Text of PM’s address at the 87th ICAR Foundation Day Celebrations at Patna

Published By : Admin | July 25, 2015 | 17:25 IST
QuotePM Modi speaks at 87th ICAR Foundation Day Celebrations in Patna
QuoteThe country now needs a second Green Revolution which must come from eastern India: PM
QuoteScientific innovations in agriculture sector should move from lab to land for benefit of farmers: PM
QuoteIndia must aim to become totally self-sufficient in the agriculture sector, says PM Modi

उपस्थित सभी महानुभाव

सभी महानुभाव, आज जिनका मुझे सम्‍मान करने का अवसर मिला है। जिन्‍होंने अपने-अपने क्षेत्रों के द्वारा देश के कृषि जगत को कुछ न कुछ मात्रा में सकारात्‍मक योगदान किया है। ऐसे पुरस्‍कार प्राप्‍त करने वाले सभी महानुभावों को हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। बहुत-बहुत बधाई देता हूं।



ये समारोह हर वर्ष होता है और बड़े लंबे अरसे से होता है लेकिन दिल्‍ली में ही होता है। तो पिछली बार जब मैं गया था पहली बार तो मैंने कहा था भई हम जरा दिल्‍ली से बाहर निकलें और उसका आरंभ आज बिहार में पटना की धरती से हो रहा है। मैं राज्‍य सरकार का भी आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि उन्‍होंने इस समारोह को सफल बनाने में योगदान दिया और मैं विभाग के मित्रों का भी आभारी हूं कि उन्‍होंने एक पहल की है। तो उसके कारण उस राज्‍य के अंदर भी कुछ दिन चर्चा चलती है, अनेक लोगों के सामने नई-नई बातें आती है। देशभर से ये कृषि वैज्ञानिक यहां आते है उनको भी स्‍थानीय लोगों से बातचीत करने के कारण अपने विषय में क्‍या-क्‍या नया चल रहा है, उसकी जानकारियां मिलती है। तो एक प्रकार से ये अलग-अलग स्‍थान पर जाने से हमें स्‍वाभाविक रूप से हमें अतिरिक्‍त लाभ होता है और उसका प्रारंभ आज यहां से हुआ है और मुझे ये भी खुशी है कि ये बिहार से प्रारंभ हो रहा है। क्‍योंकि पूसा का जन्‍म इसी धरती पर हुआ और एक विदेशी व्‍यक्ति ने गुलामी के कालखंड में भारत के कृषि सामर्थ्‍य को भांपा होगा, उसको अंदाज आया होगा और Phillip USA के द्वारा बनी हुई ये कामगिरी पूसा के नाम से प्रचलित हो गई। लेकिन उन्होंने बिहार क्‍यों चुना होगा, कोई अचानक तो हुआ नहीं होगा। जब वो सोचा गया होगा तब उनको ध्‍यान आया होगा ये सबसे ऊर्वरा जगह होगी, यहां के लोग प्रयोगशील होगें, प्रगतिशील होगें, कृषि क्षेत्र में नया करने की सोच रखते होगें। हिन्‍दुस्‍तान के अन्‍य भू-भागों से यहां की कृषि की कोई न कोई extra शक्ति होगी तभी जा करके उन्‍होंने उस काम को यहां प्रारंभ करना सोचा होगा, ऐसा मैं अनुमान करता हूं। अब करीब-करीब 100 साल होने जा रहे है। इसलिए मैं पूरे record न देखूं तब तक तो मैं कह नहीं सकता कि वो क्‍या है लेकिन मैं अनुमान करता हूं। इसका मतलब ये हुआ कि ये भू-भाग और यहां के नागरिक दोनों में कृषि क्षेत्र में नई सिद्धियां प्राप्‍त कराने का सामर्थ्‍य पड़ा हुआ है।

हम कभी-कभी अपनी चीजों को भूल जाते है। चीजें कोई अचानक शुरू नहीं होती होगी किसी-न-किसी कारण विशेष कारण से शुरू हुई होगी। उसके मूल में अगर जाते है तो ध्‍यान आता है और मैं राधामोहन सिंह जी को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि आपदा ग्रस्‍त कारणों के साथ कारण पूछा यहां से दिल्‍ली चला गया। अब दिल्ली में तो खेती होती नहीं है लेकिन पूसा वहां है और जहां खेती होती थी जो देश का पेट भरता था वहां से पूसा चला गया। तो हमने वापिस लाने की कोशिश की है और मुझे विश्‍वास है कि भले 90 साल पहले किसी को विचार आया होगा उसमें जरूर कोई न कोई दम होगा, कोई ताकत होगी। मुझे फिर से एक बार उसको तलाशना है, देखना है और देश के वैज्ञानिक मेरी इस बात से सहमत होगें कि हम इन नए क्षेत्रों में पदार्पण कैसे करें। कुछ बातें आप लोगों ने आज अच्‍छी शुरूआत कर रहे है। मैं नहीं जानता हूं कि हमारे वैज्ञानिक मित्रों को कितना पसंद आया होगा या कितनी सुविधा होगी। क्‍योंकि वैज्ञानिक अपने काम में इतना खोया हुआ होता है। करीब जिदंगी का महत्‍वपूर्ण समय उसका lab में ही चला जाता है। न वो अपने परिवार को काम आता है, न वो खुद को काम आता है। वो उसमें डूब जाता है, पागल की तरह लगा रहता है और तभी जा करके आने वाली पीढि़यों का भला होता है। एक जब अपने सपनों को खपा देता है तब औरों के सपने बन पाते हैं और इसलिए वैज्ञानिकों का जितना मान-सम्‍मान होना चाहिए, वैज्ञानिकों के योगदान की जितनी सराहना होनी चाहिए, उसको जितना बल मिलेगा, उतनी भावी पीढि़यों का कल्‍याण होगा।

दुर्भाग्‍य से हमारे देश में, हमारी अपनी कठिनाइयां हैं देश की, गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ना है और इसलिए इन क्षेत्रों में जितना बजट देना चाहिए उतना दे नहीं पाते हैं। उसके बावजूद भी छोटी-छोटी lab में बैठ करके भी हमारे scientist लगातार काम करते रहते हैं और कोई न कोई नई चीजें देते रहते हैं।

लेकिन एक और कदम की ओर जाने का मैंने पिछली बार बात कही थी आपने उसको योजना के रूप में रखा, Lab To Land. laboratory में कितना ही yield आए, laboratory में चीकू नारियल जैसा बन जाए, लेकिन अगर धरती पर नहीं होता है तो वो काम नहीं आता है। इसलिए हमारी सच्‍ची कसौटी ये है कि ये जो हम सफलता पाई है lab में, उसको हमें धरती पर भी कसना चाहिए और किसानों के द्वारा कसना चाहिए। एक प्रकार से एक scientist का fellow traveler हमारा किसान बनना चाहिए। extension of the mind of the scientist should be a farmer. ये हमें व्‍यवस्‍था खड़ी करनी चाहिए और इसलिए इस योजना के तहत देश के जितने agriculture scientist है, उनकी टोली बनाकर के उनको एक-एक block गोद लेने की योजना है। उसकी lab कहीं पर भी होगी, लेकिन उसको लगेगा भई मैं जो research कर रहा हूं, उस इलाके के किसानों में उस प्रकार की रुचि है तो वो वहां उनके साथ जुड़ेगा, progressive farmer के साथ जुड़ेगा, किसानों के साथ जुड़ेगा और उसमें जो ज्ञान की संपदा है वो जमीन पर किसानों के माध्‍यम से।

