देश ने हाल ही में मदन दास देवी जी जैसी महान विभूति को खोया है। उनके जाने से मेरे साथ ही लाखों कार्यकर्ताओं को जो गहरा दुख हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। आज मन को समझाना मुश्किल है कि मदन दास जी हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन मदन दास जी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के विचार और मूल्य सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे मदन दास जी के साथ वर्षों तक करीब से काम करने का अवसर मिला। मैंने उनकी सादगी और मृदुभाषी स्वभाव को भी बहुत नजदीक से जाना। उनका जीवन बहुत सहज था। वह पूरी तरह से संगठन को समर्पित व्यक्ति थे और मेरे पास भी लंबे समय तक संगठन के कार्यों का दायित्व रहा है। इसलिए अधिकतर समय हमारे बीच की बातचीत संगठन का विस्तार, व्यक्ति निर्माण जैसे पहलुओं पर केंद्रित रहती थी। एक बार मैंने उनसे पूछा कि वह मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं। उन्होंने मुझे बताया कि वह तो महाराष्ट्र के सोलापुर के पास के एक गांव से आते हैं, लेकिन उनके पूर्वज गुजरात के थे। वैसे यह उन्हें पता नहीं था कि गुजरात में कहां से थे। मैंने उन्हें बताया कि देवी उपनाम से मेरे एक शिक्षक थे, जो विसनगर के रहने वाले थे। बाद में मदन दास जी विसनगर गए और मेरे गांव वडनगर भी गए। वह मुझसे अधिकतर समय गुजराती में ही बातचीत करते थे।

मदन दास जी धैर्यपूर्वक कार्यकर्ताओं की बातों को सुना करते थे और घंटों तक चली चर्चा को वह बहुत कम वाक्यों में संक्षेप में समेट लेते थे। उनकी एक विशेषता थी कि वह शब्दों से परे जाकर कार्यकर्ता की भावनाओं को बहुत जल्दी समझ लेते थे।

मदन दास जी की जीवन यात्रा दर्शाती है कि कैसे स्वयं को पीछे रखकर और सामान्य कार्यकर्ताओं को जोड़कर बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। उनके पास चार्टर्ड अकाउंटेंट की ट्रेनिंग थी, इसलिए वह चाहते तो आरामदायक जीवन जी सकते थे, लेकिन उनके जीवन का उद्देश्य कुछ और ही था। उन्होंने राष्ट्रनिर्माण को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। भारत के युवाओं पर मदन दास जी को अटूट भरोसा था। वह देश भर के युवाओं को आपस में जोड़ने की क्षमता रखते थे। उन्होंने अपने जीवन का लंबा कार्यकाल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मजबूत करने के लिए समर्पित कर दिया।

मदन दास जी अपनी इस यात्रा में यशवंत राव केलकर जी से प्रभावित रहे, जिनके बारे में वह अक्सर बातें किया करते थे। मदन दास जी का हमेशा जोर रहता था कि एबीवीपी के कामों में अधिक से अधिक छात्राओं की भागीदारी हो, और न सिर्फ ये भागीदारी तक सीमित रहे, बल्कि छात्राएं गतिविधियों का नेतृत्व करें। वह अक्सर कहते थे कि जब छात्राएं किसी सामूहिक गतिविधि में शामिल होती हैं तो वह प्रयास और ज्यादा संवेदनशील बन जाता है।

विद्यार्थियों से मदन दास जी का गहरा लगाव था और वह अक्सर छात्रावासों में विद्यार्थियों के बीच घुल-मिल जाते थे। आयु में फर्क होने के बावजूद वह नई पीढ़ी के साथ बहुत सहजता से तालमेल बिठा लेते थे। वह विद्यार्थियों के बीच हमेशा ऐसे काम करते रहे, जैसे जल में कमल। विद्यार्थियों के बीच रहकर भी वह कभी छात्र राजनीति का हिस्सा नहीं बने।
सामाजिक और राजनीतिक जीवन में कई ऐसे लोग हैं, जिनके जीवन को गढ़ने में मदन दास जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। लेकिन मदन दास जी ने कभी यह प्रकट नहीं किया, क्योंकि यह उनके स्वभाव में ही नहीं था।

