QuoteOur tribal communities have faced several challenges. But, they are blessed with the strength to overcome any obstacle: PM
QuoteTribal communities should get their rights. No one has right to snatch their lands: PM
QuoteWith Vanbandhu Kalyan Yojana, we want to ensure that the tribal communities are not deprived of their priorities: PM Modi
QuoteIf there is someone who saved the forests it is our tribal community: PM Modi

देश के इतिहास में पहली बार, देश के कोने कोने से आए हुए आदिवासी भाइयों और बहनों के बीच राजधानी दिल्ली में दीपावली मनाई जाएगी। करीब चार दिन दिल्ली इस बात को अनुभव करेगा कि भारत कितना विशाल है, भारत कितनी विविधताओं से भरा हुआ है और जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले हमारे आदिवासी भाई बहनों में कितना सामर्थ्य है कितनी शक्ति है। देश के लिए कुछ न कुछ करने के लिए दूर-सुदूर जंगलों में रहते हुए भी वो कितना बड़ा योगदान दे रहे हैं ये दिल्ली पहली बार अनुभव करेगा।

भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। 'बीस गांव- बोली बदल जाए' ये हमारे यहां पुरानी कहावत है लेकिन हमने यहां उसकी झलक देखी। झलक भर ही थी, अगर देश भर से आए सभी आदिवासी कलाकारों को देखना होता तो शायद सुबह से शाम तय ये मेला यहां चलता रहता, तब भी शायद पूरा नहीं होता। कभी कभी शहर में रहने वाले लोगों पर छोटी सी भी मुसीबत आ जाए, उनकी इच्छा के विपरीत कुछ हो जाए, कल्पना के अनुकूल परिणाम न मिले, तो न जाने कितनी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, डिप्रेशन में चले जाते हैं और कुछ लोग तो आत्महत्या करने का रास्ता भी चुन लेते हैं। जरा मेरे इन आदिवासी भाइयों बहनों को देखिए, अगर अभाव की बात करें तो डगर डगर पर अभाव उन इलाकों में होता है, जिंदगी को हर पल जूझना पड़ता है। जिंदगी जीने के अवसर कम और जूझने में समय ज्यादा लगता है। लेकिन उसके बावजूद भी उन्होंने जिंदगी जीने का कैसा तरीका बनाया है - हर पल खुशी, हर पल नाचना-गाना, समूह में जीना, कदम से कदम मिलाकर चलना ये आदिवासी समाज ने अपने जेहन में उतार के रखा हुआ है। वे कठिनाइयों को भी जीना जानते हैं। कठिनाइयों में से भी जिंदगी में जुनून भरने का वो माद्दा रखते हैं।

मेरा ये सौभाग्य रहा कि जवानी के उत्तम वर्ष मुझे आदिवासियों के बीच सामाजिक कार्यों में खपाने का अवसर मिला था। आदिवासी जीवन को बहुत निकटता से देखने का मुझे सौभाग्य मिला है। जब आप बातें करते हो तो घंटे भर में बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से कोई शिकायत निकाल पाते हो। वे शिकायत करना जानते ही नहीं हैं। संकटों में जीना, अभाव के बीच आनंद को कैसे उभारना, ये हम शहर में रहने वालों को अगर सीखना है तो मेरे आदिवासी भाइयों से बड़ा कोई गुरु नहीं हो सकता है।

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कला और संगीत इनको अद्भुत देन होती है। अपनी बोली, अपनी परंपरा, अपनी वेशभूषा, उसमें भी समय अनुकूल नए रंग भरते जाना लेकिन अपनेपन को खोने नहीं देना ऐसी कला शायद ही कोई बता सकता है। ये सामर्थ्य अपने देश का है। ये सामर्थ्य हमारी जनशक्ति का परिचायक है और इसलिए भारत जैसे विशाल देश में इन विविधताओं को संजोए रखना, इन विविधताओं का आदर करना, इनका समन्वय करना और इन विविधताओं में भारत की एकता को गुलाबी फूल के रूप में अनुभव करना, यही देश की ताकत को बढ़ाता है।

हम लोगों को ज्यादा पता कभी होता नहीं है, जंगल की सामान्य चीजों से, जैसे अगर बांस ही ले लिया जाए, हमारे आदिवासी भाई बांस में से ऐसी ऐसी चीजें बनाते हैं कि फाइव स्टार होटल में उसे जगह मिल जाए तो मेहमान चकित रह जाते हैं कि वाह कैसे बना होगा? किसी मशीन से बना होगा क्या? जंगलों में आदिवासियों के द्वारा जो उत्पादित चीजें होती हैं जो सामान्य जीवन में काम आती हैं लेकिन उसकी जितनी बड़ी मात्रा में मार्केटिंग होनी चाहिए, ब्रांडिंग होनी चाहिए, आर्थिक दृष्टि से नए अवसर को पैदा करने वाला होना चाहिए, उस दिशा में हमें अभी भी बहुत करना बाकी है।

सारे देश से आदिवासी आए हैं। अपने इन उत्पादों को लेकर भी आए हैं। देश के कोने कोने में आदिवासी भाई बहन कैसी-कैसी चीजें उत्पादित करते हैं और हमारे घरों में, व्यापार में, दुकान में, सजावट में कैसे उसका उपयोग हो सकता है, उसके लिए बहुत बड़ा अवसर प्रगति मैदान में उपलब्ध हुआ है। जितनी बड़ी मात्रा में हम खरीद करेंगे वो जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासी भाई बहनों के जीवन में आर्थिक रूप से ताकत देगा। अवसर मात्र ये ही नहीं है कि दिल्ली सिर्फ उनके गीत संगीत को अनुभव करे, बल्कि उनके आर्थिक सामर्थ्य की जो ताकत है, उसको भी हम भली-भांति समझें और उस आर्थिक ताकत को बल दें, उस दिशा में हम प्रयास करें।

