PM Modi hoists the National Flag at Red Fort to commemorate the 75th anniversary of establishment of Azad Hind Government
Azad Hind government represented the vision laid down by Subhas Chandra Bose, of a strong undivided India: PM Modi
Subhas Chandra Bose was a visionary, who united Indians to fight against the powerful colonial British rule, says PM Modi
Netaji was an inspiration for all those who were fighting for self-determination and freedom in countries all over the world, says the Prime Minister

मंत्रीपरिषद के मेरे सहयोगी, श्रीमान महेश शर्मा जी, आजाद हिंद फौज के सदस्‍य और देश के वीर सपूत और हम सबके बीच श्रीमान लालटी राम जी, सुभाष बाबू के भतीजे, भाई चंद्रकुमार बोस जी, ब्रिगेडियर आर.एस.चिकारा जी और यहां उपस्थित सुरक्षा बलों के सेना के सभी पूर्व अफसर, अन्‍य महानुभाव, भाइयो और बहनों।

आज 21 अक्‍तूबर का ऐतिहासिक दिन, लाल किले पर ध्‍वजारोहनका ये अवसर, आप कल्‍पना कर सकते हैं कि मैं कितना अपने-आपको सौभाग्‍य मानता हूं? ये वही लाल किला है, जहां पर victory parade का सपना नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 75 वर्ष पूर्व देखा था। आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए नेताजी ने ऐलान किया था कि इसी लाल किले पर एक दिन पूरी शान से तिरंगा लहराया जाएगा।आजाद हिंद सरकार अखंड भारत की सरकार थी, अविभाजित भारत की सरकार थी। मैं देशवासियों को आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष होने पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियो, अपने लक्ष्‍य के प्रति जिस व्‍यक्ति का इतना साफ vision था। लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए जो अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए निकल गया हो, जो सिर्फ और सिर्फ देश के लिए समर्पित हो; ऐसे व्‍यक्ति को याद करने भर से ही पीढ़ी दर पीढ़ी प्रेरित हो जाती है। आज मैं नमन करता हूं उन माता-पिता को, जिन्‍होंने नेताजी जैसा सपूत इस देश को दिया। जिन्‍होंने राष्‍ट्र के लिए बलिदान देने वाले वीर-वीरांगनाओं को जन्‍म दिया। मैं नतमस्‍तक हूं उन सैनिकों और उनके परिवारों के आगे जिन्‍होंने स्‍वतंत्रता की लड़ाई में सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर दिया। मैं पूरे विश्‍व में फैले उन भारतवासियों को भी स्‍मरण करता हूं जिन्‍होंने नेताजी के इस मिशन को तन-मन-धन से सहयोग किया था और स्‍वतंत्र, समृद्ध, सशक्‍त भारत बनाने में अपना बहुमूल्‍य योगदान दिया था।

साथियो, आजाद हिंद सरकार, ये आजाद हिंद सरकार, ये सिर्फ नाम नहीं था बल्कि नेताजी के नेतृत्‍व में इस सरकार द्वारा हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई गई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्‍तचर तंत्र था। देश के बाहर रहकर, सीमित संसाधनों के साथ, शक्तिशाली साम्राज्‍य के खिलाफ इतना व्‍यापक तंत्र विकसित करना, सशक्‍त क्रांति, अभूतपूर्व, मैं समझता हूं ये असाधारण कार्य था।

नेताजी ने एक ऐसी सरकार के विरुद्ध लोगों को एकजुट किया, जिसका सूरज कभी अस्‍त नहीं होता था, दुनिया के एक बड़े हिस्‍से में जिसका शासन था। अगर नेताजी की खुद की लेखनी पढ़ें तो हमें ज्ञात होता है कि वीरता के शीर्ष पर पहुंचने की नींव कैसे उनके बचपन में ही पड़ गई‍ थी।

वर्ष 1912 के आसपास, आज से 106 साल पहले, उन्‍होंने अपनी मां को जो चिट्टी लिखी थी, वो एक चिट्ठी इस बात की गवाह है कि सुभाष बाबू के मन में गुलाम भारत की स्थिति को लेकर कितनी वेदना थी, कितनी बेचैनी थी, कितना दर्द था।ध्‍यान रखिएगा, वो उस समय सिर्फ 15-16 की उम्र के थे।