आजकल लोगों, प्रतिभाओं और कौशल के प्रबंधन के विचार काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। मदन दास जी यह बखूबी समझ लेते थे कि किस व्यक्ति में किस तरह का कौशल है और उसकी प्रितभा संगठन के हित में कैसे काम आ सकती है। उनमें यह खासियत थी कि वे लोगों को उनकी क्षमताओं और प्रतिभा के अनुरूप ही दायित्व सौंपते थे। जब भी किसी कार्यकर्ता के पास कोई नया विचार होता था, तो उसकी हमेशा यह इच्छा रहती थी कि वह मदन दास जी के साथ साझा करे। इसकी एक वजह यह थी कि मदन दास जी नए विचारों को सुनने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनके साथ काम करने वाले लोग खुद ही प्रेरित होते थे, इस कारण से उनके नेतृत्व में न सिर्फ संगठनों का बहुत तेजी से विकास और विस्तार हुआ, बल्कि संगठन कहीं अधिक प्रभावी और सशक्त बने।

मदन दास जी संपर्क को लेकर बहुत सेलेक्टिव थे। किससे मिलना, कब मिलना और जब मिलूंगा तो उससे क्या बात करना और इसमें कितना समय जाएगा, इन सबकी वह योजना बनाते थे। मदन दास जी के जो प्रवास और कार्यक्रम होते थे, उनमें वह कभी भी कार्यकर्ताओं पर बोझ नहीं बनते थे।

मैं अंतिम समय तक सतत उनके संपर्क में रहा। मैं हाल में जब भी उनको फोन करता था तो वह चार बार पूछने के बाद ही अपनी बीमारी के बारे में बात करते थे। अन्यथा वह हंसकर टाल जाते थे। बीमारी में भी उनके मन में हमेशा यह भाव रहता था कि मैं समाज के लिए, देश के लिए क्या करूं।

मदन दास जी का अकादमिक रिकाॅर्ड काफी शानदार था। जब भी वह कुछ अच्छा पढ़ते थे, तो उसे उस विषय से संबंधित लोगों को भेज देते थे। मुझे अक्सर ऐसी चीजें उनसे प्राप्त होती थीं। अर्थशास्त्र और नीतिगत मामलों की वह बहुत गहरी समझ रखते थे। मदन दास जी ने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी, जिसके प्रत्येक नागरिक के लिए आत्मनिर्भरता जीवन की वास्तविकता हो। एक ऐसे समाज का निर्माण हो, जहां सम्मान, सशक्तीकरण और सामूहिक समृद्धि की भावना हो। आज भारत एक के बाद एक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता जा रहा है, इसे देखकर उनसे ज्यादा खुश कोई नहीं होता।

आज जब हमारा लोकतंत्र जीवंत है, युवा आत्मविश्वास से भरे हैं और देश उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं से भरा है, तब मदन दास देवी जी जैसी विभूतियों को याद करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। उनका पूरा जीवन समाज की सेवा और राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित रहा।

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একতার মহাকুম্ভ – নতুন এক যুগের সূচনা
February 27, 2025

পবিত্র প্রয়াগরাজ শহরে সফল এক মহাকুম্ভ সম্পন্ন হয়েছে। ঐক্যের মহাযজ্ঞ সম্পূর্ণ হল। কোন জাতির মধ্যে যখন চেতনা জাগ্রত হয়, তখন সেই জাতি দীর্ঘ কয়েক শতক পুরনো পরাধীনতার শিকলকে ভেঙে ফেলে, নতুন শক্তিতে মুক্ত বাতাস গ্রহণ করে। ১৩ জানুয়ারি থেকে প্রয়াগরাজে একতার মহাকুম্ভে তার-ই প্রতিফলন দেখা গেছে।

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অযোধ্যায় রাম মন্দিরের প্রাণপ্রতিষ্ঠার সময় ২২ জানুয়ারি আমি দেবভক্তি এবং দেশভক্তির বিষয়ে বলেছিলাম। প্রয়াগরাজের মহাকুম্ভ চলাকালীন দেব-দেবী, সাধু-সন্ত, মহিলা, শিশু, যুবক-যুবতী, প্রবীণ নাগরিকবৃন্দ থেকে শুরু করে সমাজের সকল স্তরের মানুষ এখানে জড়ো হয়েছেন। আমরা জাতির মধ্যে চেতনা জাগ্রত হওয়ার প্রমাণ পেয়েছি। একতার এই মহাকুম্ভে একই জায়গায় একই সময়ে পবিত্র এক আয়োজনে ১৪০ কোটি ভারতবাসীর আবেগ পুঞ্জিভূত হয়েছে।

