मेरे अटल जी

Published By : Admin | August 17, 2018 | 09:09 IST

अटल जी अब नहीं रहे। मन नहीं मानता। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।

वे पंचतत्व हैं। वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वेअटल हैं, वे अब भी हैं। जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो। इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान। लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है। जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है। बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है। 

कभी सोचा नहीं था, कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है। लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था। सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

हमारे देश में अनेक ऋषि, मुनि, संत आत्माओं ने जन्म लिया है। देश की आज़ादी से लेकर आज तक की विकास यात्रा के लिए भी असंख्य लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और 21वीं सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटल जी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था -बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं। इंडिया फर्स्ट –भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था।सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे। और ऐसा किया भी।दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।   

काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गयी तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे।  

अटल जी कभी लीक पर नहीं चले। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। आंधियों में भी दीये जलाने की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल थी।

राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले। देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया। लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे।

जीवन कैसे जीया जाए, राष्ट्र के काम कैसे आया जाए, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया। वे कहते थे, “हम केवल अपने लिए ना जीएं, औरों के लिए भी जीएं...हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता। किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी” 

देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वे जीवनभर प्रयास करते रहे। वेकहते थे गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी हैऔर विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता”। करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। गरीब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था।

आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी। वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे - स्वप्न दृष्टा थे लेकिन कर्म वीर भी थे।कवि हृदय, भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे। उन्होंने विदेश की यात्राएं कीं। जहाँ-जहाँ भी गए, स्थाई मित्र बनाये और भारत के हितों की स्थाई आधारशिला रखते गए। वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे।

अटल जी का प्रखर राष्ट्रवाद और राष्ट्र के लिए समर्पण करोड़ों देशवासियों को हमेशा से प्रेरित करता रहा है। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक नारा नहीं था बल्कि जीवन शैली थी। वे देश को सिर्फ एक भूखंड, ज़मीन का टुकड़ा भर नहीं मानते थे, बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे। “भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैयह सिर्फ भाव नहीं, बल्कि उनका संकल्प था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया। दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने अपनी इसी सोच को जीने में, धरातल पर उतारने में लगा दिया। आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था उसको मिटाने के लिए अटल जी के प्रयास को देश हमेशा याद रखेगा।

 

राष्ट्रभक्ति की भावना, जनसेवा की प्रेरणा उनके नाम के ही अनुकूल अटल रही। भारत उनके मन में रहा, भारतीयता तन में। उन्होंने देश की जनता को ही अपना आराध्य माना। भारत के कण-कण, कंकर-कंकर, भारत की बूंद-बूंद को, पवित्र और पूजनीय माना।

जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली उतना ही अधिक वह ज़मीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया। प्रभु से यश, कीर्ति की कामना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा,

हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना।

गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना

अपने देशवासियों से इतनी सहजता औरसरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन के एक अलग पायदान पर खड़ा करती है।

वेपीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप अपने भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे- जीवन भर। जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे- “देह धरण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोए। उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनाएं भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गए।  

यदि भारत उनके रोम रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी। इसी वजह से हिरोशिमा जैसी कविताओं का जन्म हुआ। वे विश्व नायक थे। मां भारतीके सच्चे वैश्विक नायक। भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करने वाले आधुनिक बुद्ध। 

कुछ वर्ष पहले लोकसभा में जब उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया था तब उन्होंने कहा था, “यह देश बड़ा अद्भुत है, अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा रहा है, अभिनंदन किया जा सकता है।”

अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता को प्रतिबिंबित करता है। यही सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का भारत बनाना है।

नए भारत का यही संकल्प, यही भावलिए मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं।

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একতার মহাকুম্ভ – নতুন এক যুগের সূচনা
February 27, 2025

পবিত্র প্রয়াগরাজ শহরে সফল এক মহাকুম্ভ সম্পন্ন হয়েছে। ঐক্যের মহাযজ্ঞ সম্পূর্ণ হল। কোন জাতির মধ্যে যখন চেতনা জাগ্রত হয়, তখন সেই জাতি দীর্ঘ কয়েক শতক পুরনো পরাধীনতার শিকলকে ভেঙে ফেলে, নতুন শক্তিতে মুক্ত বাতাস গ্রহণ করে। ১৩ জানুয়ারি থেকে প্রয়াগরাজে একতার মহাকুম্ভে তার-ই প্রতিফলন দেখা গেছে।