सैंकड़ों वर्षों की गुलामी ने देश का जो हाल कर दिया था, उसकी पीड़ा उन्‍होंने अपनी मां से पत्र के द्वारा साझा की थी। उन्‍होंने अपनी मां से पत्र में सवाल पूछा था कि मां क्‍या हमारा देश दिनों-दिन और अधिक पतन में गिरता जाएगा? क्‍या ये दुखिया भारतमाता का कोई एक भी पुत्र ऐसा नहीं है जो पूरी तरह अपने स्‍वार्थ को तिलांजलि देकर, अपना संपूर्ण जीवन भारत मां की सेवा में समर्पित कर दे? बोलो मां, हम कब तक सोते रहेंगे? 15-16 की उम्र के सुभाष बाबू ने मां को ये सवाल पूछा था।

भाइयो और बहनों, इस पत्र में उन्‍होंने मां से पूछे गए सवालों का उत्‍तर भी दे दिया था। उन्‍होंने अपनी मां को स्‍पष्‍ट कर दिया था कि अब, अब और प्रतीक्षा नहीं की जा सकती, अब और सोने का समय नहीं है, हमको अपनी जड़ता से जागना ही होगा, आलस्‍य त्‍यागना ही होगा और कर्म में जुट जाना होगा। ये सुभाष बाबू, 15-16 साल के! अपने भीतर की इस तीव्र उत्‍कंठा ने किशोर सुभाष बाबू को नेताजी सुभाष बना दिया।

नेताजी का एक ही उद्देश्‍य था, एक ही मिशन था- भारत की आजादी। मां भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्‍त कराना। यही उनकी विचारधारा थी और यही उनका कर्मक्षेत्र था।

साथियो, सुभाष बाबू को अपने जीवन का लक्ष्‍य तय करने, अपने अस्तित्‍व को समर्पित करने का मंत्र स्‍वामी विवेकानंद और उनकी शिक्षाओं से मिला-

आत्‍मनोमोक्षार्दम जगत हिताय च– यानि जगत की सेवा से ही मुक्ति का मार्ग खुलता है। उनके चिंतन का मुख्‍य आधार था- जगत की सेवा। अपने भारत की सेवा के इसी भाव की वजह से वो हर यातना सहते गए, हर चुनौती को पार करते गए, हर साजिश को नाकाम करते गए।

भाइयो और बहनों, सुभाष बाबू उन सेनानियों में रहे, जिन्‍होंने समय के साथ खुद को बदला और अपने लक्ष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए अपने कदम उठाए। यही कारण है कि पहले उन्‍होंने महात्‍मा गांधी के साथ कांग्रेस में रहकर देश में ही प्रयास किए और फिर हालात के मुताबिक उन्‍होंने सशस्‍त्र क्रांति का रास्‍ता चुना। इस मार्ग ने स्‍वतंत्रता आंदोलन को और तेज करने में बड़ी भूमिका निभाई।

साथियों, सुभाष बाबू ने जो विश्‍वमंथन किया, उसका अमृत सिर्फ भारत ने ही नहीं चखा बल्कि इसका लाभ और भी दूसरे देशों को हुआ। जो देश उस समय अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, उन्‍हें सुभाषचंद्र बोस को देख करके प्रेरणा मिलती थी। उन्‍हें लगता था कि कुछ भी असंभव नहीं है। हम भी संगठित हो सकते हैं, अंग्रेजों को ललकार सकते हैं, आजाद हो सकते हैं। महान स्‍वतंत्रता सेनानीनेल्‍सनमंडेला, भारत रत्‍न नेल्‍सन मंडेला जी ने भी कहा था कि दक्षिण अफ्रीका के छात्र आंदोलन के दौरान वो भी सुभाष बाबू को अपना नेता मानते थे, अपना हीरो मानते थे।

भाइयो और बहनों, आज हम आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष का समारोह मना रहे हैं तो चार वर्ष बाद 2022 में आजाद भारत के 75 वर्ष पूरे होने वाले हैं। आज से 75 वर्ष पूर्व नेताजी ने शपथ लेते हुए वादा किया था एक ऐसा भारत बनाने का जहां सभी के पास समान अधिकार हो, सभी के पास समान अवसर हो। उन्‍होंने वादा किया था कि अपनी प्राचीन परम्‍पराओं से प्रेरणा लेकर उनको और गौरव करने वाले सुखी और समृद्ध भारत का निर्माण करने का। उन्‍होंने वादा किया था देश के सं‍तुलित विकास का, हर क्षेत्र के विकास का। उन्‍होंने वादा किया था ‘बांटो और राज करो’ की उस नीति से, उसे जड़ से उखाड़ फेंकने का, जिसकी वजह से भारत को इस ‘बांटो और राज करो’ की राजनीति ने सदियों तक गुलाम रखा था।