मुझे कुछ समय पहले सिक्किम जाने का अवसर मिला। वहां एक युवक युवती से मेरा परिचय हुआ। पहनावे से तो लगता था कि वे किसी बड़े शहर से आए हुए हैं। मैं उनके पास गया मैंने पूछा तो दोनों कह रहे थे दोनों अलग राज्यों से थे, दोनों अलग-अलग आईआईएम में पढ़े लिखे थे। मैंने कहा, यहां सिक्किम देखने आए हो क्या? उन्होंने कहा, “जी नहीं, हम तो डेढ़ साल से यहां रह रहे हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद हम सिक्किम चले आए और यहां पहाड़ों में रहने वाले जो हमारे गरीब किसान भाई हैं जो चीजें उत्पादित करते हैं उसकी हम पैकेजिंग करते हैं, ब्रांडिंग करते हैं और हम विदेशों में भेजने का काम करते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं? आईआईएम में पढ़े लिखे दो बच्चे उस ताकत को जान गए और उन्होंने अपना एक बहुत बड़ा स्टार्टअप वहां खड़ा कर दिया। दुनिया के बाजारों में वहां से प्रोडक्ट पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं।

अगर कोई जाता वहां तो पता नहीं चलता कि इतना सामर्थ्य पड़ा हुआ है? आज भी दुनिया में धीरे धीरे होलिस्टिक हेल्थकेयर की तरफ लोगों का ध्यान जाने लगा है। पारंपरिक चिकित्सा की तरफ दुनिया आकर्षित होने लगी है। हम आदिवासी भाइयों के बीच जाएं तो जंगलों से जड़ी बूटी लेकर के तुरंत दवाई बनाकर आपको दे देते हैं, “अच्छा भाई बुखार है चिंता मत करो घंटे भर में ठीक हो जाएगा”, और वो जड़ी बूटी से रस निकालकर के पिला देते हैं। ये कौन सी विधा इनके पास है?

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ये परंपरागत सामर्थ्य है जिसे हमें पहचानना, आधुनिक स्वरूप में ढालना, दुनिया जिस मेडिकल साइंस को समझती है उसमें उसको प्रतिबिंबित करना है। ये हमारी मेडिसिन जिसके धनी हमारे आदिवासी भाई बहन हैं, उनके माध्यम से हमें इस सारी शक्ति को जानने पहचानने और विश्व के सामने रखने का एक बहुत बड़ा अवसर है। ऐसे लोग भी यहां आए हैं जिन्हें जंगल में पड़ी हुई जड़ी-बूटियों के अंदर की औषधीय ताकत की पहचान है। उन चीजों का क्या उपयोग हो सकता है, उसे वो दिखा सकते हैं।

अभी यहां गुजरात के कलाकार अपनी कला दिखा रहे थे। एक डांग जिला है वहां, छोटा सा, आदिवासी बस्ती है। मैं बहुत वर्षों पहले वहां काम करता था। तब तो मेरा राजनीति से कोई लेना देना भी नहीं था। बीच में जब मुख्यमंत्री के तौर पर मेरा वहां जाना होता था तो मैं हैरान था, वहां एक अन्न पैदा होता है - नागली। ये आयरन रिच होता है। हमारे यहां कुपोषण, खासकर महिलाओं को जो समस्या रहती है, जिनमें आयरन की कमी होती है उकी पूर्ति के लिए नागली आयरन से भरपूर होता है। लेकिन आज से 30-35 साल पहले जब मैं जाता था तो काले रंग की नागली होती थी और उसकी जो रोटी बनाते थे, वो काली बनती थी। जब मेरा मुख्यमंत्री के तौर पर जाना हुआ तो मैंने स्वाभाविक कहा, हम तो नागली खाएंगे आए हैं तो, लेकिन इस बार वो नागली की रोटी सफेद थी। मुझे जरा आश्चर्य हुआ। दरअसल उन आदिवासियों ने उसमें कोई न कोई रिसर्च करके उसे काली से सफेद नागली के रूप में उत्पादित करने की दिशा में सफलता पाई थी।

यानी जो बड़े बड़े साइंटिस्ट जेनेटिक्स इंजीनियरिंग करते हैं, मेरा आदिवासी भाई जेनेटिक हस्तक्षे से परिवर्तन ला सकता है। मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि कितना सामर्थ्य पड़ा हुआ है। इस सामर्थ्य को हमें पहचानने की आवश्यकता है। हमारे देश में इतनी बड़ी आदिवासी जनसंख्या है लेकिन भारत सरकार में जनजातियों के लिए कोई अलग मंत्रालय नहीं था। मैं आज जब बड़े जनजातीय समुदाय के बीच खड़ा हूं तब बड़े आदरपूर्वक भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन करना चाहता हूं, उनका अभिनंदन करना चाहता हूं कि आजादी के पचास साल बाद पहली बार जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार बनी तब पहली बार जनजाति के लिए देश में अलग मंत्रालय बना और हमारे जुएल जी उसके पहले मंत्री हिंदुस्तान में बने।

तब से लेकर के जनजातीय क्षेत्रों के विकास, जनजातीय समुदायों के विकास, जनजातीय समाज की शक्ति को पहचानना, उसकी सामर्थ्य देने पर अलग अलग प्रकार के प्रकल्प चल रहे हैं। धन खर्च होता है लेकिन परिणाम नजर क्यों नहीं आता है? और सका मूल कारण यह है कि जब तक हम हमारी योजनाएं, खासकर जनजातीय समुदायों में, दिल्ली के एयर कंडीशन कमरों में बैठकर के या राज्यों की राजधानी के एयर कंडीशन कमरों में बैठकर हम उसके ख़ाके तैयार करेंगे तो जनजातीय समुदायों में हम जो चाहते हैं वो बदलाव हीं आ सकता है वो बदलाव तब आता है कि नीचे से ऊपर जनजातीय समुदाय अपने इलाके में क्या चाहता है, उसकी प्राथमिकता क्या है, उसके आधार पर अगर बजट का आवंटन होगा और समय सीमा में उन प्रकल्पों को पूरा करने के लिए, उन जनजातीय समुदायों को हिस्सेदार बनाने दिया जाएगा तो आप देखेंगे कि देखते ही देखते बदलाव आना शुरू हो जाएगा।