और किसान का एक स्‍वभाव है, उसको भाषण-भाषण काम नहीं आते। वो तो जब तक अपनी आंख से देखता नहीं है, वो किसी चीज को मानता नहीं है। और एक बार उसने अपनी आंख से देखा तो वो फिर अपना risk लेने के लिए तैयार हो जाता है, वो संकट उठाने के लिए तैयार हो जाता है। और इसलिए आवश्‍यकता होती है कि हमने हमारी हर lab को, हर farm को lab में कैसे convert करना है, हर किसान को scientist के रूप में कैसे convert करना है। और उस यात्रा को मैं जानता हूं, आप जिस साधना को कर रहे हैं, जिस तपस्‍या को कर रहे हैं वहां से बाहर जाना थोड़ा कठिन है, लेकिन जिस दिन आप जाओगे। कोई scientist अच्‍छे से अच्‍छी दवाई की 100-100 खोज करे और परिवार को भी पता नहीं होता है कि इसने कहां काम किया है। उनको लगता है हां यार, रात देर से आते हैं अब खाना खाएंगे, सो जाएंगे। लेकिन जब पता चलता है कि फलां व्‍यक्‍ति जिंदगी से जूझ रहा था और उसकी दवाई काम आ गई, उसकी जिन्‍दगी बच गई और जब पता चलता है इस दवाई से आने वाले दिनों में ऐसे लाखों लोगों की भी जिन्‍दगी बचने वाली है तो वो परिवार भी सीना तान करके, हां हमारे उन लोगों ने किया है, मेरे पति ने किया है, मेरे भाई ने किया है। कब होता है, जब बाहर कोई उसका achievement दिखता है। आपको भी अपने lab में किया हुआ संतोष जब तक खेत में नहीं दिखता और किसान के हाथ में नहीं दिखता है, आपको संतोष नहीं हो सकता है। और वो व्‍यवस्‍था करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भारत ने first green revolution किया, उसका फायदा हमें मिला है। लेकिन अब देश second green revolution के लिए ज्‍यादा इंतजार नहीं कर सकता है। वैसे भी late हो चुके हैं। second green revolution के लिए हमें अपने आपको सज्‍ज करना होगा। किस क्षेत्र में जाना है, कैसे जाना है। first green revolution की पहली आवश्‍यकता थी कि देश को अन्‍न बाहर से लाना न पड़े, देश का पेट भरे। second green revolution का इतना मतलब नहीं हो सकता, उसका मकसद कुछ और भी हो सकता है। क्‍यों न हमारे देश के agro-economists, हमारे देश के agro-technicians, हमारे देश के agro-scientist, food security से जुड़े हुए scientist, ये सब मिलकर के workshop करें, हर level पर workshop करें। और design workout करें कि भई हां, second green revolution का model क्‍या है, priorities क्‍या हो, हमें किन चीजों के उत्‍पादन पर जाना चाहिए। उत्‍पादकता बढ़ानी है तो किस चीजों की बढ़नी चाहिए। सारे global परिवेश में, आज विश्‍व में क्‍या-क्‍या चीजों की आवश्‍यकता है और दुनिया के बहुत देश है, जिनको आर्थिक रूप से वो कुछ चीजें करना मुश्‍किल है तो वो कहते हैं कि बाहर से ले आओ भई, यहां नहीं करो। तो ऐसे कितने देश हैं जिनको ढूंढेंगे और हम बाहर से भेजेंगे।हमें एक विस्‍तृत सोच के साथ हमारे second green revolution को इस रूप में तैयार करना चाहिए।

हमारे architecture college बहुत कुछ पढ़ाती है। building के लिए तो काफी कुछ होता है, road कैसे बने उस पर भी होता है। मैं मानता हूं कि कभी इस agro scientists ने, progressive farmers ने, government ने, architecture colleges के साथ बैठकर के उनका भी syllabus बनाने की आवश्‍यकता है कि हमारे agriculture, infrastructure का architecture क्‍या हो? हमारी canal बनती हो तो कैसी आधुनिक canal बने, किस material से बने। road बनाने के लिए तो काफी research होते हैं लेकिन canal बनाने के लिए research बहुत कम होते हैं। ये मुझे पूरा paradigm shift करना है। एक मूलभूत चीजों में बदलाव लाना है और इसलिए हमारे जो architecture colleges है, उनका भी जिम्‍मा बनता है कि agro related हमारे infrastructure कैसे हो।

पुराने जमाने में, घर में हमारे गांव के अंदर, किसान परिवारों में मिट्टी की बड़ी-बड़ी कोठियां तैयार होती थीं और उसमें क्‍या material डालना है उसकी बड़ी विशेषता रहती थी। specific प्रकार का material डाल करके वो कोठी बनाई जाती थी और उस कोठी में अन्‍न भरा जाता था। वो सालों तक खराब नहीं होता था और निकालने की technique भी ऐसी होती थी, वो ऊपर से नहीं निकालते थे, नीचे से निकालते थे ताकि पुराना माल पहले निकलता था, नया माल ऊपर आता जाता था। देखिए सामान्‍य लोगों की बुद्धि कितनी कमाल की रहती थी। ये जो कोठार बनते थे या कोठी बनती थी जिसमें सामान भरा जाता था वो कौन सी चीजों का, उनको ज्ञान था कि जिसके कारण हमारे agro-product को इतने लंबे समय तक संभाल पाते थे। preservation के संबंध में हमारे यहां technically कितना काम हुआ है। हमारे यहां अचार, अचार की जो परंपरा है। उस समय ये technology कहां थी जी। गांव की गरीब महिला भी अचार इस प्रकार से preserve करती थी कि साल भर अचार खराब नहीं होता था। मतलब कि विज्ञान उस घर की गली तक पहुंचा हुआ था। हम बदले हुए युग में, इन चीजों को और अधिक अच्‍छे तरीके से कैसे करें, ताकि हमारे agriculture sector में।



क्योंकि आज wastage एक बहुत बड़ी चिन्‍ता का विषय है। value addition पर हमें जाना पड़ेगा। किसान इतनी मेहनत करे और उसकी पकाई हुई चीजें अगर बर्बाद होती है तो कितना बड़ा नुकसान होता है। मैं agro scientists से आग्रह करता हूं कि आप एक काम करके research कीजिए और मुझे छ महीने में एक report दे सकते हैं क्‍या ? मैं एक दिशा में आगे बढ़ना चाहता हूं।

हमारे किसान फल पैदा करते हैं लेकिन फल की उम्र बहुत कम होती है। बहुत ही कम समय में खराब हो जाते हैं। उसका packaging भी बड़ा महंगा होता है क्‍योंकि एक-एक चीज को संभालना पड़ता है। अगर दब गए तो और खराब हो जाते हैं। वो फल जिसमें से juice निकलता है। ये जितने aerated water बाजार में बिकते हैं। भांति-भांति का taste होता है। मुझे तो नाम भी पूरे याद नहीं है लेकिन कई प्रकार की bottles में लोग पीते रहते हैं। coca-cola और fanta और क्‍या-क्‍या नहीं, thums-up. क्‍या हम natural fruit, उसका 1 percent, 2 percent, 5 percent natural juice उसमें mix कर सकते हैं क्‍या। अगर ने natural fruit का juice उसमें mix होता है इस aerated water में। उसका market बहुत बड़ा है। मैं विश्‍वास से कहता हूं हिन्‍दुस्‍तान में जो किसान फल पैदा करता है उसको कभी wastage की नौबत नहीं आएगी, उसका माल खेत से ही बिक जाएगा और 5 percent अगर उसमें mix हो गया। उसका माल खेत से ही बिक जाएगा और 5% उसमें अगर mix हो मेरे फल पैदा करने वाला किसान कभी दु:खी नहीं होगा। लेकिन ये साइंटिस्‍ट जब तक खोज करके नहीं बताएंगे वो कंपनियों को मनवाना जरा कठिन हो जाता है। क्‍या हम इस प्रकार की research कर सकते है, हम समझा सकते है कि these are the results । आप अगर 5% उसके अंदर natural fruit juice डालते है तो आपके market को कोई तकलीफ नहीं होगी, आपकी चीज के test में कोई तकलीफ नहीं होगी आपकी product और अच्‍छी बनेगी और उसमें आपका nutrition value भी जाएगा, जो ultimately आपके business को benefit करेगा। हम किस प्रकार से नई चीजों को करें उस पर हमें सोचने की आवश्‍यकता है।

हमने जो initiatives लिए है कुछ चीजों पर हम ये मान के चले के दुनिया में, बहुत बड़ी मात्रा में उत्‍पादकता पर बल दिया जाता है। हमें भी जमीन कम होती जा रही है, परिवार विस्‍तृत होते जा रहे हैं, एक-एक परिवार में जमीन के टुकड़े बंटते चले जा रहे हैं। हमें पर एकड़ उत्‍पादकता कैसे बड़े, उस पर बल दिए बिना हमारा किसान सुखी नहीं हो सकता है। हमें वो देना पड़ेगा।

पिछली बार मैंने मेरे मन की बात में कहा था किसानों से कि देश को pulses और oil seeds की बड़ी आवश्‍यकता है। तिलहन और दलहन... देखिए मैं इस देश के किसानों को जितना नमन करूं उतना कम है। उस बात को उन्‍होंने माना और इस बार अभी तक जो खबर आई हैं कि record-break showing दलहन और तिलहन का हमारे किसानों ने दिया है। वरना वो crop change करने को तैयार नहीं था लेकिन उसने माना कि भई देश को जरूरत है चलिए हम बाकि छोड़ देते है इस बार दलहन और तिलहन में चले जाते है और बहुत बड़ी मात्रा में शायद मुझे लगता है डेढ़ गुना हो जाएगा, दो गुना अब ये-ये मैं समझता हूं कि अपने-आप में और भारत को import करना पड़ता है।

हमारे agriculture साइंटिस्‍टों ने और progressive farmers ने और government ने बैठ करके तय करना चाहिए। भारत चूंकि कृषि प्रधान देश है। हम तय करें कि agriculture sector की कितनी चीजें अभी भी हम import करते है और हम तय करें कि फलाने-फलाने वर्ष के बाद हमें agriculture sector में कम से कम कुछ भी import नहीं करना पड़ेगा। हम स्‍वयं आत्‍मनिर्भर बनेंगे, हमारे किसान को इस काम के लिए प्रेरित करना पडेगा। हमें targeted काम करना पड़ेगा जी तब जा करके हमारे किसान को आर्थिक रूप से लाभ होगा। अगर वो नहीं करेगे तो लाभ नहीं होगा। आज भी अगर कृषि प्रधान देश को five star होटलों में कुछ सब्जियां विदेश से मंगवानी पड़ती है। हमारा किसान भी तो तैयार कर सकता है, उसको जरा ज्ञान मिल जाए, पद्धति मिल जाए वो कर सकता है। देश की आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता किसान में है, आवश्‍यकता है कि ज्ञान का भंडार और किसान का सामर्थ्‍य इसको जोड़ना और उसको जोड़ने की दिशा में हमने प्रयास किया है। कुछ चीजें बड़ी सरल है जिसको हम कर सकते है और करना चाहिए।

कभी-कभार हमारे किसान को जीवन में ज्‍यादातर हमारे यहां कोई उतना irrigation network तो है नहीं ज्‍यादातर हमारा किसान परमात्‍मा की कृपा पर निर्भर है, बारिश हुई तो अच्‍छी बात ,है नहीं हुई तो मुसीबत है। उसकी extra income के जो रास्‍ते है। उसमें पशुपालन हो, poultry farm हो, मतस्‍य उद्योग हो ये थोड़ा बहुत प्रचलित है। लेकिन हमारा एक बात पर ध्‍यान नहीं गया है और वो है शहद पर.. honey bee.. globally बहुत बड़ा market है और कम-से-कम मेहनत वाला काम है और उसमें बिगड़ने का कोई chance नहीं है और उत्‍पादन भी बिकेगा अगर शहद bottle में भर दिया तो 2-5-10 साल तक तो उसको कुछ नहीं होता है। आज देश में, मुझे बताया गया शायद 5 लाख किसान शहद की activity से जुड़े हैं। ये हम target करके 5 करोड़ पर पहुंचा सकते हैं। एक साल, दो साल, तीन साल में। उसकी income कितनी बढ़ेंगी आप कल्‍पना नहीं कर सकते और दुनिया में market है। ऐसा नहीं कि market नहीं है। हमारे किसान को हम इस प्रकार से नई-नई चीजों के साथ कैसे.. और उसके खेत में वैसे ही होने वाला है।

मैं नहीं जानता हूं कि हमारे scientist मित्र मेरी इन बातों को स्‍वीकार करेंगे कि नहीं करेंगे क्‍योंकि मैं न तो ऐसे ही किसानों के साथ बैठते-उठते सुनी हुए बातें मैंने जो भी ज्ञान अर्जित किया है, उसी की बात मैं कर रहा हूं।

हमारे जिस इलाके में elephants, हाथियों के कारण खेती को बड़ा नुकसान होता है जिन-जिन इलाकों में हाथी है। मैंने सुना भी है, पढ़ा भी है और मेरा मानना है कि उसमें सच्‍चाई भी है। ऐसे खेतों में अगर honey bee हो तो honey bee की आवाज़ से हाथी भाग जाता है। वो आता नहीं है। अब मुझे बताइए farmer का protection होगा कि नहीं होगा। अब ये इसको कौन समझाएगा, उससे बात कौन करेगा और कम से कम investment से इतनी बड़ी चीज को बचाता है और international science magazine इस बात को स्‍वीकार कर चुके है कि हाथी उस आवाज़ को सहन नहीं कर सकता है तो वहीं से आते ही चला जाता है पीछे। हमारे कई इलाके ऐसे हैं जहां हाथियों के कारण किसानों को परेशानी हो रही है। हम ऐसे व्‍यवहार्य चीजें और उसके साथ-साथ उसको शहद का व्‍यापार भी मिल जाएगा, उसकी आर्थिक संपदा को भी फायदा होगा।

दूसरा काम है, जो मेरे स्‍वच्‍छ भारत मिशन से भी जुड़ा हुआ है और organic farming से भी जुड़ा हुआ है। अब ये मान के चलिए कि दुनिया में organic चीजों का एक बहुत बड़ा बाजार खुल गया है। holistic health care ये by and large समाज का स्‍वभाव बना है।

अभी हमने देखा योगा दिवस पर दुनिया ने क्‍या इसको महत्‍व दिया है। वो इसी बात का परिचायक है कि holistic health care की तरफ पूरी दुनिया जागरूक हुई, उसमें युवा पीढ़ी ज्‍यादा जागृत है। कुछ लोग तो यहां तक exchange ला रहे हैं कि वो chemical से color किए हुए कपड़े पहनने के बजाए colored cotton से बना हुआ कपड़ा ही पसंद करते हैं और अब तो cotton भी कई colors में आना शुरू हुआ है। natural grow हो रहा है, genetic engineering के कारण। लेकिन organic requirement दुनिया में बहुत बढ़ रही है। हमारा किसान जिस पैदावार से एक रुपया कमाता है अगर वो organic है तो उसका एक डॉलर मिल जाता है। economically बहुत viable हो रहा है। लेकिन, उसके कुछ नियम है, कुछ आवश्‍यकताएं हैं। लेकिन एक काम हम कर सकते हैं क्‍या? आज मान लीजिए देश में vermin-composting . मान लीजिए आज 50 मिलियन टन होता है।

मैं आपको अनुमान कहता हूं। क्‍या vermin-composting हम 500 मिलियन टन कर सकते हैं क्‍या? आज अगर केंचुएं, earth warms . ये मान लीजिए देश में 10 मिलियन टन है। ये 100 मिलियन टन हो सकते हैं क्‍या। आपको कुछ नहीं करना है। सिर्फ लोगों को ज्ञान देना है, बाकी काम तो वो केंचुएं खुद कर लेंगे। और कोई भी छोटे नगर के बगल में ये काम चलता है, तो उस शहर आधा कूड़ा-कचरा वो ही साफ कर देंगे। स्वच्‍छता का काम भी चल जाएगा, composed fertilizer भी तैयार हो जाएगा और जो केंचुए का काम करते हैं उनके केंचुएं भी बिकते हैं। बहुत बड़ी मात्रा में केंचुएं बिकते हैं। एक ऐसा क्षेत्र है कि जो organic farming को बढ़ावा दे सकता है, हमारा कूड़ा-कचरा साफ हो सकता है, हमारे chemical fertilizer की requirement कम होती है, किसान की खेती सस्‍ती हो सकती है। इन चीजों को साथ लेकर के हम सब वैज्ञानिक जगत के लोग। क्‍योंकि ये बात आपके level पर आएगी तो गले उतरेगी और उसको स्‍वीकार करेगा। आप प्रयोग करके कहीं लगाओगे वो करेगा। कुछ लोग कर रहे हैं। स्‍वच्‍छता अभियान का सबसे बड़ा दूत केंचुआ बन सकता है और हमारा बहुत बड़ा काम वो कर सकता है और उससे organic farming को एक बहुत बड़ा बढ़ावा मिल सकता है। हमारी जमीन बर्बाद हो रही है। chemical के कारण उसकी उर्वरा ताकत कम होती रही है, उसकी हमें चिन्‍ता करने की आवश्‍यकता है। ये काम हो सकता है सहज रूप से। ये चीजें प्राकृतिक व्‍यवस्‍थाओं का उपयोग करते हुए की जा सकती हैं। मैं आग्रह करता हूं कि हम हमारे कृषि जीवन में जो second green revolution की ओर जा रहे है। उसको एक नए दायरे पर ले जा सकते है।

कई वर्षों से pulses में yield में भी बढ़ावा नहीं हो पा रहा है और pulses में सबसे बड़ी challenge है कि उसके protein content कैसे बढ़े? क्‍योंकि भारत जैसा देश जहां दलहन से ही protein प्राप्‍त होता है गरीब को, protein content ज्‍यादा हो इस प्रकार का दलहन का निर्माण कैसे हो? ये हमारे scientist lab के अंदर mission के रूप में काम करें। हम उसमें achieve कर सकते है परिणाम मिल सकता है।

हमारे देश का तिरंगा झंडा और उसमें blue colour का चक्र। मैं मानता हूं देश में चर्तुर क्रांति की आवश्‍यकता है। तिरंगें झंडे के तीन रंग जो है और blue colour का चक्र है उन चार रंगों की चर्तुर क्रांति की आवश्‍यकता है।



एक तो saffron revolution, अब saffron revolution का अर्थ पता है भांति-भांति के लोग अलग-अलग करेंगे। ऊर्जा का रंग है saffron और कहने का मेरा तात्‍पर्य है ऊर्जा क्रांति। ऊर्जा क्रांति बहुत आवश्‍यक है। अब आप देखिए बिहार इतना बड़ा प्रदेश। सिर्फ 250-300 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन का होता है। अभी मैं भूटान गया, भूटान के अंदर hydropower project का मैंने काम शुरू किया है, उसकी maximum बिजली बिहार को मिलने वाली है...Maximum बिजली।

बिहार को आगे ले जाने के लिए आज मैंने अभी एक पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय ग्राम ज्‍योति योजना का आरंभ किया गांव में 24 घंटे बिजली। हमारे किसानों को भी अगर value addition के लिए जाना है तो उसको इस प्रकार की बिजली की सुविधा सबसे पहले चाहिए तब जा करके वो technology introduce करेगा और इसलिए हम भूटान से नेपाल से ऊर्जा के द्वारा कैसे बिजली बिहार को पहुंचे, बहुत बड़ी मात्रा में बिजली कैसे मिलें उस दिशा में काम में लगे है आज बिहार की अपनी बिजली है उसे तीन गुना का काम मैंने भूटान में जा करके कर दिया है। लेकिन उससे काम होने वाला नहीं है उसकी और जरूरत है।

दूसरा है green revolution जिसकी मैंने चर्चा की, हरा रंग है, तीसरा है white colour, white revolution और white revolution में हम जानते है। हमारा दूध उत्‍पादन, हमारे पशुओं की तुलना में दूध की quantity बहुत कम है। ये हमारी quantity कैसे बढ़े, पशुओं की संख्‍या बढ़ने से काम होना नहीं है। पशु के द्वारा ज्‍यादा दूध उत्‍पादन..... और हमारे पशुपालन को भी आधुनिक बनाना पड़ेगा। हमारे यहां जो sheeps है...भेड़े। मैंने एक छोटा प्रयोग किया था जब गुजरात में था। हमारा जो भेड़ पालने वाला होता है वो जब उसका ऊन निकालता है, उसके बाल निकालता है तो उसके पास एक कैंची होती है । उसके टुकड़े हो जाते है। टुकड़े होने के कारण जो income होती है वो इतनी income होती नहीं है। दाम कम हो जाता है। मैंने क्या किया ऐसे जितने भेड़ वाले थे उनको जो five star hotel में और नीतिश कुमार जी जिस मशीन का उपयोग करते है trimming का। मैंने सभी जो भेड़ पालक है उनको मशीन दिया और battery वाला दिया। तो आज वो क्‍या करता है साल में दो बार उस मशीन से उसके बाल निकालता है। उसकी लंबाई ज्‍यादा होने के कारण उसकी income बढ़ गई। छोटी-छोटी चीजे होती हैं जी, लेकिन सामन्‍य प्रयोगों से भी हम कितना बड़ा बदलाव ला सकते है।

हम हैरान है जी, हमारा देश इतनी सारी हम आज भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारे यहां पशुओं के hospital में dentist की व्‍यवस्‍था नहीं होगी पशुओं के लिए। अगर हमारे दांत खराब होते हैं तो पशुओं के होते नहीं है। पशु खाता नहीं है या loose motion कर देता है। कोई पूछने को तैयार नहीं, देखने को तैयार नहीं कि उसका dental problem है। मैं जब गुजरात में था मैंने एक बड़ा अभियान चलाया था पशुओं की dental treatment का। हमारा मोतीबिंदु होता है पशु का मोतिबिंदु होता था मैं पशुओं का मोतिबिंदु का ऑपरेशन करता था बहुत बड़ी मात्रा में। मैंने अमेरिका हमारे कुछ डॉक्‍टरों को भेजा था lager technology सीखने के लिए और पशुओं का bloodless surgery कैसे हो और मैं पशुओं के bloodless surgery में सफलतापूर्वक हमारे यहां लोगों को काम पर लगाया था। हमारे पशुपालन को वैज्ञानिक तरीकों में हमें लाना पड़ेगा। उसकी भी पीड़ा को हमें समझना होगा और मैं मानता हूं, तब जा करके हम white revolution की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

और मैंने चौथा कहा वो, blue revolution. आज भी बिहार में इतना पानी है, लेकिन बिहार, आंध्र से 400 करोड़ रुपए की मछली लाकर के खाता है। अगर हम blue revolution करें। गरीब से गरीब किसान, जहां छोटे-मोटे तालाब हैं। अगर हम उसको मत्‍स्‍य उद्योग और उसमें भी कई अब तो विशेषताएं हैं। even ornamental fish का revolution इतना बढ़ आया है। बहुत बड़ा market है, global market है, ornamental fish का। हम अगर इस blue revolution की ओर भी उतना ही ध्‍यान दें और ये सारी चीजें हैं जो ultimately गांव-गरीब किसान का भला करती है और इसलिए हम इन बातों को लेकर के हमारे वैज्ञानिक तौर-तरीकों के साथ ये जो हमारा तिरंगे झंडे का तीनों रंग है और चौथा हमारा blue अशोक चक्र है, उन चतुर्थ क्रान्‍ति की दिशा में कैसे आगे बढ़े और हमारे किसान भाइयों के भलाई के लिए और एक सुरक्षित आर्थिक व्‍यवस्‍था किसानों को मिले, उस दिशा में कैसे काम करे।

मैं फिर एक बार राधामोहन सिंह जी का अभिनन्‍दन करता हूं कि आज पटना में। क्‍योंकि मुझे लगता है जी हिन्‍दुस्‍तान का green revolution, second green revolution को पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्‍चिम बंगाल, असम से ही आने वाला है। ये मैं साफ देख पा रहा हूं। और यही बिहार की धरती हिन्‍दुस्‍तान में कृषि क्रान्‍ति लाकर रहेगी और जिसका प्रारंभ आज इस कार्यक्रम से हो रहा है।

मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

Explore More
140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day

Popular Speeches

140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day
Indian Railways on track to join elite league of TOP 3 global freight carriers

Media Coverage

Indian Railways on track to join elite league of TOP 3 global freight carriers
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
বাবলিয়ালী ধামৰ এক কাৰ্য্যসূচীত প্ৰধানমন্ত্ৰীৰ বক্তব্যৰ পূৰ্ণ পাঠ
March 20, 2025
Quoteসেৱাৰ প্ৰতি নিষ্ঠা, প্ৰকৃতিৰ প্ৰতি প্ৰেম আৰু গো সুৰক্ষাৰ প্ৰতি দায়বদ্ধতাৰ বাবে প্ৰধানমন্ত্ৰীয়ে ভৰৱাদ সম্প্ৰদায়ৰ প্ৰশংসা
Quoteউন্নয়নশীল ভাৰত গঢ়াৰ দিশত গাঁওসমূহৰ উন্নয়ন হৈছে প্ৰথম পদক্ষেপঃ প্ৰধানমন্ত্ৰী
Quoteআধুনিকতাৰ জৰিয়তে সমাজখনক সবলীকৰণৰ বাবে শিক্ষাৰ গুৰুত্বৰ ওপৰত জোৰ দিলে প্ৰধানমন্ত্ৰীয়ে
Quoteদেশৰ সৰ্ববৃহৎ শক্তি “সবকা প্ৰয়াস”ৰ গুৰুত্বৰ ওপৰত আলোকপাত প্ৰধানমন্ত্ৰীৰ

মহন্ত শ্ৰী ৰাম বাপু জী, সমাজৰ বিশিষ্ট লোকসকল, ইয়ালৈ অহা সকলো ভক্ত ভাই-ভনী, নমস্কাৰ।

প্ৰথমে ভৰৱদ সমাজৰ পৰম্পৰাৰ প্ৰতি আৰু সমগ্ৰ পৰম্পৰাৰ বাবে নিজৰ জীৱন উৎসৰ্গা কৰা সকলো শ্ৰদ্ধাৰ সন্ত, মহন্ত আৰু সকলো সমাজলৈ শ্ৰদ্ধা নিবেদন কৰিছোঁ। আজি আনন্দ বহুগুণ বৃদ্ধি পাইছে। এইবাৰ যি মহাকুম্ভ অনুষ্ঠিত হৈছিল, সেয়া ঐতিহাসিক আছিল যদিও সেয়া আমাৰ বাবে গৌৰৱৰ বিষয়ো। কাৰণ মহাকুম্ভৰ শুভ উপলক্ষত মহন্ত শ্ৰী ৰাম বাপু জীয়ে মহা মণ্ডলেশ্বৰ উপাধি লাভ কৰিছিল। এয়া যথেষ্ট বৃহৎ অনুষ্ঠান আৰু আমাৰ সকলোৰে বাবে অসীম আনন্দৰ অনুষ্ঠান। মই ৰাম বাপুজীৰ লগতে সমাজৰ সমূহ পৰিয়ালৰ সকলো সদস্যলৈ মোৰ আন্তৰিক শুভেচ্ছা জ্ঞাপন কৰিলোঁ।

যোৱা এসপ্তাহত এনে লাগিল যেন ভাৱনগৰৰ ভূমি ভগৱান শ্ৰীকৃষ্ণৰ বৃন্দাবন হৈ পৰিল আৰু ইয়াত যি ধৰণে ভক্তি ৰস বৈছিল, পৰিবেশটো এনেকুৱা আছিল যে কৃষ্ণ ভক্তিত ভক্তসকল গদ-গদ হৈ পৰিছিল। মোৰ মৰমৰ আত্মীয়সকল, বাবলিয়ালী ঠাইখন কেৱল এক ধৰ্মীয় স্থানেই নহয়, বৰঞ্চ ভৰৱদ সমাজকে প্ৰমুখ্য কৰি বহুতৰে বাবে এয়া বিশ্বাস, সংস্কৃতি আৰু ঐক্যৰ প্ৰতীক।

 

|

নগা লাখা ঠাকুৰৰ কৃপাত এই পবিত্ৰ স্থানে সদায়েই ভৰৱদ সমাজলৈ প্ৰকৃত দিশৰ অপৰিসীম ঐতিহ্য আৰু মহান প্ৰেৰণাৰ সঞ্চাৰ কৰি আহিছে। আজি এই ধামত শ্ৰী নগা লাখা ঠাকুৰ মন্দিৰৰ পুনৰ পবিত্ৰকৰণ আমাৰ বাবে এক সোণালী সুযোগ হৈ পৰিছে। যোৱা এসপ্তাহ ধৰি যেন বহু সমাগমৰ সৃষ্টি হৈছে। সমাজত বিৰাজ কৰা উৎসাহ আৰু উত্তেজনা... সকলোতে হাত চাপৰিৰ শব্দ শুনিবলৈ পাইছোঁ। মই অনুভৱ কৰোঁ যে মই আপোনালোক সকলোৰে ওচৰলৈ মোৰ হাতখন আগবঢ়াব লাগে, কিন্তু সংসদ আৰু আন কামৰ বাবে ওলাই যোৱাটো টান। কিন্তু আমাৰ হাজাৰ-হাজাৰ ভনীৰ ৰাসৰ কথা শুনিলেই অনুভৱ হয়, বাহ, তেওঁলোকে ঠিক তাতেই বৃন্দাবনক জীয়াই তুলিছে।

বিশ্বাস, সংস্কৃতি আৰু পৰম্পৰাৰ সংমিশ্ৰণ আৰু মিলনে মন আৰু আত্মাক আনন্দিত কৰি তোলে। এই সকলোবোৰ কাৰ্য্যসূচীতে শিল্পী ভাই-ভনীসকলে অংশগ্ৰহণ কৰি অনুষ্ঠানটোক সজীৱ কৰি তুলিছিল আৰু সমাজলৈ এক সময়োপযোগী বাৰ্তা প্ৰেৰণ কৰিছিল। ভাই জীয়েও তেখেতৰ কথাৰ জৰিয়তে আমাক সময়ে-সময়ে বাৰ্তা প্ৰদান কৰিব বুলি মই নিশ্চিত।

মহন্ত শ্ৰী ৰাম বাপুজী আৰু বাবলিয়ালী ধামক এই শুভ অনুষ্ঠানৰ অংশ কৰি তোলাৰ বাবে ধন্যবাদ জ্ঞাপন কৰিছোঁ। মই এতিয়া ক্ষমা খুজিব লাগিব, কাৰণ এই পবিত্ৰ অনুষ্ঠানত মই আপোনালোকৰ লগত থাকিব নোৱাৰিলোঁ। মোৰ ওপৰত আপোনালোক সকলোৰে সমান অধিকাৰ আছে। ভৱিষ্যতে তালৈ নিশ্চয় আহিম প্ৰণাম কৰিবলৈ।

মোৰ মৰমৰ পৰিয়ালৰ সদস্যসকল,

ভৰৱদ সমাজ আৰু বাবলিয়ালীধামৰ সৈতে মোৰ সম্পৰ্ক দীঘলীয়া; ভৰৱদ সমাজৰ সেৱা আৰু প্ৰকৃতিৰ প্ৰতি তেওঁলোকৰ প্ৰেম, গো সেৱাৰ মনোভাৱ কেৱল শব্দৰে বৰ্ণনা কৰাটো কঠিন। এই সম্পৰ্কে আমাৰ সকলোৰে মুখেৰে এটা কথাই ওলাই আহে,

 

|

নগা লাখা লোক ভাল,

পশ্চিম ভূমিৰ বেদনা।

নিমখীয়া পানী মিঠা হয়,

শুকান নদীবোৰত পানী বৈ থাকে।

ইয়াক কেৱল শব্দৰে বুজাব নোৱাৰি। সেই যুগত সেৱাৰ মনোভাৱ, কঠোৰ পৰিশ্ৰম (নেভা কে পানী মোভে লগা লিয়ে – গুজৰাটীত এইবুলি কোৱা হয়), সেৱাৰ কামত প্ৰকৃতিকৰণ দেখা গৈছিল, সেৱাৰ সুগন্ধি প্ৰতিটো খোজতে বিয়পি পৰিছিল আৰু আজি বহু যুগৰ পিছতো ৰাইজে এই কথা মনত পেলাইছে, এয়া এটা গুৰুত্বপূৰ্ণ কথা। পূজ্য ইছু বাপুৱে আগবঢ়োৱা সেৱাৰ মই প্ৰত্যক্ষ সাক্ষী আছিলোঁ, তেওঁৰ সেৱাৰ মনোভাৱ প্ৰত্যক্ষ কৰিছোঁ। আমাৰ গুজৰাটত খৰাং বতৰ নতুন কথা নহয়। এটা সময়ত দহ বছৰৰ ভিতৰত সাত বছৰ খৰাং পৰিস্থিতিৰ সৃষ্টি হৈছিল। গুজৰাটত কোৱা হৈছিল যে ধনডুকা (খৰাং প্ৰভাৱিত অঞ্চল)ৰ কন্যাক বিয়া নাপাতিব। (গুজৰাটী – বান্দুকে দেজো পান ধনডুকে না দেতা মানে ছোৱালীজনীক ধনডুকা (খৰাং অঞ্চল)ত বিয়া নিদিব (ইয়াৰ কাৰণ আছিল যে সেই সময়ত ধনডুকাত খৰাং আছিল) ধনডুকা, ৰণপুৰতো পানীৰ বাবে হাহাকাৰ পৰিবেশৰ সৃষ্টি হৈছিল। পূজ্য ইছু বাপুৱে যি সেৱা কৰিছে সেয়া স্পষ্ট হৈ পৰিছে কেৱল মই নহয়, গোটেই গুজৰাটৰ লোকে তেওঁৰ কামক ভগৱানৰ কাম বুলি গণ্য কৰে। মানুহে তেওঁক সদায় প্ৰশংসা কৰি আহিছে। সেয়া ভাই-ভনীৰ সেৱাই হওঁক, পৰিবেশৰ প্ৰতি সমৰ্পণৰ মনোভাৱেই হওঁক, গীৰ-গৰুৰ সেৱাই হওঁক, তেওঁৰ সকলো কামতে আমাৰ এই সেৱাৰ পৰম্পৰা বিদ্যমান।