आज स्‍वतंत्रता के इतने वर्ष बाद भी नेताजी का सपना पूरा नहीं हुआ है। भारत अनेक कदम आगे बढ़ा है, लेकिन अभी नई ऊंचाइयों पर पहुंचना बाकी है। इसी लक्ष्‍य को पाने के लिए आज भारत के सवा सौ करोड़ लोग नए भारत के संकल्‍प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। एक ऐसा नया भारत जिसकी कल्‍पना नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी की थी।

आज एक ऐसे समय में जबकि विध्‍वंसकारी शक्तियां देश के बाहर और अंदर से हमारी स्‍वतंत्रता, एकता और संविधान पर प्रहार कर रही हैं, भारत के प्रत्‍येक निवासी का ये कर्तव्‍य है कि वे नेताजी से प्रेरित होकर उन शक्तियों से लड़ने, उन्‍हें परास्‍त करने और देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान करने का भी संकल्‍प ले।

लेकिन साथियो, इन संकल्‍पों के साथ ही एक बात और महत्‍वपूर्ण है- ये बात है राष्‍ट्रीयता की भावना, भारतीयता की भावना। यहीं लाल किले पर मुकदमे की सुनवाई के दौरान, आजाद हिंद फौज के सेनानी शाहनवाज खान ने कहा था कि सुभाषचंद्र बोस वो पहले व्‍यक्ति थे जिन्‍होंने भारत के होने का एहसास उनके मन में जगाया।

वो पहले व्‍यक्ति थे जिन्‍होंने भारत को भारतीय की नजर से देखना सिखाया। आखिर वो कौन सी परिस्थितियां थीं, जिसकी वजह से शाहनवाज खान जी ने ऐसी बात कही थी? भारत को भारतीय की नजर से देखना और समझना क्‍यों आवश्‍यक था- ये आज जब हम देश की स्थिति देखते हैं तो और स्‍पष्‍ट रूप से समझ पाते हैं।

भाइयो और बहनों, कैम्ब्रिज के अपने दिनों को याद करते हुए सुभाष बाबू ने लिखा था कि हम भारतीयों को ये सिखाया जाता है कि यूरोप, Great Britain का ही बड़ा स्‍वरूप है, इसलिए हमारी आदत यूरोप को इंगलैंड के चश्‍मे से देखने की हो गई है। ये हमारा दुर्भाग्‍य रहा कि स्‍वतंत्रता के बाद भारत और यहां की व्‍यवस्‍थाओं का निर्माण करने वालों ने भारत को भी इंगलैंड के चश्‍मे से ही देखा।

हमारी संस्‍कृति, हमारी महान भाषाओं, हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था, हमारे पाठ्यक्रम, हमारे सिस्‍टम को इस संक्रमण का बहुत नुकसान उठाना पड़ा। आज मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि स्‍वतंत्र भारत के बाद के दशकों में अगर देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे व्‍यक्तित्‍वों का मार्गदर्शन मिला होता, भारत को देखने के लिए वो विदेशी चश्‍मा नहीं होता तो स्थितियां बहुत भिन्‍न होतीं।

साथियों, ये भी दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बनाने के लिए देश के अनेक सपूतों- वो चाहे सरदार पटेल हो, बाबा साहेब अम्‍बेडकर हों, उन्‍हीं की तरह ही नेताजी के योगदान को भी भुलाने का भरसक प्रयास किया गया है। अब हमारी सरकार स्थिति को बदल रही है। आप सभी को अब तक पता चला होगा, यहां आने से पहले मैं राष्‍ट्रीय पुलिस स्‍मारक का समर्पण करने के कार्यक्रम में था। मैंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर एक राष्‍ट्रीय सम्‍मान शुरू करने की वहां पर घोषणा की है।

हमारे देश में जब nationality calamity होती है, आपदा प्रबंधन और राहत और बचाव के काम में जो जुटते हैं, दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले ऐसे शूरवीरों को, पुलिस के जवानों को अब हर साल नेताजी के नाम से एक सम्‍मान दिया जाएगा। देश की शान को बढ़ाने वाले हमारे पुलिस के जवान, पैरामिलिट्री फोर्स के जवान इसके हकदार होंगे।