প্রয়াগরাজ অঞ্চলের পবিত্র শৃঙ্ঘারপুর হল ঐক্য, সম্প্রীতি এবং ভালোবাসার এক মহান ভূমি, যেখানে প্রভু শ্রীরাম এবং নিশাদরাজের মধ্যে সাক্ষাৎ হয়। তাঁদের সেই সাক্ষাৎ আসলে নিষ্ঠা এবং সদিচ্ছার মিলন। আজও সেই একই মানসিকতায় প্রয়াগরাজ আমাদের অনুপ্রাণিত করে চলেছে।

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গত ৪৫ দিন ধরে আমি প্রত্যক্ষ করেছি দেশের প্রতিটি প্রান্ত থেকে কোটি কোটি মানুষ সঙ্গমের উদ্দেশ্যে যাত্রা করেছেন। মিলনের সেই আবেগ আরো সঞ্চারিত হয়েছে। গঙ্গা, যমুনা এবং সরস্বতীর পবিত্র সঙ্গমে ভক্তরা বিপুল উৎসাহ উদ্দীপনায় আস্থার সঙ্গে মিলিত হয়েছেন।

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প্রয়াগরাজের মহাকুম্ভ নিয়ে আধুনিক যুগের ম্যানেজমেন্টের পেশাদার ব্যক্তিত্বরা পড়াশোনা করছেন। বিভিন্ন নীতি প্রণয়ন যারা করেন, সেই বিশেষজ্ঞ এবং পরিকল্পনাকারীরাও এই মহাকুম্ভের বিষয়ে আগ্রহপ্রকাশ করেছেন। এর আগে বিশ্বের কোথাও এত বৃহৎ জনসমাগম হয় নি।

তিনটি নদীর সঙ্গমস্থলে কোটি কোটি মানুষ জড়ো হওয়ার জন্য কিভাবে প্রয়াগরাজে এসেছেন সারা বিশ্ব তা প্রত্যক্ষ করেছে। এঁদের কাছে কেউ আনুষ্ঠানিকভাবে কোন আমন্ত্রণপত্র পাঠায়নি, কোথায় যেতে হবে তা বলে দেয়নি, অথচ কোটি কোটি মানুষ স্বইচ্ছায় মহাকুম্ভের উদ্দেশে রওনা হয়েছেন, পবিত্র অবগাহনের মাধ্যমে নিজেকে আশীর্বাদধন্য বলে মনে করেছেন।

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পবিত্র স্থানের পর প্রত্যেকের মুখে যে অপার আনন্দ ও তৃপ্তি আমি প্রত্যক্ষ করেছি তা কোনদিনই ভোলার নয়। মহিলা, বয়স্কজনেরা, আমাদের দিব্যাঙ্গ ভাই ও বোনেরা – প্রত্যেকেই ঠিক সঙ্গমে পৌঁছোনোর রাস্তা খুজে পেয়েছেন।

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ভারতের যুবসম্প্রদায় স্বতঃস্ফূর্তভাবে এই আয়োজনে সামিল হয়েছেন, যা অত্যন্ত আনন্দের বিষয়। মহাকুম্ভে তরুণ প্রজন্মের উপস্থিতি এক নতুন বার্তা দিয়েছে – আমাদের গৌরবোজ্জ্বল সংস্কৃতি এবং ঐতিহ্যকে তাঁরা এগিয়ে নিয়ে যাবেন। একে সংরক্ষণ করার বিষয়ে নিজ নিজ দায়িত্ব-কর্তব্য সম্পর্কে তাঁরা ওয়াকিবহাল হয়েছেন এবং এই দায়িত্ব পালনে অঙ্গীকারবদ্ধ হয়েছেন।

