्ध कराकर उत्तर प्रदेश ने देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। इसके अलावा मुद्रा योजना के तहत एक करोड़ से भी अधिक लोन दिए गए हैं और जनधन के तहत लगभग पांच करोड़ गरीबों के बैंक एकाउंट खोले गए हैं। सिर्फ एक रुपया महीना और 90 पैसे प्रतिदिन के प्रीमियम पर एक करोड़ साठ लाख से ज्यादा गरीबों को सुरक्षा कवच दिया गया है। ये तो कुछ ही उदाहरण हैं। ऐसी कई पहल हुई हैं जो जनता के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। मैं किसी एक पहल के चयन का काम आप पर छोड़ता हूं। जहां तक अगले चुनाव की बात है तो मेरी सरकार ने आज तक कोई काम चुनावों को ध्यान में रखकर नहीं किया है।

क्या सरकार महसूस करती है कि गन्ना बकाया सरकार के लिए फांस बनता जा रहा है?

यह समस्या हमें विरासत में मिली है। जब हमारी सरकार आई तब गन्ना का बकाया एक बड़ा मुद्दा था और लोगों में बड़ा असंतोष था। पिछली सरकारों की अव्यवस्था के चलते जो काम अटके रहे, उन्हें हम पटरी पर ला रहे हैं। हमारा प्रयास है कि गन्ना किसानों का पूरा बकाया उन तक पहुंचाया जाए। हमने इस बार गन्ने का लाभकारी मूल्य 20 रुपये बढ़ाकर 275 रुपये प्रति क्विंटल करने का फैसला लिया है। चीनी के उत्पादन में वृद्धि को देखते हुए यह मूल्य 10 फीसद रिकवरी पर तय किया गया है। प्रति क्विंटल गन्ना उत्पादन की लागत 155 रुपये आती है। अब जो मूल्य तय किया गया है, वह उत्पादन लागत का लगभग पौने दो गुना है। इससे अगर चीनी की रिकवरी प्रति क्विंटल कम भी रहती है, तब भी किसानों को 261 रुपये का भाव मिलेगा, जो पहले से अधिक है। किसानों को गन्ने का पूरा बकाया जल्द-से-जल्द मिले, इसके लिए हम कई प्रयास कर रहे हैं। चीनी के आयात पर 100 फीसद टैक्स लगाने के साथ-साथ 20 लाख टन चीनी निर्यात को मंजूरी दी गई है।

इसके अतिरिक्त चीनी का न्यूनतम मूल्य भी तय किया गया है और प्रति क्विंटल साढ़े पांच रुपये की अतिरिक्त मदद सीधा किसान भाइयों के बैंक खातों में पहुंचाने का फैसला भी लिया है। इन प्रयासों का असर भी दिखने लगा है और पिछला बकाया निरंतर कम हो रहा है। आने वाले दिनों में बकाया राशि के भुगतान की रफ्तार और तेज होगी। हम अब गन्ने से सिर्फ चीनी नहीं, ईंधन भी बना रहे हैं। इसका फायदा यह है कि आवश्यकता से अधिक चीनी पैदावार होने पर हमारे किसान भाइयों को संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। गन्ने से इथेनॉल बनाया जा सके, इसके लिए चीनी मिलों को नई तकनीक और नई मशीनों के लिए आर्थिक मदद भी दी गई। इसका परिणाम यह है कि चार वर्ष पहले यानी हमारी सरकार आने से पहले तक भारत में 40 करोड़ लीटर इथेनॉल पैदा होता था, जो इस साल अभी तक ही 140 करोड़ लीटर पहुंच चुका है। इथेनॉल के लाभकारी मूल्य में भी सरकार ने वृद्धि की है।

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने राजग सहयोगियों का बड़ा कुनबा बनाया था। टीडीपी और शिवसेना जैसे दलों ने सवाल खड़ा कर दिया, क्या कुछ नए दल राजग में जुड़ सकते हैं?

देखिये, जब स्थिति बदलती है तो उसी प्रकार से हर कोई अपनी जानकारी के साथ अपने प्रश्नों को भी अपडेट करता है। भारतीय राजनीति में 1990 के दशक के बाद से बहुत कुछ बदल चुका है। लेकिन, देखिये कि सवाल वैसे के वैसे ही रह गए हैं। तब यह पूछा जाता था कि क्या भाजपा को सहयोगी मिल पाएंगे? इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि कैसे अटलजी ने भाजपा के प्रति नकारात्मक राय जताने वाले सभी पॉलिटिकल पंडितों को गलत सिद्ध किया था। अटलजी ने गठबंधन की सरकार को जिस प्रकार से सफलतापूर्वक चलाकर दिखाया, वह एक बड़ा उदाहरण है।

2014 के चुनाव के दौरान भी सवाल नहीं बदले। उस समय पॉलिटिकल पंडित यह सवाल उठाते थे कि क्या मोदी का साथ देने वाला कोई मिलेगा? लेकिन, देखिये कि आज भी 20 से अधिक पार्टियों का हमारा गठबंधन आपके सामने है। राजग हमारी मजबूरी नहीं, हमारी ताकत है। 2014 के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा के पास अकेले सरकार बनाने की संख्या थी। लेकिन, हमने गठबंधन की सरकार बनाई और अपने सहयोगियों को सरकार का हिस्सा बनाया। यह एनडीए के लिए भाजपा के संकल्प को दर्शाता हैं और बताता है कि हमारे लिए सहयोगी कितने महत्वपूर्ण हैं। गठबंधन को लेकर हमारा शुरू से यही दृष्टिकोण रहा है। भारत जैसे देश में अलग-अलग क्षेत्रों की अलग-अलग प्रकार की आकांक्षाएं होती हैं। उनका सम्मान करना बहुत जरूरी होता है। कई राज्यों में आज हमारी गठबंधन की सरकारें हैं और सभी अच्छा काम कर रही हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, राजग अब गुड गवर्नेंस का एक पर्याय बन चुका है। क्या आप किसी और गठबंधन का नाम ले सकते हैं, जिसके पास इतनी पार्टियां हों? जिसकी इतने राज्यों में सरकारें हो?

आप वन नेशन वन इलेक्शन की बात करते रहे हैं। इस नाते यह अटकल भी लगाई जा रही है कि तीन राज्यों के साथ ही लोकसभा चुनाव भी करा दिए जाएं। यह कितना सच है?

एक साथ चुनाव कराने को लेकर देश भर में सार्थक बहस की जरूरत है। मुझे खुशी है कि यह बहस शुरू हो चुकी है। इस दिशा में विधि आयोग ने भी कुछ प्रयास किए हैं। दरअसल बार-बार चुनाव के कारण देश के सीमित संसाधनों पर अत्यधिक बोझ पड़ता है और चुनाव के दौरान लगने वाले आचार संहिता के कारण विकास के काम भी प्रभावित होते हैं। देश की विशालता और विविधता को देखते हुए एक साथ चुनाव कराना ज्यादा जरूरी है। चुनाव काफी खर्चीला हो गया है। इस पर राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के साथ-साथ बड़ी मात्रा में सरकारी संसाधन भी खर्च होते हैं। बार-बार चुनाव होने से उसी अनुपात में इसका बोझ बढ़ जाता है।

अकेले 2014 के लोकसभा चुनाव को ही लें। इसके लिए चुनाव आयोग को अर्धसैनिक बलों की 400 कंपनियां तैनात करनी पड़ी। देश भर के नौ लाख 30 हजार बूथों पर चुनाव कराने के लिए लगभग एक करोड़ कर्मियों को लगाया गया। इसके बाद भी पिछले चार सालों में 19 राज्यों में चुनाव हुए हैं। इन चुनावों में अर्धसैनिक बलों की 6000 कंपनियां तैनात की गईं और 32 लाख चुनाव कर्मियों को लगाया गया। यही नहीं, बार-बार चुनाव होने से आम लोगों के बीच भी इसके प्रति उदासीनता पनपती है। यह लोकतंत्र के लिए भी उचित नहीं है।

परोक्ष करों के मोर्चे पर जीएसटी लागू करने के बाद सरकार ने अब प्रत्यक्ष करों में सुधार की दिशा में कदम उठाया है। क्या आने वाले समय में मध्यम वर्ग और कारोबारियों को टैक्स में बड़ी राहत की उम्मीद की जाए?

आपने देखा होगा कि जीएसटी काउंसिल की पिछली कई बैठकों में जन सामान्य को राहत देने वाले कई निर्णय लिए गए। हाल ही में राखी और गणपति की मूर्तियों पर जीएसटी खत्म कर दिया गया। आजादी के बाद से अब तक देश में लगभग 66 लाख व्यवसाय पंजीकृत हुए थे। लेकिन जीएसटी लागू होने के मात्र एक साल के भीतर 48 लाख नए व्यवसाय पंजीकृत हो गए। जीएसटी के तहत एक साल में लगभग 350 करोड़ बिल प्रोसेस किए गए और 11 करोड़ रिटर्न फाइल हुए हैं। यह दिखाता है कि लोगों ने जीएसटी को खुले दिल से स्वीकार किया है। देशभर में चेक पोस्ट समाप्त कर दिए गए, राज्यों की सीमाओं पर अब कोई कतार नहीं लगती। इससे न केवल ट्रक ड्राइवरों का समय बचा, बल्कि इससे लोजिस्टिक्स सेक्टर को भी बहुत बढ़ावा मिल रहा है और इससे देश की उत्पादन क्षमता भी बढ़ने लगी है।

अगर दरों की बात करें तो पहले कई टैक्स छिपे हुए थे, यानी छिपे होते थे। अब आपके सामने जो दिखता है, उसी का भुगतान करना है। सरकार ने लगभग 400 समूह के वस्तुओं के टैक्स घटा दिए हैं। करीब 150 समूह की वस्तुओं पर कोई टैक्स नहीं रह गया है। अगर आप टैक्स रेट को देखें तो दैनिक उपयोग की चीजों पर ये वास्तव में कम हुए हैं। जैसे चावल, गेहूं, चीनी, मसाले जैसी चीजों पर अधिकतर मामलों में टैक्स घटा दिए गए हैं। प्रतिदिन उपयोग होने वाली अधिकतर वस्तुओं पर या तो कोई टैक्स नहीं रह गया है या वह पांच फीसद के स्लैब में आ चुके हैं। करीब 95 फीसद चीजें 18 प्रतिशत से कम टैक्स स्लैब में हैं।

आपकी सरकार सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों को सुधारने के लिए लगातार कोशिश कर रही है, लेकिन हालत में सुधार होता नहीं दिख रहा।

बैंकिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण इकाई है, जो पिछली सरकार के कुछ व्यक्तियों की राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति का केंद्र बन गया था। एनपीए (बैंकों के फंसे कर्ज) का मूल समझाना जरूरी है। इसे न केवल बैंकिंग सेक्टर ने बल्कि पिछली संप्रग सरकार ने भी जानबूझ कर छिपाए रखा। बैंकिंग सेक्टर की अवदशा की शुरुआत 2008 में हुई थी और 2014 में जब तक कांग्रेस सत्ता में रही, बैंकों में अंडरग्राउंड लूट जारी रही। एक आंकड़ा देता हूं। 2008 तक यानी आजादी के 60 साल में बैंकों ने कुल मिलकर करीब 18 लाख करोड़ की राशि लोन के रूप में दिए। लेकिन 2008 से 2014 के बीच मात्र छह वर्षो में यह राशि 52 लाख करोड़ हो गई।

यानी जितना लोन 60 साल में दिया गया, उससे दो गुना अधिक लोन सिर्फ छह वर्षों में दिया गया। यह सब हुआ कांग्रेस के फोन बैंकिंग सिस्टम से। यह वह व्यवस्था थी, जिसमें सिर्फ एक फोन कॉल पर एक मोटा लोन दे दिया जाता था। और जब उसे भरने का वक्त आता था तो दूसरे फोन से दूसरा लोन मिल जाता था, जिससे पहले लोन की अदायगी हो सके। यह चक्र चलता रहता था। ऐसा इसलिए भी संभव हो पा रहा था क्योंकि बैंकों के मुखिया खास चुने हुए थे। इस प्रकार देश में एनपीए का एक विशाल जंजाल तैयार कर दिया गया। यह फोन बैंकिंग सुविधा देश के गरीबों, मध्यम वर्ग के लोगों और किसानों के लिए नहीं थी। यह सिर्फ कुछ चुनिंदा बड़े लोगों के लिए ही थी। एनपीए का जंजाल एक तरह से लैंड माइंस की तरह था। हमने सरकार में आते ही इसके खिलाफ चौतरफा प्रहार किया। किसी को छोड़ा नहीं जा रहा है।

भाजपा शासित राज्यों में किसान आंदोलन तेज हो रहा है? समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर विवाद है। सवाल खड़ा हो रहा हैं कि जब लागू ही नहीं कराया जा सकता है तो फिर एमएसपी निर्धारित करने का क्या फायदा?

आपकी यह अवधारणा हमारे ट्रैक रिकॉर्ड के विपरीत है। आपको एक उदाहरण देता हूं। पिछली संप्रग सरकार के 10 साल के कार्यकाल में जहां 2,65,164 टन दालें एमएसपी पर खरीदी गई थीं, उससे लगभग बीस गुना ज्यादा हमारी सरकार ने केवल चार वर्षों में खरीदी हैं। हमने 2014-2015 से आज तक 52,50,724 टन दालें खरीदी हैं। एमएसपी को उत्पादन लागत के मुकाबले कम से कम 150 प्रतिशत रखने के सरकार के ऐतिहासिक निर्णय से देश के करोड़ों कर्मठ अन्नदाताओं को लाभ मिलेगा। मेरा जागरण से आग्रह है कि अभी कुछ दिन पहले ही डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने किसान कल्याण की सरकार की नीतियों और दिशा को लेकर जो लेख लिखा हैं, उसे अपने पाठकों तक जरूर पहुंचाए।

आपकी सरकार के गठन के साथ ही गंगा की सफाई की आशा जगी थी। समयसीमा भी तय की गई थी। लेकिन स्थिति बहुत नहीं बदली है।

गंगा नदी हमारी आस्था का प्रतीक है। विगत दशकों में गंगा की जो दशा हुई, वह सबने देखी है। 2014 से पहले किसी भी सरकार ने गंगा की सफाई के लिए समग्र नीति नहीं बनाई। हमारी सरकार ने मात्र चार साल में ही गंगा को निर्मल बनाने के लिए एक सुदृढ़ संस्थागत तंत्र बनाया है। नमामि गंगे के रूप में योजना बनाई है और 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक धन आवंटित किया है। पूर्व में किसी भी सरकार ने ऐसा नहीं किया था। नमामि गंगे के कार्य शुरू हो चुके हैं। हमने थोड़े से ही समय में गंगा किनारे के गांवों को खुले में शौच से मुक्त बनाने, घाटों की सफाई करने, शहरी सीवेज को साफ करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने, उद्योगों व टेनरियों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए निगरानी तंत्र बनाने और आम लोगों को जागरूक बनाने के उपाय किए हैं। इन कोशिशों के शुरुआती परिणाम दिखने लगे हैं।

विपक्ष अर्थव्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। आरोप है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में विकास दर धीमी हो गई है?

हमारा फोकस संतुलित विकास पर है। ऐसा विकास जिसमें गांव, गरीब, किसान और नौजवान की समुचित भागीदारी हो। 2014 में हमारी सरकार से पूर्व अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति थी? यह आप बखूबी जानते हैं। महंगाई बेलगाम थी, रोजगार का अभाव था, भ्रष्टाचार और अपारदर्शी कार्यशैली से देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो रही थी और राजकोषीय अनुशासनहीनता चरम पर थी। इसका नतीजा यह हुआ कि वित्त वर्ष 2013-14 में देश की विकास दर घटकर पांच प्रतिशत से भी नीचे आ गई। हमें यूपीए सरकार से ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली जिसमें बैंकों के एनपीए को छुपा कर रखा गया था। बीते चार साल में हमने एक के बाद एक कई सुधारात्मक कदम उठाकर सुशासन और पारदर्शी नीतियों से अर्थव्यवस्था को स्वच्छ और संतुलित बनाने का काम किया है।

हमने वर्षों से लंबित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया। बैंकों के एनपीए के वसूलने के लिए दिवालियेपन पर कानून बनाया। साल-दर साल राजकोषीय अनुशासन को कायम रखा जिससे महंगाई और सभी प्रकार के घाटे काबू रहे। गरीबों को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली महंगाई को नियंत्रित रखने के लिए बाकायदा संस्थागत तंत्र बनाया। हमारी इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि आज दुनियाभर के निवेशकों का भरोसा भारतीय अर्थव्यवस्था में बहाल हुआ है। आज भारत दुनिया की सर्वाधिक तेज गति से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं की प्रशंसा कर रही हैं।

वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य है। जबकि कृषि की विकास दर 4.9 से घटकर 2.1 फीसद पर आ गई है। इस विकास दर से सरकार आमदनी बढ़ाने के लक्ष्य को किस तरह प्राप्त कर सकेगी?

खेती के विकास और किसानों के कल्याणार्थ पहली बार हमारी सरकार ने समग्रता में प्रयास किया है। बात सिर्फ खेती को घाटे से उबारने की नहीं है, बल्कि सरकार ने किसानों की आमदनी को वर्ष 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य बनाया है। इस दिशा में सरकार ने कारगर प्रयास भी करना शुरू कर दिया है, जिसके परिणाम सामने आने लगे हैं। पिछले तीन सालों से देश में खाद्यान्न की ऑल टाइम हाई यानी रिकॉर्ड तोड़ पैदावार हुई है। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सबसे पहले कृषि की लागत कम करके उत्पादन बढ़ाने की नीति अपनाई गई। हर किसान को स्वायल हेल्थ कार्ड देने का प्राथमिक कार्य रिकॉर्ड समय में पूरा कर लिया गया। मिट्टी परीक्षण से खाद की बर्बादी रुकी और जमीन की सेहत में सुधार हुआ है। हर खेत को पानी पहुंचाकर ‘पर डॉप मोर क्रॉप’ का नारा सफल हुआ। परंपरागत जैविक खेती से पूर्वोत्तर के राज्यों की उपज के अधिक मूल्य मिलने लगे हैं।

खेती के साथ बागवानी, डेयरी, मत्स्य, पॉल्ट्री, मधुमक्खी पालन जैसे उद्यमों ने किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार किया है। सरकार ने कृषि क्षेत्र के बजट आवंटन में दोगुना की वृद्धि की है। जहां पिछली सरकार के चार सालों का बजट 1.21 लाख करोड़ रुपये था, उसे हमारी सरकार ने 2.11 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया है। कृषि क्षेत्र को व्यापकता में देखा गया। पैदावार बढ़ाने के साथ किसानों की उपज का बेहतर व लाभकारी मूल्य देना हमारी सरकार की प्राथमिकता रही है, जिसे पूरा किया गया। 22 हजार ग्रामीण अतिरिक्त मंडियां स्थापित की जा रही है, जिन्हें ई-नाम से जोड़ा जा रहा है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री संपदा योजना अहम भूमिका निभा रही है। इससे जहां कृषि उपज की स्थानीय स्तर पर समय रहते खपत होगी, वहीं ग्रामीण युवाओं को रोजगार मुहैया होगा।

स्वच्छ भारत अभियान की रफ्तार से आप संतुष्ट हैं। अक्तूबर 2019 तक पूरे देश को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य कैसे पूरा होगा?

स्वच्छ भारत मिशन आज एक जनांदोलन बन चुका है। गांधी के सपनों का भारत तभी बनेगा, जब पूरा देश पूर्ण स्वच्छ होगा। स्वच्छता अभियान की सफलता तभी है, जब देश के 125 करोड़ लोग इस अभियान को हाथोंहाथ लेंगे। लोगों ने आगे बढ़कर इसे अपनाया भी है। स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। स्कूली बच्चों में यह संस्कार के रूप में पनप रही है। जहां चार साल पहले तक स्वच्छता की कवरेज केवल 39 फीसद थी, वह इस समय बढ़कर 85 फीसद तक पहुंच गई है। समाज का हर वर्ग इस अभियान से जुड़ चुका है। इस अभियान को सतत प्रक्रिया के तहत चलाते रहना होगा। इससे गरीबी, कुपोषण और बीमारी से मुक्ति मिलेगी। इतने कम समय में इतना व्यापक अभियान सफलतापूर्वक पूरा होने वाला है, जो विश्व में एक उदाहरण बनेगा। देश में स्वच्छता को लेकर लोगों की सोच में परिवर्तन एक बड़ी उपलब्धि है।

भाजपा अध्यक्ष बार-बार पहले से भी बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं। क्या आप उनसे इत्तेफाक रखते हैं?

हम विकास के नारे के साथ सत्ता में आए थे और पिछले चार सालों में बिना रुके, बिना थके विकास के कामों में लगे हैं और इन्हीं कामों के साथ हम आम जनता के बीच जाएंगे। जिन लोगों के पास दिखाने के लिए कोई काम नहीं है, वे जनता को बरगलाने के लिए नारे गढ़ने का काम कर रहे हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि मेरी पार्टी को जनता का प्यार और समर्थन उसी तरह से मिलेगा, जिस तरह से पिछले चाल सालों में मिलता रहा है। मुझे पूरा भरोसा है कि भाजपा को फिर से बड़ी जीत मिलेगी। राजग गठबंधन नए मुकाम पर पहुंचेगा।

पाकिस्तान में नई सरकार बनी है। देखा जा रहा है कि इमरान खान आपकी नीतियों के प्रशंसक हैं। क्या दोनों देशों के संबंध में सुधार आने की उम्मीद है?

इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसियों से अच्छे संबंध होना ज़रूरी है। मेरी सरकार की ‘नेबरहहुड फस्र्ट’ पालिसी का उद्देश्य भी यही है। आपको पता है, अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही हमने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। हाल ही में पाकिस्तान के आम चुनावों में इमरान खान की पार्टी को सफलता मिली। मैंने इमरान खान को उनकी सफलता पर बधाई दी। हमें उम्मीद है कि पाकिस्तान आतंक और हिंसा से मुक्त, सुरक्षित, स्थिर और समृद्ध क्षेत्र के लिए काम करेगा।

अब घर की बात करें तो जम्मू-कश्मीर ने क्या आपको निराश किया? सरकार रहते हुए भी स्थिति नहीं बदली?

जम्मू-कश्मीर की जनता ने जो जनादेश दिया था, वह पीडीपी-बीजेपी को मिलकर सरकार बनाने के लिए दिया था। उस परिस्थिति में दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था। इस गठबंधन ने जनता की आशा आकांक्षाओं को पूर्ण करने की कोशिश की। लेकिन मुफ्ती साहब की मृत्यु के बाद जनता की आशाओं के अनुरूप जो गति विकास के कार्यों की होनी चाहिए थी, उसमें रुकावट आने लगी। बीजेपी के लिए हमेशा जम्मू-कश्मीर की जनता का हित ही प्राथमिकता रही है। इसलिए बिना आरोप-प्रत्यारोप के हमारी पार्टी ने सत्ता से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया। जम्मू-कश्मीर की जनता की आशाओं को पूर्ण करने के लिए बीजेपी प्रतिबद्ध है। हम यह चाहते हैं की जम्मू-कश्मीर में पंचायत स्तर पर लोकतंत्र मजबूत बने। गांवों में भी लोगो को निर्णय का अधिकार मिले। इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी। हम सरकार में थे, तब हमने इस दिशा में काफी प्रयत्न किए, लेकिन
गठबंधन सरकार में रहकर यह लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं हो रहा था। जम्मू, लद्दाख और कश्मीर, इन तीनों क्षेत्रों का संतुलित विकास हो, इसके लिए भारत सरकार जम्मू-कश्मीर की जनता के साथ है।

आपकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था और वहां राहुल गांधी अचानक आपके गले लग गए थे। क्या राहुल ने आपको चौंकाया था?

नामदारों के अपने बनाए नियम होते हैं। नफरत कब करना, किससे और कैसे करना- उनका अपना अंदाज होता है। और प्रेम कैसे दिखाना और प्रेम में कैसी हरकत करना- उसका भी अपना अंदाज होता है। इसमें मुझ जैसा एक कामदार क्या कह सकता है?

Source 1 : Dainik Jagran

Source 2 : Dainik Jagran

Source 3 : Dainik Jagran

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!