साथियो, देश का संतुलित विकास समाज के प्रत्‍येक स्‍तर पर, प्रत्‍येक व्‍यक्ति को राष्‍ट्र निर्माण का अवसर, राष्‍ट्र की प्रगति में उसकी भूमिका नेताजी के बृहद विजन का एक अहम हिस्‍सा है। नेताजी की अगुवाई में बनी आजाद हिंद सरकार ने भी पूर्वी भारत को भारत की आजादी का gateway बनाया था।अप्रैल 1944 में कर्नल शौकम मलिक की अगुवाई में मणिपुर के मोयरांग में आजाद हिंद फौज ने तिरंगा फहराया था।

ये भी हमारा दुर्भाग्‍य रहा है कि ऐसे शौर्य को आजादी के आंदोलन में उत्‍तर-पूर्व और पूर्वी भारत के योगदान को उतना स्‍थान नहीं मिल पाया। विकास की दौड़ में भी देश का ये अहम अंग पीछे रह गया। आज मुझे संतोष होता है कि जिस पूर्वी भारत का महत्‍व सुभाष बाबू ने समझा, उसे वर्तमान सरकार भी उतना ही महत्‍व दे रही है, उसी दिशा में ले जा रही है, इस क्षेत्र को देश के विकास का growth engine बनाने के लिए काम कर रही है।

भाइयो और बहनों, मैं खुद को सौभाग्‍यशाली मानता हूं कि देश के लिए नेताजी ने जो कुछ भी दिया; उसको देश के सामने रखने का, उनके दिखाए रास्‍तों पर चलने का मुझे बार-बार अवसर मिला है। और इसलिए जब मुझे आज के इस आयोजन में आने का निमंत्रण मिला तो मुझे गुजरात के दिनों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कार्यों की समृति भी ताजा हो गई।

साथियो, जब मैं गुजरात का मुख्‍यमंत्री था, तब 2009 में ऐतिहासिक हरीपूरा कांग्रेस, कांग्रेस का अधिवेशन था। हरीपुरा कांग्रेस के अधिवेशन की याद को हमने एक प्रकार से फिर जागृत किया था। उस अधिवेशन में जिस प्रकार सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने, गुजरात के लोगों ने नेताजी को कांग्रेस अध्‍यक्ष बनने के बाद बैलगा‍ड़ियों में बैठ करके बहुत बड़ा जुलूस निकाला था, वैसा ही, यानी जो एक भव्‍य आयोजन किया गया था, ठीक वैसा ही दृश्‍य हमने दोबारा 2009 में, वहीं पर खड़ा कर करके इतिहास को पुनर्जीवित किया था। भले ही वो कांग्रेस का अधिवेशन था, लेकिन वो इतिहास का पृष्‍ठ था, हमने उसको जी करके दिखाया था।

साथियो, आजादी के लिए जो समर्पित हुए, वो उनका सौभाग्‍य था। हम जैसे लोग जिन्‍हें ये अवसर नहीं मिला है, हमारे पास देश के लिए जीने का, विकास के लिए समर्पित होने का, हम सबके लिए रास्‍ता खुला पड़ा है। लाखों बलिदान देकर हम स्‍वराज तक पहुंचे हैं। अब हम सभी पर, सवा सौ करोड़ भारतीयों पर इस स्‍वराज को सुराज के साथ बनाए रखने की चुनौती है। नेताजी ने कहा था- ‘हथियारों की ताकत और खून की कीमत से तुम्‍हें आजादी प्राप्‍त करनी है। फिर जब भारत आजाद होगा तो देश के लिए तुम्‍हें स्‍थायी सेना बनानी होगी, जिसका काम होगा हमारी आजादी को हमेशा बनाए रखना।‘

आज मैं कह सकता हूं कि भारत एक ऐसी सेना के निर्माण की तरफ बढ़ रहा है जिसका सपना नेताजी सुभाष बोस ने देखा था। जोश, जुनून और जज्‍बा, ये तो हमारी सैन्‍य परम्‍परा का हिस्‍सारहा ही है, अब तकनीक और आधुनिक हथियारी शक्ति भी उसके साथ जोड़ी जा रही है। हमारी सैन्‍य ताकत हमेशा से आत्‍मरक्षा के लिए ही रही है और आगे भी रहेगी। हमें कभी किसी दूसरे की भूमि का लालच नहीं रहा। हमारा सदियों से इतिहास है, लेकिन भारत की संप्रभुता के लिए जो भी चुनौती बनेगा उसको दोगुनी ताकत से जवाब मिलेगा।