हम भारत सरकार की वन बंधु कल्याण योजना लाए हैं। आज जनजातीय समुदाय के बीच करीब सरकार के 28 से ज्यादा विभाग काम का कोई न कोई जिम्मा लेकर बैठे हैं और होता क्या है? एक विभाग एक गांव में काम करता है, दूसरा विभाग दूसरे गांव में काम करता है, न कोई परिवर्तन दिखता है न कोई प्रभाव नजर आता है। और इसलिए वन बंधु कल्याण योजना के अंतर्गत इन सभी विभागों की योजनाएं.. योजनाएं चलती रहें लेकिन केंद्रित रूप से उन जनजातीय समुदाओं की आवश्यकता को प्राथमिकता देते हुए प्रकल्पों को लागू करे, उस पर एक बड़ा काम चल रहा है, जिसके अच्छे परिणाम नजर आ रहे हैं अब जनजातीय समुदाय भागीदार हो रहा है वो निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बन रहा है। ये मूलभूत परिवर्तन है और इसके कारण धन का सही-सही उपयोग, उसके विकास के लिए होना है

हमारे देश में कभी बड़े-बड़े लोगों को लगता है, बड़े-बड़े पर्यावरणविद् मिलते हैं तो कहते हैं जंगलों की रक्षा करनी है, वनों की रक्षा करनी है मैं अनुभव के साथ कता हूं अगर वनों को किसी ने बचाया है तो मेरे जनजातीय समुदायों ने बचाया है वो सब दे देगा लेकिन जंगल को तबाह नहीं होने देगा ये उसके संस्कार में होता है अगर हमें जंगलों की रक्षा करनी है तो जनजातीय समुदायों से बड़ा हमारा कोई रक्षक नहीं हो सकता है। इस विचार को प्राथमिकता देना के लिए हमारा प्रयास है

सालों से, पीढ़ियों से, जंगल को बचाए रखते हुए अपना पेट पालने के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में वो खेती करता है उसके पास कोई कागज है, न लिखा-पट्टी है, न किसी का कुछ दिया हुआ है, जो है वो  सदियों से अपने पूर्वजों का परिणाम है लेकिन अब सरकारें बदल रही हैं, संविधान, कानून, नियम और उसके कारण कभी-कभी जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले हमारे आदिवासी भाइयों को परेशानी झेलनी पड़ती है भारत सरकार लगातार राज्यों के सहयोग से आदिवासियों को जमीन के पट्‌टे देने का बड़ा अभियान चला रही है और दिवासियों को उनका हक मिलना चाहिए। ये हमारी प्राथमिकता है। आदिवासियों की जमीन छीनने का इस देश में किसी को अधिकार नहीं होना चाहिए, किसी को अवसर नहीं होना चाहिए, ये हमारी प्रतिबद्धता है। और उस दिशा में सरकार कठोर से कठोर कार्रवाही करने के पक्ष में हैं और उसको हम कर रहे हैं।

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उसी प्रकार से आदिवासियों को जमीन का हक भी मिलना चाहिए क्योंकि जमीन ही उसकी जिंदगी है, जंगल ही उसकी जिंदगी है, जंगल ही उसका ईश्वर है,  उपासना है, उससे उसको अलग नहीं किया जा सकता। हमारे देश में प्राकृतिक संपदा है चाहे कोयला है, चाहे लौह अयस्क हों और अन्य प्राकृतिक संपदाएं हों, ज्यादातर हमारी प्राकृतिक संपदाएं और जंगल और जनजातीय समुदाय तीनों साथ-साथ हैं। जहां जंगल हैं वहां जनजातीय समुदाय हैं और उन जंगलों में ही प्राकृतिक संपदाएं हैं। अब कोयले के बिना तो चलना नहीं उसे तो निकालना ही पड़ेगा लौह अयस्क के बिना चलना नहीं, उसे निकालना तो पड़ेगा देश को आगे बढ़ाना है तो संपदा का वैल्यू एडिशन करना ही पड़ेगा। लेकिन वो जनजातीय समुदाय का शोषण करके नहीं होना चाहिए, उनके हकों को अबाधित रखते हुए होना चाहिए। पहली बार पिछले बजट में भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया जिसका सीधा-सीधा लाभ जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले हमारे जनजातीय समुदाय को मिला हमने क्या किया? ये जंगलों से जो भी प्राकृतिक संपदा निकलती है, जो खनिज संपदा निकलती हैं उस पर कुछ प्रतिशत टैक्स लगाया, उस टैक्स का एक फाउंडेशन बनाया हर जिले का अलग फाउंडेशन। उस जिले के सरकारी अधिकारी उसके मुखिया रखे गए। और सरकार ने फैसला किया कि इस फाउंडेशन में जो पैसे आएंगे, वो उसी इलाके के जनजातीय समुदाय के कल्याण के लिए खर्च किए जाएगा। स्कूल भी बनेंगे तो उनके लिए बनेंगे, अस्पताल बनेगा तो उनके लिए बनेगा, रोड बनेगा तो उनके लिए बनेगा, धर्मशाला बनेगी तो उनके लिए बनेगी। उन्हीं समुदायों के लिए