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অযোধ্যায় রাম মন্দিরের প্রাণপ্রতিষ্ঠার সময় ২২ জানুয়ারি আমি দেবভক্তি এবং দেশভক্তির বিষয়ে বলেছিলাম। প্রয়াগরাজের মহাকুম্ভ চলাকালীন দেব-দেবী, সাধু-সন্ত, মহিলা, শিশু, যুবক-যুবতী, প্রবীণ নাগরিকবৃন্দ থেকে শুরু করে সমাজের সকল স্তরের মানুষ এখানে জড়ো হয়েছেন। আমরা জাতির মধ্যে চেতনা জাগ্রত হওয়ার প্রমাণ পেয়েছি। একতার এই মহাকুম্ভে একই জায়গায় একই সময়ে পবিত্র এক আয়োজনে ১৪০ কোটি ভারতবাসীর আবেগ পুঞ্জিভূত হয়েছে।

প্রয়াগরাজ অঞ্চলের পবিত্র শৃঙ্ঘারপুর হল ঐক্য, সম্প্রীতি এবং ভালোবাসার এক মহান ভূমি, যেখানে প্রভু শ্রীরাম এবং নিশাদরাজের মধ্যে সাক্ষাৎ হয়। তাঁদের সেই সাক্ষাৎ আসলে নিষ্ঠা এবং সদিচ্ছার মিলন। আজও সেই একই মানসিকতায় প্রয়াগরাজ আমাদের অনুপ্রাণিত করে চলেছে।

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গত ৪৫ দিন ধরে আমি প্রত্যক্ষ করেছি দেশের প্রতিটি প্রান্ত থেকে কোটি কোটি মানুষ সঙ্গমের উদ্দেশ্যে যাত্রা করেছেন। মিলনের সেই আবেগ আরো সঞ্চারিত হয়েছে। গঙ্গা, যমুনা এবং সরস্বতীর পবিত্র সঙ্গমে ভক্তরা বিপুল উৎসাহ উদ্দীপনায় আস্থার সঙ্গে মিলিত হয়েছেন।

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প্রয়াগরাজের মহাকুম্ভ নিয়ে আধুনিক যুগের ম্যানেজমেন্টের পেশাদার ব্যক্তিত্বরা পড়াশোনা করছেন। বিভিন্ন নীতি প্রণয়ন যারা করেন, সেই বিশেষজ্ঞ এবং পরিকল্পনাকারীরাও এই মহাকুম্ভের বিষয়ে আগ্রহপ্রকাশ করেছেন। এর আগে বিশ্বের কোথাও এত বৃহৎ জনসমাগম হয় নি।

তিনটি নদীর সঙ্গমস্থলে কোটি কোটি মানুষ জড়ো হওয়ার জন্য কিভাবে প্রয়াগরাজে এসেছেন সারা বিশ্ব তা প্রত্যক্ষ করেছে। এঁদের কাছে কেউ আনুষ্ঠানিকভাবে কোন আমন্ত্রণপত্র পাঠায়নি, কোথায় যেতে হবে তা বলে দেয়নি, অথচ কোটি কোটি মানুষ স্বইচ্ছায় মহাকুম্ভের উদ্দেশে রওনা হয়েছেন, পবিত্র অবগাহনের মাধ্যমে নিজেকে আশীর্বাদধন্য বলে মনে করেছেন।

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পবিত্র স্থানের পর প্রত্যেকের মুখে যে অপার আনন্দ ও তৃপ্তি আমি প্রত্যক্ষ করেছি তা কোনদিনই ভোলার নয়। মহিলা, বয়স্কজনেরা, আমাদের দিব্যাঙ্গ ভাই ও বোনেরা – প্রত্যেকেই ঠিক সঙ্গমে পৌঁছোনোর রাস্তা খুজে পেয়েছেন।

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ভারতের যুবসম্প্রদায় স্বতঃস্ফূর্তভাবে এই আয়োজনে সামিল হয়েছেন, যা অত্যন্ত আনন্দের বিষয়। মহাকুম্ভে তরুণ প্রজন্মের উপস্থিতি এক নতুন বার্তা দিয়েছে – আমাদের গৌরবোজ্জ্বল সংস্কৃতি এবং ঐতিহ্যকে তাঁরা এগিয়ে নিয়ে যাবেন। একে সংরক্ষণ করার বিষয়ে নিজ নিজ দায়িত্ব-কর্তব্য সম্পর্কে তাঁরা ওয়াকিবহাল হয়েছেন এবং এই দায়িত্ব পালনে অঙ্গীকারবদ্ধ হয়েছেন।