মহাকুম্ভ উপলক্ষে প্রয়াগরাজের বিপুল জনসমাগম নতুন এক রেকর্ড তৈরি করেছে। কিন্তু শারীরিক ভাবে উপস্থিত না হয়েও কোটি কোটি মানুষ এই উপলক্ষে এখানে মানসিক ভাবে সমাবেত হন। ভক্তরা যে পবিত্র জল নিয়ে নিজ নিজ গন্তব্যে ফিরে গেছেন, সেই জল লক্ষ লক্ষ মানুষের আধ্যাত্মিক ভাবনার উৎসে পরিণত হয়েছে। মহাকুম্ভ ফেরত বহু পূণ্যার্থীকে নিজ নিজ গ্রামে সসম্মানে বরণ করে নেওয়া হয়েছে, সমাজ তাঁদের সম্মানিত করেছে।

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গত কয়েক সপ্তাহ ধরে প্রয়াগরাজে যা ঘটেছে তা অভূতপূর্ব। এর মাধ্যমে আগামীদিনের দেশ গঠনের ভিত্তিপ্রস্তর স্থাপিত হয়েছে।

কেউ ভাবতেও পারেননি এত বিপুল সংখ্যক তীর্থযাত্রী এখানে জড়ো হবেন। কুম্ভের অতীতের অভিজ্ঞতার ওপর ভিত্তি করে এখানে কতজন আসতে পারেন, সেবিষয়ে প্রশাসন কিছু হিসেব-নিকেশ করেছিল, কিন্তু সেই প্রত্যাশাকে ছাড়িয়ে বহু মানুষ এখানে এসেছেন।

মার্কিন যুক্তরাষ্ট্রে যতজন বসবাস করেন তার প্রায় দ্বিগুণ মানুষ একতার এই মহাকুম্ভে এসেছিলেন।

কোটি কোটি উৎসাহী অংশগ্রহণকারী ভারতবাসীর বিষয়ে আধ্যাত্মিক জগতের বিশেষজ্ঞরা যদি পর্যালোচনা করেন, তাহলে তাঁরা দেখবেন নিজ ঐতিহ্যে গর্বিত দেশবাসী এখন নতুন এক উদ্দীপনায় ভরপুর হয়ে উঠেছেন। আমি তাই মনে করি নতুন এক যুগের সূচনা হয়েছে, যা নতুন ভারতের ভবিষ্যতের পরিকল্পনা করবে।

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হাজার হাজার বছর ধরে ভারতের জাতীয় ভাবনাকে মহাকুম্ভ শক্তিশালী করেছে। প্রতিটি পূর্ণ কুম্ভে সাধু-সন্ত, বিদ্বান ব্যক্তি এবং পণ্ডিতেরা জড়ো হতেন। তাঁরা সেই সময়ে সমাজের বিভিন্ন বিষয় নিয়ে মত বিনিময় করতেন। তাঁদের আলোচনার ওপর ভিত্তি করে দেশ এবং সমাজ নতুন এক দিশায় এগিয়ে চলতো। প্রতি ৬ বছর পর অর্ধকুম্ভের সময় গৃহীত নীতিগুলি পর্যালোচনা করা হতো। ১৪৪ বছর পর ১২টি পূর্ণ কুম্ভের শেষে সেকেলে ঐতিহ্যগুলিকে বাতিল করে দেওয়া হতো, নতুন নতুন ধারণা যুক্ত হতো, ভবিষ্যতের জন্য নতুন নতুন রীতি-নীতি কার্যকর করা হতো।

১৪৪ বছর পর এই মহাকুম্ভে ভারতের উন্নয়নযাত্রা সম্পর্কে আমাদের সাধু-সন্ন্যাসীরা নতুন এক বার্তা দিয়েছেন। সেই বার্তা হল বিকশিত অর্থাৎ উন্নত ভারত গড়তে হবে।

একতার এই মহাকুম্ভে ধনী, দরিদ্র নির্বিশেষে , তরুণ বা প্রবীণ, গ্রামবাসী বা শহরের বাসিন্দা, দেশ-বিদেশের মানুষ, পূর্ব-পশ্চিম, উত্তর-দক্ষিণ – যে কোন প্রান্তের মানুষ এখানে মিলিত হয়েছেন। জাত, ধর্ম, নীতি, আদর্শ এ সব কিছু অগ্রাহ্য করে সঙ্গমে তাঁরা সমবেত হয়েছেন। এটি আসলে এক ভারত, শ্রেষ্ঠ ভারত ভাবনার প্রতিফলন, যেখানে কোটি কোটি মানুষের আস্থা রয়েছে। আর এখন আমরা সেই একই উৎসাহ, উদ্দীপনায় উন্নত ভারত গড়তে ব্রতী হব।

