मेरे अटल जी

Published By : Admin | August 17, 2018 | 09:09 IST

अटल जी अब नहीं रहे। मन नहीं मानता। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।

वे पंचतत्व हैं। वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वेअटल हैं, वे अब भी हैं। जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो। इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान। लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है। जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है। बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है। 

कभी सोचा नहीं था, कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है। लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था। सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

हमारे देश में अनेक ऋषि, मुनि, संत आत्माओं ने जन्म लिया है। देश की आज़ादी से लेकर आज तक की विकास यात्रा के लिए भी असंख्य लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और 21वीं सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटल जी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था -बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं। इंडिया फर्स्ट –भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था।सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे। और ऐसा किया भी।दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।   

काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गयी तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे।  

अटल जी कभी लीक पर नहीं चले। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। आंधियों में भी दीये जलाने की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल थी।

राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले। देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया। लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे।

जीवन कैसे जीया जाए, राष्ट्र के काम कैसे आया जाए, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया। वे कहते थे, “हम केवल अपने लिए ना जीएं, औरों के लिए भी जीएं...हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता। किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी” 

देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वे जीवनभर प्रयास करते रहे। वेकहते थे गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी हैऔर विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता”। करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। गरीब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था।

आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी। वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे - स्वप्न दृष्टा थे लेकिन कर्म वीर भी थे।कवि हृदय, भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे। उन्होंने विदेश की यात्राएं कीं। जहाँ-जहाँ भी गए, स्थाई मित्र बनाये और भारत के हितों की स्थाई आधारशिला रखते गए। वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे।

अटल जी का प्रखर राष्ट्रवाद और राष्ट्र के लिए समर्पण करोड़ों देशवासियों को हमेशा से प्रेरित करता रहा है। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक नारा नहीं था बल्कि जीवन शैली थी। वे देश को सिर्फ एक भूखंड, ज़मीन का टुकड़ा भर नहीं मानते थे, बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे। “भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैयह सिर्फ भाव नहीं, बल्कि उनका संकल्प था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया। दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने अपनी इसी सोच को जीने में, धरातल पर उतारने में लगा दिया। आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था उसको मिटाने के लिए अटल जी के प्रयास को देश हमेशा याद रखेगा।

 

राष्ट्रभक्ति की भावना, जनसेवा की प्रेरणा उनके नाम के ही अनुकूल अटल रही। भारत उनके मन में रहा, भारतीयता तन में। उन्होंने देश की जनता को ही अपना आराध्य माना। भारत के कण-कण, कंकर-कंकर, भारत की बूंद-बूंद को, पवित्र और पूजनीय माना।

जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली उतना ही अधिक वह ज़मीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया। प्रभु से यश, कीर्ति की कामना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा,

हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना।

गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना

अपने देशवासियों से इतनी सहजता औरसरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन के एक अलग पायदान पर खड़ा करती है।

वेपीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप अपने भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे- जीवन भर। जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे- “देह धरण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोए। उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनाएं भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गए।  

यदि भारत उनके रोम रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी। इसी वजह से हिरोशिमा जैसी कविताओं का जन्म हुआ। वे विश्व नायक थे। मां भारतीके सच्चे वैश्विक नायक। भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करने वाले आधुनिक बुद्ध। 

कुछ वर्ष पहले लोकसभा में जब उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया था तब उन्होंने कहा था, “यह देश बड़ा अद्भुत है, अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा रहा है, अभिनंदन किया जा सकता है।”

अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता को प्रतिबिंबित करता है। यही सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का भारत बनाना है।

नए भारत का यही संकल्प, यही भावलिए मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं।

  • Babla sengupta April 20, 2025

    Babla sengupta.
  • Dheeraj Thakur April 02, 2025

    जय श्री राम जय श्री राम
  • Dheeraj Thakur April 02, 2025

    जय श्री राम
  • Chhedilal Mishra December 07, 2024

    Jai shrikrishna
  • कृष्ण सिंह राजपुरोहित भाजपा विधान सभा गुड़ामा लानी November 19, 2024

    जय मां भारती
  • जगपाल सिंह बुंदेला October 09, 2024

    जय जय श्री राम
  • manvendra singh September 24, 2024

    jai hind jai bharat 🙏🏽🙏🏽🙏🏽💐🙏🏽🙏🏽
  • Amrita Singh September 22, 2024

    जय श्री राम
  • दिग्विजय सिंह राना September 18, 2024

    हर हर महादेव
  • krishangopal sharma Bjp June 03, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏
Explore More
140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day

Popular Speeches

140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day
Built in India, building the world: The global rise of India’s construction equipment industry

Media Coverage

Built in India, building the world: The global rise of India’s construction equipment industry
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
একতাৰ মহাকুম্ভ – এটা নতুন যুগৰ প্ৰত্যুষত
February 27, 2025

শ্ৰী নৰেন্দ্ৰ মোদী
ভাৰতৰ প্ৰধানমন্ত্ৰী

পবিত্ৰ নগৰী প্ৰয়াগৰাজত মহাকুম্ভৰ সফলতাৰে সামৰণি পৰিল। ইয়াৰ লগে লগে সম্পূৰ্ণ হ'ল একতাৰ এক বিশাল মহাযজ্ঞৰো। যেতিয়া এটা জাতিৰ চেতনা জাগ্ৰত হয়, যেতিয়া ই শতিকা প্ৰাচীন বশ্যতা স্বীকাৰৰ মানসিকতাৰ কঠিন শিকলিৰ পৰা মুক্ত হয়, তেতিয়াই জাতিটোৱে , দেশখনে নতুন শক্তিৰ সতেজ বতাহেৰে মুক্তভাৱে উশাহ ল'বলৈ সক্ষম হয়।মুক্ত চিন্তাৰে মুক্তভাবে উশাহ ল'ব পৰাৰ পৰিবেশ এটা ১৩ জানুৱাৰীৰ পৰা প্ৰয়াগৰাজত অনুষ্ঠিত হোৱা একতাৰ মহাকুম্ভত সুন্দৰ ৰূপত প্ৰত্যক্ষ কৰা হৈছে।

|

২০২৪ চনৰ ২২ জানুৱাৰীত অযোধ্যাৰ ৰাম মন্দিৰৰ প্ৰাণ প্ৰতিষ্ঠাৰ সময়ত মই দেৱভক্তি আৰু দেশভক্তিৰ কথা কৈছিলো, মই কৈছিলো ঈশ্বৰিক আৰু দেশৰ প্ৰতি থকা ভক্তি তথা আত্মোসৰ্গাৰ বিষয়ে । প্ৰয়াগৰাজৰ মহাকুম্ভত বিভিন্ন প্ৰান্তৰ পৰা অহা সাধু- সন্ত, মহিলা, শিশু, যুৱক-যুৱতী, জ্যেষ্ঠ নাগৰিক আৰু সকলো শ্ৰেণীৰ লোক একত্ৰিত হৈছিল। আমি এই মহাকুম্ভতেই জাতিটোৰ জাগ্ৰত চেতনাৰ প্ৰতিফলন প্ৰত্যক্ষ কৰিলোঁ। এক কথাত এয়া আছিল একতাৰ মহাকুম্ভ, য’ত এই পবিত্ৰ অনুষ্ঠানৰ বাবে ১৪০ কোটি ভাৰতীয়ৰ আৱেগ একে ঠাইতে , একে সময়তে জাগ্ৰত হৈছিল৷

প্ৰয়াগৰাজৰ এই পবিত্ৰ অঞ্চলটো হৈছে ঐক্য, সম্প্ৰীতি আৰু প্ৰেমৰ পবিত্ৰ ভূমি শৃংগভেৰপুৰ, য'ত প্ৰভু শ্ৰীৰাম আৰু নিশাদৰাজৰ সাক্ষাৎ হৈছিল। তেওঁলোকৰ এই সাক্ষাৎ ভক্তি আৰু সদিচ্ছাৰ সংগমৰ প্ৰতীক আছিল। আজিও প্ৰয়াগৰাজত সেই ভক্তি আৰু সদিচ্ছাৰ ধ্বনি অনুৰণিত হৈ আছে, যিয়ে আমাক প্ৰতি পলতে অনুপ্ৰাণিত কৰি আহিছে।

|

যোৱা ৪৫ টা দিনত মই লক্ষ্য কৰিছো যে দেশৰ বিভিন্ন প্ৰান্তৰ পৰা কোটি কোটি লোকে সংগমলৈ বাট পোনাইছিল। সংগমস্থলীত আৱেগৰ ঢৌ উঠিছিল। ইয়ালৈ প্ৰতিগৰাকী ভক্তই এটাই উদ্দেশ্য লৈ আহিছিল – সেয়া হৈছে সংগমত পৱিত্ৰ স্নান কৰা। গংগা, যমুনা, সৰস্বতীৰ পৱিত্ৰ সংগমস্থলে প্ৰতিগৰাকী তীৰ্থযাত্ৰীক উৎসাহ, শক্তি, আত্মবিশ্বাসেৰে ভৰাই তুলিছিল।

|

মই ভাবো কোটি কোটি লোকে একে মনোভাবেৰে সমবেত হোৱা প্ৰয়াগৰাজৰ এই মহাকুম্ভ আধুনিক ব্যৱস্থাপনাৰ সৈতে জড়িত পেছাদাৰী, পৰিকল্পনাকাৰী আৰু নীতি বিশেষজ্ঞৰ বাবে অধ্যয়নৰ এক বিশেষ বিষয় হোৱা উচিৎ। কাৰণ পৃথিৱীৰ আন ক’তো ইমান বিশাল পৰিসৰত আয়োজিত আনুষ্ঠানৰ উদাহৰণ নাই।

সমগ্ৰ বিশ্বই আশ্বৰ্যৰে ভৰা নয়েনে প্ৰত্যক্ষ কৰিলে কিদৰে প্ৰয়াগৰাজৰ নদীৰ সংগমস্থলীৰ পাৰত কোটি কোটি মানুহ গোট খাইছিল। এই অনুষ্ঠানলৈ সেই লোকসকলক কোনো আনুষ্ঠানিক নিমন্ত্ৰণ দিয়া হোৱা নাছিল, তালৈ কেতিয়া যাব লাগিব সেই সম্পৰ্কেও পূৰ্বে কাৰো সৈতে কোনো যোগাযোগ কৰা হোৱা নাছিল। তথাপি কোটি কোটি মানুহে নিজৰ ইচ্ছামতে মহাকুম্ভলৈ ৰাওনা হৈছিল আৰু সংগমৰ পবিত্ৰ পানীত স্নান কৰাৰ আনন্দ অনুভৱ কৰিছিল।

|

সংগমত পৱিত্ৰ স্নান কৰাৰ পিছত অপৰিসীম আনন্দ আৰু সন্তুষ্টিৰ বিকিৰণেৰে আলোকিত হৈ পৰা সেই মুখবোৰ মই কেতিয়াও পাহৰিব নোৱাৰিম। সেয়া আছিল ঈশ্বৰিক দ্যুতি, কিবা এক প্ৰাপ্তিৰ আনন্দত উজ্জ্বল হৈ পৰা মুখ। মহিলা , বয়োজ্যেষ্ঠ, আমাৰ দিব্যাং ভাই-ভনীসকল – সকলোৱে কেৱল প্ৰয়াগৰাজৰ সংগমৰ দিশে ঢাপলি মেলিছিল।

|

প্ৰয়াগৰাজৰ মহাকুম্ভত ভাৰতৰ যুৱক-যুৱতীসকলৰ লক্ষ্যণীয় অংশগ্ৰহণ দেখি মই বিশেষভাবে উৎসাহিত হৈ পৰিছিলো। মহাকুম্ভত নৱপ্ৰজন্মৰ এনে বিশাল উপস্থিতিয়ে এক গভীৰ বাৰ্তা প্ৰেৰণ কৰিছে- সেয়া হৈছে ভাৰতৰ যুৱক-যুৱতীসকল আমাৰ গৌৰৱময় সংস্কৃতি আৰু ঐতিহ্যৰ ধ্বজাবাহক হিচাবে পৰিগণিত হৈছে। আমাৰ গৌৰৱময় সংস্কৃতি আৰু ঐতিহ্যৰ বিষয়ে যুৱক-যুৱতীসকলে বুজি উঠিছে আৰু এইবোৰৰ সংৰক্ষণৰ প্ৰতি তেওঁলোকৰ দায়িত্ব উপলব্ধি কৰি ইয়াক আগুৱাই নিয়াৰ বাবে প্ৰতিশ্ৰুতিবদ্ধ হৈছে।


প্ৰয়াগৰাজত এই মহাকুম্ভত উপস্থিত হোৱা লোকৰ সংখ্যাই নিঃসন্দেহে নতুন অভিলেখ সৃষ্টি কৰিছে। কিন্তু শাৰীৰিকভাৱে উপস্থিত থকাসকলৰ বাহিৰেও প্ৰয়াগৰাজত কায়িকভাবে উপস্থিত হ’ব নোৱাৰা কোটি কোটি লোকো এই অনুষ্ঠানৰ সৈতে আৱেগিকভাৱে গভীৰভাৱে জড়িত হৈ পৰিছিল। তীৰ্থযাত্ৰীসকলে লগত লৈ যোৱা পবিত্ৰ পানী লাখ লাখ লোকৰ বাবে আধ্যাত্মিক আনন্দৰ উৎস হৈ পৰিছিল। মহাকুম্ভৰ পৰা উভতি অহা বহু লোকক সমাজে সন্মান জনাই নিজৰ গাঁৱলৈ শ্ৰদ্ধাৰে আদৰণি জনোৱাও দেখা গৈছিল।

|

সঁচা অৰ্থত ক'বলৈ গ'লে যোৱা কেইসপ্তাহমানত যি ঘটিছে সেয়া আছিল অভূতপূৰ্ব আৰু ই আগন্তুক শতিকাবোৰৰ বাবে এক দৃঢ় ভেটি স্থাপন কৰিবলৈ সক্ষম হৈছে।

মানুহে কল্পনা কৰাতকৈও অধিক ভক্ত প্ৰয়াগৰাজত সমবেত হৈছে । দৰাচলতে কুম্ভৰ পূৰ্বৰ অভিজ্ঞতাৰ ভিত্তিতে প্ৰশাসনে ভক্তৰ উপস্থিতিৰ আনুমানিক হিচাপ কৰিছিল। সেয়ে কোনো অসুবিধা নোহোৱাকৈ সকলো সুচাৰু ৰূপে সম্পন্ন হৈছে৷

লক্ষ্যণীয় কথাটো হল আমেৰিকাৰ জনসংখ্যা যিমান ,তাৰ প্ৰায় দুগুণ লোকে এই একতাৰ মহাকুম্ভত অংশগ্ৰহণ কৰিছিল।

আধ্যাত্মিক পণ্ডিতসকলে যদি কোটি কোটি ভাৰতীয়ৰ এনে উৎসাহ ভৰা অংশগ্ৰহণৰ কথা বিশ্লেষণ কৰে তেন্তে তেওঁলোকে দেখিব যে নিজৰ ঐতিহ্যক লৈ ভাৰতীয়সকল কিমান গৌৰৱান্বিত আৰু তেওঁলোকে এতিয়া নতুনকৈ আৰহৰণ কৰা নৱ উদ্দীপনা তথা শক্তিৰে আগবাঢ়িছে। মোৰ বিশ্বাস- এয়া এক নতুন যুগৰ সূৰ্যোদয়, যিয়ে নতুন ভাৰতৰ ভৱিষ্যতৰ চিত্ৰনাট্য ৰচনা কৰিব৷

|

হাজাৰ হাজাৰ বছৰ ধৰি মহাকুম্ভই ভাৰতৰ জাতীয় চেতনাক শক্তিশালী কৰি তুলিছে। প্ৰতিটো পূৰ্ণকুম্ভই সন্ত, পণ্ডিত আৰু চিন্তাবিদৰ সমাৱেশৰ সাক্ষ্য বহন কৰিছে । প্ৰতিটো কুম্ভত সমবেত লোকসকলে নিজৰ সময়ৰ সামাজিক অৱস্থাৰ বিষয়ে আলোচনা কৰিছে৷ তেওঁলোকৰ চিন্তাৰ প্ৰতিফলনে দেশ আৰু সমাজখনক এক নতুন দিশ প্ৰদান কৰি আহিছে। প্ৰতি ছবছৰৰ মূৰে মূৰে অনুষ্ঠিত অৰ্ধকুম্ভৰ সময়ত এই ধাৰণাসমূহ পুনৰ ফঁহিয়াই চোৱা হৈছে। ১৪৪ বছৰৰ পিছত ১২টা পূৰ্ণকুম্ভ অনুষ্ঠিত হোৱাৰ অন্তত সমাজত অচল হৈ পৰা পৰম্পৰাবোৰ, ধাৰণাবোৰ পৰিত্যাগ কৰা হৈছে ৷ তাৰ ঠাইত নতুন ধাৰণাক আঁকোৱালি লোৱা হৈছে আৰু এনেদৰেই নতুন পৰম্পৰাৰ সৃষ্টি হৈ সময়ৰ লগে লগে সমাজখন আগবাঢ়ি গৈছে৷

১৪৪ বছৰৰ পাছত এই মহাকুম্ভত আমাৰ সাধু-সন্তসকলে পুনৰবাৰ ভাৰতৰ উন্নয়ন যাত্ৰাৰ বাবে আমাক এক নতুন বাৰ্তা দিছে। সেই বাৰ্তা হৈছে উন্নত ভাৰত – বিকশিত ভাৰত।

এই একতাৰ মহাকুম্ভত জাতি, ধৰ্ম আৰু মতাদৰ্শ নিৰ্বিশেষে ধনী বা দুখীয়া, ডেকা বা বুঢ়া, গাঁও বা চহৰৰ পৰা অহা লোক, ভাৰত বা বিদেশৰ পৰা অহা লোক, পূব বা পশ্চিমৰ পৰা অহা লোক, উত্তৰ বা দক্ষিণৰ পৰা অহা লোক,প্ৰতিগৰাকী তীৰ্থযাত্ৰীয়েই এক মনোভাবেৰে একত্ৰিত হৈছিল। কোটি কোটি মানুহৰ আস্থাৰে পৰিপূৰ্ণ এক ভাৰত, শ্ৰেষ্ঠ ভাৰতৰ দৃষ্টিভংগীৰ এয়া আছিল এক মূৰ্ত ৰূপ। এতিয়া, উন্নত ভাৰত গঢ়াৰ অভিযানৰ বাবে আমি একে মনোভাৱেৰেই একত্ৰিত হ’ব লাগিব।

|

মোৰ মনলৈ আহিছে সেই ঘটনাটোৰ কথা, য’ত বালক শ্ৰী কৃষ্ণই নিজৰ মুখৰ ভিতৰত থকা সমগ্ৰ বিশ্বব্ৰহ্মাণ্ডৰ এটা ৰূপ তেওঁৰ মাতৃ যশোদাৰ সন্মুখত উদ্ভাসিত কৰিছিল। সেইদৰে এই মহাকুম্ভতো ভাৰতৰ সামূহিক শক্তিৰ ব্যাপক সম্ভাৱনাৰ কথাক প্ৰমাণ কৰি ভাৰতৰ লগতে বিশ্ববাসীৰ কোটি কোটি লোক একে ঠাইতে সমবেত হৈছে৷ এতিয়া আমি এই আত্মবিশ্বাসকেই আধাৰ কৰি আগবাঢ়ি যাব লাগিব আৰু এখন উন্নত ভাৰত গঢ়াৰ দিশত নিজকে উৎসৰ্গা কৰিব লাগিব।


পূৰ্বে ভক্তি আন্দোলনৰ সৈতে জড়িত সন্তসকলে সমগ্ৰ ভাৰতবৰ্ষতে আমাৰ সামূহিক সংকল্পৰ শক্তি চিনাক্ত কৰি সেইবোৰক উৎসাহিত কৰিছিল। স্বামী বিবেকানন্দৰ পৰা আৰম্ভ কৰি শ্ৰী অৰবিন্দলৈকে প্ৰতিগৰাকী মহান চিন্তাবিদে আমাক আমাৰ সামূহিক সংকল্পৰ শক্তিৰ কথা সোঁৱৰাই দিছিল। আনকি মহাত্মা গান্ধীয়েও স্বাধীনতা আন্দোলনৰ সময়তসামূহিক সংকল্পৰ শক্তিৰ কথা অনুভৱ কৰিছিল। স্বাধীনতাৰ পিছৰ এই সামূহিক শক্তিক যদি সঠিকভাৱে স্বীকৃতি দিয়া হ’লহেঁতেন আৰু সকলোৰে কল্যাণ বৃদ্ধিৰ দিশত ইয়াক ব্যৱহাৰ কৰা হ’লহেঁতেন তেন্তে ই নতুনকৈ স্বাধীনতাৰ সোৱাদ পোৱা জাতি এটাৰ বাবে এক বৃহৎ শক্তি হৈ পৰিলহেঁতেন৷ দুৰ্ভাগ্যজনকভাৱে আগতে তেনে কৰা হোৱা নাছিল। কিন্তু এতিয়া, এখন উন্নত ভাৰতৰ বাবে জনসাধাৰণৰ এই সামূহিক শক্তি একত্ৰিত কৰাৰ ধাৰণাটো পুনৰ জাগ্ৰত হোৱা দেখি মই আনন্দিত হৈ পৰিছো৷

|

বেদৰ পৰা আৰম্ভ কৰি বিবেকানন্দলৈকে, প্ৰাচীন শাস্ত্ৰৰ পৰা আৰম্ভ কৰি আধুনিক কৃত্ৰিম উপগ্ৰহলৈকে ভাৰতৰ মহান পৰম্পৰাই এই দেশখনক সবলৰূপত গঢ় দিছে। এজন নাগৰিক হিচাপে আমি এয়াই প্ৰাৰ্থনা কৰোঁ যাতে আমি আমাৰ পূৰ্বপুৰুষ আৰু সন্তসকলৰ স্মৃতি তথা অভিজ্ঞতাৰ পৰা নতুন প্ৰেৰণা আহৰণ কৰিব পাৰো। এই একতাৰ মহাকুম্ভই আমাক নতুন সংকল্পৰে আগবাঢ়ি যোৱাত সহায় কৰক। আহক আমি ঐক্যক আমাৰ পথ প্ৰদৰ্শক নীতি হিচাপে গঢ়ি তোলোঁ। আহক আমি এই বুজাবুজিৰে কাম কৰোঁ যাতে আমাৰ মনত দেশৰ সেৱাই হৈছে ঈশ্বৰৰ সেৱাৰ দৰে মনোভাবৰ উদয় হয়।

কাশীত নিৰ্বাচনী প্ৰচাৰ চলোৱাৰ সময়ত মই কৈছিলোঁ, "মা গংগাই মোক মাতিছে।" এয়া কেৱল মোৰ বাবে আৱেগ নহয় বৰঞ্চ দায়িত্বৰ আহ্বানো আছিল৷ আমাৰ পবিত্ৰ নদীৰ পৰিষ্কাৰ-পৰিচ্ছন্নতা ৰক্ষাৰ প্ৰতি এয়া আছিল মোৰ দায়িত্ব । প্ৰয়াগৰাজৰ গংগা, যমুনা, সৰস্বতীৰ সংগমস্থলীত থিয় হৈ মোৰ সংকল্প আৰু অধিক শক্তিশালী হৈ পৰিল। আমাৰ নদীৰ পৰিষ্কাৰ-পৰিচ্ছন্নতা আমাৰ নিজৰ জীৱনৰ লগত গভীৰভাৱে জড়িত। আমাৰ সৰু-বৰ নদীবোৰক জীৱনদায়িনী মাতৃ হিচাপে জ্ঞান কৰাটো আমাৰ দায়িত্ব। এই মহাকুম্ভই আমাক আমাৰ নদ- নদীসমূহৰ পৰিষ্কাৰ-পৰিচ্ছন্নতাৰ দিশত কাম কৰি যাবলৈ অনুপ্ৰাণিত কৰিছে।

|

মই জানো যে ইমান বৃহৎ অনুষ্ঠান এটা আয়োজন কৰাটো কোনো সহজ কাম নাছিল। মা গংগা, মা যমুনা আৰু মা সৰস্বতীক প্ৰাৰ্থনা জনাইছো যাতে আমাৰ ভক্তিত কিবা অভাৱ থাকিলে, কিবা খুঁত ৰৈ গ'লে আমাক ক্ষমা কৰি দিয়ে যেন৷ জনতা জনাৰ্দনক মই দেৱতাৰ মূৰ্তি হিচাপে জ্ঞান কৰিছো৷ যদি তেওঁলোকৰ সেৱাৰ ক্ষেত্ৰতো আমাৰ প্ৰচেষ্টাত কিবা খুঁত ৰৈ গৈছে , তেন্তে ৰাইজৰ ওচৰতো ক্ষমা বিচাৰিছো।

মহাকুম্ভলৈ ভক্তিৰসত নিমজ্জিত হৈ কোটি কোটি মানুহ আহিছিল । তেওঁলোকৰ সেৱা কৰাটোও আছিল ভক্তিৰ অনুভূতিৰেই পালন কৰা এটা দায়িত্ব । উত্তৰ প্ৰদেশৰ এজন সংসদ সদস্য হিচাপে মই গৌৰৱেৰে ক’ব পাৰো যে যোগী জীৰ নেতৃত্বত প্ৰশাসন আৰু ৰাইজে একেলগে কাম কৰি এই একতাৰ মহাকুম্ভ সফল কৰি তুলিলে। ৰাজ্যই হওঁক বা কেন্দ্ৰই হওঁক, ইয়াত কোনো শাসক বা প্ৰশাসক নাছিল, তাৰ পৰিৱৰ্তে ইয়াত সকলোৱে আছিল একো একোগৰাকী নিষ্ঠাবান সেৱক। অনাময় কৰ্মী, আৰক্ষী, নাৱৰীয়া, গাড়ী চালক, খাদ্য পৰিবেশন কৰা লোক - সকলোৱে অক্লান্তভাৱে কাম কৰিছিল। প্ৰয়াগৰাজৰ ৰাইজে বহু অসুবিধাৰ সন্মুখীন হৈও যিদৰে মুক্ত হৃদয়েৰে তীৰ্থযাত্ৰীসকলক আদৰণি জনাইছিল সেয়া বিশেষভাৱে প্ৰেৰণাদায়ক কথা আছিল। তেওঁলোকৰ লগতে উত্তৰ প্ৰদেশৰ জনসাধাৰণৰ প্ৰতি মোৰ আন্তৰিক কৃতজ্ঞতা আৰু ধন্যবাদ প্ৰকাশ কৰিছো।

|

আমাৰ দেশ খনৰ উজ্জ্বল ভৱিষ্যতকলৈ মোৰ সদায় অদম্য আস্থা আছে। এই মহাকুম্ভৰ সাক্ষী হৈ মোৰ প্ৰত্যয় আৰু বহুগুণে শক্তিশালী হৈ পৰিল৷

১৪০ কোটি ভাৰতীয়ই একতাৰ মহাকুম্ভক যিদৰে বিশ্বজনীন অনুষ্ঠানলৈ ৰূপান্তৰিত কৰিলে সেয়া সঁচাকৈয়ে আচৰিত কথা। আমাৰ জনসাধাৰণৰ নিষ্ঠা, ভক্তি আৰু প্ৰচেষ্টাত অনুপ্ৰাণিত হৈ শীঘ্ৰেই ১২টা জ্যোতিৰ্লিংগৰ ভিতৰত প্ৰথম শ্ৰী সোমনাথৰ ওচৰলৈ গৈ এই সামূহিক জাতীয় প্ৰচেষ্টাৰ ফল তেওঁৰ ওচৰত অৰ্পণ কৰিম আৰু প্ৰতিজন ভাৰতীয়ৰ বাবে প্ৰাৰ্থনা কৰিম।

মহাশিৱৰাত্ৰিত মহাকুম্ভৰ ৰূপে হয়তো সফলতাৰে সমাপ্তিৰ ৰূপ পৰিগ্ৰহ কৰিছে, কিন্তু গংগাৰ চিৰন্তন প্ৰবাহৰ দৰেই মহাকুম্ভই জাগ্ৰত কৰা আধ্যাত্মিক শক্তি, জাতীয় চেতনা আৰু ঐক্যই আগন্তুক প্ৰজন্মল লগতে আমাক অনুপ্ৰাণিত কৰি যাব।