মহাকুম্ভ উপলক্ষে প্রয়াগরাজের বিপুল জনসমাগম নতুন এক রেকর্ড তৈরি করেছে। কিন্তু শারীরিক ভাবে উপস্থিত না হয়েও কোটি কোটি মানুষ এই উপলক্ষে এখানে মানসিক ভাবে সমাবেত হন। ভক্তরা যে পবিত্র জল নিয়ে নিজ নিজ গন্তব্যে ফিরে গেছেন, সেই জল লক্ষ লক্ষ মানুষের আধ্যাত্মিক ভাবনার উৎসে পরিণত হয়েছে। মহাকুম্ভ ফেরত বহু পূণ্যার্থীকে নিজ নিজ গ্রামে সসম্মানে বরণ করে নেওয়া হয়েছে, সমাজ তাঁদের সম্মানিত করেছে।

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গত কয়েক সপ্তাহ ধরে প্রয়াগরাজে যা ঘটেছে তা অভূতপূর্ব। এর মাধ্যমে আগামীদিনের দেশ গঠনের ভিত্তিপ্রস্তর স্থাপিত হয়েছে।

কেউ ভাবতেও পারেননি এত বিপুল সংখ্যক তীর্থযাত্রী এখানে জড়ো হবেন। কুম্ভের অতীতের অভিজ্ঞতার ওপর ভিত্তি করে এখানে কতজন আসতে পারেন, সেবিষয়ে প্রশাসন কিছু হিসেব-নিকেশ করেছিল, কিন্তু সেই প্রত্যাশাকে ছাড়িয়ে বহু মানুষ এখানে এসেছেন।

মার্কিন যুক্তরাষ্ট্রে যতজন বসবাস করেন তার প্রায় দ্বিগুণ মানুষ একতার এই মহাকুম্ভে এসেছিলেন।

কোটি কোটি উৎসাহী অংশগ্রহণকারী ভারতবাসীর বিষয়ে আধ্যাত্মিক জগতের বিশেষজ্ঞরা যদি পর্যালোচনা করেন, তাহলে তাঁরা দেখবেন নিজ ঐতিহ্যে গর্বিত দেশবাসী এখন নতুন এক উদ্দীপনায় ভরপুর হয়ে উঠেছেন। আমি তাই মনে করি নতুন এক যুগের সূচনা হয়েছে, যা নতুন ভারতের ভবিষ্যতের পরিকল্পনা করবে।

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হাজার হাজার বছর ধরে ভারতের জাতীয় ভাবনাকে মহাকুম্ভ শক্তিশালী করেছে। প্রতিটি পূর্ণ কুম্ভে সাধু-সন্ত, বিদ্বান ব্যক্তি এবং পণ্ডিতেরা জড়ো হতেন। তাঁরা সেই সময়ে সমাজের বিভিন্ন বিষয় নিয়ে মত বিনিময় করতেন। তাঁদের আলোচনার ওপর ভিত্তি করে দেশ এবং সমাজ নতুন এক দিশায় এগিয়ে চলতো। প্রতি ৬ বছর পর অর্ধকুম্ভের সময় গৃহীত নীতিগুলি পর্যালোচনা করা হতো। ১৪৪ বছর পর ১২টি পূর্ণ কুম্ভের শেষে সেকেলে ঐতিহ্যগুলিকে বাতিল করে দেওয়া হতো, নতুন নতুন ধারণা যুক্ত হতো, ভবিষ্যতের জন্য নতুন নতুন রীতি-নীতি কার্যকর করা হতো।

১৪৪ বছর পর এই মহাকুম্ভে ভারতের উন্নয়নযাত্রা সম্পর্কে আমাদের সাধু-সন্ন্যাসীরা নতুন এক বার্তা দিয়েছেন। সেই বার্তা হল বিকশিত অর্থাৎ উন্নত ভারত গড়তে হবে।

একতার এই মহাকুম্ভে ধনী, দরিদ্র নির্বিশেষে , তরুণ বা প্রবীণ, গ্রামবাসী বা শহরের বাসিন্দা, দেশ-বিদেশের মানুষ, পূর্ব-পশ্চিম, উত্তর-দক্ষিণ – যে কোন প্রান্তের মানুষ এখানে মিলিত হয়েছেন। জাত, ধর্ম, নীতি, আদর্শ এ সব কিছু অগ্রাহ্য করে সঙ্গমে তাঁরা সমবেত হয়েছেন। এটি আসলে এক ভারত, শ্রেষ্ঠ ভারত ভাবনার প্রতিফলন, যেখানে কোটি কোটি মানুষের আস্থা রয়েছে। আর এখন আমরা সেই একই উৎসাহ, উদ্দীপনায় উন্নত ভারত গড়তে ব্রতী হব।

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এই প্রসঙ্গে আমার ভগবান কৃষ্ণের সেই উপাখ্যানটি মনে পড়ছে। মা যশোদা তাঁকে মুখ খুলে হাঁ করতে বললে, তিনি যখন মুখ খুলেছিলেন, তখন তাঁর মা সমগ্র বিশ্ব ব্রহ্মান্ড প্রত্যক্ষ করেন। একই ভাবে এই মহাকুম্ভে দেশ-বিদেশের মানুষ ভারতের সম্মিলিত শক্তির সম্ভাবনাকে প্রত্যক্ষ করেছেন। আমাদের আত্মপ্রত্যয়ী হয়ে, একনিষ্ঠ ভাবে উন্নত ভারত গড়তে হবে।

অতীতে ভক্তি আন্দোলনের সময় সাধু-সন্ন্যাসীরা দেশ জুড়ে আমাদের ঐক্যবদ্ধ সংকল্পকে চিহ্নিত করে তাকে কাজে লাগাতে উৎসাহিত করেছিলেন। আমাদের ঐক্যবদ্ধ প্রয়াসের শক্তি সম্পর্কে স্বামী বিবেকানন্দ থেকে শ্রী অরবিন্দ — প্রত্যেক মহান চিন্তাবিদ মনে করিয়ে দিয়েছেন। স্বাধীনতা আন্দোলনের সময় মহাত্মা গান্ধীও সেই অভিজ্ঞতা লাভ করেন। স্বাধীনতা উত্তর যুগে এই সম্মিলিত শক্তিকে যদি যথাযথ ভাবে স্বীকৃতি দেওয়া হতো, তাহলে তা প্রত্যেকের কল্যাণে ব্যবহার করা যেত। ফল স্বরূপ নতুন এক স্বাধীন রাষ্ট্রের জন্য তা গুরুত্বপূর্ণ এক শক্তি হিসেবে কাজে লাগান যেতো। দুর্ভাগ্যজনক ভাবে সেই শক্তিকে স্বীকৃতি দেওয়া হয়নি। তবে, বর্তমানে উন্নত ভারত গড়তে যে ভাবে জনগণের সম্মিলিত শক্তি আত্মপ্রকাশ করছে তা দেখে আমি আনন্দিত।

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বৈদিক যুগ থেকে বিবেকানন্দ , প্রাচীন যুগের নীতি থেকে আধুনিক যুগের কৃত্রিম উপগ্রহ – দেশের মহান রীতি-নীতি সবসময়ই জাতি গঠনে সহায়ক হয়েছে। নাগরিক হিসেবে আমি চাইবো আমাদের পূর্বপুরুষ এবং সাধু-সন্ন্যাসীদের কর্ম তৎপরতা অনুপ্রেরণার নতুন উৎস হোক। একতার এই মহাকুম্ভ নতুন নতুন সংকল্পকে বাস্তবায়িত করতে সহায়তা করুক। আসুন আমরা ঐক্যকে আমাদের পথপ্রদর্শক নীতি হিসেবে গ্রহণ করি। দেশ সেবা আসলে অধ্যাত্ম সেবার সমার্থক – এই ভাবনায় আমরা এগিয়ে চলি।

কাশীতে আমার নির্বাচনী প্রচারের সময়কালে আমি বলেছিলাম, “মা গঙ্গার আহ্বানে আমি এখানে এসেছি”। এটি নিছক কোন আবেগ ছিল না। এর মধ্য দিয়ে পবিত্র নদীগুলিকে পরিষ্কার করার ক্ষেত্রে আমাদের দায়বদ্ধতার বিষয়টি অন্তর্নিহীত ছিল। প্রয়াগরাজে গঙ্গা, যমুনা এবং সরস্বতী নদীর সঙ্গমে দাঁড়িয়ে আমার সেই সংকল্প আরও দৃঢ় হয়েছে। আমাদের নদীগুলির পরিচ্ছন্নতা বজায় রাখার সঙ্গে নিজেদের জীবনযাত্রা যুক্ত রয়েছে। তাই বড় বা ছোট যেরকমেরই নদী হোক সেই নদীকে জীবনদায়ী মাতা হিসেবে আমরা পুজো করবো। আমাদের নদীগুলিকে পরিচ্ছন্ন রাখার ক্ষেত্রে যে উদ্যোগ আমরা নিয়েছি, এই মহাকুম্ভ তাকে আরও অনুপ্রাণিত করেছে।

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আমি জানি এধরনের একটি বৃহৎ কর্মকান্ডকে বাস্তবায়িত করা সহজ কোন কাজ নয়। আমাদের নিষ্ঠায় কোন ঘাটতি থাকলে তার জন্য আমি মা গঙ্গা, মা যমুনা এবং মা সরস্বতীর কাছে ক্ষমাপ্রার্থনা করছি। আধ্যাত্মিক চেতনার প্রতিমূর্তি জনতা জনার্দনকে পরিষেবা দেওয়ার ক্ষেত্রে আমাদের তরফে যদি কোনরকমের খামতি থাকে, তার জন্য আমি সকলের কাছে ক্ষমা প্রার্থনা করছি।

এই মহাকুম্ভে অগণিত মানুষ যে আধ্যাত্মিক চেতনায় জড়ো হয়েছিলেন, তাঁদের পরিষেবা দেওয়ার ক্ষেত্রে একই রকমের ভাবনায় আমরা কাজ করেছি। উত্তর প্রদেশের সাংসদ হিসেবে আমি বলতে চাই যোগীজির নেতৃত্বে প্রশাসন এবং জনসাধারণ যে ভাবে এই একতার মহাকুম্ভকে সফল করে তুলেছেন তার জন্য আমি গর্বিত। রাজ্য অথবা কেন্দ্র, প্রশাসক অথবা শাসক – কারোর পক্ষে একক ভাবে এই আয়োজন সফল করা সম্ভব নয়। নিকাশী ব্যবস্থার সঙ্গে যুক্ত কর্মী, পুলিশ, নৌকো চালক, গাড়ি চালক, খাদ্য সরবরাহকারী - প্রত্যেকে একনিষ্ঠ সেবক হিসেবে এখানে নিরলস ভাবে কাজ করে গেছেন। প্রয়াগরাজের জনসাধারণ নিজেদের হাজারও অসুবিধা সত্বেও যে ভাবে তীর্থযাত্রীদের স্বাগত জানিয়েছেন, তা এককথায় অনবদ্য। আমি প্রয়াগরাজের জনসাধারণ সহ উত্তরপ্রদেশের প্রত্যেককে আন্তরিক কৃতজ্ঞতা জানাই। তাঁরা এক অসাধারণ কাজ করেছেন।

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আমাদের দেশের উজ্জ্বল ভবিষ্যতের বিষয়ে আমার সবসময়ই অটুট আস্থা রয়েছে। এবারের মহাকুম্ভ প্রত্যক্ষ করে সেই আস্থা বহুগুণ শক্তিশালী হয়েছে।

যেভাবে ১৪০ কোটি ভারতবাসী একতার মহাকুম্ভকে আন্তর্জাতিক এক কর্মসূচিতে পরিণত করেছেন, তা অবিশ্বাস্য। আমাদের জনগণের নিষ্ঠা, অধ্যবসায় এবং উদ্যোগে আমি আপ্লুত। দেশবাসীর এই সম্মিলিত প্রয়াসের মধ্য দিয়ে যে সাফল্য আমরা অর্জন করেছি, আমি তা শ্রী সোমনাথকে নিবেদন করবো। দ্বাদশ জ্যোতির্লিঙ্গের মধ্যে আমি প্রথমে সেখানে যাব এবং তার কাছে প্রত্যেক দেশবাসীর জন্য প্রার্থনা করবো।

মহাশিবরাত্রীর দিনে মহাকুম্ভ হয়তো আনুষ্ঠানিক ভাবে শেষ হয়েছে, কিন্তু গঙ্গার শাশ্বত প্রবাহের মতো আমাদের আধ্যাত্মিক শক্তি, জাতীয় ঐক্য ও চেতনা জাগ্রত থাকবে, যেগুলিকে মহাকুম্ভ আমাদের প্রত্যেকের মধ্যে সঞ্চারিত করেছে। এই শক্তি, ঐক্য ও চেতনা আমাদের আগামী প্রজন্মকেও অনুপ্রাণিত করবে।