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এই প্রসঙ্গে আমার ভগবান কৃষ্ণের সেই উপাখ্যানটি মনে পড়ছে। মা যশোদা তাঁকে মুখ খুলে হাঁ করতে বললে, তিনি যখন মুখ খুলেছিলেন, তখন তাঁর মা সমগ্র বিশ্ব ব্রহ্মান্ড প্রত্যক্ষ করেন। একই ভাবে এই মহাকুম্ভে দেশ-বিদেশের মানুষ ভারতের সম্মিলিত শক্তির সম্ভাবনাকে প্রত্যক্ষ করেছেন। আমাদের আত্মপ্রত্যয়ী হয়ে, একনিষ্ঠ ভাবে উন্নত ভারত গড়তে হবে।

অতীতে ভক্তি আন্দোলনের সময় সাধু-সন্ন্যাসীরা দেশ জুড়ে আমাদের ঐক্যবদ্ধ সংকল্পকে চিহ্নিত করে তাকে কাজে লাগাতে উৎসাহিত করেছিলেন। আমাদের ঐক্যবদ্ধ প্রয়াসের শক্তি সম্পর্কে স্বামী বিবেকানন্দ থেকে শ্রী অরবিন্দ — প্রত্যেক মহান চিন্তাবিদ মনে করিয়ে দিয়েছেন। স্বাধীনতা আন্দোলনের সময় মহাত্মা গান্ধীও সেই অভিজ্ঞতা লাভ করেন। স্বাধীনতা উত্তর যুগে এই সম্মিলিত শক্তিকে যদি যথাযথ ভাবে স্বীকৃতি দেওয়া হতো, তাহলে তা প্রত্যেকের কল্যাণে ব্যবহার করা যেত। ফল স্বরূপ নতুন এক স্বাধীন রাষ্ট্রের জন্য তা গুরুত্বপূর্ণ এক শক্তি হিসেবে কাজে লাগান যেতো। দুর্ভাগ্যজনক ভাবে সেই শক্তিকে স্বীকৃতি দেওয়া হয়নি। তবে, বর্তমানে উন্নত ভারত গড়তে যে ভাবে জনগণের সম্মিলিত শক্তি আত্মপ্রকাশ করছে তা দেখে আমি আনন্দিত।

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বৈদিক যুগ থেকে বিবেকানন্দ , প্রাচীন যুগের নীতি থেকে আধুনিক যুগের কৃত্রিম উপগ্রহ – দেশের মহান রীতি-নীতি সবসময়ই জাতি গঠনে সহায়ক হয়েছে। নাগরিক হিসেবে আমি চাইবো আমাদের পূর্বপুরুষ এবং সাধু-সন্ন্যাসীদের কর্ম তৎপরতা অনুপ্রেরণার নতুন উৎস হোক। একতার এই মহাকুম্ভ নতুন নতুন সংকল্পকে বাস্তবায়িত করতে সহায়তা করুক। আসুন আমরা ঐক্যকে আমাদের পথপ্রদর্শক নীতি হিসেবে গ্রহণ করি। দেশ সেবা আসলে অধ্যাত্ম সেবার সমার্থক – এই ভাবনায় আমরা এগিয়ে চলি।

কাশীতে আমার নির্বাচনী প্রচারের সময়কালে আমি বলেছিলাম, “মা গঙ্গার আহ্বানে আমি এখানে এসেছি”। এটি নিছক কোন আবেগ ছিল না। এর মধ্য দিয়ে পবিত্র নদীগুলিকে পরিষ্কার করার ক্ষেত্রে আমাদের দায়বদ্ধতার বিষয়টি অন্তর্নিহীত ছিল। প্রয়াগরাজে গঙ্গা, যমুনা এবং সরস্বতী নদীর সঙ্গমে দাঁড়িয়ে আমার সেই সংকল্প আরও দৃঢ় হয়েছে। আমাদের নদীগুলির পরিচ্ছন্নতা বজায় রাখার সঙ্গে নিজেদের জীবনযাত্রা যুক্ত রয়েছে। তাই বড় বা ছোট যেরকমেরই নদী হোক সেই নদীকে জীবনদায়ী মাতা হিসেবে আমরা পুজো করবো। আমাদের নদীগুলিকে পরিচ্ছন্ন রাখার ক্ষেত্রে যে উদ্যোগ আমরা নিয়েছি, এই মহাকুম্ভ তাকে আরও অনুপ্রাণিত করেছে।

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আমি জানি এধরনের একটি বৃহৎ কর্মকান্ডকে বাস্তবায়িত করা সহজ কোন কাজ নয়। আমাদের নিষ্ঠায় কোন ঘাটতি থাকলে তার জন্য আমি মা গঙ্গা, মা যমুনা এবং মা সরস্বতীর কাছে ক্ষমাপ্রার্থনা করছি। আধ্যাত্মিক চেতনার প্রতিমূর্তি জনতা জনার্দনকে পরিষেবা দেওয়ার ক্ষেত্রে আমাদের তরফে যদি কোনরকমের খামতি থাকে, তার জন্য আমি সকলের কাছে ক্ষমা প্রার্থনা করছি।

এই মহাকুম্ভে অগণিত মানুষ যে আধ্যাত্মিক চেতনায় জড়ো হয়েছিলেন, তাঁদের পরিষেবা দেওয়ার ক্ষেত্রে একই রকমের ভাবনায় আমরা কাজ করেছি। উত্তর প্রদেশের সাংসদ হিসেবে আমি বলতে চাই যোগীজির নেতৃত্বে প্রশাসন এবং জনসাধারণ যে ভাবে এই একতার মহাকুম্ভকে সফল করে তুলেছেন তার জন্য আমি গর্বিত। রাজ্য অথবা কেন্দ্র, প্রশাসক অথবা শাসক – কারোর পক্ষে একক ভাবে এই আয়োজন সফল করা সম্ভব নয়। নিকাশী ব্যবস্থার সঙ্গে যুক্ত কর্মী, পুলিশ, নৌকো চালক, গাড়ি চালক, খাদ্য সরবরাহকারী - প্রত্যেকে একনিষ্ঠ সেবক হিসেবে এখানে নিরলস ভাবে কাজ করে গেছেন। প্রয়াগরাজের জনসাধারণ নিজেদের হাজারও অসুবিধা সত্বেও যে ভাবে তীর্থযাত্রীদের স্বাগত জানিয়েছেন, তা এককথায় অনবদ্য। আমি প্রয়াগরাজের জনসাধারণ সহ উত্তরপ্রদেশের প্রত্যেককে আন্তরিক কৃতজ্ঞতা জানাই। তাঁরা এক অসাধারণ কাজ করেছেন।

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আমাদের দেশের উজ্জ্বল ভবিষ্যতের বিষয়ে আমার সবসময়ই অটুট আস্থা রয়েছে। এবারের মহাকুম্ভ প্রত্যক্ষ করে সেই আস্থা বহুগুণ শক্তিশালী হয়েছে।

যেভাবে ১৪০ কোটি ভারতবাসী একতার মহাকুম্ভকে আন্তর্জাতিক এক কর্মসূচিতে পরিণত করেছেন, তা অবিশ্বাস্য। আমাদের জনগণের নিষ্ঠা, অধ্যবসায় এবং উদ্যোগে আমি আপ্লুত। দেশবাসীর এই সম্মিলিত প্রয়াসের মধ্য দিয়ে যে সাফল্য আমরা অর্জন করেছি, আমি তা শ্রী সোমনাথকে নিবেদন করবো। দ্বাদশ জ্যোতির্লিঙ্গের মধ্যে আমি প্রথমে সেখানে যাব এবং তার কাছে প্রত্যেক দেশবাসীর জন্য প্রার্থনা করবো।

মহাশিবরাত্রীর দিনে মহাকুম্ভ হয়তো আনুষ্ঠানিক ভাবে শেষ হয়েছে, কিন্তু গঙ্গার শাশ্বত প্রবাহের মতো আমাদের আধ্যাত্মিক শক্তি, জাতীয় ঐক্য ও চেতনা জাগ্রত থাকবে, যেগুলিকে মহাকুম্ভ আমাদের প্রত্যেকের মধ্যে সঞ্চারিত করেছে। এই শক্তি, ঐক্য ও চেতনা আমাদের আগামী প্রজন্মকেও অনুপ্রাণিত করবে।