মোৰ মৰমৰ আত্মীয়সকল,

কঠোৰ পৰিশ্ৰম আৰু ত্যাগৰ ক্ষেত্ৰত ভৰৱদ সমাজৰ লোকসকল সদায় আগবাঢ়ি আছে। আপোনালোক সকলোৰে জ্ঞাত যে মই যেতিয়া আপোনালোকৰ মাজলৈ আহিছিলোঁ, তেতিয়া মই ভৰৱদ সমাজক কৈছিলোঁ যে এতিয়া লাঠিৰ সময় নহয়, তোমালোকে লাঠি লৈ যথেষ্ট ঘূৰি ফুৰিছা, কিন্তু এতিয়া কলমৰ সময়হে। আৰু মই গৌৰৱেৰে ক’ব লাগিব যে যেতিয়াই গুজৰাটত সেৱা আগবঢ়োৱাৰ সুযোগ পাইছোঁ তেতিয়াই ভৰৱদ সমাজৰ নতুন প্ৰজন্মই মোৰ কথা মানি লৈছে। শিশুসকলে শিক্ষা লাভ কৰি আগবাঢ়ি যাবলৈ আৰম্ভ কৰিছে। আগতে মই কৈছিলোঁ, লাঠিডাল এৰি কলমটো তুলি লোৱা। এতিয়া মই কওঁ যে মোৰ ছোৱালীহঁতৰ হাততো কম্পিউটাৰ থাকিব লাগে। পৰিৱৰ্তিত সময়ত আমি বহুত কৰিব পাৰোঁ। এয়াই হৈ পৰে আমাৰ প্ৰেৰণা। আমাৰ সমাজখনেই প্ৰকৃতি আৰু সংস্কৃতিৰ ৰক্ষক। আপোনাসৱে সঁচাকৈয়ে ‘অতিথি দেৱো ভৱ’ উক্তিটোক জীয়াই তুলিছে। ইয়াত মানুহে চেফাৰ্ড আৰু বালুভা সমাজৰ পৰম্পৰাৰ বিষয়ে কমকৈ জানে। ভৰৱদ সমাজৰ বয়োজ্যেষ্ঠ লোক বৃদ্ধাশ্ৰমত পোৱা নাযাব। যৌথ পৰিয়াল, ঈশ্বৰৰ সেৱা কৰাৰ দৰে প্ৰবীণসকলক সেৱা কৰাৰ অনুভূতি তেওঁলোকৰ মাজত আছে। বয়োজ্যেষ্ঠসকলক বৃদ্ধাশ্ৰমলৈ পঠিওৱা নহয়, তেওঁলোকেই তেওঁলোকৰ সেৱা কৰে। নতুন প্ৰজন্মক প্ৰদান কৰা এই প্ৰমূল্যবোধৰাজি গুৰুত্বপূৰ্ণ কথা। ভৰৱদ সমাজৰ সামাজিক জীৱনৰ নৈতিক মূল্যবোধ আৰু তাৰ মাজত থকা পাৰিবাৰিক মূল্যবোধক সদায় শক্তিশালী কৰাৰ বাবে প্ৰজন্মৰ পিছত প্ৰজন্মই প্ৰচেষ্টা গ্ৰহণ কৰি আহিছে। মই সন্তোষ পাইছোঁ যে আমাৰ সমাজে আমাৰ পৰম্পৰা ৰক্ষা কৰি আছে আৰু লগতে আধুনিকতাৰ দিশত দ্ৰুত গতিত আগবাঢ়িছে। আমি তেওঁলোকৰ পৰিয়ালৰ সন্তান সকলক শিক্ষিত কৰি তুলিব লাগে, তেওঁলোকৰ বাবে হোষ্টেলৰ সুবিধা গঢ়ি তুলিব লাগে, এয়াও এক প্ৰকাৰৰ পৰম সেৱা। আধুনিকতাৰ সৈতে সমাজক সংযোগ কৰাৰ কাম, বিশ্বৰ সৈতে দেশক সংযোগ কৰাৰ নতুন সুযোগ সৃষ্টি কৰা কামটোও এক বৃহৎ সেৱাৰ কাম। এতিয়া মই কামনা কৰোঁ যে আমাৰ ছোৱালীবোৰো ক্ৰীড়াৰ ক্ষেত্ৰত আগবাঢ়ি আহক আৰু তাৰ বাবে আমি কাম কৰিব লাগিব। গুজৰাটত থাকোঁতে স্প’ৰ্টছ মহা কুম্ভত দেখিছিলোঁ যে সৰু-সৰু ছোৱালীবোৰে স্কুললৈ গৈ ক্ৰীড়াত ভাল নম্বৰ লাভ কৰিছিল। এতিয়া তেওঁলোকৰ শক্তি আছে, ভগৱানে তেওঁলোকক বিশেষ কিবা এটা গুণ প্ৰদান কৰিছে, গতিকে এতিয়া তেওঁলোকৰ বাবেও চিন্তা কৰাৰ প্ৰয়োজন আছে। আমি পশুপালনৰ কথা চিন্তা কৰোঁ। আমি ইয়াৰ স্বাস্থ্যৰ দিশত কাম কৰোঁ; এতিয়া মাত্ৰ আমাৰ সন্তানৰ প্ৰতিও একে অনুভৱ আৰু চিন্তা থাকিব লাগিব। বাবলিয়ালী ধামে পশুপালনৰ ক্ষেত্ৰত গুৰুত্বপূৰ্ণ পদক্ষেপ গ্ৰহণ কৰি আহিছে। বিশেষভাৱে ইয়াত গীৰ গৰুৰ জাতৰ যত্ন লোৱাৰ ধৰণক লৈ সমগ্ৰ দেশে গৌৰৱ অনুভৱ কৰে। আজি সমগ্ৰ বিশ্বতে গীৰ গৰুৰ প্ৰতিপালন কৰা হয়।

 

|

মোৰ মৰমৰ পৰিয়ালৰ সদস্যসকল,

ভাই-ভনীসকল, আমি বেলেগ নহয়, আমি সকলো বন্ধু, মই সদায় অনুভৱ কৰি আহিছোঁ যে আমি এটা পৰিয়ালৰ সদস্য। মই সদায় পৰিয়ালৰ এগৰাকী সদস্যৰ দৰে আপোনালোকৰ মাজত আছোঁ। আজি বাবলিয়ালী ধামলৈ অহা পৰিয়ালৰ সকলো সদস্য, লাখ-লাখ লোকে ইয়াত আসন গ্ৰহণ কৰি আছে, আপোনালোকক মই সুধিব বিচাৰিছোঁ আৰু মোৰ বিশ্বাস যে আপোনাসৱে মোক কেতিয়াও নিৰাশ নকৰে। আমি আৰু এনেকৈ জীয়াই থাকিব নালাগে, জাঁপ মাৰি পঁচিশ বছৰত ভাৰতক বিকশিত কৰিব লাগিব। আপোনালোকৰ সহায় অবিহনে মোৰ কাম আধৰুৱা হৈ থাকিব। এই কামত সমগ্ৰ সমাজে যোগ দিব লাগিব। আপোনালোকৰ মনত আছে যে মই লালকিল্লাৰ পৰাই কৈছিলোঁ, সকলোৰে প্ৰচেষ্টা... সকলোৰে প্ৰচেষ্টা আমাৰ আটাইতকৈ পৰম শক্তি। ভাৰতক এখনি উন্নত ভাৰত হিচাপে গঢ়ি তোলাৰ প্ৰথম পদক্ষেপ হ'ল আমাৰ গাঁওসমূহৰ উন্নয়ন সাধন। আজি প্ৰকৃতি আৰু পশুধনৰ সেৱা কৰা আমাৰ স্বাভাৱিক ধৰ্ম হৈ পৰিছে। তেতিয়া আৰু কি কাম আমি কৰিব নোৱাৰিম... ভাৰত চৰকাৰে এখন আঁচনি ৰূপায়ণ কৰিছে আৰু সেয়া সম্পূৰ্ণ বিনামূলীয়া - ভৰি আৰু মুখৰ ৰোগ, যাক আমি ‘খুৰপাকা, মুহপাকা’ ৰোগ বুলি জানোঁ। আমি নিয়মিতভাৱে ভেকচিন প্ৰদান কৰিব লাগিব, তেতিয়াহে আমাৰ জীৱ-জন্তুবোৰে এই ৰোগৰপৰা পৰিত্ৰাণ লাভ কৰিব। এয়া এক মমতাৰ কাম। এতিয়া চৰকাৰে বিনামূলীয়াকৈ ভেকচিন প্ৰদান কৰে। আমি নিশ্চিত কৰিব লাগিব যে আমি এই ভেকচিন আমাৰ সমাজৰ পশুধনক প্ৰদান কৰোঁ, নিয়মিতভাৱে। তেতিয়াহে আমি ভগৱান শ্ৰীকৃষ্ণৰ অবিৰত আশীৰ্বাদ পাম। এতিয়া আমাৰ চৰকাৰে আৰু এটা গুৰুত্বপূৰ্ণ কাম কৰিলে। আগতে কৃষকসকলক কিষাণ ক্ৰেডিট কাৰ্ড প্ৰদান কৰা হৈছিল, এতিয়া আমি পশুপালকসকলকো ক্ৰেডিট কাৰ্ড প্ৰদানৰ সিদ্ধান্ত গ্ৰহণ কৰিছোঁ। এই কাৰ্ডৰ জৰিয়তে এতিয়া পশুপালকসকলে কম সুতত বেংকৰ পৰা ঋণ গ্ৰহণেৰে ব্যৱসায়ৰ সম্প্ৰসাৰণ কৰিব পাৰিব। থলুৱা জাতৰ গৰুৰ প্ৰচাৰ, সম্প্ৰসাৰণ আৰু সংৰক্ষণৰ বাবেও ৰাষ্ট্ৰীয় গোকুল মিছন ৰূপায়ণ কৰা হৈছে। মই আপোনালোকক অনুৰোধ কৰিব খুজিছোঁ যে মই দিল্লীত থাকি এই সকলোবোৰ কৰি থাকিম আৰু আপোনালোক সকলোৱে যদি ইয়াৰ সুবিধা গ্ৰহণ নকৰে, তেন্তে কেনেকৈ ইয়াৰ ফলপ্ৰসূ ৰূপায়ণ সম্ভৱ হ’ব। সেয়ে আপোনালোকে ইয়াৰ সুবিধা গ্ৰহণ কৰিব লাগিব। আপোনাৰ লগতে লাখ-লাখ জীৱ-জন্তুৰ আশীৰ্বাদ লাভ কৰিম। আপোনাসৱেও সকলো জীৱৰ পৰা আশীৰ্বাদ লাভ কৰিব। গতিকে মই এই আঁচনিৰ সুবিধা গ্ৰহণ কৰিবলৈ আপোনালোকক অনুৰোধ জনালোঁ। দ্বিতীয় গুৰুত্বপূৰ্ণ কথাটো হ’ল যিটো মই পূৰ্বে কৈছোঁ আৰু আজি পুনৰ আওৰাইছোঁ যে আমাৰ সকলোৰে জ্ঞাত যে এই বছৰ মই এটা অভিযান আৰম্ভ কৰিছিলোঁ, যাৰ সমগ্ৰ বিশ্বৰ লোকে শলাগ লৈছে। মাৰ নামত এটি গছপুলি, যদি আমাৰ মা জীয়াই থাকে তেন্তে তেওঁৰ সান্নিধ্যত এজোপা গছ ডাঙৰ হোৱা আৰু যদি মা জীয়াই নাথাকে তেন্তে তেওঁৰ ফটো সন্মুখত ৰাখি এজোপা গছ ডাঙৰ হোৱা। আমি ভৰৱদ সমাজৰ এনে লোক, যাৰ তৃতীয়-চতুৰ্থ প্ৰজন্মৰ বয়োজ্যেষ্ঠসকল নব্বৈ বছৰলৈকে জীয়াই থাকে আৰু আমি তেওঁলোকৰ সেৱা কৰোঁ। আমি আমাৰ মাৰ নামত এটি গছপুলি ৰোপণ কৰিব লাগিব আৰু গৌৰৱ অনুভৱ কৰোঁ যে সেয়া মোৰ মাৰ নামত, মোৰ মাৰ স্মৃতিত। আপোনালোকৰ জ্ঞাত নে, আমিও ধৰিত্ৰী মাতৃক অসুখী কৰি তুলিছোঁ, আমি পানী উলিয়াই থাকিলোঁ, ৰাসায়নিক পদাৰ্থ যোগ কৰি থাকিলোঁ, তেওঁক পিয়াহ লগাই দিলোঁ। সেয়েহে ধৰিত্ৰী মাতৃক সুস্থ কৰি তোলাটোও আমাৰ দায়িত্ব। আমাৰ গো পালকসকলৰ গৰু-ম’হৰ গোবৰ আমাৰ ধৰিত্ৰী মাতৃৰ বাবেও ধনৰ দৰে, ই ধৰিত্ৰী মাতৃক নতুন শক্তি প্ৰদান কৰিব। প্ৰাকৃতিক কৃষি ধৰিত্ৰী মাতৃৰ বাবে গুৰুত্বপূৰ্ণ। যাৰ মাটি আৰু সুযোগ আছে তেওঁলোকে প্ৰাকৃতিক কৃষি কাৰ্য্য কৰক। গুজৰাটৰ ৰাজ্যপাল আচাৰ্য্য জীয়ে প্ৰাকৃতিক খেতিৰ বাবে ইমানখিনি কৰিছে। আপোনালোক সকলোকে অনুৰোধ জনালোঁ যে আমাৰ যিমানেই কম-বেছি মাটি নাথাকক কিয়, আমি প্ৰাকৃতিক খেতিৰ ফালে মুখ কৰি ধৰিত্ৰী মাতৃক সেৱা আগবঢ়াওঁ আহক।

প্ৰিয় ভাই-ভনীসকল,

মই ভৰৱদ সমাজলৈ পুনৰবাৰ শুভেচ্ছা জ্ঞাপন কৰিছোঁ আৰু পুনৰবাৰ প্ৰাৰ্থনা কৰিছোঁ যাতে নগা লাখা ঠাকুৰৰ আশীৰ্বাদ আমাৰ সকলোৰে ওপৰত থাকে আৰু বাবলিয়ালী ধামৰ সৈতে জড়িত সকলো লোক সমৃদ্ধিশালী হওঁক, এয়াই মোৰ প্ৰাৰ্থনা ঠাকুৰৰ চৰণত। আমাৰ কন্যা আৰু ল’ৰা-ছোৱালীয়ে শিক্ষা লাভ কৰি আগবাঢ়ি আহক, সমাজখন সবল হ’ব লাগে, ইয়াতকৈ আৰু কি লাগে আমাক। এই সোণালী উপলক্ষে ভাইজীৰ কথাক শ্ৰদ্ধাঞ্জলি জনাই আৰু আগুৱাই নিয়াৰ সমান্তৰালকৈ সমাজখনক আধুনিকতাৰ দিশত শক্তিশালী কৰি আগুৱাই নিয়াটো নিশ্চিত কৰোঁ আহক। বহুত ভাল লাগিল। মই নিজে অহা হ’লে আৰু বেছি উপভোগ কৰিলোঁহেঁতেন।