साथियो, सेना को सशक्‍त करने के लिए बीते चार वर्षों में अनेक कदम उठाए गए हैं। दुनिया की best technology को भारतीय सेना का हिस्‍साबनाया जा रहा है। सेना की क्षमता हो या फिर बहादुर जवानों के जीवन को सुगम और सरल बनाने का काम हो- बड़े और कड़े फैसले लेने का साहस इस सरकार में है और ये आगे भी बरकरार रहेगा।Surgical strike से लेकर नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने तक का फैसला हमारी ही सरकार ने लिया है। यहां मौजूद अनेक पूर्व सैनिक इस बात के भी साक्षी हैं कि दशकों से चली आ रही One Rank One Pension की मांग को सरकार ने अपने वायदे के मुताबिक पूरा कर दिया है।

इतना ही नहीं, करीब 11,000 करोड़ रुपये का arrear भी पूर्व सैनिकों तक पहुंचाया जा चुका है, जिससे लाखों पूर्व सैनिकों को लाभ मिला है। इसके साथ-साथ सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर जो पेंशन तय की गई है, वो भी OROP (One Rank One Pension) लागू होने के बाद तय पेंशन के आधार पर बढ़ी है। यानि मेरे फौजी भाइयों को पेंशन पर double bonanza मिला है।

ऐसे अनेक प्रयास पूर्व सैनिकों के जीवन को सरल और सुगम बनाने के लिए किए गए हैं। इसके अलावा सैनिकों के शौर्य को भावी पीढ़ियां जान पाएं, इसके लिए National War Museum कार्य भी अब आखिरी चरण पर पहुंच चुका है।

सा‍थियों, कल, यानी 22 अक्‍तूबर को Rani Jhansi Regiment के भी 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। सशस्‍त्र सेना में महिलाओं की भी बराबरी की भागीदारी हो, इसकी नींव भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ही रखी थी। देश की पहली सशस्‍त्र महिला रेजिमेंट भारत की समृद्ध परम्‍पराओं के प्रति सुभाष बाबू के आगाध विश्‍वास का परिणाम था। तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए उन्‍होंने महिला सैनिकों की सलामी ली थी।

मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि नेताजी ने जो काम 75 वर्ष पहले शुरू किया था, उसको सही मायने में आगे बढ़ाने का काम इस सरकार ने किया है। इसी 15 अगस्‍त को मैंने यहीं लाल‍ किले से एक बड़ा ऐलान किया था- मैंने कहा था कि सशस्‍त्र सेना में Short Service Commission के माध्‍यम से नियुक्‍त महिला अधिकारियों को पुरुष समकक्ष अधिकारियों की तरह ही एक पारदर्शी चयन प्रक्रिया द्वारा स्‍थाई कमीशन दिया जाएगा।

साथियो, ये सरकार के उन प्रयासों का विस्‍तार है जो बीते चार वर्षों से उठाए गए हैं। मार्च, 2016 में नेवी में महिलाओं को पायलटकरने का फैसला लिया गया था। कुछ दिन पहले ही नौसेना की 6 जांबाज महिला अधिकारियों ने समंदर को जीतकर विश्‍व को भारत की नारी-शक्ति का परिचय करवाया है। इसके अलावा देश को पहली महिला फाइटर पायलट देने का काम भी इसी सरकार के दौरान हुआ है।

मुझे इस बात का भी संतोष है कि आजाद भारत में पहली बार भारत की सशस्‍त्र सेनाओं को सशक्‍त करने, देखरेख करने का जिम्‍मा भी देश की पहली देश की पहली रक्षामंत्री सीतारमण जी के हाथ में है।

साथियो, आज आप सभी के सहयोग से, सशस्‍त्र बलों के कौशल और समर्पण से देश पूरी तरह से सुरक्षित है, समर्थ है और विकास के पथ पर सही दिशा में तेज गति से लक्ष्‍य को पाने के लिए दौड़ रहा है।

एक बार फिर, आप सभी को, देशवासियों को, इस महत्‍वपूर्ण अवसर पर हृदयपूर्वक बहुत-बहुत बधाई देता हूं। एकता, अखंडता और आत्‍मविश्‍वास की हमारी ये यात्रा नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के आशीर्वाद से निरंतर आगे बढ़े।

इसी के साथ मेरे साथ सब बोलेंगे-

भारत माता की – जय

भारत माता की – जय

भारत माता की – जय

वंदे - मातरम

वंदे - मातरम

वंदे - मातरम

बहुत-बहुत धन्‍यवाद

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!