जब मुझे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मिले डॉ. रमन सिंह, उन्होंने कहा, मोदी जी ऐसा बड़ा निर्णय आपने किया है कि हमारे जो सात जिले हैं, उन सात जिलों में इस टैक्स के कारण इतने पैसे आने वाले हैं कि आज जो आम बजट खर्च करते हैं उससे अनेक गुना ज्यादा वो पैसे होंगे। एक समय ऐसा आएगा कि हमें इन सात जिलों में राज्य की तिजोरी से एक पैसा नहीं देना पड़ेगा। इतने पैसे जनजातीय समुदाय के लिए खर्च होने वाले हैं। हजारों-करोड़ रुपये का लाभ इस फाउंडेशन से मिलेगा। जबकि पहले वहां से कोयला भी चला जाता था, लौह अयस्क भी चला जाता था लेकिन वहां रहने वाले जनजातीय समुदाय को लाभ नहीं मिलता था। अब सीधा लाभ उसको मिलेगा उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

हम एक बात को महत्व दे रहे हैं हमें हमारे जंगलों को बचाना है, अपने जनजातीय समुदाय की जमीन को बचाना है, उनके जो आर्थिक आय के साधन हैं उनको भी सुरक्षित रखना है इसलिए हम आधुनिक तकनीक के द्वारा अंडरग्रांउड माइनिंग को बल देना चाहते हैं ताकि ऊपर जंगल वैसा का वैसा रहे, जिंदगी वैसी की वैसी रहे। नीचे जमीन में गहरे जाकर कोयला वगैरह निकाला जाए ताकि वहां के जीवन को कोई तकलीफ न हो। उसी आधुनिक तकनीक की दिशा में भारत सरकार प्रतिबद्ध है

दूसरा, आधुनिक तकनीक के द्वारा कोल गैसिफिकेशन करना, यानी भूगर्भ में ही कोयले से गैस बनाकर उसे निकाला जाए ताकि वहां के पर्यावरण को भी कोई नुकसान न हो, वहां के हमारे जनजातीय समुदाय को भी कोई नुकसान न हो।

ऐसे अनेक प्रकल्प जिनके द्वारा जनजातीय समुदाय का कल्याण करने का हमारा प्रयास है। सरकार ने एक रर्बन (ग्रामीण-शहरी) मिशन हाथ में लिया है। इस मिशन के द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में जहां जनजातीय समुदाय रहते हैं वहां पर नए ग्रोथ सेंटर तैयार किए जा रहे हैं। जहां आर्थिक गतिविधि के केंद्र विकसित हों आज भी आदिवासियों के अलग-अलग जगह बाजार लगते हैं। वो वहां जाते हैं, अपना माल बेचते हैं और बदले में दूसरा माल लेकर आते हैं। बार्टर सिस्टम आज भी जंगलों में चलता हैलेकिन हम चाहते हैं कि 50-100 आदिवासी गांवों के बीच में एक-एक नया विकास केंद्र विकसित हो। जो आने वाले दिनों में आर्थिक गतिविधि का केंद्र बने।गल बगल के गांवों के लोग अपने उत्पादों को वहां बेचने के लिए आएं। अच्छी शिक्षा का वो केंद्र बने। अच्छे आरोग्य की सेवाओं का वो केंद्र बने। और अगल बगल के 50-100 जो गांव हैं जो आसानी से उस व्यवस्था का उपयोग करें।

वो स्थान ऐसे हों जहां आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हों। कभी शहर का शिक्षक जाने को तैयार नहीं होता आदिवासी बस्ती में, कभी डॉक्टर जाने को तैयार नहीं होता। ऐसे में इन रर्बन सेंटर पर वो सुविधाएं हों ताकि हमारे शहर के लोगों को वहां सरकारी नौकरी मिलती है तो वहां रहकर काम करना पसंद करें। ऐसे 100 से ज्यादा आदिवासी इलाकों में रर्ब सेंटर खड़े करने का हमारा प्रयास है जो नए आर्थिक ग्रोथ सेंटर के रूप में काम करेंगे। जहां पर वहां के जीवन की आत्मा जनजातीय जीवन की होगी, लेकिन वहां सुविधाएं जो शहर के लोगों को मिलती हैं वो सारी उपलब्ध होंगी। ऐसे ग्रोथ सेंटर का एक जाल बिछाने की दिशा में भारत सरकार काम कर रही है.

आज देश भर से आए हुए मेरे आदिवासी जनजातीय समुदायों के भाइयों बहनों, दिल्ली में आपका ये अनुभव आनंद उमंग से भरा हुआ हो, आप अपनी जो कला, कृतियां और उत्पाद लेकर आए हैं वो दिल्ली वासियों के दिल में जगह बना लें, व्यापारियों के दिल में जगह बना ले, एक नए आर्थिक क्षेत्र के द्वार खुल जाए, ये दीपावली आपकी जिंदगी में और नया प्रकाश लाने वाली बने, विकास का प्रकाश लेकर आए, ऐसी दिवाली के लिए मैं आप सबको शुभकमाएं देता हूं। और आप सब इस पावन त्योहार के निमित्त यहां इतनी बड़ी संख्या में आशीर्वाद देने के लिए आए, मैं सिर झुकाकर, आपको नमन करते हुए, अपनी वाणी को विराम देता हूं

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Today, India is not just a Nation of Dreams but also a Nation That Delivers: PM Modi in TV9 Summit
March 28, 2025
QuoteToday, the world's eyes are on India: PM
QuoteIndia's youth is rapidly becoming skilled and driving innovation forward: PM
Quote"India First" has become the mantra of India's foreign policy: PM
QuoteToday, India is not just participating in the world order but also contributing to shaping and securing the future: PM
QuoteIndia has given Priority to humanity over monopoly: PM
QuoteToday, India is not just a Nation of Dreams but also a Nation That Delivers: PM

श्रीमान रामेश्वर गारु जी, रामू जी, बरुन दास जी, TV9 की पूरी टीम, मैं आपके नेटवर्क के सभी दर्शकों का, यहां उपस्थित सभी महानुभावों का अभिनंदन करता हूं, इस समिट के लिए बधाई देता हूं।

TV9 नेटवर्क का विशाल रीजनल ऑडियंस है। और अब तो TV9 का एक ग्लोबल ऑडियंस भी तैयार हो रहा है। इस समिट में अनेक देशों से इंडियन डायस्पोरा के लोग विशेष तौर पर लाइव जुड़े हुए हैं। कई देशों के लोगों को मैं यहां से देख भी रहा हूं, वे लोग वहां से वेव कर रहे हैं, हो सकता है, मैं सभी को शुभकामनाएं देता हूं। मैं यहां नीचे स्क्रीन पर हिंदुस्तान के अनेक शहरों में बैठे हुए सब दर्शकों को भी उतने ही उत्साह, उमंग से देख रहा हूं, मेरी तरफ से उनका भी स्वागत है।

साथियों,

आज विश्व की दृष्टि भारत पर है, हमारे देश पर है। दुनिया में आप किसी भी देश में जाएं, वहां के लोग भारत को लेकर एक नई जिज्ञासा से भरे हुए हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो देश 70 साल में ग्यारहवें नंबर की इकोनॉमी बना, वो महज 7-8 साल में पांचवे नंबर की इकोनॉमी बन गया? अभी IMF के नए आंकड़े सामने आए हैं। वो आंकड़े कहते हैं कि भारत, दुनिया की एकमात्र मेजर इकोनॉमी है, जिसने 10 वर्षों में अपने GDP को डबल किया है। बीते दशक में भारत ने दो लाख करोड़ डॉलर, अपनी इकोनॉमी में जोड़े हैं। GDP का डबल होना सिर्फ आंकड़ों का बदलना मात्र नहीं है। इसका impact देखिए, 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, और ये 25 करोड़ लोग एक नियो मिडिल क्लास का हिस्सा बने हैं। ये नियो मिडिल क्लास, एक प्रकार से नई ज़िंदगी शुरु कर रहा है। ये नए सपनों के साथ आगे बढ़ रहा है, हमारी इकोनॉमी में कंट्रीब्यूट कर रहा है, और उसको वाइब्रेंट बना रहा है। आज दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी हमारे भारत में है। ये युवा, तेज़ी से स्किल्ड हो रहा है, इनोवेशन को गति दे रहा है। और इन सबके बीच, भारत की फॉरेन पॉलिसी का मंत्र बन गया है- India First, एक जमाने में भारत की पॉलिसी थी, सबसे समान रूप से दूरी बनाकर चलो, Equi-Distance की पॉलिसी, आज के भारत की पॉलिसी है, सबके समान रूप से करीब होकर चलो, Equi-Closeness की पॉलिसी। दुनिया के देश भारत की ओपिनियन को, भारत के इनोवेशन को, भारत के एफर्ट्स को, जैसा महत्व आज दे रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। आज दुनिया की नजर भारत पर है, आज दुनिया जानना चाहती है, What India Thinks Today.

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साथियों,

भारत आज, वर्ल्ड ऑर्डर में सिर्फ पार्टिसिपेट ही नहीं कर रहा, बल्कि फ्यूचर को शेप और सेक्योर करने में योगदान दे रहा है। दुनिया ने ये कोरोना काल में अच्छे से अनुभव किया है। दुनिया को लगता था कि हर भारतीय तक वैक्सीन पहुंचने में ही, कई-कई साल लग जाएंगे। लेकिन भारत ने हर आशंका को गलत साबित किया। हमने अपनी वैक्सीन बनाई, हमने अपने नागरिकों का तेज़ी से वैक्सीनेशन कराया, और दुनिया के 150 से अधिक देशों तक दवाएं और वैक्सीन्स भी पहुंचाईं। आज दुनिया, और जब दुनिया संकट में थी, तब भारत की ये भावना दुनिया के कोने-कोने तक पहुंची कि हमारे संस्कार क्या हैं, हमारा तौर-तरीका क्या है।

साथियों,

अतीत में दुनिया ने देखा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब भी कोई वैश्विक संगठन बना, उसमें कुछ देशों की ही मोनोपोली रही। भारत ने मोनोपोली नहीं बल्कि मानवता को सर्वोपरि रखा। भारत ने, 21वीं सदी के ग्लोबल इंस्टीट्यूशन्स के गठन का रास्ता बनाया, और हमने ये ध्यान रखा कि सबकी भागीदारी हो, सबका योगदान हो। जैसे प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती है। देश कोई भी हो, इन आपदाओं से इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान होता है। आज ही म्यांमार में जो भूकंप आया है, आप टीवी पर देखें तो बहुत बड़ी-बड़ी इमारतें ध्वस्त हो रही हैं, ब्रिज टूट रहे हैं। और इसलिए भारत ने Coalition for Disaster Resilient Infrastructure - CDRI नाम से एक वैश्विक नया संगठन बनाने की पहल की। ये सिर्फ एक संगठन नहीं, बल्कि दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार करने का संकल्प है। भारत का प्रयास है, प्राकृतिक आपदा से, पुल, सड़कें, बिल्डिंग्स, पावर ग्रिड, ऐसा हर इंफ्रास्ट्रक्चर सुरक्षित रहे, सुरक्षित निर्माण हो।

साथियों,

भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए हर देश का मिलकर काम करना बहुत जरूरी है। ऐसी ही एक चुनौती है, हमारे एनर्जी रिसोर्सेस की। इसलिए पूरी दुनिया की चिंता करते हुए भारत ने International Solar Alliance (ISA) का समाधान दिया है। ताकि छोटे से छोटा देश भी सस्टेनबल एनर्जी का लाभ उठा सके। इससे क्लाइमेट पर तो पॉजिटिव असर होगा ही, ये ग्लोबल साउथ के देशों की एनर्जी नीड्स को भी सिक्योर करेगा। और आप सबको ये जानकर गर्व होगा कि भारत के इस प्रयास के साथ, आज दुनिया के सौ से अधिक देश जुड़ चुके हैं।

साथियों,

बीते कुछ समय से दुनिया, ग्लोबल ट्रेड में असंतुलन और लॉजिस्टिक्स से जुड़ी challenges का सामना कर रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भी भारत ने दुनिया के साथ मिलकर नए प्रयास शुरु किए हैं। India–Middle East–Europe Economic Corridor (IMEC), ऐसा ही एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। ये प्रोजेक्ट, कॉमर्स और कनेक्टिविटी के माध्यम से एशिया, यूरोप और मिडिल ईस्ट को जोड़ेगा। इससे आर्थिक संभावनाएं तो बढ़ेंगी ही, दुनिया को अल्टरनेटिव ट्रेड रूट्स भी मिलेंगे। इससे ग्लोबल सप्लाई चेन भी और मजबूत होगी।

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साथियों,

ग्लोबल सिस्टम्स को, अधिक पार्टिसिपेटिव, अधिक डेमोक्रेटिक बनाने के लिए भी भारत ने अनेक कदम उठाए हैं। और यहीं, यहीं पर ही भारत मंडपम में जी-20 समिट हुई थी। उसमें अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का परमानेंट मेंबर बनाया गया है। ये बहुत बड़ा ऐतिहासिक कदम था। इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी, जो भारत की प्रेसीडेंसी में पूरी हुई। आज ग्लोबल डिसीजन मेकिंग इंस्टीट्यूशन्स में भारत, ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज़ बन रहा है। International Yoga Day, WHO का ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए ग्लोबल फ्रेमवर्क, ऐसे कितने ही क्षेत्रों में भारत के प्रयासों ने नए वर्ल्ड ऑर्डर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है, और ये तो अभी शुरूआत है, ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर भारत का सामर्थ्य नई ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा है।

साथियों,

21वीं सदी के 25 साल बीत चुके हैं। इन 25 सालों में 11 साल हमारी सरकार ने देश की सेवा की है। और जब हम What India Thinks Today उससे जुड़ा सवाल उठाते हैं, तो हमें ये भी देखना होगा कि Past में क्या सवाल थे, क्या जवाब थे। इससे TV9 के विशाल दर्शक समूह को भी अंदाजा होगा कि कैसे हम, निर्भरता से आत्मनिर्भरता तक, Aspirations से Achievement तक, Desperation से Development तक पहुंचे हैं। आप याद करिए, एक दशक पहले, गांव में जब टॉयलेट का सवाल आता था, तो माताओं-बहनों के पास रात ढलने के बाद और भोर होने से पहले का ही जवाब होता था। आज उसी सवाल का जवाब स्वच्छ भारत मिशन से मिलता है। 2013 में जब कोई इलाज की बात करता था, तो महंगे इलाज की चर्चा होती थी। आज उसी सवाल का समाधान आयुष्मान भारत में नजर आता है। 2013 में किसी गरीब की रसोई की बात होती थी, तो धुएं की तस्वीर सामने आती थी। आज उसी समस्या का समाधान उज्ज्वला योजना में दिखता है। 2013 में महिलाओं से बैंक खाते के बारे में पूछा जाता था, तो वो चुप्पी साध लेती थीं। आज जनधन योजना के कारण, 30 करोड़ से ज्यादा बहनों का अपना बैंक अकाउंट है। 2013 में पीने के पानी के लिए कुएं और तालाबों तक जाने की मजबूरी थी। आज उसी मजबूरी का हल हर घर नल से जल योजना में मिल रहा है। यानि सिर्फ दशक नहीं बदला, बल्कि लोगों की ज़िंदगी बदली है। और दुनिया भी इस बात को नोट कर रही है, भारत के डेवलपमेंट मॉडल को स्वीकार रही है। आज भारत सिर्फ Nation of Dreams नहीं, बल्कि Nation That Delivers भी है।

साथियों,

जब कोई देश, अपने नागरिकों की सुविधा और समय को महत्व देता है, तब उस देश का समय भी बदलता है। यही आज हम भारत में अनुभव कर रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। पहले पासपोर्ट बनवाना कितना बड़ा काम था, ये आप जानते हैं। लंबी वेटिंग, बहुत सारे कॉम्प्लेक्स डॉक्यूमेंटेशन का प्रोसेस, अक्सर राज्यों की राजधानी में ही पासपोर्ट केंद्र होते थे, छोटे शहरों के लोगों को पासपोर्ट बनवाना होता था, तो वो एक-दो दिन कहीं ठहरने का इंतजाम करके चलते थे, अब वो हालात पूरी तरह बदल गया है, एक आंकड़े पर आप ध्यान दीजिए, पहले देश में सिर्फ 77 पासपोर्ट सेवा केंद्र थे, आज इनकी संख्या 550 से ज्यादा हो गई है। पहले पासपोर्ट बनवाने में, और मैं 2013 के पहले की बात कर रहा हूं, मैं पिछले शताब्दी की बात नहीं कर रहा हूं, पासपोर्ट बनवाने में जो वेटिंग टाइम 50 दिन तक होता था, वो अब 5-6 दिन तक सिमट गया है।

साथियों,

ऐसा ही ट्रांसफॉर्मेशन हमने बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में भी देखा है। हमारे देश में 50-60 साल पहले बैंकों का नेशनलाइजेशन किया गया, ये कहकर कि इससे लोगों को बैंकिंग सुविधा सुलभ होगी। इस दावे की सच्चाई हम जानते हैं। हालत ये थी कि लाखों गांवों में बैंकिंग की कोई सुविधा ही नहीं थी। हमने इस स्थिति को भी बदला है। ऑनलाइन बैंकिंग तो हर घर में पहुंचाई है, आज देश के हर 5 किलोमीटर के दायरे में कोई न कोई बैंकिंग टच प्वाइंट जरूर है। और हमने सिर्फ बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का ही दायरा नहीं बढ़ाया, बल्कि बैंकिंग सिस्टम को भी मजबूत किया। आज बैंकों का NPA बहुत कम हो गया है। आज बैंकों का प्रॉफिट, एक लाख 40 हज़ार करोड़ रुपए के नए रिकॉर्ड को पार कर चुका है। और इतना ही नहीं, जिन लोगों ने जनता को लूटा है, उनको भी अब लूटा हुआ धन लौटाना पड़ रहा है। जिस ED को दिन-रात गालियां दी जा रही है, ED ने 22 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक वसूले हैं। ये पैसा, कानूनी तरीके से उन पीड़ितों तक वापिस पहुंचाया जा रहा है, जिनसे ये पैसा लूटा गया था।

साथियों,

Efficiency से गवर्नमेंट Effective होती है। कम समय में ज्यादा काम हो, कम रिसोर्सेज़ में अधिक काम हो, फिजूलखर्ची ना हो, रेड टेप के बजाय रेड कार्पेट पर बल हो, जब कोई सरकार ये करती है, तो समझिए कि वो देश के संसाधनों को रिस्पेक्ट दे रही है। और पिछले 11 साल से ये हमारी सरकार की बड़ी प्राथमिकता रहा है। मैं कुछ उदाहरणों के साथ अपनी बात बताऊंगा।

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साथियों,

अतीत में हमने देखा है कि सरकारें कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिनिस्ट्रीज में accommodate करने की कोशिश करती थीं। लेकिन हमारी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही कई मंत्रालयों का विलय कर दिया। आप सोचिए, Urban Development अलग मंत्रालय था और Housing and Urban Poverty Alleviation अलग मंत्रालय था, हमने दोनों को मर्ज करके Housing and Urban Affairs मंत्रालय बना दिया। इसी तरह, मिनिस्ट्री ऑफ ओवरसीज़ अफेयर्स अलग था, विदेश मंत्रालय अलग था, हमने इन दोनों को भी एक साथ जोड़ दिया, पहले जल संसाधन, नदी विकास मंत्रालय अलग था, और पेयजल मंत्रालय अलग था, हमने इन्हें भी जोड़कर जलशक्ति मंत्रालय बना दिया। हमने राजनीतिक मजबूरी के बजाय, देश की priorities और देश के resources को आगे रखा।

साथियों,

हमारी सरकार ने रूल्स और रेगुलेशन्स को भी कम किया, उन्हें आसान बनाया। करीब 1500 ऐसे कानून थे, जो समय के साथ अपना महत्व खो चुके थे। उनको हमारी सरकार ने खत्म किया। करीब 40 हज़ार, compliances को हटाया गया। ऐसे कदमों से दो फायदे हुए, एक तो जनता को harassment से मुक्ति मिली, और दूसरा, सरकारी मशीनरी की एनर्जी भी बची। एक और Example GST का है। 30 से ज्यादा टैक्सेज़ को मिलाकर एक टैक्स बना दिया गया है। इसको process के, documentation के हिसाब से देखें तो कितनी बड़ी बचत हुई है।

साथियों,

सरकारी खरीद में पहले कितनी फिजूलखर्ची होती थी, कितना करप्शन होता था, ये मीडिया के आप लोग आए दिन रिपोर्ट करते थे। हमने, GeM यानि गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म बनाया। अब सरकारी डिपार्टमेंट, इस प्लेटफॉर्म पर अपनी जरूरतें बताते हैं, इसी पर वेंडर बोली लगाते हैं और फिर ऑर्डर दिया जाता है। इसके कारण, भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हुई है, और सरकार को एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की बचत भी हुई है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर- DBT की जो व्यवस्था भारत ने बनाई है, उसकी तो दुनिया में चर्चा है। DBT की वजह से टैक्स पेयर्स के 3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा, गलत हाथों में जाने से बचे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा फर्ज़ी लाभार्थी, जिनका जन्म भी नहीं हुआ था, जो सरकारी योजनाओं का फायदा ले रहे थे, ऐसे फर्जी नामों को भी हमने कागजों से हटाया है।

साथियों,

 

हमारी सरकार टैक्स की पाई-पाई का ईमानदारी से उपयोग करती है, और टैक्सपेयर का भी सम्मान करती है, सरकार ने टैक्स सिस्टम को टैक्सपेयर फ्रेंडली बनाया है। आज ITR फाइलिंग का प्रोसेस पहले से कहीं ज्यादा सरल और तेज़ है। पहले सीए की मदद के बिना, ITR फाइल करना मुश्किल होता था। आज आप कुछ ही समय के भीतर खुद ही ऑनलाइन ITR फाइल कर पा रहे हैं। और रिटर्न फाइल करने के कुछ ही दिनों में रिफंड आपके अकाउंट में भी आ जाता है। फेसलेस असेसमेंट स्कीम भी टैक्सपेयर्स को परेशानियों से बचा रही है। गवर्नेंस में efficiency से जुड़े ऐसे अनेक रिफॉर्म्स ने दुनिया को एक नया गवर्नेंस मॉडल दिया है।

साथियों,

पिछले 10-11 साल में भारत हर सेक्टर में बदला है, हर क्षेत्र में आगे बढ़ा है। और एक बड़ा बदलाव सोच का आया है। आज़ादी के बाद के अनेक दशकों तक, भारत में ऐसी सोच को बढ़ावा दिया गया, जिसमें सिर्फ विदेशी को ही बेहतर माना गया। दुकान में भी कुछ खरीदने जाओ, तो दुकानदार के पहले बोल यही होते थे – भाई साहब लीजिए ना, ये तो इंपोर्टेड है ! आज स्थिति बदल गई है। आज लोग सामने से पूछते हैं- भाई, मेड इन इंडिया है या नहीं है?

साथियों,

आज हम भारत की मैन्युफैक्चरिंग एक्सीलेंस का एक नया रूप देख रहे हैं। अभी 3-4 दिन पहले ही एक न्यूज आई है कि भारत ने अपनी पहली MRI मशीन बना ली है। अब सोचिए, इतने दशकों तक हमारे यहां स्वदेशी MRI मशीन ही नहीं थी। अब मेड इन इंडिया MRI मशीन होगी तो जांच की कीमत भी बहुत कम हो जाएगी।

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साथियों,

आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान ने, देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को एक नई ऊर्जा दी है। पहले दुनिया भारत को ग्लोबल मार्केट कहती थी, आज वही दुनिया, भारत को एक बड़े Manufacturing Hub के रूप में देख रही है। ये सक्सेस कितनी बड़ी है, इसके उदाहरण आपको हर सेक्टर में मिलेंगे। जैसे हमारी मोबाइल फोन इंडस्ट्री है। 2014-15 में हमारा एक्सपोर्ट, वन बिलियन डॉलर तक भी नहीं था। लेकिन एक दशक में, हम ट्वेंटी बिलियन डॉलर के फिगर से भी आगे निकल चुके हैं। आज भारत ग्लोबल टेलिकॉम और नेटवर्किंग इंडस्ट्री का एक पावर सेंटर बनता जा रहा है। Automotive Sector की Success से भी आप अच्छी तरह परिचित हैं। इससे जुड़े Components के एक्सपोर्ट में भी भारत एक नई पहचान बना रहा है। पहले हम बहुत बड़ी मात्रा में मोटर-साइकल पार्ट्स इंपोर्ट करते थे। लेकिन आज भारत में बने पार्ट्स UAE और जर्मनी जैसे अनेक देशों तक पहुंच रहे हैं। सोलर एनर्जी सेक्टर ने भी सफलता के नए आयाम गढ़े हैं। हमारे सोलर सेल्स, सोलर मॉड्यूल का इंपोर्ट कम हो रहा है और एक्सपोर्ट्स 23 गुना तक बढ़ गए हैं। बीते एक दशक में हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट भी 21 गुना बढ़ा है। ये सारी अचीवमेंट्स, देश की मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी की ताकत को दिखाती है। ये दिखाती है कि भारत में कैसे हर सेक्टर में नई जॉब्स भी क्रिएट हो रही हैं।

साथियों,

TV9 की इस समिट में, विस्तार से चर्चा होगी, अनेक विषयों पर मंथन होगा। आज हम जो भी सोचेंगे, जिस भी विजन पर आगे बढ़ेंगे, वो हमारे आने वाले कल को, देश के भविष्य को डिजाइन करेगा। पिछली शताब्दी के इसी दशक में, भारत ने एक नई ऊर्जा के साथ आजादी के लिए नई यात्रा शुरू की थी। और हमने 1947 में आजादी हासिल करके भी दिखाई। अब इस दशक में हम विकसित भारत के लक्ष्य के लिए चल रहे हैं। और हमें 2047 तक विकसित भारत का सपना जरूर पूरा करना है। और जैसा मैंने लाल किले से कहा है, इसमें सबका प्रयास आवश्यक है। इस समिट का आयोजन कर, TV9 ने भी अपनी तरफ से एक positive initiative लिया है। एक बार फिर आप सभी को इस समिट की सफलता के लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं हैं।

मैं TV9 को विशेष रूप से बधाई दूंगा, क्योंकि पहले भी मीडिया हाउस समिट करते रहे हैं, लेकिन ज्यादातर एक छोटे से फाइव स्टार होटल के कमरे में, वो समिट होती थी और बोलने वाले भी वही, सुनने वाले भी वही, कमरा भी वही। TV9 ने इस परंपरा को तोड़ा और ये जो मॉडल प्लेस किया है, 2 साल के भीतर-भीतर देख लेना, सभी मीडिया हाउस को यही करना पड़ेगा। यानी TV9 Thinks Today वो बाकियों के लिए रास्ता खोल देगा। मैं इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, आपकी पूरी टीम को, और सबसे बड़ी खुशी की बात है कि आपने इस इवेंट को एक मीडिया हाउस की भलाई के लिए नहीं, देश की भलाई के लिए आपने उसकी रचना की। 50,000 से ज्यादा नौजवानों के साथ एक मिशन मोड में बातचीत करना, उनको जोड़ना, उनको मिशन के साथ जोड़ना और उसमें से जो बच्चे सिलेक्ट होकर के आए, उनकी आगे की ट्रेनिंग की चिंता करना, ये अपने आप में बहुत अद्भुत काम है। मैं आपको बहुत बधाई देता हूं। जिन नौजवानों से मुझे यहां फोटो निकलवाने का मौका मिला है, मुझे भी खुशी हुई कि देश के होनहार लोगों के साथ, मैं अपनी फोटो निकलवा पाया। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं दोस्तों कि आपके साथ मेरी फोटो आज निकली है। और मुझे पक्का विश्वास है कि सारी युवा पीढ़ी, जो मुझे दिख रही है, 2047 में जब देश विकसित भारत बनेगा, सबसे ज्यादा बेनिफिशियरी आप लोग हैं, क्योंकि आप उम्र के उस पड़ाव पर होंगे, जब भारत विकसित होगा, आपके लिए मौज ही मौज है। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद।