डॉ अविनाश जी, डॉ मालकोंडैया जी और उपस्थित सभी महानुभाव, आज उपस्थित सभी जिन महानुभावों को सम्‍मानित करने का मुझे सौभाग्‍य मिला है, उन सब का मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं, बधाई देता हूं। उनका क्षेत्र ऐसा है कि वे न तो प्रेस कॉन्‍फ्रेस कर सकते हैं, और न ही दुनिया को यह बता सकते हैं कि वे क्‍या रिसर्च कर रहे हैं और रिसर्च पूरी हो जाने के बाद भी, उन्‍हें दुनिया के सामने अपनी बात खुले रूप से रखने का अधिकार नहीं होता। यह अपने आप में बड़ा कठिन काम है। लेकिन यह तब संभव होता है, जब कोई ऋषि मन से इस कार्य से जूझता है। हमारे देश में हजारों सालों पहले वेदों की रचना हुई और यह आज भी मानव जाति को प्रेरणा देते हैं। लेकिन किसको पता है कि वेदों की रचना किसने की? वे ऋषि भी तो वैज्ञानिक थे, वैज्ञानिक तरीके से समाज जीवन का दर्शन करते थे, दिशा देते थे। वैज्ञानिकों का भी वैसा ही योगदान है। वे एक लेबोरेटरी में तपस्‍या करते हैं। अपने परिवार तक की देखभाल भूल कर, अपने आप को समर्पित कर देते हैं। और तब जाकर मानव कल्‍याण के लिए कुछ चीज दुनिया के सामने प्रस्‍तुत होती है। ऐसी तपस्‍या करने वाले और देश की ताकत को बढ़ावा देने वाले, मानव की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्‍प रखने वाले ये सभी वैज्ञानिक अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं।

बहुत तेजी से दुनिया बदल रही है। युद्ध के रूप-रंग बदल चुके हैं, रक्षा और संहार के सभी पैरामीटर बदल चुके हैं। टेकनोलॉजी जैसे जीवन के हर क्षेत्र को प्री-डोमिनंट्ली ड्राइव कर रही है , पूरी तरह जीवन के हर क्षेत्र में बदल रही है, वैसे ही सुरक्षा के क्षेत्र में भी है और गति इतनी तेज है कि हम एक विषय पर काँसेपचुलाइज़ करते हैं, तो उससे पहले ही दो-कदम आगे कोई प्रॉडक्ट निकल आता है और हम पीछे-के-पीछे रह जाते हैं। इसलिए भारत के सामने सबसे बड़ा चैलेंज जो मैं देख रहा हूं, वो यह है कि हम समय से पहले काम कैसे करे? अगर दुनिया 2020 में इन आयुद्धों को लेकर आने वाली है, तो क्‍या हम 2018 में उसके लिए पूरा प्रबंध करके मैदान में आ सकते हैं? विश्‍व में हमारी स्‍वीकृति, हमारी मांग, ‘किसी ने किया, इसलिए हम करेंगे’ उस में नहीं है| हम विज़ुलाइज़ करें कि जगत ऐसे जाने वाला है और हम इस प्रकार से चलें, तो हो सकता है कि हम लीडर बन जाए और डीआरडीओ को स्थिति को रेस्पोंड करना होगा, डीआरडीओ ने प्रो-एक्टिव होकर एजेंडा सेट करना है। हमें ग्‍लोबल कम्‍युनिटी के लिए एजेंडा सेट करना है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास टेलेंट नहीं है, या हमारे पास रिसोर्स नहीं है। लेकिन हमने इस पर ध्‍यान नहीं दिया है क्योंकि हमारे स्वभाव में ‘अरे चलो चलता है क्या तकलीफ़ है’, ये एटीटियूड है ।

दूसरा जो मुझे लगता है, डीआरडीओ का कंट्रीब्‍यूशन कम नहीं है। इसका कंट्रीब्‍यूशन बहुत महत्‍वपूर्ण है और इसे जितनी बधाई दी जाए, वह कम है। आज इस क्षेत्र में लगे हुए छोटे-मोटे हर व्‍यक्ति अभिनंदन के अधिकारी है। लेकिन कभी उन्‍हें वैज्ञानिक तरीके से भी सोचने की आवश्‍यकता है। अभी मैं अविनाश जी से चर्चा कर रहा था। डीआरडीओ और डीआरडीओ से जुड़े हुए प्राइवेट इंडिविजुअल और कंपनीज़, इनको तो हम अवॉर्ड दे रहे हैं और अच्छा भी है,लेकिन भविष्य के लिए मुझे लगता है आवश्यकता है कि डीआरडीओ एक दूसरी कैटेगिरी के अवार्ड की व्‍यवस्‍था करे, जिसका डीआरडीओ से कोई लेना देना नहीं होगा। जिसने डीआरडीओ के साथ कभी कोई काम नहीं किया है, लेकिन इस फील्‍ड में रिसर्च करने में उन्‍होंने कोई दूसरा कॉन्‍ट्रीब्‍यूशन किया है, किसी प्रोफेसर के रूप में, आईटी के क्षेत्र में। ऐसे लोगों को भी खोजा जाए, परखा जाए तो हमें एक टेलेंट जो आउट ऑफ डीआरडीओ है उनका भी पूल बनाने की हमें संभावना खोजनी चाहिए और इसलिए हमें उस दिशा में सोचना चाहिए।

तीसरा मेरा एक आग्रह है कि हम कितने ही रिसर्च क्‍यों न करें, लेकिन आखिरकार चाहे जल सेना हो, थल सेना हो, या नौसेना हो सबसे पहले नाता सैनिक का है, क्‍योंकि उसी से उसका गुजारा होता है और ऑपरेट भी उसी को करना है। लेकिन सेना के जवान और अफसर जो रोजमर्रा की उस जिंदगी को जीते हैं, काम करते वक्‍त उसके मन में भी बड़े इनोवेटिव आइडियाज आते हैं। जब वो किसी चीज को उपयोग करता है तो उसे लगता है कि इसकी बजाय ऐसा होता तो अच्‍छा होता। उसको लगता है कि लेफ्ट साइड दरवाजा खुलता है तो राइट साइड होता तो और अच्‍छा होता। यह कोई बहुत बड़ा रॉकेट साइंस नहीं होगा। क्‍या हम कभी हमारे तीनों बलों को, जल सेना, थल सेना और नौसेना उनमें से भी जो आज सेवा में रत है, उनको कहा जाए कि आप में कोई इनोवेटिव आइडियाज होंगे तो उनको भी शामिल किया जाएगा। आप जैसे अपना काम करते हैं। जैसे एजुकेशन में बदलाव कैसे आ रहा है। एक टीचर जो अच्‍छे प्रयोगकर्ता है, उनके आगे चलकर आइडियाज, इंस्‍टीट्यूशन में बदल कर आने वाली पीढि़यों के लिए काम आता है। वैसे ही सेना में काम करने वाले टेकनिकल पर्सन और सेवा में रत लोग हैं। हो सकता है पहाड़ में चलने वाली गाड़ी रेगिस्‍तान में न चले तो उसके कुछ आइडियाज होंगे। हमें इसको प्रमोट करना चाहिए और एक एक्‍सटेंशन ऑफ डीआरडीओ टाइप, हमें इवोल्‍व करना चाहिए। अगर यह हम इवोल्‍व करते हैं तो हमारे तीनों क्षेत्रों में काम करने वाले इस प्रकार के टेलेंट वाले जो फौजी है, अफसर है मैं मानता हूं, वे हमें ज्‍यादा प्रेक्टिकल सोल्‍यूशन दे सकते हैं या हमें वो स्‍पेसिफिक रिसर्च करने के लिए वो आइडिया दे सकते हैं कि इस समस्‍या का समाधान डीआरडीओ कर सकता है। उस पर हमें सोचना चाहिए।

चौथा, जो मुझे लगता है - कि हम डीआरडीओ के माध्‍यम से समाज में किस प्रकार से देशभर में इस क्षेत्र में रूचि रखने वाली अच्छे विश्‍वविद्यालयों की पहचान करें, और एक साल के लिए विशेष रूप से इन साइंटिस्‍टों को उन विश्‍वविद्यालयों के साथ अटैच करें? उन विश्‍वविद्यालयों के छात्रों के साथ डायलॉग हों, मिलना-जुलना हो, साल में आठ-दस सिटिंग हों। तो वहाँ जो हमारे नौजवान हैं उनके लिए साइंटिस्‍ट एक बहुत बड़ी इंस्पिरेशन बन जाएगा। जो सोचता था कि मैं अपना करियर यह बनाऊंगा, वो सोचता है कि इन्होने अपना जीवन खपा दिया, चलो मैं भी अपने कैरियर के सपने छोड़ दूँ और इसमे अपना जीवन खपा दूँ तो, हो सकता है वो देश को कुछ देकर जाए।

यही हमारा काम है संस्‍कार-संक्रमण का कि एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन, हमारे इस सामर्थ को कैसे परकोलेट भी करे और डिवेल्प भी करें और जब तक हम मैकेनिज्‍म नहीं बनाएंगे ये संभव नहीं है। यूनिवर्सिटी में हम कन्‍वोकेशन में किसी साइंटिस्‍ट को बुला लें वो एक बात है, लेकिन हम उनके टेलेंट, उनकी तपस्या और उनके योगदान को किस प्रकार से उनके साथ जोड़ें वो आपके बहुत काम आएगा।

क्‍या इन साइंटिस्टों को सेना के लोगों के साथ इन्‍टरेक्‍शन करने का मौका मिलता है ? क्‍योंकि इन्होंने इतनी बड़ी रिसर्च की है। सेना के जवान को मिलने से रक्षा का विश्‍वास पैदा होता है। क्‍या कभी सेना के जवान ने उस ऋषि को देखा है, जिसने उसकी रक्षा के लिए 15 साल लेबोरिटी में जिदंगी गुजारी है। जिस दिन सेना में काम करने वाला व्‍यक्ति उस ऋषि को और उस साइंटिस्‍ट को देखेगा, आप कल्पना कर सकतें हैं उस ऑनर का फल कैसा होगा और इसलिए हमारी पूरी व्‍यवस्‍था एक दायरे से बाहर निकाल करके जिस में ह्यूमन टच हो, एक इंस्पिरेशन हो, उस दिशा में उसको कैसे ले जा सके। मैं मानता हूं कि अभी जिन लोगों का सम्‍मान हुआ, उनसे इंटरेक्‍ट करके देंखे, आपको अनुभव होगा कि इस फंक्‍शन से उनका भी इंस्पिरेशन हाई हो जाएगा कि वो काम करने वाले को भी प्रेरणा देगा और जिसने उनके लिए काम किया है उन जवानो का भी इंस्पिरेशन हाई हो जाएगा कि अच्छा हमारे लिए इतना काम होता है । उसी प्रकार से डीआरडीओ को कुछ लेयर बनाने चाहिए ऐसा मुझे लगता है हालाँकि इसमें मेरा ज्‍यादा अध्‍ययन नहीं है पर एक तो है हाईटेक की तरफ जाना और बहुत बड़ा नया इनोवेशन करना है लेकिन एट द सेम टाइम रोजमर्रा की जिदंगी जीने वाला जो हमारा फौजी है, उसकी लाइफ में कम्‍फर्ट आए। ऐसे साधनों की खोज, उसका निर्माण यह एक ऐसा अवसर है। आज उसका वाटर बैग जो तीन सौ ग्राम का है तो उतना ही अच्छा बैग डेढ सौ ग्राम का कैसे बने, ताकि उसको वजन कम धोना पड़े । आज उसके जूते कितने वेट के हैं, पहाड़ों में एक तकलीफ रहती है, तो रेगिस्‍तान में दूसरी तकलीफ होती है, इसमें भी बहुत रिसर्च करना है। क्या इस दिशा में कभी रिसर्च होता ? क्‍या कभी जूते बनाने वाली कंपनी और डीआरडीओ के साथ इनका इन्‍टरफेस होता है। क्‍या ये रिसर्च करके देते हैं। ये लोग डीआरडीओ को एक लैब से बाहर निकल करके और जो उनकी रोजमर्रा की जिदंगी है। अब देखिए हम इतने इनोवेशन के साथ लोग आएंगे, इतनी नई चीजें देंगे। जो हमारी समय की सेना के जवानों के लिए बहुत ही कम्‍फर्टेबल व्‍यवस्‍था उपलब्‍ध करा सकते हैं, बहुत लाभ कर सकता है। इस दिशा में क्‍या कुछ सोचा जा सकता है।

एक और विषय मेरे मन में आता है - आज डीआरडीओ के साथ करीब 50 लेबो‍रेट्री भिन्‍न- भिन्‍न क्षेत्रों में काम कर रही हैं क्‍या हम तय कर सकते हैं कि मल्‍टी-टैलेंट का उपयोग करने वाली पांच लैब हम ढूंढे 50 में से और हम एक फ़ैसला करेंगें कि 5 लैब ऐसी होंगी, जिसमें नीचे से ऊपर एक भी व्‍यक्ति 35 साल से ऊपर की उम्र का नहीं होगा। सब के सब विलो 35 होंगे। अल्‍टीमेट डिसिजन लेने वाले भी 35 साल से नीचे के होंगे। एक बार हिम्‍मत के साथ हिन्‍दुस्तान की यंगेस्‍ट टीम को हम अवसर दें, और उन्हें बतायें कि दुनिया आगे बढ़ रही है, आप बताओ। मैं विश्‍वास के साथ कहता हूं कि इस देश के टेलेंट में दम है, वो हमें बहुत कुछ नई चीजें दे सकता है।

अब आजकल साईबर सिक्‍योरिटी की बहुत बड़ी लड़ाई हैं। मैं मानता हूं कि वो 20-25 साल का नौजवान बहुत अच्छे ढंग से यह करके दे देगा हमें। क्‍योंकि उसका विकास इस दिशा में हुआ है, क्‍योंकि ये चीजें तुरंत उसके ध्‍यान में आतीं हैं। क्या हम पांच लैब टोटली डेडीकेटड टू 35 ईयर्स बना सकते हैं? डिसिजन मैकिंग प्रोसेस आखिर तक 35 से नीचे के लोगों के हाथों में दे दी जाए। हम रिस्‍क ले लेंगे। हमने बहुत रिस्‍क लिए हैं। एक रिस्‍क और ले लेंगे। आप देखिए एक नई हवा की जरूरत है। एक फ्रेश एयर की जरूरत है। और फ्रेश एयर आएगी। हमें लाभ होगा।

डिफेंस सिक्‍योरिटी को लेकर हमे हमारे सामान्‍य स्‍टुडेंट्स को भी तैयार करना चाहिए। क्‍या कभी हमने सरकार के द्वारा, स्‍कूलों के द्वारा किए गये साइन्स फेयर में कहा है, कि यह साइंस फेयर 2015 विल बी टोटली डेडीकेटड टू डिफेंस रिलेटिड इश्यूस? सब नौजवान खोजेगे, टीचर इन्‍ट्रेस्‍ट लेंगें, स्‍टडीज होंगीं, प्रोजैक्‍ट रिपोर्ट बनेंगे। लाखों की तादात में हमारे स्‍टूडेंस की इन्वाल्वमेंट, डिफेन्स टेक्‍नोलॉजी एक बहुत बड़ा काम हैं, डिफेंस रिसर्च बहुत बड़ा काम है, यह सोचने की खिड़की खुल जाएगी। हो सकता है दो-चार लोग ऐसे भी निकल आएं जिनको मन कर जाए की चलो इसको हम करियर बनायें अपना। हमने देखा है कि आजकल टेक्निकल यूनि‍वर्सिटीज की एक ग्‍लोबल रॉबोट ओलंपिक होता है। राष्ट्र स्तर का भी होता है। क्‍या हम उसको स्‍पेशली डीआरडीओ से लिंक करके रोबोट कॅंपिटिशन टोटली डेडीकेटड टू डिफेन्स बना सकते हैं?

अब देखिए ये जो नौजवान रॉबोर्ट के द्वारा फुटबाल खेलते हैं, रॉबोर्ट के द्वारा क्रिकेट खेलते हैं, वो सब उसमें मज़ा भी लेते हैं, और उसका कॉम्पीटिशन भी होता है। लेकिन उसको 2-3 स्टेप आगे हम सोच सकते हैं। एक नये तरीके से, नयी सोच के साथ, और सभी लोगों को जोड़ कर के हम इस पूरी व्यवस्था को विकसित करें और साथ साथ, समय की माँग है, दुनिया हमारा इंतज़ार नहीं करेगी। हमें ही समय से पहले दौड़ना पड़ेगा और इसलिए, हम जो भी सोचें, जो भी करें, जी- जान से जुट कर के समय से पहले करने का संकल्प करें। वरना कोई प्रॉजेक्ट कन्सीव हुआ 1992 में, और 2014 में "हा, अभी थोड़े दिन लगेंगे" की हालत में होगा, तो ये दुनिया बहुत आगे बढ़ जाएगी। इसलिए, आज डीआरडीओ से संबंधित सभी प्रमुख लोगों से मिलने का मुझे अवसर मिला है, जो इतना उत्तम काम करते हैं, और जिनमें पोटेन्षियल है। लोग कहते हैं कि मोदी जी आपकी सरकार से लोगों को बहुत अपेक्षायें हैं। जो करेगा उसी से तो अपेक्षा होती है, जो नहीं करेगा उस से कौन अपेक्षा करेगा? तो डीआरडीओ से भी मेरी अपेक्षा क्यों है? मेरी अपेक्षा इसलिए है, क्योंकि डीआरडीओ में करने का सामर्थ्य है, ये मैं भली-भाँति अनुभव करता हूँ। आपके अंदर वो सामर्थ्य है और आपने कर के दिखाया है और इसलिए मुझे विश्वास है कि आप लोग यह कर सकते हैं ।

फिर एक बार सभी वैज्ञानिक महोदयो को देश की सेवा करने के लिए उत्तम योगदान करने के लिए, बहुत बहुत शुभकामनायें देता हूँ, बहुत बधाई देता हूँ। धन्यवाद।

Explore More
140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day

Popular Speeches

140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day

Media Coverage

"Huge opportunity": Japan delegation meets PM Modi, expressing their eagerness to invest in India
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Today, India is not just a Nation of Dreams but also a Nation That Delivers: PM Modi in TV9 Summit
March 28, 2025
QuoteToday, the world's eyes are on India: PM
QuoteIndia's youth is rapidly becoming skilled and driving innovation forward: PM
Quote"India First" has become the mantra of India's foreign policy: PM
QuoteToday, India is not just participating in the world order but also contributing to shaping and securing the future: PM
QuoteIndia has given Priority to humanity over monopoly: PM
QuoteToday, India is not just a Nation of Dreams but also a Nation That Delivers: PM

श्रीमान रामेश्वर गारु जी, रामू जी, बरुन दास जी, TV9 की पूरी टीम, मैं आपके नेटवर्क के सभी दर्शकों का, यहां उपस्थित सभी महानुभावों का अभिनंदन करता हूं, इस समिट के लिए बधाई देता हूं।

TV9 नेटवर्क का विशाल रीजनल ऑडियंस है। और अब तो TV9 का एक ग्लोबल ऑडियंस भी तैयार हो रहा है। इस समिट में अनेक देशों से इंडियन डायस्पोरा के लोग विशेष तौर पर लाइव जुड़े हुए हैं। कई देशों के लोगों को मैं यहां से देख भी रहा हूं, वे लोग वहां से वेव कर रहे हैं, हो सकता है, मैं सभी को शुभकामनाएं देता हूं। मैं यहां नीचे स्क्रीन पर हिंदुस्तान के अनेक शहरों में बैठे हुए सब दर्शकों को भी उतने ही उत्साह, उमंग से देख रहा हूं, मेरी तरफ से उनका भी स्वागत है।

साथियों,

आज विश्व की दृष्टि भारत पर है, हमारे देश पर है। दुनिया में आप किसी भी देश में जाएं, वहां के लोग भारत को लेकर एक नई जिज्ञासा से भरे हुए हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो देश 70 साल में ग्यारहवें नंबर की इकोनॉमी बना, वो महज 7-8 साल में पांचवे नंबर की इकोनॉमी बन गया? अभी IMF के नए आंकड़े सामने आए हैं। वो आंकड़े कहते हैं कि भारत, दुनिया की एकमात्र मेजर इकोनॉमी है, जिसने 10 वर्षों में अपने GDP को डबल किया है। बीते दशक में भारत ने दो लाख करोड़ डॉलर, अपनी इकोनॉमी में जोड़े हैं। GDP का डबल होना सिर्फ आंकड़ों का बदलना मात्र नहीं है। इसका impact देखिए, 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, और ये 25 करोड़ लोग एक नियो मिडिल क्लास का हिस्सा बने हैं। ये नियो मिडिल क्लास, एक प्रकार से नई ज़िंदगी शुरु कर रहा है। ये नए सपनों के साथ आगे बढ़ रहा है, हमारी इकोनॉमी में कंट्रीब्यूट कर रहा है, और उसको वाइब्रेंट बना रहा है। आज दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी हमारे भारत में है। ये युवा, तेज़ी से स्किल्ड हो रहा है, इनोवेशन को गति दे रहा है। और इन सबके बीच, भारत की फॉरेन पॉलिसी का मंत्र बन गया है- India First, एक जमाने में भारत की पॉलिसी थी, सबसे समान रूप से दूरी बनाकर चलो, Equi-Distance की पॉलिसी, आज के भारत की पॉलिसी है, सबके समान रूप से करीब होकर चलो, Equi-Closeness की पॉलिसी। दुनिया के देश भारत की ओपिनियन को, भारत के इनोवेशन को, भारत के एफर्ट्स को, जैसा महत्व आज दे रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। आज दुनिया की नजर भारत पर है, आज दुनिया जानना चाहती है, What India Thinks Today.

|

साथियों,

भारत आज, वर्ल्ड ऑर्डर में सिर्फ पार्टिसिपेट ही नहीं कर रहा, बल्कि फ्यूचर को शेप और सेक्योर करने में योगदान दे रहा है। दुनिया ने ये कोरोना काल में अच्छे से अनुभव किया है। दुनिया को लगता था कि हर भारतीय तक वैक्सीन पहुंचने में ही, कई-कई साल लग जाएंगे। लेकिन भारत ने हर आशंका को गलत साबित किया। हमने अपनी वैक्सीन बनाई, हमने अपने नागरिकों का तेज़ी से वैक्सीनेशन कराया, और दुनिया के 150 से अधिक देशों तक दवाएं और वैक्सीन्स भी पहुंचाईं। आज दुनिया, और जब दुनिया संकट में थी, तब भारत की ये भावना दुनिया के कोने-कोने तक पहुंची कि हमारे संस्कार क्या हैं, हमारा तौर-तरीका क्या है।

साथियों,

अतीत में दुनिया ने देखा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब भी कोई वैश्विक संगठन बना, उसमें कुछ देशों की ही मोनोपोली रही। भारत ने मोनोपोली नहीं बल्कि मानवता को सर्वोपरि रखा। भारत ने, 21वीं सदी के ग्लोबल इंस्टीट्यूशन्स के गठन का रास्ता बनाया, और हमने ये ध्यान रखा कि सबकी भागीदारी हो, सबका योगदान हो। जैसे प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती है। देश कोई भी हो, इन आपदाओं से इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान होता है। आज ही म्यांमार में जो भूकंप आया है, आप टीवी पर देखें तो बहुत बड़ी-बड़ी इमारतें ध्वस्त हो रही हैं, ब्रिज टूट रहे हैं। और इसलिए भारत ने Coalition for Disaster Resilient Infrastructure - CDRI नाम से एक वैश्विक नया संगठन बनाने की पहल की। ये सिर्फ एक संगठन नहीं, बल्कि दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार करने का संकल्प है। भारत का प्रयास है, प्राकृतिक आपदा से, पुल, सड़कें, बिल्डिंग्स, पावर ग्रिड, ऐसा हर इंफ्रास्ट्रक्चर सुरक्षित रहे, सुरक्षित निर्माण हो।

साथियों,

भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए हर देश का मिलकर काम करना बहुत जरूरी है। ऐसी ही एक चुनौती है, हमारे एनर्जी रिसोर्सेस की। इसलिए पूरी दुनिया की चिंता करते हुए भारत ने International Solar Alliance (ISA) का समाधान दिया है। ताकि छोटे से छोटा देश भी सस्टेनबल एनर्जी का लाभ उठा सके। इससे क्लाइमेट पर तो पॉजिटिव असर होगा ही, ये ग्लोबल साउथ के देशों की एनर्जी नीड्स को भी सिक्योर करेगा। और आप सबको ये जानकर गर्व होगा कि भारत के इस प्रयास के साथ, आज दुनिया के सौ से अधिक देश जुड़ चुके हैं।

साथियों,

बीते कुछ समय से दुनिया, ग्लोबल ट्रेड में असंतुलन और लॉजिस्टिक्स से जुड़ी challenges का सामना कर रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भी भारत ने दुनिया के साथ मिलकर नए प्रयास शुरु किए हैं। India–Middle East–Europe Economic Corridor (IMEC), ऐसा ही एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। ये प्रोजेक्ट, कॉमर्स और कनेक्टिविटी के माध्यम से एशिया, यूरोप और मिडिल ईस्ट को जोड़ेगा। इससे आर्थिक संभावनाएं तो बढ़ेंगी ही, दुनिया को अल्टरनेटिव ट्रेड रूट्स भी मिलेंगे। इससे ग्लोबल सप्लाई चेन भी और मजबूत होगी।

|

साथियों,

ग्लोबल सिस्टम्स को, अधिक पार्टिसिपेटिव, अधिक डेमोक्रेटिक बनाने के लिए भी भारत ने अनेक कदम उठाए हैं। और यहीं, यहीं पर ही भारत मंडपम में जी-20 समिट हुई थी। उसमें अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का परमानेंट मेंबर बनाया गया है। ये बहुत बड़ा ऐतिहासिक कदम था। इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी, जो भारत की प्रेसीडेंसी में पूरी हुई। आज ग्लोबल डिसीजन मेकिंग इंस्टीट्यूशन्स में भारत, ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज़ बन रहा है। International Yoga Day, WHO का ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए ग्लोबल फ्रेमवर्क, ऐसे कितने ही क्षेत्रों में भारत के प्रयासों ने नए वर्ल्ड ऑर्डर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है, और ये तो अभी शुरूआत है, ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर भारत का सामर्थ्य नई ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा है।

साथियों,

21वीं सदी के 25 साल बीत चुके हैं। इन 25 सालों में 11 साल हमारी सरकार ने देश की सेवा की है। और जब हम What India Thinks Today उससे जुड़ा सवाल उठाते हैं, तो हमें ये भी देखना होगा कि Past में क्या सवाल थे, क्या जवाब थे। इससे TV9 के विशाल दर्शक समूह को भी अंदाजा होगा कि कैसे हम, निर्भरता से आत्मनिर्भरता तक, Aspirations से Achievement तक, Desperation से Development तक पहुंचे हैं। आप याद करिए, एक दशक पहले, गांव में जब टॉयलेट का सवाल आता था, तो माताओं-बहनों के पास रात ढलने के बाद और भोर होने से पहले का ही जवाब होता था। आज उसी सवाल का जवाब स्वच्छ भारत मिशन से मिलता है। 2013 में जब कोई इलाज की बात करता था, तो महंगे इलाज की चर्चा होती थी। आज उसी सवाल का समाधान आयुष्मान भारत में नजर आता है। 2013 में किसी गरीब की रसोई की बात होती थी, तो धुएं की तस्वीर सामने आती थी। आज उसी समस्या का समाधान उज्ज्वला योजना में दिखता है। 2013 में महिलाओं से बैंक खाते के बारे में पूछा जाता था, तो वो चुप्पी साध लेती थीं। आज जनधन योजना के कारण, 30 करोड़ से ज्यादा बहनों का अपना बैंक अकाउंट है। 2013 में पीने के पानी के लिए कुएं और तालाबों तक जाने की मजबूरी थी। आज उसी मजबूरी का हल हर घर नल से जल योजना में मिल रहा है। यानि सिर्फ दशक नहीं बदला, बल्कि लोगों की ज़िंदगी बदली है। और दुनिया भी इस बात को नोट कर रही है, भारत के डेवलपमेंट मॉडल को स्वीकार रही है। आज भारत सिर्फ Nation of Dreams नहीं, बल्कि Nation That Delivers भी है।

साथियों,

जब कोई देश, अपने नागरिकों की सुविधा और समय को महत्व देता है, तब उस देश का समय भी बदलता है। यही आज हम भारत में अनुभव कर रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। पहले पासपोर्ट बनवाना कितना बड़ा काम था, ये आप जानते हैं। लंबी वेटिंग, बहुत सारे कॉम्प्लेक्स डॉक्यूमेंटेशन का प्रोसेस, अक्सर राज्यों की राजधानी में ही पासपोर्ट केंद्र होते थे, छोटे शहरों के लोगों को पासपोर्ट बनवाना होता था, तो वो एक-दो दिन कहीं ठहरने का इंतजाम करके चलते थे, अब वो हालात पूरी तरह बदल गया है, एक आंकड़े पर आप ध्यान दीजिए, पहले देश में सिर्फ 77 पासपोर्ट सेवा केंद्र थे, आज इनकी संख्या 550 से ज्यादा हो गई है। पहले पासपोर्ट बनवाने में, और मैं 2013 के पहले की बात कर रहा हूं, मैं पिछले शताब्दी की बात नहीं कर रहा हूं, पासपोर्ट बनवाने में जो वेटिंग टाइम 50 दिन तक होता था, वो अब 5-6 दिन तक सिमट गया है।

साथियों,

ऐसा ही ट्रांसफॉर्मेशन हमने बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में भी देखा है। हमारे देश में 50-60 साल पहले बैंकों का नेशनलाइजेशन किया गया, ये कहकर कि इससे लोगों को बैंकिंग सुविधा सुलभ होगी। इस दावे की सच्चाई हम जानते हैं। हालत ये थी कि लाखों गांवों में बैंकिंग की कोई सुविधा ही नहीं थी। हमने इस स्थिति को भी बदला है। ऑनलाइन बैंकिंग तो हर घर में पहुंचाई है, आज देश के हर 5 किलोमीटर के दायरे में कोई न कोई बैंकिंग टच प्वाइंट जरूर है। और हमने सिर्फ बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का ही दायरा नहीं बढ़ाया, बल्कि बैंकिंग सिस्टम को भी मजबूत किया। आज बैंकों का NPA बहुत कम हो गया है। आज बैंकों का प्रॉफिट, एक लाख 40 हज़ार करोड़ रुपए के नए रिकॉर्ड को पार कर चुका है। और इतना ही नहीं, जिन लोगों ने जनता को लूटा है, उनको भी अब लूटा हुआ धन लौटाना पड़ रहा है। जिस ED को दिन-रात गालियां दी जा रही है, ED ने 22 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक वसूले हैं। ये पैसा, कानूनी तरीके से उन पीड़ितों तक वापिस पहुंचाया जा रहा है, जिनसे ये पैसा लूटा गया था।

साथियों,

Efficiency से गवर्नमेंट Effective होती है। कम समय में ज्यादा काम हो, कम रिसोर्सेज़ में अधिक काम हो, फिजूलखर्ची ना हो, रेड टेप के बजाय रेड कार्पेट पर बल हो, जब कोई सरकार ये करती है, तो समझिए कि वो देश के संसाधनों को रिस्पेक्ट दे रही है। और पिछले 11 साल से ये हमारी सरकार की बड़ी प्राथमिकता रहा है। मैं कुछ उदाहरणों के साथ अपनी बात बताऊंगा।

|

साथियों,

अतीत में हमने देखा है कि सरकारें कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिनिस्ट्रीज में accommodate करने की कोशिश करती थीं। लेकिन हमारी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही कई मंत्रालयों का विलय कर दिया। आप सोचिए, Urban Development अलग मंत्रालय था और Housing and Urban Poverty Alleviation अलग मंत्रालय था, हमने दोनों को मर्ज करके Housing and Urban Affairs मंत्रालय बना दिया। इसी तरह, मिनिस्ट्री ऑफ ओवरसीज़ अफेयर्स अलग था, विदेश मंत्रालय अलग था, हमने इन दोनों को भी एक साथ जोड़ दिया, पहले जल संसाधन, नदी विकास मंत्रालय अलग था, और पेयजल मंत्रालय अलग था, हमने इन्हें भी जोड़कर जलशक्ति मंत्रालय बना दिया। हमने राजनीतिक मजबूरी के बजाय, देश की priorities और देश के resources को आगे रखा।

साथियों,

हमारी सरकार ने रूल्स और रेगुलेशन्स को भी कम किया, उन्हें आसान बनाया। करीब 1500 ऐसे कानून थे, जो समय के साथ अपना महत्व खो चुके थे। उनको हमारी सरकार ने खत्म किया। करीब 40 हज़ार, compliances को हटाया गया। ऐसे कदमों से दो फायदे हुए, एक तो जनता को harassment से मुक्ति मिली, और दूसरा, सरकारी मशीनरी की एनर्जी भी बची। एक और Example GST का है। 30 से ज्यादा टैक्सेज़ को मिलाकर एक टैक्स बना दिया गया है। इसको process के, documentation के हिसाब से देखें तो कितनी बड़ी बचत हुई है।

साथियों,

सरकारी खरीद में पहले कितनी फिजूलखर्ची होती थी, कितना करप्शन होता था, ये मीडिया के आप लोग आए दिन रिपोर्ट करते थे। हमने, GeM यानि गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म बनाया। अब सरकारी डिपार्टमेंट, इस प्लेटफॉर्म पर अपनी जरूरतें बताते हैं, इसी पर वेंडर बोली लगाते हैं और फिर ऑर्डर दिया जाता है। इसके कारण, भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हुई है, और सरकार को एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की बचत भी हुई है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर- DBT की जो व्यवस्था भारत ने बनाई है, उसकी तो दुनिया में चर्चा है। DBT की वजह से टैक्स पेयर्स के 3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा, गलत हाथों में जाने से बचे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा फर्ज़ी लाभार्थी, जिनका जन्म भी नहीं हुआ था, जो सरकारी योजनाओं का फायदा ले रहे थे, ऐसे फर्जी नामों को भी हमने कागजों से हटाया है।

साथियों,

 

हमारी सरकार टैक्स की पाई-पाई का ईमानदारी से उपयोग करती है, और टैक्सपेयर का भी सम्मान करती है, सरकार ने टैक्स सिस्टम को टैक्सपेयर फ्रेंडली बनाया है। आज ITR फाइलिंग का प्रोसेस पहले से कहीं ज्यादा सरल और तेज़ है। पहले सीए की मदद के बिना, ITR फाइल करना मुश्किल होता था। आज आप कुछ ही समय के भीतर खुद ही ऑनलाइन ITR फाइल कर पा रहे हैं। और रिटर्न फाइल करने के कुछ ही दिनों में रिफंड आपके अकाउंट में भी आ जाता है। फेसलेस असेसमेंट स्कीम भी टैक्सपेयर्स को परेशानियों से बचा रही है। गवर्नेंस में efficiency से जुड़े ऐसे अनेक रिफॉर्म्स ने दुनिया को एक नया गवर्नेंस मॉडल दिया है।

साथियों,

पिछले 10-11 साल में भारत हर सेक्टर में बदला है, हर क्षेत्र में आगे बढ़ा है। और एक बड़ा बदलाव सोच का आया है। आज़ादी के बाद के अनेक दशकों तक, भारत में ऐसी सोच को बढ़ावा दिया गया, जिसमें सिर्फ विदेशी को ही बेहतर माना गया। दुकान में भी कुछ खरीदने जाओ, तो दुकानदार के पहले बोल यही होते थे – भाई साहब लीजिए ना, ये तो इंपोर्टेड है ! आज स्थिति बदल गई है। आज लोग सामने से पूछते हैं- भाई, मेड इन इंडिया है या नहीं है?

साथियों,

आज हम भारत की मैन्युफैक्चरिंग एक्सीलेंस का एक नया रूप देख रहे हैं। अभी 3-4 दिन पहले ही एक न्यूज आई है कि भारत ने अपनी पहली MRI मशीन बना ली है। अब सोचिए, इतने दशकों तक हमारे यहां स्वदेशी MRI मशीन ही नहीं थी। अब मेड इन इंडिया MRI मशीन होगी तो जांच की कीमत भी बहुत कम हो जाएगी।

|

साथियों,

आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान ने, देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को एक नई ऊर्जा दी है। पहले दुनिया भारत को ग्लोबल मार्केट कहती थी, आज वही दुनिया, भारत को एक बड़े Manufacturing Hub के रूप में देख रही है। ये सक्सेस कितनी बड़ी है, इसके उदाहरण आपको हर सेक्टर में मिलेंगे। जैसे हमारी मोबाइल फोन इंडस्ट्री है। 2014-15 में हमारा एक्सपोर्ट, वन बिलियन डॉलर तक भी नहीं था। लेकिन एक दशक में, हम ट्वेंटी बिलियन डॉलर के फिगर से भी आगे निकल चुके हैं। आज भारत ग्लोबल टेलिकॉम और नेटवर्किंग इंडस्ट्री का एक पावर सेंटर बनता जा रहा है। Automotive Sector की Success से भी आप अच्छी तरह परिचित हैं। इससे जुड़े Components के एक्सपोर्ट में भी भारत एक नई पहचान बना रहा है। पहले हम बहुत बड़ी मात्रा में मोटर-साइकल पार्ट्स इंपोर्ट करते थे। लेकिन आज भारत में बने पार्ट्स UAE और जर्मनी जैसे अनेक देशों तक पहुंच रहे हैं। सोलर एनर्जी सेक्टर ने भी सफलता के नए आयाम गढ़े हैं। हमारे सोलर सेल्स, सोलर मॉड्यूल का इंपोर्ट कम हो रहा है और एक्सपोर्ट्स 23 गुना तक बढ़ गए हैं। बीते एक दशक में हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट भी 21 गुना बढ़ा है। ये सारी अचीवमेंट्स, देश की मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी की ताकत को दिखाती है। ये दिखाती है कि भारत में कैसे हर सेक्टर में नई जॉब्स भी क्रिएट हो रही हैं।

साथियों,

TV9 की इस समिट में, विस्तार से चर्चा होगी, अनेक विषयों पर मंथन होगा। आज हम जो भी सोचेंगे, जिस भी विजन पर आगे बढ़ेंगे, वो हमारे आने वाले कल को, देश के भविष्य को डिजाइन करेगा। पिछली शताब्दी के इसी दशक में, भारत ने एक नई ऊर्जा के साथ आजादी के लिए नई यात्रा शुरू की थी। और हमने 1947 में आजादी हासिल करके भी दिखाई। अब इस दशक में हम विकसित भारत के लक्ष्य के लिए चल रहे हैं। और हमें 2047 तक विकसित भारत का सपना जरूर पूरा करना है। और जैसा मैंने लाल किले से कहा है, इसमें सबका प्रयास आवश्यक है। इस समिट का आयोजन कर, TV9 ने भी अपनी तरफ से एक positive initiative लिया है। एक बार फिर आप सभी को इस समिट की सफलता के लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं हैं।

मैं TV9 को विशेष रूप से बधाई दूंगा, क्योंकि पहले भी मीडिया हाउस समिट करते रहे हैं, लेकिन ज्यादातर एक छोटे से फाइव स्टार होटल के कमरे में, वो समिट होती थी और बोलने वाले भी वही, सुनने वाले भी वही, कमरा भी वही। TV9 ने इस परंपरा को तोड़ा और ये जो मॉडल प्लेस किया है, 2 साल के भीतर-भीतर देख लेना, सभी मीडिया हाउस को यही करना पड़ेगा। यानी TV9 Thinks Today वो बाकियों के लिए रास्ता खोल देगा। मैं इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, आपकी पूरी टीम को, और सबसे बड़ी खुशी की बात है कि आपने इस इवेंट को एक मीडिया हाउस की भलाई के लिए नहीं, देश की भलाई के लिए आपने उसकी रचना की। 50,000 से ज्यादा नौजवानों के साथ एक मिशन मोड में बातचीत करना, उनको जोड़ना, उनको मिशन के साथ जोड़ना और उसमें से जो बच्चे सिलेक्ट होकर के आए, उनकी आगे की ट्रेनिंग की चिंता करना, ये अपने आप में बहुत अद्भुत काम है। मैं आपको बहुत बधाई देता हूं। जिन नौजवानों से मुझे यहां फोटो निकलवाने का मौका मिला है, मुझे भी खुशी हुई कि देश के होनहार लोगों के साथ, मैं अपनी फोटो निकलवा पाया। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं दोस्तों कि आपके साथ मेरी फोटो आज निकली है। और मुझे पक्का विश्वास है कि सारी युवा पीढ़ी, जो मुझे दिख रही है, 2047 में जब देश विकसित भारत बनेगा, सबसे ज्यादा बेनिफिशियरी आप लोग हैं, क्योंकि आप उम्र के उस पड़ाव पर होंगे, जब भारत विकसित होगा, आपके लिए मौज ही मौज है। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद।