QuotePM Modi unveils the statue of Swami Vivekananda in Kuala Lumpur
QuoteIt was Swami Vivekananda who first gave the concept of One Asia: PM
QuoteSouth East Asia Summit speaking of One Asia; a concept given by Swami Vivekananda: PM.
QuoteFrom the Vedas to Vivekananda, India's culture is rich: PM
QuoteSwami Vivekananda neither a person nor a system, it is the identity of the soul of ancient India: PM
QuoteVivekananda is not just a name. He personifies the thousands year old Indian culture and civilization: PM
QuoteIt is a great fortune for me to dedicate the statue of Swami Vivekananda on Malaysian soil: PM
QuotePursuit of truth got Ramakrishna Paramhans & Swami Vivekananda together. They were not looking for a teacher or a disciple: PM
QuoteSwami Vivekananda was in pursuit of the truth: PM

भाइयो और बहनों।

अभी सुप्रियान जी कह रहे थे कि हमने इस परिसर में तो विवेकानंद जी की प्रतिमा की स्था्पना की, पर हम हमारे मन-मंदिर में, हमारे हृदय में विवेकानंद जी को प्रतिस्था पित करें और मैं ये बात आपको कहूं और आप कर लेंगे।

मैं नहीं मानता हूं कि मेरे कहने से हमारे भीतर विवेकानंद प्रवेश कर सकते है और न ही किसी के प्रवचन से विवेकानंद जी हमारे भीतर प्रवेश कर सकते है। विवेकानंद, ये न किसी व्यक्ति का नाम है, विवेकानंद न किसी व्यवस्था की पहचान है, एक प्रकार से विवेकानंद सहस्त्र साल पुरानी भारत की आत्मा की पहचान है।

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वेद से विवेकानंद तक हमारी एक सांस्कृतिक लंबी विरासत है और उपनिषद से ले कर के उपग्रह तक हमने हमारी आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक विकास यात्रा को भी सामर्थ्य दिया है। 

उपनिषद से शुरू किया होगा, उपग्रह तक हम पहुंचे होंगे लेकिन हमारा जो मूल Pin है जो हमारी आत्मा है और सच्चे अर्थ में जो हमारी पहचान है, उसको अगर हम बरकरार रखते है तो उसका अर्थ ये हुआ कि मैं मेरे भीतर स्वामी विवेकानंद जी को जीवित रखने की कोशिश कर रहा हूं।

रामकृष्ण परमहंस और नरेन्द्र । ये दोनों के बीच की दुनिया को अगर हम समझ लें तो शायद विवेकानंद जी को समझने में सुविधा बन जाती है।

नरेन्द्र कभी गुरू की खोज में नहीं निकले थे, न ही उसे गुरू की तलाश थी, नरेन्द्र सत्य् की तलाश कर रहा था। ईश्वर है कि नहीं! उसके मन में एक आशंका थी कि परमात्मा नाम की कोई चीज नहीं हो सकती है। ईश्ववर नाम का कोई व्यक्ति नहीं हो सकता है और वो उस सत्य को जानने के लिए जूझ रहे थे।

और न ही रामकृष्ण परमहंस किसी शिष्य की तलाश में थे। मैं गुरू परम्परा की भावना , मेरे बाल कुछ शिष्यों की परंपरा अगर है। और मैं जो आश्रम प्रतिस्थापित करूं और उसको कोई चलाता रहे, रामकृष्ण देव के मन में भी ऐसे किसी शिष्या की तलाश नहीं थी ऐसी कोई मनीषा नहीं थी।

एक गुरू जिसको शिष्यो की खोज नहीं थी, एक शिष्य जिसको गुरू की खोज नहीं थी, लेकिन कमाल देखिए, एक सत्य को समर्पित था और दूसरा सत्य को खोजना चाहता था और उसी सत्य की तलाश में दोनों को जोड़ के रख दिया।

और ये अगर हम समझ लें तो फिर सत्य की तलाश क्या हो सकती है, सत्य के रास्ते पे चलना कितना कठिन हो सकता है और उसमें भी कैसे सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, वो विवेकानंद जी के जीवन से हम जान सकते है।

हम विवेकानंद जी के उस कालखंड का विचार करें जहां पर धर्म का प्रभाव, पूजा पद्धति की विधि का प्रभाव, rituals का माहात्मय । धर्म गुरुओं का माहात्मय, धर्मग्रथों का माहात्मय। ये चरम सीमा पर था। उस समय एक नौजवान उन सारी परम्पराओं से भाग जाने की बात करे, इसकी आज कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है।

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एक बहुत बड़ा वर्ग ये मानता था कि भगवान के पास घंटो तक बैठे रहे, पूजा-पाठ करते रहे, आरती-धूप करते रहे, फूल चढ़ाते रहे, नए-नए प्रसाद चढ़ाते रहे तो जीवन के पाप धूल जाते है और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। एक चरम सीमा का आनंद प्राप्त, करने का अवसर मिल जाता है। ये सोच बनी पड़ी हुई थी और उस समय विवेकानंद डंके की चोट पर कहते थे कि जन सेवा ये प्रभु सेवा। सामान्य मानवी जो आपके सामने जिंदा है, जो दुख और दर्द से पीड़ित है, उसकी सेवा करो, ईश्वर अपने आप प्राप्त हो जाएगा।

उन्होंने जब कलकत्ते की धरती पर नौजवानों से पूछा कि ईश्वर प्राप्ति का रास्ता क्या होता है, हमें क्या करना चाहिए तब उन्होंने कहा ये सब छोड़ो, जाओ फुटबॉल खेलो, मस्ती से फुटबॉल खेलो पूरी तरह से अपने आप को झोंक दो, हो सकता है तुम्हें रास्ता मिल जाएगा। उस समय हम गुलामी के कालखंड में जी रहे थे, कोई सोच भी नहीं सकता था भारत कभी आजाद हो सकता है लेकिन स्वामी विवेकानंद एक दीर्घ दृष्टा थे और वो कहते थे, अपने जीवन के काल में कहा था कि मैं, मेरी आंखों के सामने देख रहा हूं, मैं मेरी आंखों के सामने देख रहा हूं कि मेरी भारत मां उठ खड़ी हुई है, वो जगत गुरू के स्थान पर विराजमान मैं देख रहा हूं, मैं एक दिनमान भारत माता मैं देख रहा हूं और वो दिन बहुत निकट होगा । ये भाव जगत स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन काल में अपनी आंखों से देखा था और वो हिंदुस्तान को प्रेरित करने का प्रयास करते थे।

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वो एक कालखंड था जब आध्यात्म प्रधान जीवन था और वो सिर्फ भारत में नहीं एशिया के सभी देशों में समाहित था और दूसरी तरफ वो पश्चिम का विचार था, जहां अर्थ प्रधान था। आध्यात्म प्रधान जीवन और अर्थ प्रधान जीवन के बीच एक शताब्दियों का टकराव चल रहा था। अर्थ प्रधान जीवन ने आध्यात्म प्रधान जीवन को किनारे कर दिया था। अर्थ प्रधान जीवन जन सामान्य की आशा, आकांक्षाओं का केंद्र बिंदु बन गया था और ऐसे कालखंड में स्वामी विवेकानंद ने हिम्मत के साथ और 30-32 साल की आयु में पश्चिम की दुनिया में जाकर के, उस धरती पर जाकर के विश्व को आध्यत्मिकता का संदेश देने का एक सामर्थ्यवान काम किया था। जिस महापुरुष ने एशिया की आध्यात्मिक ताकत को दुनिया को पहचान कराया था और पहली बार विश्व को एशिया की अपनी धरती की एक अलग चिंतनधारा है, यहां के संस्कार अलग हैं और विश्व को देने के लिए उसके पास बहुत कुछ है। ये बात डंके की चोट पर कहने का साहस स्वामी विवेकानंद ने किया था। कल मैं यहां आसियान समिट में था आज यहां मैं South East Asia Summit में था और एक बात वहां उभरकर के सामने आती थी और वो एक आती थी कि One Asia .

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One Asia का विचार लेकिन आज जो आवाज गूंज रही है उसमें आर्थिक व्यवस्था है, राजनीतिक व्यवस्था है, सरकारों के मेलजोल की व्यवस्था का चिंतन है लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि One Asia का concept आध्यात्मिक धरातल पर सबसे पहले स्वामी विवेकानंद ने प्रचारित किया था। मैं एक पुरानी घटना आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूं। ..

After Swami Vivekananda introduced the East and Asia to the West, Scholars and philosophers like Okakura, Karinzo from Japan, Rabindranath Tagore, Mahrishi Aurbindo, Anand Kumar Swami and Vinoy Sarkar were inspired by Swami Vivekananda. OkaKura invited Swami Vivekananda to Japan and also sent him a cheque of Rs 300. He came to Calcutta and met Swami Vivekananda on 1st February 1902 and both went to Bodh Gaya together. OkaKura is the symbol of Asianism. In his book, ‘Ideals of the East’ by Okakura, the manuscripts were edited by Sister Nivedita, the foremost western disciple of Swami Vivekananda. The very first sentence, this is one important thing I want to tell you. The very first sentence is “Asia is one.” The idea of Asian unity is clearly Swami Vivekananda’s concept. In his next book, Okakura began by saying “Brothers and sisters of Asia”, echoing Swami Vivekananda’s speech at Parliament of Religions.

मैं ये इसलिए कह रहा था कि जो उस समय इस प्रकार के Philosopher विवेकानंद जी के प्रभाव में थे, उन्होंने जो विवेकानंद जी से मंत्र पाया था वो Asia is One ये मंत्र पाया था। आज 100 साल के बाद आर्थिक, राजनीतिक कारणों से One Asia की चर्चा हो रही है लेकिन उस समय आध्यात्मिक एकात्मता के आधार पर विवेकानंद जी ये देख पाते थे कि ये भूमि है जो विश्व को संकटों से बाहर निकाल सकती है और आज दुनिया जिन दो संकटों से जूझ रही है अगर उन दो संकटों के समाधान का रास्ता कोई दे सकता है तो एशिया की धरती से ही निकल सकता है।

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और इसलिए आज विश्व कह रहा है Climate change और Global warming की बात, आज विश्व कह रहा है Terrorism की चर्चा, यही तो धरती है जहां भगवान बुद्ध का संदेश मिला, यही तो धरती है जहां हिंदुत्व का संदेश मिला और इसी धरती से ये बातें उभर करके आ गई हैं जहां पर ये कहा गया एकम सत, विपरा बहुधा विधंति, Truth is One, Wise call it in different ways ये जो मूल मंत्र हैं वो सबको एक रखना, जोड़ने की ताकत देता है और इसलिए जब Terrorism की बात आती है तो उसका समाधान इसमें holier than thou की कल्पना ही नहीं है, हर सत्य को स्वीकार किया जाता है और जब हर सत्य को स्वीकार किया जाता है तब conflict के लिए अवकाश नहीं होता है और जब conflict के लिए अवकाश नहीं है तो संघर्ष की संभावना नहीं है और जहां संघर्ष नहीं है वहां Terrorism के रास्ते पर जाना का कोई कारण नहीं बनता है। 


आज विश्व Global Warming की चर्चा करता है। हम वो लोग हैं जिसने पौधे में परमात्मा देखा था, हम जितने भी ईश्वर की कल्पना की है हर ईश्वर के साथ कोई न कोई प्राकृतिक जीवन जुड़ा हुआ है। किसी न किसी वृक्ष के साथ उन्होंने साधना की है, किसी न किसी पशु-पक्षी को उन्होंने पालन किया है। ये सहज संदेश हमारी परंपरा में रहा हुआ है। हम प्रकृति के शोषण का पक्षकार नहीं रहे हैं, हम nature के साथ मित्रतापूर्ण गुजारा करने की सबक ले करके चले हुए लोग है। वही संस्कृति है जो ग्लोबल वार्मिंग से मानवजाति को बचा सकती है।

मुझे लगता है कि स्वा्मी विवेकानंद जी ने हमें ये जो रास्तेे दिखाएं है। उन रास्तों को अगर हम परिपूर्ण करते है तो हमें हमारे भीतर कोई नए विवेकानंद को प्रतिस्थापित करने की जरूरत नहीं है। उनकी कही हुई एक बात को ले करके भी हम चल पाते है मैं समझता हूं हम आने वाली शताब्दियों तक मानवजात की सेवा करने के लिए कुछ न कुछ योगदान करके जा सकते है।

आज मुझे यहां एक योग की पुस्तक का भी लोकापर्ण करने का अवसर मिला है और वो भी हमारे सरकार के साथ ही श्रीमान शाहू ने यहां की भाषा में योग की पुस्तक की रचना की है। वे स्वयं सरकारी अधिकारी है लेकिन योग के प्रति उनका समर्पण है। मुझे खुशी हुई उनकी उस किताब का लोकापर्ण करते हुए। आज विश्व योग के प्रति आकर्षित हुआ है। हर कोई तनाव मुक्त जीवन का रास्ता खोज रहा है और उसको लगता है उसकी खिड़की योग से खुलती है और इसलिए हर कोई उस खिड़की में झांकने की कोशिश करता है।

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यूनाइटेड नेशन ने अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस के रूप में 21 जून को स्वीकार किया। दुनिया के 177 देशों ने उसको को-स्पोंसर किया और दुनिया के सभी देशों ने 21 जून को योग का दिवस मनाया। मानवजात जो कि अपने मानसिक समाधान का रास्ता तलाश रही है। Holistic health care की तरफ आगे बढ़ रही है। तब उसको लगता है कि योग एक ऐसी सरल विद्या है जिसको अगर हम दिन के आधा-पौना घंटा भी लगा ले तो हम अपने मन, बुद्धि, शरीर को एक दिशा में चला सकते है। आज हमारे लिए ये चुनौती नहीं है कि हम दुनिया को समझाएं कि योग क्या है, हमारे सामने चुनौती ये है कि सारा विश्व अच्छे योग टीचरों की मांग कर रहा है। हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि हम Perfect योग teacher को कैसे दें ताकि इस विद्या का सही स्वरूप आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे और जो भी इसका लाभ उठाएं, उसको सचमुच में, उसका जो मकसद हो, मकसद पूरा करने में काम हो और इसलिए जितना अधिक आधुनिक भाषा में हम योग को प्रचारित करें, जितनी अधिक योग को आधुनिक भाषा में प्रतिपादित करें और खुद योग के जीवन को जीकर के दुनिया के सामने प्रस्तुत करें और अधिकतम योग के teacher तैयार करें, hobby के रूप में तैयार करें भले profession के रूप में न तैयार कर सकें। दिन में हम 50 काम करते हैं, एक घंटे योगा के लिए जो भी सीखने आएगा, हम सिखाएंगे।

ये पूरा हम एशिया के वायुमंडल में लाते हैं तो विश्व की जो अपेक्षा है, उस अपेक्षा को पूर्ण करने के लिए उत्तम योग teacher हम दुनिया को दे सकते हैं। मैं स्वामी सूपरयानंद जी का बहुत आभारी हूं कि आज मुझे इस पवित्र स्थान पर आने का अवसर मिला, विवेकानंद जी की प्रतिमा का लोकापर्ण करने का अवसर मिला और मुझे विश्वास है कि इस धरती पर आने वाले विश्व के सभी लोगों को यहां से कोई प्रेरणा मिलती रहेगी। इसी एक शुभकामना के साथ आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद।

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Our language is the carrier of our culture: PM Modi at Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan
February 21, 2025
QuoteOur language is the carrier of our culture: PM
QuoteMarathi is a complete language: PM
QuoteSeveral saints of Maharashtra showed a new direction to society through the Bhakti movement in the Marathi language: PM
QuoteThere has never been any enmity among Indian languages, instead they have always adopted and enriched each other: PM

कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ नेता श्रीमान शरद पवार जी, महाराष्ट्र के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस जी, अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ तारा भवालकर जी, पूर्व अध्यक्ष डॉ रविंद्र शोभने जी, सभी सदस्यगण, मराठी भाषा के सभी विद्वतगण और उपस्थित भाइयों और बहनों।

अभी डॉक्टर तारा जी का भाषण पूरा हुआ तो मैंने ऐसे ही कहा थारछाण, तो उन्होंने मुझे गुजराती में जवाब दिया, मुझे भी गुजराती आती है। देशाच्या आर्थिक राजधानीच्या, राज्यातून देशाच्या, राजधानीत आलेल्या सर्व मराठी, सारस्वतांन्ना माझा नमस्कार।

आज दिल्ली की धरती पर मराठी भाषा के इस गौरवशाली कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन एक भाषा या राज्य तक सीमित आयोजन नहीं है, मराठी साहित्य के इस सम्मेलन में आजादी की लड़ाई की महक है, इसमें महाराष्ट्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत है। ज्ञानबा-तुकारामांच्या मराठीला आज राजधानी दिल्ली अतिशय मनापासून अभिवादन करते।

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भाइयों-बहनों,

1878 में पहले आयोजन से लेकर अब तक अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन देश की 147 वर्षों की यात्रा का साक्षी रहा है। महादेव गोविंद रानाडे जी, हरि नारायण आप्टे जी, माधव श्रीहरि अणे जी, शिवराम परांजपे जी, वीर सावरकर जी, देश की कितनी ही महान विभूतियों ने इसकी अध्यक्षता की है। शरद जी के आमंत्रण पर आज मुझे इस गौरवपूर्ण परंपरा से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। मैं आप सभी को, देश दुनिया के सभी मराठी प्रेमियों को इस आयोजन की बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आणि आज तर जागतिक मातृभाषा दिवस आहे. तुम्ही दिल्लीतील साहित्य सम्मेलनासाठी दिवस सुद्धा अतिशय चांगला निवडला।

साथियों,

मैं जब मराठी के बारे में सोचता हूं, तो मुझे संत ज्ञानेश्वर का वचन याद आना बहुत स्वाभाविक है। 'माझा मराठीची बोलू कौतुके। परि अमृतातेहि पैजासी जिंके। यानी मराठी भाषा अमृत से भी बढ़कर मीठी है। इसलिए मराठी भाषा और मराठी सांस्कृति के प्रति मेरा जो प्रेम है, आप सब उससे भलीभांति परिचित हैं। मैं आप विद्वानों की तरह मराठी में उतना प्रवीण तो नहीं हूं, लेकिन मराठी बोलने का प्रयास, मराठी के नए शब्दों को सीखने की कोशिश मैंने निरंतर की है।

साथियों,

ये मराठी सम्मेलन एक ऐसे समय हो रहा है, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350 वर्ष पूरे हुए हैं। जब पूण्यस्लोक अहिल्याबाई होल्कर जी की जन्मजयंति के 300 वर्ष हुए हैं और कुछ ही समय पहले बाबा साहेब अंबेडकर के प्रयासों से बने हमारे संविधान ने भी अपने 75 वर्ष पूरे किए हैं।

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साथियों,

आज हम इस बात पर भी गर्व करेंगे कि महाराष्ट्र की धरती पर मराठी भाषी एक महापुरूष ने 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का बीज बोया था। आज ये एक वटवृक्ष के रूप में अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। वेद से विवेकानंद तक भारत की महान और पारंपरिक सांस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पिछले 100 वर्षों से चला रहा है। मेरा सौभाग्य है कि मेरे जैसे लाखों लोगों को आरएसएस ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है। और संघ के ही कारण मुझे मराठी भाषा और मराठी परंपरा से जुड़ने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी कालखंड में कुछ महीने पहले मराठी भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा दिया गया है। देश और दुनिया में 12 करोड़ से ज्यादा मराठी भाषी लोग हैं। मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा मिले, इसका करोड़ों मराठी भाषियों को दशकों से इंतज़ार था। ये काम पूरा करने का अवसर मुझे मिला, मैं इसे अपने जीवन का बड़ा सौभाग्य मानता हूँ।

माननीय विद्वतजन,

आप जानते हैं, भाषा केवल उसके संवाद का माध्यम भर नहीं होती है। हमारी भाषा हमारी संस्कृति की संवाहक होती है। ये बात सही है कि भाषाएँ समाज में जन्म लेती हैं, लेकिन भाषा समाज के निर्माण में उतनी ही अहम भूमिका निभाती है। हमारी मराठी ने महाराष्ट्र और राष्ट्र के कितने ही मनुष्यों के विचारों को अभिव्यक्ति देकर हमारा सांस्कृतिक निर्माण किया है। इसीलिए, समर्थ रामदास जी कहते थे- मराठा तितुका मेळवावा महाराष्ट्र धर्म वाढवावा आहे तितके जतन करावे पुढे आणिक मेळवावे महाराष्ट्र राज्य करावे जिकडे तिकडे मराठी एक सम्पूर्ण भाषा है। इसीलिए, मराठी में शूरता भी है, वीरता भी है। मराठी में सौंदर्य भी है, संवेदना भी है, समानता भी है, समरसता भी है, इसमें आध्यात्म के स्वर भी हैं, और आधुनिकता की लहर भी है। मराठी में भक्ति भी है, शक्ति भी है, और युक्ति भी है। आप देखिए, जब भारत को आध्यात्मिक ऊर्जा की जरूरत हुई, तो महाराष्ट्र के महान संतों ने ऋषियों के ज्ञान को मराठी भाषा में सुलभ कराया। संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत रामदास, संत नामदेव, संत तुकड़ोज़ी महाराज, गाडगे बाबा, गोरा कुम्हार और बहीणाबाई महाराष्ट्र के कितने ही संतों ने भक्ति आंदोलन के जरिए मराठी भाषा में समाज को नई दिशा दिखाई। आधुनिक समय में भी गजानन दिगंबर माडगूलकर और सुधीर फड़के की गीतरामायण ने जो प्रभाव डाला, वो हम सब जानते हैं।

साथियों,

गुलामी के सैकड़ों वर्षों के लंबे कालखंड में, मराठी भाषा, आंक्रांताओं से मुक्ति का भी जयघोष बनी। छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज और बाजीराव पेशवा जैसे मराठा वीरों ने दुश्मनों को नाको चने चबवा दिए, उनको मजबूर कर दिया। आज़ादी की लड़ाई में वासुदेव बलवंत फड़के, लोकमान्य तिलक और वीर सावरकर जैसे सेनानियों ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी। उनके इस योगदान में मराठी भाषा और मराठी साहित्य का बहुत बड़ा योगदान था। केसरी और मराठा जैसे समाचार पत्र, कवि गोविंदाग्रज की ओजस्वी कवितायें, राम गणेश गडकरी के नाटक मराठी साहित्य से राष्ट्रप्रेम की जो धारा निकली, उसने पूरे देश में आज़ादी के आंदोलन को सींचने का काम किया। लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य भी मराठी में ही लिखी थी। लेकिन, उनकी इस मराठी रचना ने पूरे देश में एक नई ऊर्जा भर दी थी।

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साथियों,

मराठी भाषा और मराठी साहित्य ने समाज के शोषित, वंचित वर्ग के लिए सामाजिक मुक्ति के द्वार खोलने का भी अद्भुत काम किया है। ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महर्षि कर्वे, बाबा साहेब आंबेडकर, ऐसे कितने ही महान समाज सुधारकों ने मराठी भाषा में नए युग की सोच को सींचने का काम किया था। देश में मराठी भाषा ने बहुत समृद्ध दलित साहित्य भी हमें दिया है। अपने आधुनिक चिंतन के कारण मराठी साहित्य में विज्ञान कथाओं की भी रचनाएँ हुई हैं। अतीत में भी, आयुर्वेद, विज्ञान, और तर्कशास्त्र में महाराष्ट्र के लोगों ने अद्भुत योगदान दिया है। इसी संस्कृति के कारण, महाराष्ट्र ने हमेशा नए विचारों और प्रतिभाओं को भी आमंत्रित किया और महाराष्ट्र ने इतनी प्रगति की है। हमारी मुंबई महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश की आर्थिक राजधानी बनकर उभरी है।

और भाइयों बहनों,

जब मुंबई का ज़िक्र आया है, तो फिल्मों के बिना न साहित्य की बात पूरी होगी, और न मुंबई की! ये महाराष्ट्र और मुंबई ही है, जिसने मराठी फिल्मों के साथ-साथ हिन्दी सिनेमा को ये ऊंचाई दी है। और इन दिनों तो ‘छावा’ की धूम मची हुई है। सांभाजी महाराज के शौर्य से इस रूप में परिचय शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास ने ही कराया है।

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साथियों,

कवि केशवसुत का एक पद है- “जुनें जाऊं द्या, मरणालागुनि जाळुनि किंवा, पुरुनि टाकासडत न एक्या ठायी ठाका, यानी हम पुरानी सोच पर थमे नहीं रह सकते। मानवीय सभ्यता, विचार और भाषा लगातार evolve होते रहते हैं। आज भारत दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यताओं में से एक है। क्योंकि, हम लगातार evolve हुये हैं, हमने लगातार नए विचारों को जोड़ा है, नए बदलावों का स्वागत किया है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी भाषाई विविधता इसका प्रमाण है। हमारी ये भाषाई विविधता ही हमारी एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है। मराठी खुद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। क्योंकि, हमारी भाषा उस माँ की तरह होती है, जो अपने बच्चों को नए से नया, अधिक से अधिक ज्ञान देना चाहती है। माँ की तरह ही भाषा भी किसी से भेदभाव नहीं करती। भाषा हर विचार का, हर विकास का आलिंगन करती है। आप जानते हैं, मराठी का जन्म संस्कृत से हुआ है। लेकिन, इसमें उतना ही प्रभाव प्राकृत भाषा का भी है। ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ी है, इसने मानवीय सोच को और अधिक व्यापक बनाया है। अभी मैंने लोकमान्य तिलक जी की गीता रहस्य का ज़िक्र किया। गीता रहस्य संस्कृत गीता की व्याख्या है। तिलक जी ने मूल गीता के विचारों को लिया, और मराठी बोध से उसे और ज्यादा जन-सुलभ बनाया। ज्ञानेश्वरी गीता में भी संस्कृत पर मराठी में टिप्पणी लिखी गई। आज वही ज्ञानेश्वरी देश भर के विद्वानों और संतों के लिए गीता को समझने के लिए एक मानक बन गई है। मराठी ने दूसरी सभी भारतीय भाषाओं से साहित्य को लिया है, और बदले में उन भाषाओं को भी समृद्ध किया है। जैसे कि भार्गवराम बिट्ठल वरेरकर जैसे मराठी साहित्यकारों ने ‘आनंदमठ’ जैसी कृतियों का मराठी अनुवाद किया। विंदा करंदीकर, इनकी रचनाएँ तो कई भाषाओं में आईं। उन्होंने पन्ना धाय, दुर्गावती और रानी पद्मिनी के जीवन को आधार बनाकर रचनाएँ लिखीं। यानी, भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। भाषाओं ने हमेशा एक दूसरे को अपनाया है, एक दूसरे को समृद्ध किया है।

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साथियों,

कई बार जब भाषा के नाम पर भेद डालने की कोशिश की जाती है, तो हमारी भाषाओं की साझी विरासत ही उसका सही जवाब देती है। इन भ्रमों से दूर रहकर भाषाओं को समृद्ध करना, उन्हें अपनाना, ये हम सबका सामूहिक दायित्व है। इसीलिए, आज हम देश की सभी भाषाओं को mainstream language के रूप में देख रहे हैं। हम मराठी समेत सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं। अब महाराष्ट्र के युवा मराठी में हायर एजुकेशन, इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई वहां का युवा आसानी से कर सकेंगे। अंग्रेजी न जानने के कारण प्रतिभाओं की उपेक्षा करने वाली सोच को हमने बदल दिया है।

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साथियों,

हम सब कहते हैं कि हमारा साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य समाज का पथप्रदर्शक भी होता है। इसीलिए, साहित्य सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों की, साहित्य से जुड़ी संस्थाओं की देश में बहुत अहम भूमिका होती है। गोविंद रानडे जी, हरिनारायण आप्टे जी, आचार्य अत्रे जी, वीर सावरकर जी, इन महान विभूतियों ने जो आदर्श स्थापित किए, मैं आशा करता हूँ, अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल उन्हें और आगे बढ़ाएगा। 2027 में साहित्य़ सम्मेलन की इस परंपरा को 150 वर्ष पूरे होंगे। और तब 100वां सम्मेलन होगा। मैं चाहूँगा, आप इस अवसर को विशेष बनाएँ, इसके लिए अभी से तैयारी करें। कितने ही युवा आजकल सोशल मीडिया के जरिए मराठी साहित्य की सेवा कर रहे हैं। आप उन्हें मंच दे सकते हैं, उनकी प्रतिभा को पहचान दे सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग मराठी सीखें, इसके लिए आप ऑनलाइन platforms को, भाषिणी जैसे initiatives को बढ़ावा दें। मराठी भाषा और साहित्य को लेकर युवाओं के बीच प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जा सकता है। मुझे विश्वास है, आपके ये प्रयास, और मराठी साहित्य की प्रेरणाएं विकसित भारत के लिए 140 करोड़ देशवासियों को नई ऊर्जा देंगे, नई चेतना देंगे, नई प्रेरणा देंगे। आप सभी महादेव गोविंद रानडे जी, हरि नारायण आप्टे जी, माधव श्रीहरि अणे जी, शिवराम परांजपे जी, जैसे महान व्यक्तित्वों की महान परंपरा को आगे बढ़ाएं, इसी कामना के साथ, आप सभी का एक बार फिर बहुत-बहुत धन्यवाद!